ब्लॉग मित्र मंडली

18/9/12

वो हसीं लड़कियां

कुछ रूमानी हुआ जाए
एक ग़ज़ल आप सबके लिए

खो गई हैं कहां वो हसीं लड़कियां
वो बदीउज्ज़मां नाज़नीं लड़कियां

आसमां खा गया, कॅ ज़मीं खा गई
दिलकुशा दिलनशीं ना मिलीं लडकियां


बादलों में चमकती थीं जो बिजलियां
हैं कहां अब वो चिलमननशीं लड़कियां

वो परीरू जिन्हें देखकहता था दिल
मर्हबा ! आफ़्'रीं आफ़्'रीं लड़कियां


ख़्वाब जिनकी बदौलत हक़ीक़त बने
अब कहीं क्यों वो मिलती नहीं लड़कियां

ज़ेह्न में अब भी यादों की मेंहदी रची
सांस में मोगरे  ज्यों रमीं लड़कियां

अब भी राजेन्द्र मिलने को मिल जाती हैं
उन-सी होगी , न है , जो वो थीं लड़कियां
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
बदीउज्ज़मां – अपने समय की अद्वितीय
दिलकुशा – मन को आनंदित करने वाली
  दिलनशीं – मन में रम-बस जाने वाली / हृदयस्थ
ग़ज़ल कैसी लगी ? सच सच बताइएगा !
  

मित्रों ! कोई हज़ार के लगभग रचनाएं कंप्यूटर में टाइप करके डाली हुई हैं … लेकिन किसी गंभीर समस्या के चलते उन्हें खोल कर देखना भी संभव नहीं हो रहा । कुछ रचनाओं को ब्लॉग पर डाल कर ड्राफ़्ट  बनाए हुए हैं । उन्हीं में से एक को आज पोस्ट किया है ।


नेट/कंप्यूटर की गड़बड़ियों के कारण आपसे मुलाकातें कम हो पा रही हैं
 लेकिन आपसे दूर बिल्कुल नहीं हूं
आप हमेशा मेरे करीब हैं , और रहेंगे


हार्दिक मंगलकामनाएं !


55 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बढ़िया गज़ल राजेंद्र जी......
वो लड़कियां कहीं नहीं गयीं.....यहीं हैं आपके आस पास ..बस नानी/दादी/अम्मा बन चुकीं है :-)

सदर
अनु

रंजना ने कहा…

यूँ तो इस बात पर बधाई देनी चाहिए कि आपकी स्थिति अत्यंत कल्याणकारक हो गयी है कि "अब नहीं दीखतीं हैं आपको दिलकशीं लड़कियां"...पर यह हुई मज़ाक की बात...बातों बातों में आपने जो कटाक्ष किया है, बहुत हद तक सही किया है...इसका अफ़सोस केवल आपको नहीं हमें भी है...

बात बयानी..ग़ज़ल सौन्दर्य की...तो आप सिद्ध हस्त हैं, कलम के मंजे हुए.. अधिक क्या कहा जाए ..

बहुत बहुत बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर...

आभार.

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

सभी लड़कियाँ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, इसलिए पहले जैसी मासूमियत नहीं रही...
इस ग़ज़ल के शब्दों में ढल गई
खोई हुई दिलकशीं लड़कियाँ

Saurabh ने कहा…

आपकी बातों के तार कई हृदय को बाँध पाये होंगे, राजेन्द्र भाई.. . ’अब न रहे वो पीनेवाले, अब न रही वो मधुशाला’ की तर्ज़ पर अब न वो देखने वाले रहे, न वो रहीं लड़कियाँ. :-)))

बहुत दिनों बाद मन मुस्कुराना चाहा है.
सादर

shyam gupta ने कहा…

वाह राजेन्द्र जी ..क्या बात है...क्या सुन्दर, सटीक,दिलकश चोट है...आदाब बजा लाता हूँ हुज़ूर....

रस्क लड़कों से करती हुई लडकियां
होगई मर्दे जैसी ही अब लड़कियाँ |
वो नजाकत, नफासत हुई वेवफा -
खोगयीं इसलिए दिलकशीं लडकियां ||

सागर ने कहा…

gloabal warming ne sbkuch bdl dala.,sir ab pehle sa to koi nhi reh gaya na duniya na duniyavi log.,. :)

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सच्ची बात ब्यान की है आपने ..वो प्रजाति अब लुप्त होने की कगार पर है .:) बहुत सुन्दर तरीके से अपने ब्यान किया है ..इन हलात को ..शुक्रिया

Shalini kaushik ने कहा…

sahi kaha rajendra ji kahin kho hi gayi hain ve ladkiyan jo aap kee shayri ko padhkar atyadhik vah vah kar sakti.nice presentation.

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

रोमांटिक गज़ल ! अल्लाह करे ज़ोरे शबाब और ज़्यादा.

" फूल बनकर किताबों में अब है धरी,
वो हसीं, दिलनशीं सी 'कली' लड़कियां."

http://aatm-manthan.com

Shalini kaushik ने कहा…

sahi kah rahe hain rajendra ji aaj ve ladkiyan nahi rahi jo aapki shandar gazal ko padh jor shor se vah vah kar pati.nice presentation.कोई कानूनी विषमता नहीं ३०२ व् ३०४[बी ]आई.पी.सी.में

***Punam*** ने कहा…

तारीफ करूँ क्या उसकी...??
लेकिन आपकी तारीफ तो करनी पड़ेगी राजेन्द्र जी...!!
चुन चुन कर लफ्ज़ और खूबियां गिनवायी हैं आपने....

"इतनी तारीफ करके बुलायेंगे वो
फिर तो छुप जाएँगी नाज़नीं लड़कियां..!!

जिनकी यादों की खुशबू ज़ेहन में बसी
कितनी गुस्ताख हैं वो हंसीं लड़कियां...!!"

***Punam*** ने कहा…

तारीफ करूँ क्या उसकी...??
लेकिन आपकी तारीफ तो करनी पड़ेगी राजेन्द्र जी...!!
चुन चुन कर लफ्ज़ और खूबियां गिनवायी हैं आपने....

"इतनी तारीफ करके बुलायेंगे वो
फिर तो छुप जाएँगी नाज़नीं लड़कियां..!!

जिनकी यादों की खुशबू ज़ेहन में बसी
कितनी गुस्ताख हैं वो हंसीं लड़कियां...!!"

आनंद ने कहा…

मर्हबा आफरीं आफरीं लड़कियां !

हमेशा कि तरह ही आप की एक नायब ग़ज़ल दादा !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन चित्रण..

Pratik Maheshwari ने कहा…

हमें भी तलाश है.. आपको मिले तो बताइयेगा हमें ज़रा :)

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

chaliye sabhi milkar dhundhte hain ......bahut acche expression ...

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत सुन्दर गजल..
:-)

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बंद रहती हैं अब जो खुली होती थी खिड़कियाँ
ग़म न कर ऐ दिल, ये हैं वक्त की झिड़कियाँ.

समय बलवान होता है भाई .

रचना दीक्षित ने कहा…

एक और बेहतरीन गज़ल राजेंद्र जी. बधाई.

हाँ जब वो लड़कियां मिल जाय तो खबर जरुर दीजियेगा.

girish pankaj ने कहा…

आप तो इस फन के माहिर हैं. प्यारी रचना के लिए दिल खोल कर बधाई..हर शेर धूम मचाये दे रहा है..किस-किस के बारे में कहूं. सब एक से बढ़ कर एक..

Daanish Bhaarti ने कहा…

ladakiyoN ki khoobsurtee,
unki adaaoN aur unke sha`oor se ru.b.ru karvaate hue
aapke ye naayaab au` dilfareb ash`aar....

wallaahtauba....
baan`gi ka jawaab nahi Rajendra Swarnkarji... ...

waah , waah ,, aur bas waah !!!

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर गजल..

रविकर ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति आज बुधवार के चर्चा मंच पर ।।

Rajesh Kumari ने कहा…

वाह अनु जी /expression का कमेन्ट बहुत पसंद आया वो लडकियां यहीं हैं मिल जायेंगी बस रंगीन चश्मा लगा कर ढूँढिये---बहुत ताजगी भरी मखमली ग़ज़ल

Rajesh Kumari ने कहा…

गणेश चतुर्थी की बधाई आपकी ग़ज़ल ने wish करना भी भुला दिया था

Pallavi saxena ने कहा…

सगार जी की बात से सहमत हूँ :-)

udaya veer singh ने कहा…

बढ़िया गज़ल जी......बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति....

virendra sharma ने कहा…

खो गईं हैं कहाँ वह लडकियाँ ,
वो बदीउज्जमा नाज़नी लडकियाँ .
ज़मीं ही बनी कोख माँ की ,खा गई आसमाँ कैसे कैसे
बढ़िया रचना है एक सामाजिक वैषम्य को सुलगाती सी .कहाँ गईं सैंकड़ों लडकियां ........गुम होती लडकियाँ ?

ram ram bhai
मंगलवार, 18 सितम्बर 2012
कमर के बीच वाले भाग और पसली की हड्डियों (पर्शुका )की तकलीफें :काइरोप्रेक्टिक समाधान

aapni shan shekhawati ने कहा…

लूट ली खुशियों की वो बगिया रखवालो ने
तोड़ दी कलिया, खुशियों का फूल खिलने से पहले

सारिका मुकेश ने कहा…

वो लडकियाँ अब इस वैश्वीकरण के युग में कहां ढूढ़ रहे हैं जनाब!
बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें !!

