ब्लॉग मित्र मंडली

28/10/10

बेटी




कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा को हमारी दिव्यांशी का प्रथम जन्मदिन था ।

नेट की समस्या के चलते उस दिन इस संबंध में पोस्ट नहीं लगाई जा सकी ।
मैं जानता हूं , आप सबका आशीर्वाद उसके लिए सुरक्षित है ।
कुछ फोटो उसके जन्मदिवस से संबंधित
Happy Birth Day Divyanshi

 दादा दादी के साथ दिव्यांशी
                                                                       पापा मम्मी के साथ दिव्यांशी ... और ... दोनों चाचा के साथ दिव्यांशी                
 
हरी साड़ी में मेरी मां और सफेद साड़ी में मेरी मौसीजी
 * नानाजी की गोद में दिव्यांशी   और    दादा दादी के साथ केक काटती दिव्यांशी * 
                                           * और यह रही आज की नज़्म *
 ~*~ ~*~ बेटी ~*~*~
भोली निश्छल प्यारी बेटी
नन्ही राजदुलारी बेटी
तुलसी कुंकुम रोली चंदन
महकी-सी फुलवारी बेटी
घर-आंगन की रौनक-ख़ुशबू
तू केशर की क्यारी बेटी
ज्योति दिये की , पूनम-रजनी
भोर शुभ्र उजियारी बेटी
सोन चिरैया , भोली गैया
कोयलिया मतवारी बेटी
आंख का तारा , दिल का टुकड़ा
लक्ष्मी-रूप हमारी बेटी
फिर, इक दिन घर भर में सब का
मन कर देगी भारी बेटी
होके सयानी कर लेगी तू
पी-घर की तैयारी बेटी
यादों में गूंजेगी बन कर
तू मीठी किलकारी बेटी
एक अकेली सिर ओढ़ेगी
सौ-सौ जिम्मेवारी बेटी
नन्हे कंधे , बोझ जगत का
लेकिन तू कब हारी बेटी
धन तू पराया ! आशीषों के
मां-बाबा अधिकारी बेटी
दो-दो कुल का मान बढ़ाना
तुम पर हम बलिहारी बेटी
सच है यह राजेन्द्र ; अधूरी
तुम बिन दुनिया सारी बेटी
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar


मैं आदरणीया अर्चना जी का हृदय से आभारी हूं
जिन्होंने इस रचना को स्वतः ही अपना स्वर प्रदान कर दिव्यांशी  सहित हम सबको उपहार दिया है ।
अर्चना जी ने डूब कर गाया है ... साधुवाद !
(हालांकि आपने गाते हुए 
अंतिम दो पंक्तियां पता नहीं क्यों बदलदी ?! मेरा नाम भी नहीं आया)
सुन कर देखें अर्चना जी के स्वर में मेरी यह रचना 







नेट समस्या के कारण
मैं गत दिनों आप तक नहीं पहुंच पाया
आपके कमेंट्स और मेल का जवाब नहीं दे पाया
शस्वरं के नये मित्रों का स्वागत नहीं कर पाया
क्षमा चाहता हूं  ।

और 25 अक्टूबर से मैं चिकनगुनिया से ग्रस्त हो गया हूं । घुटनों सहित हथेली की हड्डियों और कलई में असहनीय दर्द के कारण कुछ भी करने में असमर्थ हूं । दो जनों की मदद के बिना अपनेआप खड़ा भी नहीं हो पा रहा हूं । अतः अगले कुछ दिन अभी ज़्यादा कुछ नहीं कर पाऊंगा । अन्यथा न लें , कृपया !
 ~*~~*~~*~~*~~*~~*~

 दीवाली की अग्रिम शुभकामनाएं ! 




16/10/10

कितने रावण !



दंभ विद्वेष पर गुणों की विजय
बुराई पर अच्छाई की विजय
असत्य पर सत्य की विजय
अधर्म पर धर्म की विजय  
के प्रतीक
  विजयदशमी के अवसर पर  
हार्दिक मंगलकामनाएं !

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 श्रीराम द्वारा लंका विजय के पश्चात्
तबसेअब 
दशहरा विजयदशमी विजयोत्सव
क्या से क्या स्वरूप ले चुका है  
और आवश्यकता किस बात की है  
इस संबंध में कहे कुछ दोहे प्रस्तुत हैं
कितने रावण !

काग़ज़ और बारूद का पुतला लिया बनाय !
घट में रावण पल रहा , काहे नहीं जलाय ?!

मात्र मनोरंजन करें , हम सब सालों - साल !
मिट मिट कर फिर से बने रावण वृहद विशाल !!

लाख करोड़ों खर्च कर हाथ लगावें आग !
इससे बेहतर , बदलिए दीन हीन के भाग !!

लाखों हैं बेघर यहां , लाखों यहां ग़रीब !
मत फूंको धन , बदलदो इनका आज नसीब !!

हर बदहाली दहन हो , जिससे देश कुरूप !
रोग अशिक्षा भुखमरी , रावण के सौ रूप !!

विजय पर्व आधा अगर , इक राजा इक रंक !
पूर्ण विजय होगी , मिटे जब हिंसा - आतंक !!

जलते पुतले कर रहे हम सब का उपहास !
कितने रावण ठाठ से , रहते अपने पास !!

सिरजें रावण हाथ से , तनिक नहीं अफ़सोस ?
रावण रग-रग में रमे , काहे का जयघोष ?!

जल जल कर भी ना जले , खेल करो फिर बंद !
या… रावण निर्माण का , अब तोड़ो अनुबंध !!

लाखों रावण फिर रहे , लिये कुटिल मुसकान !
इक पुतले का दाह कर क्यों करते अभिमान ?!

थोथे पुतले फूंक कर  करें न झूठा दम्भ !
जीवित रावण फूंकना आज करें आरम्भ !!
  राजेन्द्र स्वर्णकार

(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
*****  
***** आपके ***** 
***** आगमन हेतु आभार *****
***** समर्थन हेतु साधुवाद *****
***** प्रोत्साहन पूर्ण प्रतिक्रिया हेतु प्रणाम *****

***** आप सब सपरिवार स्वस्थ सानन्द रहें *****
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13/10/10

मैं गीत निश्छल प्रीत के अविराम लिक्खूंगा

~*~आज एक रचना प्रीत के नाम~*~

गीत निश्छल प्रीत के
मैं गीत निश्छल प्रीत के अविराम लिक्खूंगा
हर इक चरण में बस तुम्हारा नाम लिक्खूंगा
आंसू प्रतीक्षा विरह का इतिहास बदलूंगा
मैं प्रीत का सुखकर मधुर परिणाम लिक्खूंगा
नवनीत घट बंशी विटप झूले नहीं तो क्या
राधा तुम्हें और मैं स्वयं को श्याम लिक्खूंगा
पाषाण फिर से जी उठेंगे रूप में अपने
कुछ बिंब मैं कोणार्क के अभिराम लिक्खूंगा
मेरे हृदय पर तुम ॠचाएं प्रीत की लिख दो
मैं मंत्र मधु लिपटे ललित्त ललाम लिक्खूंगा
जब जोड़ लूंगा मैं तुम्हारी प्रीत की पूंजी
घर को ही मैं गुजरात और आसाम लिक्खूंगा
अक्षुण्ण निधि है प्रणय की यह जन्म जन्मांतर
निष्काम नेह सनेह आठों याम लिक्खूंगा
- राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar
यहां सुनिए गीत निश्छल प्रीत के


* हार्दिक स्वागत है आप सबका *
~*~ जिन्होंने इस बीच शस्वरं को अपना स्नेहिल समर्थन दिया है ~*~

* आपका स्नेह और समर्थन मुझे अभिभूत करता है , ऊर्जा प्रदान करता है *
* शब्दों के माध्यम से नहीं , मेरी सांस सांस से *
 ~*~  कृतज्ञता ~*~
~*~  धन्यवाद ~*~
~*~  आभार ~*~
शस्वरं शस्वरं शस्वरं
...
हुआ 9 अक्टूबर 2010 को…
* छह माह का *
* बाइस पोस्ट *
* 900 कमेंट *
* 4700 से अधिक विजिटर *
* 160 से अधिक  समर्थक *
 ~*~ हिंदी ब्लॉगिंग में ये आंकड़े हैं उपलब्धि ~*~
~*~ और इसका श्रेय है आप सबको ~*~

युवामित्रों ! बुजुर्गों ! माताओं ! बहनों !
* आपका स्नेह , समर्थन , सद्भाव * 
* अद्वितीय , अतुलनीय , अविस्मरणीय है *

मेरे लिए
* नौ निधियों से भी अधिक मूल्यवान है *
* आपका आशीर्वाद *
* आपका प्यार *
* आपकी शुभकामनाएं *
* मैं सदैव आप सबके प्रति हृदय से आभारी हूं , और रहूंगा *
!! नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं !!