ब्लॉग मित्र मंडली

23/12/11

लहर कली तितली पवन छांह चांदनी धूप !

सुन लाडो !
जज़्बों से लबरेज़ हैं , तेरे दिलो-दिमाग़ !
लग ना जाए बावरी ! शुभ्र वसन पर दाग !!
सख़्ती बंधन वर्जना ; बेडी़ ना जंजीर !
इन तदबीरों से संवर जाती है तक़दीर !!
एक झपट्टा मार कर , ले जाते हैं बाज़ !
सोनचिडी़ ! रख हद्द में , तू अपनी परवाज़ !!
घर के बाहर गिद्द खर नाग सुअर घड़ियाल !
कामुकता पग पग खडी़ , ओढ़' प्रीत की खाल !!
रोके तुमको अर्गला , मना करे दहलीज़ !
खा जाएंगे भेड़िये , तेरा गोश्त लज़ीज़ !!
तू तो भोली गाय है , हिंसक पशु संसार !
चीर-फाड़ देंगे तुझे , टपके सबके लार !!
बाहर ज़्यादा मत निकल , कर बैठेगी भूल !
जीते जी मर जाएंगे , घर के लोग फु़ज़ूल !!
फिसला तेरा पांव तो आएगा भू'चाल !
जब तक पीले हाथ हों , खु़द को रख संभाल !!
बेटी ! तेरी भूल इक , ला देगी तूफ़ान !
रहने दे मन में दबे , तू कोमल अरमान !!
बहके जो तेरे क़दम , होगा महाविनाश !
इज़्ज़त खो' बन जाएंगे , मां-बाबा बुत , लाश !!
 सुन लाडो ! जग का यहीनियम और इंसाफ़ !
लड़की की नादानियां , बन जाती हैं पाप !!
अधुनातन बन' हो गया , कुत्सित यह संसार !
तू मत खो निज अस्मिता , शर्म , शील , संस्कार !!  
रखना संचित आबरू , आंचल में महफ़ूज़ !
जो आदर्श हैं खोखले , बेटी ! उन्हें न पूज !!
दुनिया तो भटकाएगीखोना तू न विवेक !
धन सुख लाख ; चरित्र-सा , धन जग में बस एक !!
लहर कली तितली पवन छांह चांदनी धूप !
महक खुशी-से खिल उठें , बेटी ! तेरे रूप !!

राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
बेटियों के लिए लिखे गए इन दोहों पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी ।
अब नव वर्ष 2012 के आगमन में कुछ ही दिन शेष हैं
आप सबको
नव वर्ष की अग्रिम बधाइयां और शुभकामनाएं !

33 टिप्‍पणियां:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत खूब वाह!

Prakash Jain ने कहा…

Behtareen sandesh deti rachna

adbhut shabd prayog...

www.poeticprakash.com

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चंचलता का वेग थमेगा,
मन में जब प्रेम जमेगा।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चंचलता का वेग थमेगा,
मन में जब कुछ प्रेम जमेगा।

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

सीख देती सार्थक रचना
आप तो शब्दों के जादूगर हैं राजेन्द्र जी
बहुत सुंदर चयन है शब्दों का

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

लाडो मन में बाँध ले स्वर्णकार की सीख
बिन मांगे मोती मिलें मांगे मिले न भीख
माँ ताई से सीख तू घर के सारे काम
मित्रों के संग छोड़ दे जाना हुक्का धाम.
तेरे भी मन आयेंगे मेरे जैसे ख्याल
बेटी तेरी भी करे जब ऐसा कभी धमाल

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत नेक सलाह है । आजकल ऐसी हिदायतें देने वाले मां बाप भी कम होते जा रहे हैं ।
हालाँकि बच्चे भी कहाँ सुनते हैं ।
देखिये , एक आँखों देखी यहाँ भी ।

संध्या शर्मा ने कहा…

बेटियों को बहुत ही अच्छी सीख दी है आपने...
सच्चाई है आपकी रचना इस दुनिया की... भावपूर्ण रचना

mridula pradhan ने कहा…

har doha lazabab hai......kahan tak tareef karoon.....

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

ek acchi sikh deti sundar rachana hai....

रेखा ने कहा…

सुन्दर सीख देते हुए लाजबाब दोहे ...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बड़ी सार्थक पंक्तियाँ, कितने सुन्दर भाव
संस्कार बांधें सदा, रोके हर बिखराव


अत्यंत सुन्दर दोहे हैं आदरणीय राजेन्द्र भईया....
सादर बधाई...

कुमार संतोष ने कहा…

Bahut sunder aur prerak post !


Aabhaar...!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

बढिया दोहे। आज की विषम परिस्थितियों में भटकाव अधिक सरल होता जा रहा है॥

Mamta Bajpai ने कहा…

सीख तो बेटियों के लिए है पर असल में ..ये माता पिता की चिंता भी है ..और बेटियों को समझान बड़ा ही मुश्किल है ..सार्थक पोस्ट
बधाई

Unknown ने कहा…

आदरणीय , स्वर्णकार जी अभिनन्दन !
बेहतरीन शब्दों से बुने दोहे जीवन का सारा तत्वा समझा गए. आपकी पैनी नजर को सलाम, सास्वत सोच को प्रणाम.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

यह पोस्ट तो उस सीप के समान हैं जिसमे हर दोहे अमुल्य मोतियों की तरह जगमगा रहे हैं।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत खूब राजेंद्र जी,!!!!!!!बहुत खूब बेटियों को समझाइश देती खुबशुरत रचना,सुंदर शब्दों से लिखे सार्थक सटीक दोहे,...बहुत बढ़िया प्रस्तुति,....

मेरे पोस्ट के लिए "काव्यान्जलि" मे click करे

ASHOK BIRLA ने कहा…

sach kaha duniya to bhatkati hai ...jindagi li lahron me betiyon ko ujval path dikhati sundar rachna

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

किस दिस जाती सभ्यता,किस दिस हुआ विकास
संस्कार आहत हुए , हर दिस दिखे विनास.

कटते कुंतल केश घन , घटते नित परिधान
लोक लाज मृतप्राय लख , तन धन का सम्मान.


ऐसे वातावरण में राजेंद्र जी आपने लाडो के लिए बहुत ही सार्थक दोहों के माध्यम से अनमोल उपहार प्रेषित किया है. वाह !!!

रंजना ने कहा…

चित्र और काव्य दोनों एक दुसरे को सार्थक कर रहे हैं...

बेहतरीन ढंग से समझाया आपने...आपके हर शब्द में मेरे भी मनोभाव प्रतिध्वनित हैं...

इस रचना की प्रशंसा में जो भी कहा जाए कम है...

साधुवाद आपका...काश कि ये बातें आधुनिका बनने की होड़ और दौड़ में शामिल बालाएं ध्यान में रख पातीं..

Amit Sharma ने कहा…

सुन्दर सीख देते हुए लाजबाब दोहे ...

Vaishnavi ने कहा…

bahoot umda kavita,sacmuch baite hoti bholi gaaya,bholi ballao ke liya uttam marg darshan.

Vaishnavi ने कहा…

bahoot umda kavita,sacmuch baite hoti bholi gaaya,bholi ballao ke liya uttam marg darshan.

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

सार्थक रचना ...

बी. जी. शर्मा ने कहा…

लाडो को बहुत ही नेक सीख दी है राजेंद्र भाई साहब !
आज के युग में पश्चिम का अनुसरण ही आधुनिकता हो गया है, ऐसे में घर से मिले संस्कार ही हैं जो युवा मन के भटकाव को रोक सकते है और आधुनिकता के सही मायने समझा सकते है...
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आ कर ... समय निकाल कर मेरे यहाँ जरुर पधारियेगा .
नव वर्ष की शुभकामनाये.

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

सुन्दर सीख,नव वर्ष की शुभकामनाये!!

tips hindi me ने कहा…

"टिप्स हिंदी में"ब्लॉग की तरफ से आपको नए साल के आगमन पर शुभ कामनाएं |

टिप्स हिंदी में

***Punam*** ने कहा…

राजेन्द्र जी....

आपकी रचनाओं को पढ़ने के बाद कुछ भी कहने का मन ही नहीं होता...शब्द कम पड़ने लगते हैं तारीफ के लिए..शायद इसीलिए अपने विचार देने में इतना समय लग गया..!

आप को जादूगर कहूँ तो ठीक हो शायद...कलम का जादूगर..शब्दों का जादूगर...भावों का जादूगर...शिक्षाओं का जादूगर.........!!!

एक से बढ़ कर एक...सारी रचनाएँ ही श्रेष्ठ की श्रेणी में आती हैं.... हतप्रभ हो जाती हूँ कि आप इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं.....!!!

मेरे विस्मय के लिए मुझे माफ़ करें.....!!

आपको पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है...!!

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami ने कहा…

लाजबाब रचना।
नव वर्ष की अनंत मंगलकामनाएं।

'साहिल' ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत दोहे! उत्तम विचार लिए!

Neeraj Tripathi ने कहा…

Bahut achhe , maja aa gaya :)

girish pankaj ने कहा…

वाह, राजेंद्र भाई, कमाल कर दिया. रचना के धरत पर हम लोगों की चिंताएं सामान हैं. खुशी हुई की आपने बहुत पहले इतनी सुन्दर रचना कर दी थी. हर दोहे कालजयी हैं. प्रेरक है. अगर समझ कर आत्मसात कर सके तो सार्थकता है. वरना लिखने का कोइ औचित्य नहीं. फिर भी सृजन धर्म है. करना चाहिए. हर दोहे दिल को छू रहे है. खैर, आपकी बात ही निराली है.