ब्लॉग मित्र मंडली

16/5/10

बीकानेर स्थापना दिवस


522 वर्ष पूर्व राव बीकाजी द्वारा हुई थी बीकानेर की स्थापना
विक्रम संवत् 1545 के वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को
विश्व प्रसिद्ध चूहों के मंदिर ( जो बीकानेर से लगभग तीस किलोमीटर दूर देशनोक में स्थित है ) में जिस देवी की मूर्ति है , उनका नाम करणी माता है ; वे उस समय सशरीर इस मरुधरा जांगळ प्रदेश में विद्यमान थीं । उनके आशीर्वाद से जोधपुर राजघराने के राजकुंअर बीका ने अपने पिता और अन्य लोगों के ताने को चुनौती रूप में स्वीकार करते हुए , अपने चाचा कांधलजी के साथ कड़ी श्रम -साधना , संघर्ष और जीवटता के बल पर इस बंजर निर्जन भू भाग को रसा - बसा कर बीकानेर नाम दिया ।
अक्षय द्वितीया के दिन बीकानेरवासी गेहूं और मूंग का खीचड़ा घी मिला कर इमली और गुड़ से बने स्वादिष्ट पेय इमलाणी के साथ जीमते हैं , और घरों की छतों पर पतंग उड़ा कर हर्ष - उल्लास से उत्सव मनाते हैं । यह हंसी- ख़ुशी , हर्ष -उल्लास और उत्सव का माहौल अगले दिन अक्षय तृतीया तक और भी जोशोख़रोश  के साथ उत्तरोतर बढ़ता ही जाता है ।
यहां के दर्शनीय स्थलों में प्रमुख हैं - श्रीलक्ष्मीनाथ मंदिर , नागणेचेजी का मंदिर , भांडाशाह जैन मंदिर , जूनागढ़ किला , लालगढ़ पैलेस , म्यूज़ियम , लालेश्वर महादेव मंदिर - शिवबाड़ी , करणीमाता मंदिर - देशनोक , कपिलमुनि मंदिर और सरोवर - कोलायत , गजनेर पैलेस आदि…  । 
यहां के भुजिया , मिश्री , पापड़ , मिठाई , नमकीन आदि  जगप्रसिद्ध हैं ही । 
प्रसिद्ध हस्तियों में महाराजा गंगासिंहजी और अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज महाराजा करणीसिंहजी , राज्यश्रीजी , मांड गायिका अल्लाहजिलाई बाई , पाकीज़ा , परदेश जैसी फिल्मों के संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद आदि …
इस पोस्ट में गूगल महाराज की कृपा से बीकानेर से संबंधित कुछ चित्र संकलित हैं ।
लगभग सवा पांचसौ वर्षों का इतिहास है , अगले स्थापना दिवस पर और विस्तार से चर्चा करूंगा …


इस अवसर पर आपके लिए
राजस्थानी भाषा में बीकानेर से संबंधित मेरे लिखे कुछ दोहे प्रस्तुत हैं ।
भावार्थ भी साथ ही देने का प्रयास किया है ,
ताकि सृजन के साथ साथ भाव और भाषा भी संप्रेषित हो सके ।

नीं मिलै , बीकाणै रै जोड़ !
कह्यो… ठाठ सूं कर दियो , कीन्हो किस्यी उडीक ?
बीकाणो दीन्हो बसा , दृढ़ ' बीको ' दाठीक !!

भावार्थ - राव बीका ने अपने पिता जोधपुरनरेश राव जोधा के ताने के जवाब में कहा था
कि मैं आपको नया राज्य बना कर दिखाऊंगा ।
 …और जो कहा वह किसी की प्रतीक्षा किए बिना कुछ समय बाद ही
बीकानेर बसा कर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से सिद्ध भी कर दिया ।
आशीषां दी मोकळी , ' मा करणी ' साख्यात !

दिन दूणो फळ - फूलज्यो , फळो चौगुणो रात !!
 भावार्थ - इस महती कार्य को सफल बनाने में चारणकुल में जन्मी
साक्षात् चमत्कारिणी देवी स्वरूपा मां करणी ने
बीकाजी को आशीर्वाद और भरपूर सहयोग दिया ।
रंगबाज रूड़ो जबर , मौजी मस्त मलंग !
म्हारै बीकानेर रा , निरवाळा है रंग !!

 
भावार्थ -रंगबाज , धीर - गंभीर , सबल समर्थ , मस्त मौजी
मेरे शहर बीकानेर के निराले ही रंग -  ढंग हैं ।
धणी बात रो , वचन रो ;  नीं जावणदै आण !
धुन रो पक्को , सिर धरै , मरजादा सत माण !!
 
भावार्थ - वचनों का धनी और धुन का पक्का !
 हाथ आई हुकूमत और कही हुई बात कभी नहीं गंवाता ।
…और मर्यादा , सत्य एवम् सम्मान हमेशा अपने सिर पर धारण किए रखता है ।
बांकड़लो गबरू मरद , जबरी अकड़ - मरोड़ !
मुलक छाणल्यो , नीं मिलै , बीकाणै रै जोड़ !!
 
भावार्थ - क्या बांके गबरू मर्द जैसा गर्व और मिज़ाज है !
 बीकानेर जैसा दूसरा नहीं मिलेगा , दुनिया भर में ढूंढले कोई ।
ठसक निराळी फूठरी , मूंघो घणो मिज़्याज !
नेह हरख मावै नहीं , वारी जावां राज !!
 
भावार्थ - इसका स्वाभिमान निराला ही ख़ूबसूरत है ।
 इसके नाज़- नखरे बेशक़ीमती हैं ।
 इसका स्नेह और आनन्द छलक रहा है ,
हृदयों में नहीं समा पा रहा ।
 बीकानेर ! तुम पर क़ुर्बान जाते हैं हम !
तिरसिंगजी सूं नीं डरै , किण री  के औक़ात ?
पगल्या पाछा नीं धरै , बीकाणै री जात !!

 भावार्थ - बड़े से बड़े सूरमा से भी भय नहीं ,
किसकी क्या बिसात है बीकानेर के आगे ?
यह कभी पांव पीछे रखने वालों में नहीं है ।
परखै आया पांवणा  , मनड़ां री मनुहार !
हेज हेत हिंवळास रै रस भींज्यो व्यौहार !!

 भावार्थ - आने वाले मेहमान हमारे हार्दिक स्वागत और मनुहार को परखते हैं
कि हमारा व्यवहार कितना मित्रता , प्रेम और धैर्य से रससिक्त है !
ऊंडो पाणी , नार - नर ऊंडा गहन गंभीर !
सूर  तपै  ज्यूं  तेज ; मन चांदो शीतळ धीर !!
 
भावार्थ - गहरा पानी और उतने ही गहन - गंभीर स्त्री - पुरुष !
 सूर्य सा तपता हुआ तेज ; चंद्रमा जैसा शीतल हृदय  है हमारा !
तपै तावड़ो दिन भलां , ठंडी निरमळ रात !
मुधरो बैय सुहावणो बायरियो परभात !!
 
भावार्थ - दिन में चाहे झुलसा देने वाली धूप रहे ,
रातें ठंडी होती हैं बीकानेर की ।
…और भोर में मंद - मंद बहने वाली हवा बहुत सुहावनी लगती है ।
 रळ - मिळ  रैवै प्रेम स्यूं  , हिंदू - मूसळमान !
इण माटी निपजै मिनख हीरा अर इनसान !!
 
भावार्थ - यहां हिंदू - मुस्लिम मिल जुल कर प्यार से रहते हैं ।
 इस मिट्टी में जन्मे मनुष्य खरे हीरे हैं , सच्चे इंसान हैं ।
'वली ' लडावै क्रिषण नैं , ' राजिंद ' ख़्वाजा पीर !
एक थाळ में लापसी सेवइयां अर खीर !!
 
भावार्थ -  सांप्रदायिक सद्भाव ऐसा है कि
वली मोहम्मद ग़ौरी कृष्ण को रिझाने वाले गीत लिखता है ,
और राजेन्द्र स्वर्णकार ख़्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती की शान में मन्क़बत लिखता है ।
सीता - सलमा रमकझम घूमर रस रिमझोळ !
मज़हब सूं बेसी अठै मिनखपणै रो मोल !!
 
भावार्थ - …और सीता - सलमा एक साथ पायल बजाती हुई
झूम झूम कर घूमर का रस ले रही हैं ।
यहां धर्म को नहीं , मनुष्यता को अधिक मूल्यवान मानते हैं ।
लाधै कोनी धरम रो आंधो अठै जुनून !
बीकाणै में बह रयी अपणायत री पून !!
 
भावार्थ - यहां धर्म का अंधा उन्माद - पागलपन नहीं मिलता ।
 मेरे बीकानेर में तो अपनत्व की बयार चलती रहती है ।
मालक ! राखे मोकळी , बीकाणै पर मै'र !
बैवै नित आणंद री , सुख शांयत री लै'र !!

भावार्थ - हे परमपिता ! बीकानेर पर प्रचुर दया - कृपा रखना ।
यहां सदैव आनन्द और सुख शांति की लहर बहती रहे ।

आमीन !

- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar


मंचीय गीतकार कवि के रूप में मेरे जिन कुछ गीतों को सबसे अधिक पसंद किया जाता है उनमें सरे-फ़ेहरिस्त
में से एक है " आवोनी आलीजा " … बहुत लंबा गीत है , पच्चीस अंतरों से भी ज़्यादा । समूचे राजस्थान
की प्रशंसा के बंध हैं अधिकांशतः । कुछ बंध राजस्थान के कई नगर - विशेष के लिए हैं ।

यहां प्रस्तुत अंतरे बीकानेर के संदर्भ में ही हैं ।


पिछले बारह तेरह साल में नियमित रूप से
बीकानेर स्थापना दिवस के अवसर पर 
जिला प्रशासन के सहयोग से आयोजित विशेष कार्यक्रम में
इस गीत की प्रस्तुति के लिए मुझे ससम्मान बुलाया जाता रहा था ।
पिछले दो तीन वर्षों में संयोजन - आयोजन में लॉबियां और गुट प्रभावी होने के बाद से मुझे आमंत्रित नहीं किया जाता । ख़ैर , अपनी जन्मभूमि की वंदना मैं घर बैठे भी पूरी आस्था और भावना के साथ कर लेता हूं , सामने जो भी हो। आज आप हैं ना ! 


तो… आवोनी  आलीजा ... !  
हां , इस गीत को पढ़ कर , सुन कर ही  समझने का प्रयास करें , अर्थ फिर कभी ।
आवोनी  आलीजा


पधारो म्हांरै देश  ... पधारो म्हांरै  आंगणां  !
आवोनी  आलीजा ... आवोनी म्हांरा  पांवणां !
आवोनी  आलीजा ...
बीज सुदी बैशाख , संवत् पन्दरैसौ पैंताळीस !
थरप्या बीकाजी बीकाणो , करणी मा आशीष !
मुरधर दिवला जगमग जगिया सूरज नैं शरमावणा…
आवोनी  आलीजा ...
लिखमीनाथ , लालेश्वर बाबो , मा नागाणी सहाय !
कपिल मुनि , कोडाणो भैरूं गीरबो और बधाय !
कण - कण रच्छक पीर भोमिया करै म्हांरी प्रतपाळणा…
आवोनी  आलीजा ...
रीत रिवाज मगरियां मेळां तीज तिंवारां री धरती
हेत हरख भाईचारै री , आ मनवारां री धरती
म्है म्हांरै व्यौहार सूं जग नैं लागां घणा सुहावणा ... 
आवोनी  आलीजा ...
धरम कला साहित संगीत सै रसमस म्हांरी रग रग में
रमै रूंआं सूरापो , नाड़्यां नर्तण , थिरकण पग पग में 
बीकाणै रा मिनख लुगायां - सा बीजा नीं और बण्या ...
आवोनी  आलीजा ...
बणी ठणी निकळै  गोरयां जद इंदर रो आसण डोलै
मूमल मरवण सोरठ कुरजां मनां मणां मिसरयां घोळै
बखत पड़्यां रणचंडी भी बण जावै कंवळी कामण्यां ... 
आवोनी  आलीजा ... 
कुवा बावड़्यां मिसरी , इमरत गंगनहर रो पाणी
तिरस बुझावै , सागै सागै दूणी करै जवानी 
बीकाणै रै पाणी सूं म्हांरा मूंढां मुळकावणा...
आवोनी  आलीजा ...
चूरमो बाटी  ढोकळा सात्तू राब खीचड़ो और कठै
कैर सांगरी फोग मतीरां काकड़ियां रा ठाठ अठै
मोठ बाजरी खेलरां फोफळियां रा करां रंधावणा...
आवोनी  आलीजा ...
बाग़ किला गढ़ संगरालय आंख्यां री भूख बधा देवै
खड़ी हवेल्यां माण बधावै , झालो दे'य बुला लेवै
बिड़दावां बीकाणो कैंयां , ओछा सैंग कथावणा...
आवोनी  आलीजा ...
रजवाड़ां में नामी हा म्है ; नवजुग में भी म्है आगै
बीकाणै रै नांव रा डंका जग रै उणै खुणै बाजै
मीठा चरका खाटा तीखा... सगळा स्वाद चखावणा...
आवोनी  आलीजा ...


- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar


और यहां इस गीत को सुना जा सकता है !

- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar


आप सबका हृदय से आभारी हूं समय निकाल कर शस्वरं पर आने के लिए


आपके यहां होने से ही तो मैं भी यहां हूं ।


आते रहिएगा 
........................…

18 टिप्‍पणियां:

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

Very Good...

nilesh mathur ने कहा…

dhanyawaad blogjagat ko bikaner ke baare me jankari dene ke liye.

yogendra kumar purohit ने कहा…

jai bikana

तिलक राज कपूर ने कहा…

वंदनीय हैं वो प्रयास जो स्‍थानीय भाषाओं का इंटरनैट पर प्रतिनिधित्‍व करते हैं। उसपर हिन्‍दी अनुवाद तो जैसे सोने पर सुहागा।

daanish ने कहा…

बीकानेर का समृद्ध इतिहास
और संस्कृति से परिचित करवाने हेतु
बहुत बहुत dhanyaavaad

Alpana Verma ने कहा…

बीकानेर के बारे में जानकारी बढ़ी.
आज अक्षय तृतीया के अवसर पर आप को भी इस पवन दिवस की शुभकामनाएँ.आज तो आप भी पतंग उड़ा रहे होंगे.
--चित्र भी बहुत सुन्दर हैं.
--राजस्थानी गीत और उसके साथ हिंदी में भावार्थ पढ़ें को मिले.बहुत मेहनत करके आप ने यह पोस्ट लिखी है.
--------------------
[आयोजनों में तो हर जगह ही पक्षपात शुरू हो गया .यह एक जगह की बात नहीं है]आज कल प्रतिभा कम नहीं पैसा अधिक बोलता है.

Alpana Verma ने कहा…

आप की राजस्थानी गीत बहुत ही प्रभावशाली है.
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर..और साथ ही आप के स्वर में इस को सुनना आनंददायक है.अति उत्तम!
बहुत ही सुरीली प्रस्तुति.
-----

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

शानदार पोस्ट!
बधाई!

Kumar Ajay ने कहा…

बीकानेर का मधुर स्मरण कराने के लिए शुक्रिया...
सचमुच बहुत खूबसूरत है बीकानेर...
आप जैसे लोगों के कारण भी...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

राजकुमार जी,
थारा ब्लाग पै आयके म्हे तो बीकानेर ही पुग ग्या समझो।
थारा दोहा पढ़ के काळजो सीळो होइ ग्यों

पधारता रहया करो म्हारे अठै, दो तीन दिन पैहलां म्हारी ताऊ शेखावाटी जी सुं मुलाकात हुई थी। बीं की पोस्ट दो चार दिनां म्ह लगास्यां। ताऊ जी रै मंच पै म्हारी भी कविता पढ्योड़ी है 12साल पैहलाँ।
कदे बीकानेर पुंगा तो मिल्स्यां थारा सुं।

बीकानेर स्थापना दिवस री घणी घणी बधाई
राम राम

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

कितना सुन्दर इतिहास है बीकानेर का. ज्ञानवर्धन के लिए आपका बहुत धन्यवाद!

लोक गीत और उनका हिंदी अनुवाद के लिए विशेष आभार.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

सुलभजी
आभार !
लोक गीत नहीं , मेरे स्वय के लिखे दोहे हैं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

नीरज गोस्वामी ने कहा…

भाई जी नयनाभिराम चित्रों से सजी आपकी ये पोस्ट अप्रतिम है...रंग रंगीली पोस्ट और सोने पर सुहागा आपकी धीर गंभीर आवाज़ में अद्भुत गीत...वाह...मैं तो सच में दीवाना हो गया...बार बार सुन रहा हूँ और माँ सरस्वती को प्रणाम कर रहा हूँ जिसने अपने प्यार आप पर लुटा दिया है...आपकी प्रशंशा में शब्द नहीं हैं मेरे पास...कमाल है भाई जी कमाल...दिल लूट लिया आपना...आनंद की गंगा बहा दी...जय हो...बीकानेर और आपका जवाब नहीं...
नीरज

daanish ने कहा…

१५ मई को आपके यहाँ
पहले ही दस्तक दे चुका हूँ जनाब
आपकी आमद का बहुत बहुत शुक्रिया .

dkmuflis.blogspot.com
dkmuflis@gmail.com

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

To Rajasthan aane kee ek aur wajah....
Saduwaad!

सर्वत एम० ने कहा…

सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा चाहूँगा.
फिर बीकानेर स्थापना दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
कविता, विश्व की किसी भी भाषा में हो, अपनी ताल, लय, गति से लोगों को बरबस आकृष्ट कर ही लेती है. दोनों ही रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं. सोने पर सुहागा रहा गीत का आडियो.
क्या वो मधुर आवाज़ आपकी है? यदि हाँ, फिर तो-- वाह जनाब. यदि नहीं, तो-- आखिर कौन है वो?

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

हां जनाब , "आवोनी आलीजा…" गीत के ऑडियो में आवाज़ इस नाचीज़ राजेन्द्र स्वर्णकार की ही है ।
आपकी 'वाह' आप जैसे करमफ़र्माओं से प्राप्त 'दुआओं के बेशक़ीमती ख़ज़ाने' में महफ़ूज़ रख रहा हूं … हार्दिक आभार सहित

महावीर ने कहा…

आज कई दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आया हूँ. आपकी यह पोस्ट पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे कोई पुरस्कृत डाक्यूमेंट्री का चलचित्र देख रहा हूँ. आज ४६ वर्ष पुरानी यादें ताज़ा करदीं आपने. आपका गीत 'आवोनी आलीजा' सुन कर आनंदविभोर हो गया. दोहों के साथ भावार्थ देकर तो सोने पर सुहागा का काम कर दिया.
रळ-मिळ रैवै प्रेम स्यूं, हिंदू-मुसळमान
इण माटी निपजै मिनख हीरा अर इनसान
यह जानकर बहुत ही प्रसन्नता हुई कि बीकानेर में आज भी पहले की तरह ही हिन्दू-मुसलमान प्यार से रहते हैं.
संगीत तो जैसे बीकानेर की धरती से ही निकली हो. आज भी ४६ वर्ष पहले एक गाडिया लोहार के लड़के के शास्त्रीय गायन की आवाज़ कानों में गूँजती है. 'मांड' का तो जवाब ही नहीं. अगर मैं गलत न हूँ तो पाकिस्तानी की बंजारन गुलोकार रेशमा भी बीकानेर के महाराज रतन सिंह के बसाए हुए शहर रतन गढ़ की थी.
एक ऐसा समय था कि बीकानेर में चोरी का नाम ही नहीं था - ऊंट के गले में सोने का जेवर पहना कर खुला छोड़ देते थे. कोई हाथ तक नहीं लगाता था.
आपकी इस पोस्ट की प्रसंशा शब्दों में कठिन है.
महावीर शर्मा