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8/6/11

ऐ दिल्ली वाली सरकार ! सौ धिक्कार !


वंदे मातरम् 

प्रथमतः एक उबलती हुई रचना
ऐ दिल्ली वाली सरकार !

ऐसा बर्बर अत्याचार !
सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
ऐ दिल्ली वाली सरकार !
थू थू करता है संसार !
अब तक तो लादेन-इलियास
करते थे छुप-छुप कर वार !
सोए हुओं पर अश्रुगैस
डंडे और गोली बौछार !
बूढ़ों-मांओं-बच्चों पर
पागल कुत्ते पांच हज़ार !
छिः ! रग़-रग़ में वीभत्सी
अंगरेज़ों की रूह सवार !
जलियांवाला की घटना
दिखलादी तुमने साकार !
सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
ऐ दिल्ली वाली सरकार !
आतंकी-गद्दारों की
मेवों से करती मनुहार !
भारत मां के बेटों का
करना चाहो नरसंहार !
सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
ऐ दिल्ली वाली सरकार !
छोड़ शराफ़त से गद्दी
नहीं तू इसकी अब हक़दार !
ऐ दिल्ली वाली सरकार !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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उपरोक्त सातों चित्र गूगल से साभार
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इन दिनों मैं वार्णिक छंद मनहरण कवित्त पर कार्य कर रहा हूं…  बहुत कोमल छंद है
ताज़ा घटनाक्रम को ले'कर कवित्त के माध्यम से मैंने जो कहा उसे गुणीजन देख कर बात करेंगे तो स्वयं को धन्य मानूंगा ।
प्रस्तुत है  एक कवित्त

आतंकी-ज़िहादियों-सा किया पापाचार री !


 डंडे बरसाए सोते हुए बच्चों-बूढ़ों पर,
मांओं-बहनों के वस्त्र किए तार-तार री !

अश्रुगैस गोले संतों और राष्ट्रभक्तों पर,
अंधाधुंध गोलियों की कराई बौछार री !

लज्जाए रावण-कंस ; जल्लादों-दरिंदों जैसा,
आतंकी-ज़िहादियों-सा किया पापाचार री !

दिल्ली सरकार ! चुल्लू पानी हो तो डूब मर !
लानत है लाखों लाखों, करोड़ों धिक्कार री !

 -राजेन्द्र स्वर्णकार

दिल्ली के रामलीला मैदान पर 4-5 जून 2011 की आधी रात को घटी 
शर्मनाक सरकारी दमनात्मक कार्यवाही को जो भी शख़्स सही कहे 
वह शर्तिया ईमानदार नहीं है ।


सोते लोगों पर करे जो गोली बौछार !
छू’कर तुम औलाद को कहो- भली सरकार!!

जयहिंद






83 टिप्‍पणियां:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

bahut sahi baat kahi .... aur 100 % sach.... jalladon ne kiya satyaagrhiyo pe ane vaar re ...bahut dujhad thaa

अशोक सलूजा ने कहा…

सौ धिक्कार!सौ धिक्कार!
अब भी न जो धिक्कारे इनको '
वो है खुद भी मक्कार !

शुभकामनाएँ!

VIVEK VK JAIN ने कहा…

shandaar...........!
sarkaar ko b saja milegi.......jst wait n watch.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मन के आक्रोश को सार्थक शब्द दिए हैं ...जय हिंद

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

समसामयिक रचना ...जो हुआ वो यक़ीनन निंदनीय है.....

Udan Tashtari ने कहा…

अफसोसजनक!!

Unknown ने कहा…

ये आक्रोशित मन, एक बवंडर की आवाज़ सुन रहा है, इस देश ने ऐसे कई झंझावत देखे है और उत्तर भी ढूंढ है , जय हिंद , जय भारत

Udan Tashtari ने कहा…

अफसोसजनक घटना पर अच्छी रचना..

Taarkeshwar Giri ने कहा…

अभी तो पहली झांकी हैं, सोनिया गाँधी बाकि हैं.

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी लगी रचनाएं। समसामयिक और विचारोत्तेजक।

रचना दीक्षित ने कहा…

अभी तक के घटना क्रमपर जितनी सुंदर रूप से आपने प्रतिक्रिया दी है वैसी मैंने नहीं देखी.

ऐसा रोष आना भी जरूरी है. बधाई.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

ati-dukhad.....lekin Baba palaayan ki jagah giraftaari de dete to theek rahta

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

तुस्सी ग्रेट हो राजेन्द्र भाई

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बात बाबा के पलायन की नहीं है ....
बात हैं इस अमानुषिक अत्याचार की ....
अँधेरे के सहारा ले छुप कर किया गया हर वार गलत होता है ..
वे कोई आतंकवादी नहीं थे देश हित की मांगों पर बैठे देश प्रेमी थे ....
इस लिए ये कृत अपराध की ही श्रेणी में आना चाहिए ....
इस घोर निंदनीय व अमानुषिक बर्बरता का जवाब दिल्ली सरकार को तो देना ही पडेगा ....

राजेन्द्र जी आपको इस तीखी प्रक्रिया पर साधुवाद .....!!

Khare A ने कहा…

bakai dhikakr hi hai is satta ko!
ye kale angrej kisi bhi mamle main laden/kasab se kam nhi hai! in sabko fast trail court ne ghaseet kar fansi par latka dena chahiye!

रंजना ने कहा…

इन शब्दों में आपने हम जैसे असंख्य हृदयों के दुःख चीत्कार को स्वर दिया है...

मन को जो सुकून मिला पढ़कर,शब्दों में नहीं बता सकती...साधुवाद आपका...

आपके स्वर में सहर्ष हम अपना स्वर मिलाते हैं...

धिक्कार है... धिक्कार है... धिक्कार है....

Anita ने कहा…

सचमुच इस घटना की जितनी निंदा की जाये कम है....

सदा ने कहा…

इस घटना की जितनी भी निंदा की जाये कम है...आपकी इस प्रस्‍तुति में रोष और भावनाओं का उल्‍लेख बेहद सटीक एवं सार्थक ...प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

आदरणीय राजेंद्र जी,
सादर नमस्कार!
वाह! क्या बात है.
सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार!

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

आदरणीय राजेंद्र जी,
सादर नमस्कार!
वाह! क्या बात है.
सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

एक धिक्कार हमारी तरफ से भी...इस सरकार ने अपनी जड़ें स्वयं खोदनी शुरू कर दिन हैं...अज नहीं तो कल गिरेगी ही...आपकी रचना हमेशा की तरह अत्यंत पराभव शाली है और वर्णिक छंद अद्भुत है...काश इसे आपके स्वर में सुनने का अवसर मिला होता...
नीरज

Sushil Bakliwal ने कहा…

मनमोहन-सोनिया की सरकार को इसका जवाब देश की जनता की ओर से-
आज नहीं तो कल मिलेगा
बुलेट का जवाब बैलेट से मिलेगा
मिलेगा तो जरुर...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अमानवीय कृत्य पर आपकी प्रतिक्रया स्तुत्य है भैया....
सौ धिक्कार! सौ धिक्कार!
सचमुच सुलगते लफ्ज....
इस अभिव्यक्ति के लिए आपको नमन...
सादर...

संजय भास्‍कर ने कहा…

राजेन्द्र जी
समसामयिक रचना
....सार्थक प्रस्‍तुति के लिये आभार

Maheshwari kaneri ने कहा…

ह्र्दय से निकली सार्थक रचना……. धन्यवाद

udaya veer singh ने कहा…

प्रिय राजेंद्र जी ,
आपकी खांटी स्वदेशी भावना को सलाम ,समर्थन साधुवाद देश प्रेम को , हम इतना कह सकते हैं --- सौ धिक्कार --२
प्रेरक जोश से भरी रचना ,अंतस्थल को वेग प्रदान कर रही है . बहुत आभार जी /

Kailash Sharma ने कहा…

सरकार की बर्बरतापूर्ण कृत्य की बहुत सशक्त और प्रभावशाली भर्त्सना अपनी रचना के माध्यम से करने के लिये बहुत साधुवाद. आपकी एक एक पंक्ति जनता के आक्रोश को रेखांकित करती है. सच कहा है कि यह शर्मनाक घटना जलियांवाला बाग़ की फिर याद दिलाती है...आभार

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

ये दिल्ली की सरकार
भ्रष्ट, भष्टाचारी, भ्रष्टाचार
इन्हीं से बनी सरकार
सौ धिक्कार सौ धिक्क्कार :)

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

सौ धिक्कार, सौ धिक्कार.
मनमोहन है रंगा सियार.
सौ धिक्कार, सौ धिक्कार.
कपिल ने काला किया करार.
सौ धिक्कार, सौ धिक्कार.
झूठों का दिग्गी दरबार.
सौ धिक्कार, सौ धिक्कार.
मेडम ब्लेक-मनी भरमार.
सौ धिक्कार, सौ धिक्कार.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

व्यंग्य :
देशभक्त केवल सरकार.
देशवासी सारे गद्दार.
सौ धिक्कार, सौ धिक्कार.
ओबामा जी करो व्यापार.
रामदेव को बंद किवार.
सौ धिक्कार, सौ धिक्कार.
आतंकी से नरम व्यवहार.
संतों पर लाठी प्रहार.
सौ धिक्कार, सौ धिक्कार.

Swarajya karun ने कहा…

भाई राजेन्द्र जी ! सच तो यह है कि आज दिल्ली की कुर्सी वाले शत-प्रतिशत बेरहम ,बेशरम और बेदिल हो चुके हैं ,लेकिन देश के करोड़ों दिल वालों के लिए आपकी ये रचनाएँ वास्तव में दिलों को छू कर देश और समाज को झकझोरने की ताकत रखती हैं. बधाई और शुभकामनाएं .

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

4 जून की घटना के बाद मन इतना उदास है कि कुछ करने को मन ही नहीं कर रहा है। जलियांवाला बाग का नाम सुना था लेकिन इस घटना ने साक्षात्‍कार करा दिया। अब हम किस मुँह से कहेंगे कि अंग्रेज जालिम थे। सत्ता के लिए सभी रावण बन जाते हैं, यही अनुभव आ रहा है। आपकी रचनाएं श्रेष्‍ठ हैं।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

उल्टी गिनती शुरू है। घर की 'लपटें' ही इसे राख का ढेर बनाएंगी। इनके प्रमुख 'वक्ता' और दिल्ली के 'कर्ता' ने ठहरी हुई नाव की कीलें उखाड़ ताबूत में ठोकनी शुरु कर दी हैं।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

उल्टी गिनती शुरू है। घर की 'लपटें' ही इसे राख का ढेर बनाएंगी। इनके प्रमुख 'वक्ता' और दिल्ली के 'कर्ता' ने ठहरी हुई नाव की कीलें उखाड़ ताबूत में ठोकनी शुरु कर दी हैं।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

छोड़ शराफत से गद्दी

नहीं तू इसकी अब हक़दार

ऐ दिल्ली वाली सरकार !



सौ धिक्कार!!! सौ धिक्कार !!!

.....................आपकी रचना आम आदमी का आक्रोश है जो इस दुखद घटना से बुरी तरह आहत और क्षुब्ध है |

ये सत्ताधर और सत्ताधारी पार्टी के मंत्री और नेता कागजी शेर से हमलावर बन चुके हैं | इन बेशर्मों को किसी भी तरह की शर्म नहीं आती | जनता को अंधी ,बहरी और गूंगी समझ रहे हैं | आतंकवादियों को सजा देने की बजाय उनकी सेवा करने वाली केंद्र सरकार सत्याग्रही बच्चों , बूढों , महिलाओं और सन्यासियों पर बर्बरता पूर्वक

रात में सोते समय हमला करती है | स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त ये लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठानेवाले अन्ना हजारे और बाबा रामदेव पर ही तरह-तरह के फर्जी आरोप लगाने में जुटे हुए हैं | सत्ताधारी मंत्रियों का समूह , लगता है कि खूंखार भेड़ियों का समूह बन गया है |

किसी भी हालत में इन भेड़ियों के दांत तोडना जरूरी हो गया है |

रविकर ने कहा…

आह, नहीं देखा जाता ये अत्याचार |
मत दिखाइये इन चित्रों को बारम्बार ||
वैसे,
प्रस्तुत कविता हेतु आभार ||

सम- सामायिक विषयों पर चर्चा होती रहे लगातार |
सारी दुनिया ने देखी है, राजस्थान की तलवार की धार |
लेखनी भी है वैसी ही दमदार ||
साधुवाद ||

रविकर ने कहा…

---दिल्ली के पुलिस-गन, चलो झारखण्ड वन
सामने समर्थ जो, खखोरना व्यर्थ तो |
जो शक्तिहीन हो, दुखी हो दींन हो ||
केवल उस पर भारी है, पुलिस नहीं बीमारी है ||

वृद्ध हो, बाल हों, नारियां बेहाल हों |
पब्लिक निर्दोष थी, बिल्कुल मद्होश थी
नींद से ग्रस्त थी, भूख से पस्त थी |
अस्त-व्यस्त भागते, अश्रु-गैस दागते--
करती छापामारी है, पुलिस नहीं बीमारी है ||

गर बड़ी वीर है, धीर-व-गंभीर है-
जोर का जोश है, भीड़ पर रोष है-
बड़ा मर्दजात है, और औकात है -
दिल्ली की पुलिस सुन, सर्विस झारखण्ड चुन-
नक्सल की मुख्तारी है, पुलिस नहीं बीमारी है ||

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छी अभिव्‍यक्ति .. सचमुच गलत हुआ !!

Deepak Saini ने कहा…

शर्थक रचना

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

राजेन्द्र जी,
आपके आक्रोश ने राष्ट्रीयता के बीज बोना शुरू कर दिया है. रविकर जी में भावों में कमाल का उबाल है.

RAJWANT RAJ ने कहा…

rajendr ji anyay ke prti mukhar hona insaniyat ka tkaja hai iske liye hr
us insan ki stuti ki hi jani chahiye jo is dharm ka nirvah krta hai .
apko bhi slaam .

Asha Lata Saxena ने कहा…

यह कार्य तो ऐसा है कि जितना भी धिक्कारा जाए कम है |

आशा

ZEAL ने कहा…

सरकार का ये कायरतापूर्ण कृत्य अति निंदनीय है । सौ धिक्कार तो क्या ' सहत्र' धिक्कार भी नाकाफी हैं।

Arvind Mishra ने कहा…

बुलंद स्वरों में सशक्त अभिव्यक्ति!
जनता की है यह हुंकार ,जालिम जुल्मी ये सरकार

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

sahee maayano me yatharth ko abhivyakt karti ek sarthk rachna...

nishchay hi is durghatna ne maulik adhikaron ka to hanan kiya hai saath hi yah ghor amaanviye kritya bhi raha....

bahut sunder!!!

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

ek baat aur kahna chahunga ki asafal vyakti hi sabse pahle bal prayog karta hai.....

sarkaar har morche par vifal rahi isliye apni ASAFALTA KO chhupaane ke liye yah barabartapurn apkritya unhone kiya....

sarkar "powerful WITHOUT powers"....

मदन शर्मा ने कहा…

राजेन्द्र जी,
आपके आक्रोश ने राष्ट्रीयता के बीज बोना शुरू कर दिया है.यह कार्य तो ऐसा है कि जितना भी धिक्कारा जाए कम है |
बाबा के साथ जो हो रहा है बो बाबा और पूरे भारत की जनता के साथ ग़लत हो रहा जो अंग्रेज करते थे बो आज केंद्र सरकार कर रही है
एक गाना है: जिसके हाथ मे होगी लाठी भेस बही ले जाएगा
और इस समया लाठी सरकार के हाथ मे है
मुझे लगता है की भारत मे किसी को सरकार से कुछ पूछने और उनको मनमानी करने से रोकने का हक है ही नही
बाबा के इस आंदोलन मे मीडिया, जनता, बकिल, डॉकटर, एक्टर, बुद्जीबी, एव सभी देश बाशियो को सहयोग करने की प्राथना कर्त्ता हू

Shakti Prakash Devshali ने कहा…

Bandhuvar

Lagta hai jaise aapne Congress Sarkar ke is kukritya par deshvasiyo ki bhavnao ko shabd de diye ho.

Dhanya hai aap jaise Saraswati Putra.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत ही निन्दनीय घटना, घोर निन्दनीय कृत्य.

दिवस ने कहा…

आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी...आपने इस कविता के द्वारा ह्रदय जीत लिया...
सच में इस दिल्ली वाली सरकार पर सौ धिक्कार...
आप बीकानेर निवासी हैं, मैं जयपुर में रहता हूँ किन्तु मूल निवासी बीकानेर का ही हूँ| मेरे माता-पिता यहीं बीकानेर में रहते हैं...आशा है जब कभी बीकानेर आना होगा तो आपसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हो...कृपया अपना संपर्क सूत्र दें...मेरा संपर्क-9829798033
आभार...

अवनीश सिंह ने कहा…

यह देख कर बहुत ही अच्छा लगा कि राष्ट्रवादी विचारधारा के कवि आज भी हैं वर्ना लोगों को हसीनाओं के गाल और बाल से फुरसत ही नहीं मिलती है |(मैं इस प्रवृत्ति का विरोधी नहीं हूँ पर अति सर्वत्र वर्जयेत्)
बहुत ही अर्थपूर्ण रचना और सबसे बड़ी खासियत यह है कि आप कि रचना में बेबसी झलक नहीं है बल्कि आत्मसम्मान की ओजपूर्ण अभिव्यक्ति है |
आज हमें ऐसे कवियों और ऐसी रचनाओं की सख्त जरूरत है |

विवेक रस्तोगी ने कहा…

दिल्ली वाली सरकार को हमारी भी सौ सौ धिक्कार

रश्मि प्रभा... ने कहा…

chullu bhar pani me doob maro dilli ki sarkaar

Suman ने कहा…

राजेन्द्र जी,
अच्छी सशक्त रचना के लिए
बधाई ! इस घटना के लिए जितना भी
धिक्कारे कम ही है !

Urmi ने कहा…

सच्चाई को आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! उम्दा पोस्ट!

बेनामी ने कहा…

मिस्र ट्यूनिशिया या लिबिया,
या मनमोहन भ्रष्टावतार(*),
जनता का प्रण है इतना,
श्वास रहे या ये सरकार।

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* हाँ मालूम है, वे खुद बहुत "ईमानदार" हैं। जिसके पास घोटालाबाजों की फौज हो उसे खुद कीचड़ में उतरने की जरूरत क्या। वे वस्तुतः भ्रष्टों के अच्छे "मैनेजर" हैं (Management is art of getting the "work" done.)।
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स्वर्णकार जी आपकी कविता श्रेष्ठ और सारे उद्गत भावों की वाहक है। साधुवाद।

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

इस घटना की तो निंदा होनी ही चाहिए...
बहुत बढ़िया...

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

ye bhi dekh leejiyega vahan kya kya hua tha ye aap ko pata chal jayega

5 JUNE रामलीला मैदान :एक छिपा हुआ सत्य एक प्रत्यक्षदर्शी के शब्दों में

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

aaur haan vo 5 hajar nahi kam se kam 8 hajar the
5 JUNE रामलीला मैदान :एक छिपा हुआ सत्य एक प्रत्यक्षदर्शी के शब्दों में

shyam gupta ने कहा…

सुन्दर व सामयिक रचना...बधाई

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच

डॅा. व्योम ने कहा…

राजेन्द्र जी ! बहुत अच्छा लिखा है आपने, न जाने कितने भारतीय यही कह रहे हैं जो आपने कहा है।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

धिक्कार है धिक्कार !!
समस्त राष्ट्रभक्तों का अपमान हुआ और इस तरह आम नागरिकों (सोये हुए) पर अचानक प्रहार हमेशा ही अक्षम्य है.

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

आपके आक्रोश को शत् शत् वन्दन ।

virendra sharma ने कहा…

इन दिनों कुछ लोगों ने लोक संघर्ष के नाम पर एक प्रति -संघर्ष चला रखा है .इन्हें स्वामी राम देव और वीर सावरकर एक ही केटेगरी के माफ़ी मांगने वाले लग रहें हैं सरकारों से क्रूर निजामों से .शम्स्शुल हक़ इस्लामों के पुजारी इन लोगों से सीधी बात को बहुत बे -चैन है ये मन -
ये वे लोग हैं जिन्हें देश से अंग्रेजी राज के चले जाने का दुःख सता रहा है ।
ये जितने भी गुलाम मानसिकता के लोग हैं वे इस देश के महापुरुषोंकी इज्ज़त करना जानते ही नहीं .इनकी देह भले ही हिन्दुस्तान की मिटटी की बनी हो लेकिन इनके भीतर जो मन है वह उस मार्क्सवादी जूठन से बना है जिसकी हिन्दुस्तान के बारे में जानकारी बहुत ही निचले स्तर की थी .और जिसके दिए हुए फलसफे के तम्बू आज पूरे विश्व में उखड़ चुकें हैं .ये मार्क्स -वादी बौद्धिक गुलाम (भकुए )क्या जाने कि आज़ादी क्या होती है .और आज़ादी के लिए लड़ने वाले शहीद किस मिटटी के बने होतें हैं ।
अगर सावरकर ने सरकार से माफ़ी मांग कर अपनी जान बचाई थी ,दो जन्मों का कारावास मार्क्सवादी बौद्धिक गुलामों के बाप ने दिया था ।?
हमारा मानना है इस'" प्रति -लोक -संघर्ष" का झंडा उठाकर चलने वालों के खून की जाँच करवाई जाए ,यह जय -चन्दों और मीर -जाफरों के वंशज निकलेंगें .इनके आनुवंशिक हस्ताक्षर लिए जाने चाहिए .

virendra sharma ने कहा…

अच्छी चेतावनी दी हाई भाई साहब आपने ।
आक्रोश व्यंग्य की धार को हम जाया न जाने देंगें ,
.......................................................................
अच्छी धार दार औज़ार आपकी रचनाएं हैं हर बार ,स्वर्णकार

वाणी गीत ने कहा…

काम तो सौ धिक्कार वाला ही है ...मगर कर लो आप शब्दों से धिक्कार , क्या फर्क पड़ेगा ....
आपके ज़ज्बे को नमन ..और उसे काव्य शिल्प में उतरने के लिए आभार !

shyam gupta ने कहा…

१००X 100x infinite= धिक्कार

पंकज ने कहा…

धिकार है सोनिया गाँधी ...धिकार कांग्रेस सरकार है...जितने हो सके जूते मारो इनको ..ये इनका अधिकार है .....

शानदार अभियक्ति कि है... इसके लिए बधाई ...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई राजेन्द्र जी क्रांतिकारी विचारों से लैस कविता बधाई और शुभकामनाएं |

दिवस ने कहा…

आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी आप मेरे ब्लॉग को Follow कर रहे हैं...मैंने अपने ब्लॉग के लिए Domain खरीद लिया है...पहले मेरे ब्लॉग का लिंक pndiwasgaur.blogspot.com था जो अब www.diwasgaur.com हो गया है...अब आपको मेरी नयी पोस्ट का Notification नहीं मिलेगा...यदि आप Notification चाहते हैं तो कृपया मेरे ब्लॉग को Unfollow कर के पुन: Follow करें...
असुविधा के लिए खेद है...
धन्यवाद...

रविकर ने कहा…

nai post kab?

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

संवेदनाओं से भरी मार्मिक रचना....

रविकर ने कहा…

कई दिन हो गए भाई |
अब तो पड़ो दिखाई ||

दिनेश शर्मा ने कहा…

सुन्दरतम्‌।

दिनेश शर्मा ने कहा…

आपने जो कहा वह एक सच्चे भारतीय से अपेक्षित है

आशुतोष की कलम ने कहा…

सरकारी दमन और बर्बरता का ये रूप अंग्रेजो की नहीं बल्कि हिटलर के नाजी कैम्पों की याद दिलाता है..उस हद की बर्बरता..
जलियावाला बैग में भी गोलिया जागते लोगो को मरी गयी थी सोते हों को नहीं..
धिक्कार है ऐसी सरकार और व्यवस्था पर

भारतदीप ने कहा…

धिक्कार तो है ही। और धन्यवाद है अन्ना और बाबा रामदेव की हिम्मत को, जो सरकार की असली नीयत का सवा अरब लोगों के सामने पर्दाफ़ाश कर दिया।

जो लोग खुले आम जनता का ये हाल करते हैं, बंद कमरों की बैठकों में तो ये उस जनता की क्या ही खिल्ली उड़ाते होंगे, इसे समझने में कोई मूर्ख ही गलती कर सकता है।

Alpana Verma ने कहा…

भारतदीप जी की टिप्पणी से सहमत कि जो खुले में जनता की यह हालत कर सकते हैं वे बंद कमरों की बैठकों में क्या मज़ाक बनाते होंगे.
अब तो लगता ही नहीं इस सरकार में कोई भारतीय भी शामिल है.
बहुत अच्छी रचना लिखी है .सच्चाई को बयाँ करती हुई.

Shabad shabad ने कहा…

इस घटना की जितनी भी निंदा की जाये कम है...
आपकी कलम को नमन !

girish pankaj ने कहा…

आग उगलती रचना. उस वक़्त देख नहीं पाया था. ऐसे ही तेवरों की ज़रुरत है इस मुर्दा - समय को. शायद चेतना जागे.. बधाई...

Unknown ने कहा…

समसामयिक घटनाक्रम पर रोष प्रकट करती बहुत शानदार रचना | आभार | मेरे ब्लॉग में आते रहे |

मेरी कविता

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सशक्त आक्रोश...आज आवश्यकता है सब को एकजुट होकर आवाज़ उठाने की...

भड़की है जो आग उसे न बुझने देना,
आगे बढ़ते कदमों को अब न रुकने देना.
जब तक नहीं सुरक्षित नारी घर-बाहर,
कुम्भकर्ण शासन को न फिर सोने देना.