Rohit Singh ने कहा…

हद करते हैं आप भी मित्रवर....अब बताइए इती रात कहां ढूंढने जाउं इन लड़कियों को..जो वर्षों से नहीं दिखाई दी हैं....नाराजगी इतनी है कि बस कह नहीं सकता..बड़ी मुश्किल से इती रात में एसएमएस नहीं कर रहा हूं खैर मनाइए....वरना सारी रात फोन पर खराब कर देता आपकी..भाभीजान इसके बाद सारी ब्लागिंग औऱ गज़ल पर ऐसी बरसतीं की ..हां नहीं तो..इस बात को तो ख्याल किया कीजिए कि कुछ मित्र रातों को भी जागते है....अब ये मत पूछिएगा कि क्यों..खुल मंच पर हर बार खुला भी नहीं जाता..वैसे भी अब ये नाज़नीने दिखती नहीं है या फिर इस मामले में हमारी आंखों में मोतियाबिंद उतर आया होगा.....हां नहीं तो

Rohit Singh ने कहा…

d

Rohit Singh ने कहा…

d

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

गज़ल ते बेहतरीन लगी ही आपका इसे ब्लॉग में पोस्ट करने का तरीका भी बेहत खूबसूरत है।

आपमें शब्दों के कुशल फनकार, भावनाओं के अथाह सागर रखने वाले गुण तो हैं ही एक कुशल चित्रकार के भी दर्शन होते हैं।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

मेरा कमेंट स्पैम में गया क्या?

GauriShanker Prajapat ने कहा…

वाह वाह क्या बात है

Sangita Agarwal ने कहा…

bahut khuub.....

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

आदरणीय राजेन्द्र जी,

शब्दों की जहाँ 'टकसाल' हो या हो 'अथाह भण्डार'.... वहीं होती है अपने भावों के लिये सटीक शब्द चयन की छूट.

काव्य-कला की दृष्टि से अत्यंत उत्कृष्ट रचना.... यहाँ आकर वैसे तो हमेशा अपनी शब्द-निर्धनता महसूस होती है, पर हर बार सीखने की इच्छा खींच लाती है.


टिप्पणियों में ... 'रंजना जी' के विचार से सहमती रखता हूँ.

Bharat Bhushan ने कहा…

ज़ेह्न में अब भी यादों की मेंहदी रची
सांस में मोगरे ज्यों रमीं लड़कियाँ

इस रोमानी ग़ज़ल का अपना रंग और अपनी महक है. बहुत खूब लिखा है राजेंद्र जी.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

लम्बे समय के बाद आपकी उपस्थिति ने ताजगी भर दी.
जेहन में अब भी यादों की मेंहदी रची
साँस में मोगरे ज्यों रमीं लड़कियाँ

इस अश'आर पर खास दाद कबूल करें.

गज़ल ने गुनगुनाने को मजबूर कर दिया, वाह !!!!

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सच कहा है...बेहतरीन गज़ल..आभार

Dinesh Ballabh ने कहा…

baadalon men chamakatee theen jo bijliyaan
hain kahaan ab voh chilman'nasheen ladkiyaan

waah rajendra shaheb ...kya khoob kahee...


Dinesh Ballabh

Reetika ने कहा…

behad sanjeeda vishay aur behatreen prastuti !

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

aap hi btaa den kahan gai wo ladkiyan,

dilkashi ke liye dikhti nahi waisi ladkiyan......:)

bahut khoob likha hai aapne....ekdum mst!

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

बहुत ही मनोहारी ...दिल बाग-बाग कर देने वाली ग़ज़ल ..राजेन्द्र जी !
कुछ अस्वस्थता ...कुछ व्यस्तता के कारन ब्लॉग पर नहीं आ पा रहा हूँ , जल्दी लौटने का प्रयास करूंगा !

PRAN SHARMA ने कहा…

AAPKEE GAZAL KE KYAA KAHNE ! DIMAAG
KE SAATH - SAATH DIL PAR BHEE CHHAA
GYEE HAI . BADHAAEE .

UMA SHANKER MISHRA ने कहा…

शब्द खामोश हो गए
गजल में रवानी है
आपके इस रूमानी करने का अनोखा अंदाज काबीले तारीफ का है|चित्र के साथ गजल की लाईन से निकलती अभिव्यक्ति गजब ढा रही है|
रुमानियत के साथ साथ आपने बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न को उद्धृत किया है
खूबसूरत गजल के लिए हार्दिक बधाई

Satish Saxena ने कहा…

बहुत अच्छा लिखते हैं आप भाई जी, आपकी किताब प्रकाशित होनी चाहिए !
शुभकामनायें आपको !

Satish Saxena ने कहा…

बहुत अच्छा लिखते हैं आप भाई जी, आपकी किताब प्रकाशित होनी चाहिए !
शुभकामनायें आपको !

Asha Joglekar ने कहा…

क्या गज़ल है, तारीफ के लिये शब्द नही मिल रहे ।
बहुत खूबसूरत ।

देखने वाले को बस इक नज़र चाहिये
मिल ही जायेंगी वो दिलकशीं लडकियां ।

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

खुबसूरत चेहरे, खुबसूरत शब्द और खुबसूरत पंक्तियाँ........खुबसूरत ढंग से सवांरी गई खुबसूरत पोस्ट......
आभार.........

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

ज़माने की निगाहों को झेलती समझदार हो गईं, बहुत
बदल गई हैं अब लड़कियाँ!

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

विजयादशमी और आने वाले सभी त्योहारों के लिए शुभकामनाएँ!!...मंगलकामनाएँ!!

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

bahut hi sunder gazal. sunder chitramayee pratuti.

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..