ब्लॉग मित्र मंडली

21/12/12

सुनेगी जो सच , तिलमिलाएगी दिल्ली !


पेश है एक मुसलसल ग़ज़ल
चाहें तो ग़ज़लनुमा नज़्म कहलें

यहां दिल्ली महज़ दिल्ली नहीं ।
कभी यह हिंदुस्तान की राजधानी है , कभी एक महानगर ।
कभी सत्ता तो कभी सत्ताधारी राजनीतिक दल ।
कभी हिंदुस्तान की बेबस अवाम ।
1947 के बाद का खंडित विभाजित भारत भी ।
मुगलकालीन हिंदुस्तान भी ।
महाभारतकालीन अखिल आर्यावर्त भी ।
अभी और क्या क्या दिखाएगी दिल्ली !
तू गुल और क्या क्या खिलाएगी दिल्ली ? 
सुना था व्यवस्था बनाएगी दिल्ली !
अंधेरों में दीपक जलाएगी दिल्ली !
 है मशगूल खाने में आई है जब से
न छेड़ो , बुरा मान जाएगी दिल्ली !
 इसे सिर्फ़ झूठी ख़ुशामद सुहाती
सुनेगी जो सच , तिलमिलाएगी दिल्ली !
 ये कब तक हमें बरगलाती रहेगी
किए थे जो वादे निभाएगी दिल्ली ?
 हमारी हिफ़ाज़त का ज़िम्मा था इसका
निभा भी कभी फ़र्ज़ पाएगी दिल्ली ?
 दरिंदों पे क़ाबू कभी कर न पाई
भलों को हमेशा डराएगी दिल्ली !
 बहन-बेटियों ! घर में छुप कर ही रहना
मरी...  जीभ तो लपलपाएगी दिल्ली !
 लड़ा कर मुसलमां को हिंदू से ; आख़िर
कहां तक सियासत चलाएगी दिल्ली !?
 हुए हादसे , शोर भी उनका होगा
बयानों में सबको उड़ाएगी दिल्ली !
 थी गफ़लत में ये , नींद में ये रहेगी 
जो सोई है ख़ुद , क्या जगाएगी दिल्ली ?
 जिये या मरे कोई , क्या फ़र्क़ इसको 
बहुत जल्द सब कुछ भुलाएगी दिल्ली !
 सफ़ाई में कुछ तुझको कहना है निर्लज !
बता कितने दिन मुंह छुपाएगी दिल्ली ?
 बता मुल्क का और कितने दिनों तक
लहू पीके तू मुस्कुराएगी दिल्ली ?
 ये बहरी तो थी , हो गई अब ये गूंगी
सुनेगी , न कुछ भी बताएगी  दिल्ली !
 तवारीख़ को याद करके , अकेले 
नयन रात-दिन डबडबाएगी दिल्ली !
 धरा पांडवों की , ज़मीं ये ज़फ़र की
किये दिल कड़ा कसमसाएगी दिल्ली !
 कभी पा सकी ख़ुद को वापस अगर ये
तो राजेन्द्र फिर जगमगाएगी दिल्ली !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar


अब नये साल 2013 में मिलेंगे ।
हालांकि आज क़यामत का दिन हुआ होता तो हमारी मुलाक़ात अगली सृष्टि के शुरुआती दिनों में कभी होती
J
नव वर्ष मंगलमय हो

12/12/12

कवि दो ही चालीस में , भांड मिले अड़तीस

वर्ष 2012 के 12वें महीने की 12वीं तारीख को 
12 बज कर 12 मिनट 12 सैकंड पर 
बार-बार लिख-मिटा कर लगाई गई इस प्रविष्टि से 
अपने पौ 12 पच्चीस होने की तो ख़ुशफ़हमी नहीं 
लेकिन कइयों की शक्ल पर 12 बजने लगे 
तो अपनी कोई गारंटी भी नहीं ।
J बस... आनंद के लिए J
12-12-12  के अद्भुत् संयोग के अवसर पर प्रस्तुत हैं 12 दोहे 
ये चिल्लर विद्वान
मिलीभगत छल को कहे शातिर काव्य-जुनून !
कवि कहलाते ; कर रहे जो कविता का ख़ून !!
भांड मसखरे नकलची सड़े चुटकुलेबाज़ !
इन सबका ही आजकल काव्यमंच पर राज !!
रटे लतीफ़े आ गए बासी बदबूदार !
करते फूहड़ हरकतें मंचों के खेलार !!
ना भाषा ना वर्तनी का भी जिनको ज्ञान !
शेखी झाड़े मंच पर ये चिल्लर विद्वान !!
बजे घने थोथे चने , लिये दंभ-अभिमान !
दूकानें तो खोल ली , पास नहीं सामान !!
श्रोताओं को फांसते फेंक चवन्नी-माल !
काव्य-साधना क्या करे ये ठनठनगोपाल !!
मौलिकता इनके लिए है जी का जंजाल !
इस-उसकी रचना पढ़े समझ बाप का माल !!
चार पंक्तियां काव्य की , मिनट चरे छत्तीस !
कवि दो ही चालीस में , भांड मिले अड़तीस !!
कूल्हे कुछ मटका रहे , कुछ गरदन उचकाय !
कविताएं फुस , नाच कर ये नाटक दिखलाय !!
बात-बात पर मांगते ये ताली की भीख !
बेहतर होता ढंग की कविता लेते सीख !!
कवि-सम्मेलन-नाम पर फूहड़ खी-खी खेल !
श्रोता-आयोजक भला कैसे लेते झेल ?!
ठेकेदार बिचौलिये मंचों के दल्लाल !
कविता का कितना बुरा और करेंगे हाल ?!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

यह वर्ष पूरा होने से पहले फिर मिलेंगे अवश्य
आप सबको
आगामी नव वर्ष 2013 की अग्रिम शुभकामनाएं !

