ब्लॉग मित्र मंडली

27/7/12

उम्र पूरी हुई , ख़त अधूरा रहा

एक तरही मुशायरे में मेरी प्रस्तुति
दिल दुखाते रहे , याद आते रहे
हर घड़ी ज़ेह्न में झिलमिलाते रहे

हम थे नादां जो जां तक लुटाते रहे
एक संगदिल से हम दिल लगाते रहे

किस नशीली नज़र से निहारा हमें
उम्र भर ये क़दम डगमगाते रहे

ऊग आए कमल याद की झील में
गंध चारों दिशा जो लुटाते रहे

उम्र पूरी हुई , ख़त अधूरा रहा
लफ़्ज़ लिखते रहे , और मिटाते रहे

दूर जा’ के भी वो दूर जा ना सके
उनके पैग़ाम ताउम्र आते रहे

मैं सफ़र पे चला जब भी परदेश को
मेरी मां के नयन डबडबाते रहे

दिल के छाले किसी को दिखाते नहीं
ज़ख़्म खाते रहे , मुस्कुराते रहे

मुस्कुराहट के मानी ख़ुशी तो नहीं
गुनगुनाते रहे , ग़म भुलाते रहे

हमने राजेन्द्र समझा क़लम को ख़ुदा
मा बदे भूल कर... सर झुकाते रहे
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
यहां सुनिए मेरी बनाई धुन में मेरी ग़ज़ल मेरी आवाज़ में

आभार फेसबुक पर LIKE करने वाले सभी 124 मित्रों के प्रति ! …और अपनी बहुमुल्य प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन के लिए आप सबका …
 July 19 ,2012


मित्रों, कल एक तरही मुशायरे में आपके मित्र का ख़ूब रंग जमा …
पूरी ग़ज़ल फिर कभी … अभी कुछ अश्'आर का आप लुत्फ़ उठाएं-

हम थे नादां जो जां तक लुटाते रहे
एक संगदिल से हम दिल लगाते रहे

दूर जा’ के भी वो दूर जा ना सके
उनके पैग़ाम ताउम्र आते रहे

दिल के छाले किसी को दिखाते नहीं
ज़ख़्म खाते रहे , मुस्कुराते रहे

हमने राजेन्द्र समझा क़लम को ख़ुदा
मा'बदे भूल कर …सर झुकाते रहे

-राजेन्द्र स्वर्णकार

· July 19