ब्लॉग मित्र मंडली

22/11/13

मारन को शहतीर न मारे, और कभी इक फांस बहुत है

नमस्कार !
बहुत समय बाद आपके लिए एक ग़ज़ल लेकर उपस्थित हुआ हूं 
अपनी बहुमूल्य  प्रतिक्रियाओं से धन्य कीजिएगा

आज घिनौना रास बहुत है
चहुंदिश भोग-विलास बहुत है

भ्रष्ट-दुष्ट नीचे से ऊपर
परिवर्तन की आस बहुत है


आज झुका है शीश
, हमारा
गर्व भरा इतिहास बहुत है

मारन को शहतीर न मारे
और कभी इक फांस बहुत है


कम करने को हर रितु का दुख
केवल इक मधुमास बहुत है

आशीषों की दौलत है क्या
यूं धन तेरे पास बहुत है


भाव प्रभावित करदे
; यूं लिख
शिल्प-जड़ित विन्यास बहुत है

रानी-दासी कुछ न कहे, पर...
राघव को बनवास बहुत है


पथ में तुलसी सूर कबीरा
है मीरा रैदास... बहुत है

आज मिली गुरु-चरणों की रज
मन में आज उजास बहुत है


नौका पार लगाएगा वह
 
ईश्वर पर विश्वास बहुत है

प्रभु मिलते राजेन्द्र उसे ; यदि
अंतर्मन में प्यास बहुत है

-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

 सादर
शुभकामनाओं सहित