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मेरे राजस्थानी ब्लॉग ओळ्यूं मरुधर देश री पर भी आपके स्वागतार्थ प्रतीक्षा है 
रचनाएं भावार्थ/शब्दार्थ सहित होने से राजस्थानी समझने में आप को असुविधा नहीं होगी
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23/11/12

सितारा हूं ; अगर टूटा… बनूंगा मैं महे-कामिल

ग़ज़ल
खड़ा मक़्तल में मेरी राह तकता था मेरा क़ातिल
सुकूं था मेरी सूरत पर , धड़कता था उसी का दिल

बचाना तितलियों कलियों परिंदों को मुसीबत से
सभी मा'सूम होते हैं हिफ़ाज़त-र ह् म के क़ाबिल

पता है ; क्यों बुझाना चाहता तूफ़ां चराग़ों को
हुई लेकिन हवा क्यों साज़िशों में बेसबब शामिल

मैं अपनी मौज में रहता हूं बेशक इक ग़ज़ाला ज्यूं
दबोचे कोई हमला'वर नहीं इतना भी मैं गाफ़िल

न लावारिस समझ कर हाथ गर्दन पर मेरी रखना
सितारा हूं ; अगर टूटा… बनूंगा मैं महे-कामिल

ग़ज़ल से जो तअल्लुक  पूछते मेराज़रा सुनलें
समंदर भी मेरा , कश्ती मेरी , ये ही मेरा साहिल

कशिश है ज़िंदगी में जब तलक दौरे-सफ़र जारी
हसीं ख़्वाबों का क्या होगा , मिली राजेन्द्र गर मंज़िल
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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शब्दार्थ
मक़्तल-क़त्लघर/वध-स्थान
बेसबब-अकारण
ग़ज़ाला-हिरनी/हिरनी का बच्चा
महे-कामिल-पूर्ण चंद्रमा/पूनम का चांद

10/11/12

काल कलुष का आ गया , हुआ तिमिर का नाश!

ॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमः

आई है दीपावली , कर' अनुपम शृंगार !
छत-दीवारें खिल गईं , सज गए आंगन-द्वार !!
सजे शहर भी, गांव भी , घर - गलियां- बाज़ार !
शुभ दीवाली कर रही, शुभ सपने साकार !!
बिखरीं उज्ज्वल रश्मियां , ले'कर दिव्य उजास !
धरती उत्सव में मगन , मुदित-मुदित आकाश !!
दीयों ने मिल कर किया, आज सघन आलोक !
      वैभव यश भू का निरख' सकुचाए सुरलोक!!     
काल कलुष का आ गया , हुआ तिमिर का नाश!
प्रकट हुआ हर इक दिशा , ज्योतित शुभ्र प्रकाश !!
सकल सृष्टि मुसका रही, विहंसे दीप करोड़ !
आज अमा की रैन भी, लगे सुनहरी भोर !!
दीप प्रज्ज्वलित दिशि दसों ,तमदल शिथिल हताश!
नन्हे दीपक कर रहे , कल्मष का उपहास!!
मुक्त हृदय धरती हंसे, मुसकाए आकाश !
व्यथा, निराशा अब कहां? कण-कण व्याप्त सुहास !!
पूर्णचंद्रमा-से लगें , मृदा-दीप सब आज !
यत्र तत्र सर्वत्र है , उजियारे का राज !!
पूनम-रजनी से करे , अमा स्पर्धा-भान!
निज छबि पर रींझे स्वयं, करे गर्व-अभिमान !!
दीवाली की रात को , तारे हुए उदास!
नन्हे दीयों ने किया भू पर शुभ्र उजास !!
गांव-नगर जगमग हुए ; ख़ुशियां चारों ओर !
प्राण-पपीहा झूमता ; मन नाचे बन' मोर !!
दीवाली पर हो गई , धरा स्वयंभू स्वर्ग!
स्वतः किया दारिद्र्य ने , दुख ने निज उत्सर्ग !!
हृदय प्रफुल्लित मगन है, मन आनन्द-विभोर !
पुलकित-हर्षित आतमा , सुख ही सुख चहुंओर !!
देव प्रसन्न , प्रसन्न हैं धरती पर इंसान !
दीवाली मंगलमयी ! शुभ सुखकर वरदान !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
ॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमः

धनतेरसरूपचतुर्दशीदीवालीगोवर्धनपूजनभाईदूज
की
शुभकामनाएं !बधाइयां !मंगलकामनाएं !
ॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमः