ब्लॉग मित्र मंडली

30/8/11

निकला है चांद ईद का ... हरसू बहार है

कलियों पॅ है शबाब , गुलों पर निखार है
देती सुकूं हवा भी , फ़ज़ा ख़ुशगवार है

बख़्शिश ख़ुदा के फ़ज़्ल से रमज़ान की मिली
निकला है चांद ईद  का ... हरसू बहार है

सब रंज़िशें भुला के गले ईद पर मिलो
इंसां हैं हममें प्यार वफ़ा का क़रार है
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
पूरी हो हर आरज़ू , पतझड़ बने बहार !
ईद मुबारक  ! आपको ख़ुशियां मिले हज़ार !!

ईद मनाओ प्यार से , बैर अहं को भूल !
अम्न-मुहब्बत हैं अहम , बाकी बात फ़ुज़ूल !!

क्या हिंदू सिख पारसी मुस्लिम ; सब इंसान !
धरती पर मिल कर रहें... मालिक का फ़रमान !

भाईचारा , दोस्ती , प्यार , वफ़ा , इंसाफ़ !
ये सब ही तो पुण्य हैं ; नफ़रत धोखा पाप !!

मज़हब तो देता नहीं नफ़रत का पैग़ाम !
हर मज़हब हर दीन का कीजे एहतिराम !!

 पर्व गणपति ईद संग ... मा'नी है वाज़ेह !

हिंदू-मुस्लिम में बढ़े , दिन-दिन सच्चा स्नेह !!

तू क्या , मैं क्या , यार सुन ! हम सब मुश्ते-ख़ाक !
नफ़रत से फिर क्यों करें दुनिया को नापाक ?!

इंसां रहते प्यार से , लड़ते हैं शैतान !
प्यार से रह कर देखिए , कितना हसीं जहान !!

नाहक़ मत रखिए यहां , कभी किसी से बैर !
सब बंदे अल्लाह के , कौन यहां पर ग़ैर !?

कभी वतन के वास्ते होना पड़े शहीद !
मनती तब अल्लाह के बंदों सच्ची ईद !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar




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