ब्लॉग मित्र मंडली

11/4/13

पथ की बाधाओं का निज पद-चाप से प्रतिवाद कर !

नवसंवत्सर मंगलमय हो 
प्रस्तुत है बहुत वर्ष पहले लिखा हुआ मेरा एक गीत
नव सृजन के गीत गा !
सुन मनुज ! उत्थान उन्नति उन्नयन के गीत गा !
जब प्रलय तांडव करेतब , नव सृजन के गीत गा !!

हो पतन जब मनुजता का ; मौन मत रहना कभी !
दनुजता के पांव की ठोकर न तुम सहना कभी !
मत रुदन करनापतित - कुकृत्यों से हो क्षुब्ध तुम ,
दुष्टता - आतंक - ज्वाला के शमन के गीत गा !!

शून्य हों संवेदनाएं ; स्वयं से संवाद कर !
पथ की बाधाओं का निज पद-चाप से प्रतिवाद कर !
हो जहां वीभत्स विप्लव ; सौम्य - शुभ - संधि सजा !
क्षरण में बासंती पुष्पन-पल्लवन के गीत गा !!

कब झुकी संतान मनु की , आपदा के सामने ?
डगमगाती सभ्यताओं को तू आया थामने !
है तेरा संबंध-चिर झंझाओं से यह भूल मत !
क्षण - प्रति - क्षण संकटों के आगमन के गीत गा !!

हों परिस्थितियां कभी प्रतिकूल ; घबराना नहीं !
हो विफल हर यत्न ; नियति मान ' झुक जाना नहीं !
व्याप्त , विकसित ना हृदय में हो तमस ; संकल्प कर !
हर विवशता की घड़ी में प्रभु-नमन के गीत गा !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

         
चलते-चलते 
नव संवत्सर , नए वर्ष , दीवाली , होली , गणतंत्र-दिवस , स्वतंत्रता-दिवस ,
राजस्थान-दिवस 
, बीकानेर-स्थापना-दिवस आदि पर्वों-त्यौंहारों पर
मेरे द्वारा रचित दोहों तथा काव्य-पंक्तियों को आम दिनों की तुलना में धड़ल्ले से
लोगों द्वारा बिना मेरा नाम लिखे 
, बिना मेरी स्वीकृति के प्रयोग में लिया जाता है ।
किसी के द्वारा नाममात्र शब्द अदल-बदल करने के बाद 
, किसी के द्वारा ज्यूं का त्यूं ।


मेरे द्वारा लिखा दोहा काम में लेते हुए यह चित्र नव संवत के अवसर पर पिछले वर्ष
कई जगह फ़ेसबुक और ब्लॉग्स पर ध्यान में आया था

मेरे द्वारा लिखा यही दोहा काम में लेते हुए यह चित्र नव संवत के अवसर पर इस वर्ष जगह जगह फ़ेसबुक पर नज़र आ रहा है

और...यह चित्र भी   

और...यह  भी   
भगवान सबका भला करे

         
पिछले 20-22 दिन नेट की भीषण समस्या रही 
मेरे ब्लॉगों सहित blogspot.in का कोई ब्लॉग खुल नहीं रहा था मेरे पीसी में । कुछ उपाय किए हैं । अब सब कुछ ठीक रहा तो सभी मित्रों के यहां आना-जाना नियमित हो जाएगा । आप भी सम्हालते रहें ।
शुभकामनाओं सहित