ब्लॉग मित्र मंडली

22/6/11

सब माया , सब छल रे !


जीव क्या है ? एक यायावर , एक मुसाफ़िर , एक बंजारा ही तो…
जो अनवरत भ्रमणशील है । कुछ समय कहीं विश्राम कर भी ले तो  स्थाई बंधन में तो नहीं बंध जाता । जाने कितने जन्मों , ठौर-ठौर वह कितने अन्य जीवों से मोह-ममता के नाते बनाता है , और अचानक विदा के संकेत दे’कर फिर अनंत यात्रा की ओर अग्रसर हो जाता है । शेष रहने वाले मोह के वशीभूत अवसादरत होते हैं । …और यह अवसाद भी वस्तुतः स्वार्थजनित ही है । कल वे स्वयं भी तो छल करते हुए विदा लेने वाले हैं अपनों से । ‘अपना’ ‘मेरा’ जैसे शब्द बहुत भ्रामक हैं । जितना विचार करें , उलझते ही जाएंगे… 

आज , मेरी शुरूआती रचनाओं में से एक गीत 
चल बंजारे चल

चल बंजारे चल रे , चल बंजारे चल रे !
सब छोड़ छाड़ कर चल  बंजारे , छोड़ छाड़ सब चल रे !
तेरा-मेरा कोई नहीं है , सब माया , सब छल रे !
चल रेचल बंजारे चल रे , चल बंजारे चल रे !!

इस बस्ती के लोगों के मन में प्रीत नहीं है प्यारे !
अपनी ग़रज़ सब बात करे , बिन मतलब ठोकर मारे !
बांध अपना सामान ; यहां से रातों-रात निकल रे !

तेरे भोलेपन पर हंसते हैं इस बस्ती वाले !
तुझको क्या मा'लूम कि उजले लोगों के मन काले !
किसको सच्ची प्रीत यहां ? है सबके मन में छल रे !

कोई नहीं है तेरा , तो फिर काहे मन भरमाए ?
सपनों-से जंजाल में पगले ! क्यों ख़ुद को उलझाए ?
पछताएगा ; देख ! समय तो बीत रहा पल-पल रे !

दूजी नगरी , दूजी बस्ती , तेरी बाट निहारे !
प्रीत के प्यासे पंछी ! तुझको मीत अजान पुकारे !
मिलले जा'कर प्रीतम से , मत विरह-अगन में जल रे !

तू बंजारा , तू जोगी , तू  पंछी और पवन है !
एक जगह रुकना , बंध जाना , तेरा कहां चलन है ?
नापले तू आकाश , नापले तू सारा जल-थल रे !

देखे कितने गांव-शहर , पर्वत-सागर , जंगल रे !
शांत हुई ना क्यों फिर भी तेरे मन की हलचल रे ?
बहता जा तू साथ समय के ; मिल जाए मंज़िल रे !

सर्दी-गर्मी , पतझड़-सावन देख लिए सब तुमने !
इक रुत ने आंसू बांटे , बहलाया इक मौसम ने !
पाना-खोना , सुख-दुख , क़िस्मत और करनी का फल रे !

चल रेचल बंजारे चल रे , चल बंजारे चल रे !!

- राजेन्द्र  स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar

यहां सुनें यह गीत  
हमेशा की तरह मेरी धुन में मेरी शब्द रचना , मेरे स्वर में 


©copyright by : Rajendra Swarnkar 


स्नेहीजनों ! आप सबके यहां मेरी अनुपस्थिति के लिए क्षमा करते रहें , कृपया !
माताजी का स्वास्थ्य कुछ समय से सही नहीं रहने के कारण नेट पर सक्रिय नहीं रह पा रहा हूं , अभी पांच दिन उन्हें हस्पताल में भर्ती रखा , अभी मेरी मां घर पर ही स्वास्थ्यलाभ कर रही हैं ।

सादर सस्नेह कृतज्ञ 

56 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

बस यही तो ये मन बंजारा समझ नही पाता है वरना जीना ना सीख जाता……………बहुत सुन्दर लिखा है। दिल को छू गया।

रविकर ने कहा…

बहुत अच्छी और सुरीली रचना |


रे मनुआ ! तू चल रे |
जहाँ मिले सम्बल रे |
प्यार पले पल-पल रे
बन्जारों का दल रे ||

आशुतोष की कलम ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना राजेंद्र जी ,,गीता भी यही बताती है ...तेरा मेरा कोई नहीं है सब माया सब छल रे ..

माता जी के शीघ्र स्वस्थ लाभ की कामना करता हूँ

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत रचा है..गाया भी उतना ही सुन्दर. ....'.हे राह बटोही' पर आप का स्वागत है ..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

khanabadosh ko rekhankit karti rachna

दिवस ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत बढ़िया लगी आपकी यह रचना ....

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत अच्छी और सुरीली रचना |

Sushil Bakliwal ने कहा…

एक बंजारा गाए, जीवन के गीत सुनाए.
मोह-माया सब छोडके बन्दे जीवन क्या है बताए.

बहुत सुन्दर और यथार्थ प्रस्तुति....

डॉ टी एस दराल ने कहा…

भजन रुपी गीत बहुत अच्छा लगा । आपकी आवाज़ में सुनना तो और भी सुहाना लगता है ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

संभवतः यही प्रेरणा है कि हमें आवारगी पसन्द है।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

जीवन के यथार्थ का दर्शन है राजेन्द्र भैया...
और आपकी आवाज में इसे सुनना... क्या कहें... सुनते ही जाने की इच्छा होती है...
प्रार्थना है माँ शीघ्र स्वास्थ्य हों....
सादर...

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

गहन अनुभूतियों और जीवन दर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई।

udaya veer singh ने कहा…

सृजन और स्वर दोनों बे-मिशाल हैं जी बहुत मनोरम सूफियों सा कलेवर लिए ..../शुक्रिया ..

विभूति" ने कहा…

bhut hi sarthak prstuti....

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति.... शब्द और स्वर प्रभावित करते हैं...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सशक्त रचना!

सुधाकल्प ने कहा…

जीवन दर्शन से ओत -प्रोत आपका गीत सस्वर सुना।बहुत अच्छा लगा।समय पाते ही आपका नया गीत फिर सुनेंगे।बधाई है ।
सुधा भार्गव

***Punam*** ने कहा…

बंजारापन......

जीवन बस यही है

आज यहाँ कल कहाँ...?

आपके स्वर में और भी लाजवाब...!!

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

किसको सच्ची प्रीत यहाँ पर
सब के मन में छल रे...........

बहुत ख़ूब राजेन्द्र भाई

ana ने कहा…

bahut sundar....dil ko chhoo gayi

सदा ने कहा…

वाह ... भावमय करते शब्‍दों के साथ अनुपम प्रस्‍तुति ..आभार ।

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत सशक्त रचना |बधाई
आशा

देवमणि पाण्डेय ने कहा…

एक जगह रुकना बँध जाना, तेरा कहाँ चलन रे...
पूरे गीत के भाव बहुत अच्छे हैं, बधाई !

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर.. सुरीली रचना

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत अच्छी और सुरीली रचना |

रंजना ने कहा…

इसे पढ़ते समय मन में आ ही रहा था कि क्या लाजवाब गेयता है इसमें....जब पढने में यह लय है तो सुनने में कैसा लगेगा...

और देखिये आपने इसका गेय रूप भी हमें दे दिया और वह भी इतने सुरीले स्वर में...

बस मंत्रमुग्ध हो गया मन...

क्या तो भाव हैं , क्या प्रवाह और क्या आपका कंठ स्वर....

माता की असीम कृपा है आपपर...

Kailash Sharma ने कहा…

जीवन के सत्य को उकेरती बहुत ही सटीक और सारगर्भित प्रस्तुति...आपके स्वर ने भावनाओं को बिलकुल जीवंत कर दिया..आभार

Kailash Sharma ने कहा…

माता जी के शीघ्र स्वास्थ लाभ के लिये हार्दिक शुभकामनायें.

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आपकी माताजी शीघ्र पूर्ण स्वस्थ लाभ करें, ईश्वर से यही प्रार्थना है!

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

hriday saparshi rachna...

Asha Joglekar ने कहा…

बंजारे को माध्यम बना कर मन को कैसे समझाया है । बहुत सुंदर भाव प्रवण और सीख देती रचना ।

Asha Joglekar ने कहा…

आपकी माताजी शीघ्र ही ठीक हो जायेंगी । यही आशा है ।

Vaishnavi ने कहा…

man sachmuch banjara hi hota hai uska na koi thor thikan!!!!!!!!!!!!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

भाई जी बेजोड़ रचना है आपकी...अब तो प्रशंशा के शब्द ही कम पड़ने लगे हैं...

नीरज

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

एक स्सर्थक प्रस्तुति .......
माता जी के शीघ्र स्वास्थयलाभ की शुभकामनायें !

Satish Saxena ने कहा…

मन के यह भाव दुर्लभ हैं और बहुत पसंद आये ! इस प्रकार की रचना करने के लिए विशाल मन और अनुभव बोध चाहिए !
हार्दिक शुभकामनायें राजेंद्र भाई !!

Ankur Jain ने कहा…

इक रुत ने आंसू बांटे बहलाया इक मौसम ने...बेहद सुन्दर रचना राजेन्द्रजी..माताजी के स्वास्थ्य के लिए मंगल कामनाएं..

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

सच कहा है सब छल है....
चल बंजारे चल रे.....
बहुत खूबसूरत राजेंद्र भाई ....

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

राजेंद्र जी, आपके बंजारा गीत को पढना शुरू किया तो मन ही मन गुनगुनाते हुए पढ़ते ही गया.अंत में पता चला कि यह आडियो में भी है,तो आपकी गंभीर और गुंजन भरी स्वर लहरी में आँखे बंद कर रस माधुर्य का आनंद लेता रहा.मौसम भी बिलकुल अनुकूल. संस्कारधानी जबलपुर की हसीन शाम ,शाम के लगभग साढ़े छ: बज रहे हैं.दस मिनट पहले ही आफिस से आया हूँ .बाहर हल्का सा धुंधलका, रूम में रौशनी भी नहीं की है.बारिश का भीगा-भीगा समा.प्रथम तल का फ़्लैट, सिर्फ यहाँ हैं मैं और मेरी तनहाई . बंजारा गीत की ही लोकेशन.कोई टिपण्णी नहीं करूँगा.एक बार और आपको आडियो पर सुनने मैं चला .

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

हृदयग्राही गीत।
रागी मन को विराग की ओर उन्मुख करती यह रचना बहुत अच्छी लगी।

मां के स्वास्थ्य का ध्यान रखिए।
उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए शुभकामनाएं।

Rohit Singh ने कहा…

मित्रवर चलें भी तो कहां.....जमीन कम पड़ जाए औऱ आसमां हाथ न आए तो बंजारा भी तो नहीं बना जा सकता..पर जिंदगी ही कई बार बंजारा बना देती है...हर मौसम देखने के बाद भी इंसान मौसम से बेपरवाह हो नहीं पाता यही तो जीवन की रीत है..क्यों है न

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

bahut bahut bahut khoobsoorat.....

banjara chalta jayega, zamana bhi chalta jayega......

paana khona to chalna hi hai zindagi me.....

kisi ne kaha tha...kuchh sapno ke bikhar jaane se jeevan nahi mara karta hai......aur bhi bahut kuchh.....

saarthak aur sateek rachna par haardik badhaai.........

रचना दीक्षित ने कहा…

राजेंद्र जी, आपकी कविता और अरुण निगम जी की प्रतिक्रिया..... शायद इसके कुछ भी कहना कम लगे
बस लाजवाब!!!

Alpana Verma ने कहा…

बाँध अपना सामान यहाँ से रातों रात निकल रे...चल बंजारे चल रे..
किस को सच्ची प्ररित है यहाँ रे!सब के मन में छल रे..समय बीत रहा पल -पल रे
-दुनिया यही है ..बहुत सच्चे भाव ...उत्कृष्ट रचना.
..........
रचन के साथ चित्रों का चयन भी अति सुन्दर.
......
आप के गंभीर स्वर में भावपूर्ण प्रस्तुति को सुनना बहुत अच्छा लगा.
............
आप की माताजी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना और शुभकामनाएँ.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

वाह जी वाह
क्या बात है
बहुत सुंदर

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

सुन्दर शब्द रचना ! दुनिया की सच्ची तस्वीर !
आपकी माता जी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए मेरी शुभकामनाएँ !
आभार -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

'चल बंजारे चल रे .....
बहुत ही मनमोहक, शाश्वत सत्य की ओर उन्मुख कराता , सुन्दर लयबद्ध गीत .......बहुत प्यारा लगा
बहुत-बहुत आभार राजेन्द्र जी .........जीवन की सच्चाई तो यही है

Vivek Jain ने कहा…

सुन्दर रचना ,

विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Suman ने कहा…

राजेन्द्र जी,
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना !

इस ओर प्रीत है मनका मीत है
उस ओर न जाने क्या होगा !
बस यही मन की दुविधा है !
निराश न होइये!

Arun M ........अ. कु. मिश्र ने कहा…

सरल शब्दों में जीवन के यथार्थ का चित्रण ....
बंजारे को मालूम ही नहीं की वो तो सिर्फ बंजारा है.... मोह में फंसा है हर ठौर को सोचता अपना स्थायी किनारा है.
...बहुत अच्छी रचना . शुभकामनाएं !!

बेनामी ने कहा…

bahut bahut shukriya...mai hindi me hi type karti hu..per us din blog ke options kaam nahi kar rahe the...aapki rachna bahut sunder hai..aaur ye jaan ke bahut harsh hua ki aap bikaner ke hai..bikaner me mera janam hua tha...regards era

Vishal ने कहा…

bohotsunder rachna.. badhai!!
Asha karta hhon ki aapki mataji ki jald swasth hongi!
Vishal

Rachana ने कहा…

bahut hi sunder geet hai .
koi bhi gane pr vivash hojaye aesa
adrniya mata ji bahut jaldi achchhi ho jayen yahi bhagwan se prarthna hai
rachana

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

उफ्फ्फ......

आपकी आवाज़ तो सीधे दिल में उतरती है ......
थोड़े और दर्द की कमी लगी .....

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत ...
शुभकामनाएं!