ब्लॉग मित्र मंडली

15/1/12

अदाएं इंद्रजाल हैं , तो शोख़ियां कमाल हैं

फेसबुक पर एक जगह कुछ समय से तमाम ग़ज़लकारों को 
एक चुनौती-सी है - बह्रे हज़ज के एक रूप पर आधारित ग़ज़ल लिखने के लिए ,जिसका वज़्न है 
मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन, मुफ़ाइलुन
अर्थात् 
1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 1 2 
पता नहीं, क्यों इस बह्र को मुश्किल माना गया होगा ?
 मां सरस्वती की कृपा से मैंने इस बह्र में ज़्यादा नहीं, कोई 12 ग़ज़लियात ज़रूर कही हैं । इस 'चैलेंज' और वहां छाये सन्नाटे के बीच भी पांच नई ग़ज़लें/मुसलसल ग़ज़लें इस वज़्न को लेकर कही हैं । 1 जनवरी को गिरीश पंकज जी बीकानेर पधारे थे, उन्हें तरन्नुम के साथ पांच ग़ज़लें मित्र मंडली के बीच सुनाई थीं । उन्हें जो ग़ज़ल नहीं सुनाई, वह यहां प्रस्तुत कर रहा हूं
हैं मुस्कुराहटें रहस्य , है हंसी प्रहेलिका !
प्रभात की नवल किरण ! ऐ पूर्णिमा की चंद्रिका !
बला की सुंदरी हो तुम कुमारिका ! ऐ बालिका !
कभी लगो उमा , कभी रमा , कभी हो राधिका
घना , बिहारी , जायसी की तुम प्रत्यक्ष नायिका !
जगर-मगर है तन तुम्हारा जैसे दीपमालिका
तुम्हारी देह है महकती एक पुष्प-वाटिका !
तुम्हारे नाम निशि-दिवस लिखे हैं गीत-गीतिका
रहे हमारे मध्य क्यों अदृश्य कोई यवनिका ?
है केश ज्यों गहन अमा , या नागिनों की टोलियां
विशाल भाल है सुघड़ , रुचिर-उत्थित्त नासिका !
बड़े नयन हसीन जैसे नीलवर्ण सीपियां
तुम्हारी दंत-पंक्ति श्वेत-शुभ्र मुक्तमालिका !
अदाएं इंद्रजाल हैं , तो शोख़ियां कमाल हैं
हैं मुस्कुराहटें रहस्य , है हंसी प्रहेलिका !
विद्युति-सी तुम ; मृगी-सी हस्तिनी-सी , पद्मिनी तुम्ही
हसीन हंसिनी , पिकी मधुर , चतुर हो सारिका !
तुम्हीं हो तुम , जहां हो तुम , वहां न दूसरा कोई
हो मध्य तुम तमाम तारिकाओं के निहारिका !
लहर , तड़ित न बाहुपाश में जकड़ सका कोई
 है धन्य धन्य वो , बनी हो जिसकी अंकशायिका !
राजेन्द्र मिलती कोमलांगी-कामिनी तो पुण्य से
न पुण्य हों किए ; लगे ये स्वप्नवत् मरीचिका !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
शस्वरं से जुडने और मुझे आशीर्वाद प्रदान करने वाले सभी नये मित्रों के प्रति
हृदय से आभार !
क्षमाप्रार्थी हूं , सक्रिय नहीं रह पा रहा हूं दिसंबर के पहले सप्ताह के बाद से ।
कहीं नहीं पहुंच पा रहा हूं । लगभग सब जगह ग़ैरहाज़िरी लग रही है ।
अभी यह स्थिति बनी रहने की संभावना है कुछ और समय तक ।
आप अपने स्नेह में कमी न करें लेकिन… आते रहें  कृपया !
साहित्यिक समारोहों और कवि सम्मेलनों में भी व्यस्तता बढ़ी है
कुछ अन्य कारण भी हैं
और हां, रक्षक फाउंडेशन, अमेरिका द्वारा आयोजित गौरव-गाथा काव्य प्रतियोगिता में पुरस्कार स्वरूप 10,000 रुपये का चेक मिला है ।
शुभकामनाओं सहित

1/1/12

उम्मीद के दीपक सदा जलते रहें नव वर्ष में !

स्वागतम् नव वर्ष !
अभिनंदन है तुम्हारा !
नूतन वर्ष के इन प्रारंभिक क्षणों में प्रस्तुत हैं तीन छंद

नव वर्ष पर सबके लिए है शुभ सुमंगलकामना !
सबका भला कर जगनियंता ! है हमारी प्रार्थना !
समझें स्वजन इक-दूसरे के मन-हृदय की भावना !
फूले-फले विश्वास-आशा-स्नेह की संभावना !

दिन हों रुपहले हर्षमय , रस-सिक्त स्वर्णिम रात हो !
हर पेट को भोजन मिले , हर शीश पर इक छात हो !
गर्मी सुखद् , सर्दी सुहानी , भावनी बरसात हो !
समृद्धिमय नववर्ष हो , हर बात मन की बात हो !

सपने नये नित फूलते-फलते रहें नव वर्ष में !
उम्मीद के दीपक सदा जलते रहें नव वर्ष में !
निज लक्ष्य पाने के लिए चलते रहें नव वर्ष में !
मिलते रहें प्रिय और दिल खिलते रहें नव वर्ष में !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar