ॐ
॥श्री कृष्णं वंदे जगद्'गुरुं ॥
के मांगलिक अवसर पर आप सब को
हार्दिक शुभकामनाएं !
कोटिशः मंगलकामनाएं !!
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इस अवसर पर पहले प्रस्तुत है
बिरज में बजती बांसुरी रही …
उस मोरपांख वाले से दीवानगी रही
उसकी ही बंदगी में ज़िंदगी मेरी रही
गायें चराने वाला , काला है कमाल का
हर एक शै से ज़्यादा उसमें दिलकशी रही
शम्ए-फ़रोज़ां नूर का पैकर सियाहरंग
उसके ही इर्द - गिर्द शफ़क़ - रौशनी रही
जिसने भी दीद की उसी का हो' के रह गया
ज़न - तिफ़्ल - मर्द सब में उसकी आशिक़ी रही
कोहे - किलाश का फ़क़ीर भी न रह सका
हस्रत जिगर में और नज़र में तिश्नगी रही
दरिया - शज़र औ' दश्त - बस्ती हो गए हसीं
गर्दे - बिरज में गोया उसकी ज़रगरी रही
राधा के दिल में शम्अ मुहब्बत की जलादी
हर इक अदा कमाल की शाइस्तगी रही
कन्हैया बिरज छोड़' मथुरा - द्वारका चला
बरसों तलक बिरज में बजती बांसुरी रही
महबूब का फ़िराक़ सह सकी न मा'शूक़ा
राधा के चश्म फिर सदा नुमू नमी रही
वो तब भी सबसे दूर था , वो अब भी पास है
काइम जहां में उसकी ही ज़ादूगरी रही
गीता सदा - ए - अर्श ; लुत्फ़े- रक्स - ओ - बांसुरी
राजेन्द्र , जो दिलों में अब भी गूंजती रही
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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शब्दार्थ
दिलकशी=आकर्षण, शम्ए-फ़रोज़ां=प्रकाशमान दीप, नूर का पैकर=ज्योति से निर्मित देह,
शफ़क़=क्षितिज की लालिमा, दीद=दर्शन, ज़न=औरतें, तिफ़्ल=बच्चे,
कोहे - किलाश का फ़क़ीर=कैलाश पर्वत का साधु=भगवान शिव,
दरिया=नदी=यमुना, शज़र=वृक्ष=कदम्ब, दश्त=वन=नंदन कानन, बस्ती=कुंज गलियां,
गर्दे - बिरज=ब्रज-रज, ज़रगरी=स्वर्ण कला, शाइस्तगी=शालीनता,
फ़िराक़=वियोग, चश्म=आंखें, नुमू=स्थायित्व के साथ बढ़ते रहने का भाव,
नमी=आर्द्रता, सदा - ए - अर्श=आसमानी आवाज़/देव वाणी,
लुत्फ़े-रक्स-ओ-बांसुरी=कृष्ण की मुरली सुनने और नृत्य-रास में उसका सहभागी बनने का आनन्द
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और अब एक छोटी सी राजस्थानी रचना
सांवरा
थैंस्यूं म्हारी प्रीत सांवरा
तूं म्हारो मनमीत सांवरा
आव , सुणाव , मुळकतो मीठो
मुरली रो संगीत सांवरा
संसार्'यां रै सींव सांस री
उमर रयी है बीत सांवरा
प्रीत लेय' पाछी नीं दे'णी
किस्यी नुंवी आ रीत सांवरा
था'रै - म्हारै मनां बिचाळै
है न हुवैली भींत सांवरा
सुणी ; निभावै हर जुग में तूं
भगत - वछळता - नीत सांवरा
करी ; सूर मीरां री , इब कर
प्रीत में म्हारी जीत सांवरा
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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राजस्थानी रचना का भावानुवाद
हे सांवरे ! तुम्हारे साथ मेरा प्रीत का संबंध है ।
तू ही मेरा मनमीत है ।
आ ना , मुस्कुराता हुआ
मधुर मुरली का संगीत सुना न , सांवरे !
सांसारिक जीवों के सांसों की सीमा होती है ,
उम्र बीत रही है , हे सांवरे !
प्रीत ले'कर वापस नहीं लौटाना ,
यह कौनसी नई रीति है रे ?
हे सांवरे ! तुम्हारे और मेरे मनों के बीच तो
कोई दीवार है नहीं , न होगी ।
सांवरे ! सुना था , तू तो हर युग में
भक्त-वत्सलता की नीति ही निभाता है ।
हे सांवरे ! तूने सूर मीरा आदि की तो की ,
अब प्रीत में मेरी भी जीत कर ना !!
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यह है दिव्यांशी !
कृष्ण रूप धारण किए हुए ।
बहुत क़्यूट है न ? मेरी प्यारी पौत्री है !
मेरे बड़े बेटे गौरव की पुत्री !
विस्तृत परिचय शीघ्र ही एक अलग पोस्ट में
*********************************************** मेरे हृदय में आपके लिए उच्च स्थान है ,और सदैव रहेगा !
आपके निरंतर मिल रहे सहयोग में उत्तरोतर वृद्धि के लिए
आभारी हूं ! कृतज्ञ हूं ! ॠणी हूं !
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