ब्लॉग मित्र मंडली

30/3/14

रढ़ियाळो रळियावणो, रूड़ो राजस्थान

पिछली प्रविष्टि जो शस्वरं की १००वीं प्रविष्टि भी थी ,  
नव वर्ष के अवसर पर लगाई थी
कुछ ऐसे हालात रहे कि ब्लॉग पर लंबी अनुपस्थितियां रहीं ।
अब विक्रम नव संवत्सर २०७१ का भी शुभागमन है
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार ३१ मार्च २०१४ को 
आप सभी को
नव संवत्  की हार्दिक शुभकामनाएं !

और आज ३० मार्च को राजस्थान दिवस है
राजस्थान को समर्पित एक राजस्थानी गीत प्रस्तुत है
 शायद आपको रुचिकर लगेगा
जय जय राजस्थान

सुरंग सुरीलो सोहणो , सुंदर सुरग समान ।
रढ़ियाळो रळियावणो, रूड़ो राजस्थान ॥

जय जय जय राजस्थान ! ओ म्हारा प्यारा रजथान !
ओ  रूपाळा राजस्थान ! ओ रींझाळा राजस्थान !
बिरमाजी थावस सूं मांड्या, था'रा गौरव गान !!

ओ रणबंका रजथान ! ओ रंगरूड़ा राजस्थान ! 
ओ भुरजाळा राजस्थान ! ओ गरबीला राजस्थान !
गावै वीणा लियां सुरसती, था'रा कीरत गान !!
लुळ लुळ' सूरज किरणां इण माटी रौ माण बधावै सा ।
हाथ जोड़ियां आभो अपलक निरखै ; हुकम बजावै सा ।
मगन हुयोड़ो बायरियो कीरत में धुरपद गावै सा ।
नांव लियां ही मुरधर रौ, मन गरब हरख भर जावै सा ।
कुदरत मा मूंढ़ै मुळकै !
हिवड़ां हेज हेत छळकै !!
मस्ती मुख मुख पर झळकै !!!
इण माटी रौ कण कण तीरथ, सूरज, चांदो अर तारा । 
कळपतरू सै झाड़ बिरछ है ; गंगा जमुना नद नाळा ।
धोरां धोरां अठै सुमेरू ; मिनख लुगाई जस वाळा ।
शबदां शबदां में सुरसत ; कंठां कंठां इमरत धारा ।
मुरधर सगळां नैं मोवै !
इचरज देवां नैं होवै !!
सै इण रै साम्हीं जोवै !!! 
वीरां शूरां री धरती री निरवाळी पहचाण है ।
संत सत्यां भगतां कवियां री लूंठी आण-बाण है ।
आ माटी मोत्यां रौ समदर, अर हीरां री खाण है ।
म्है माटी रा टाबरिया, म्हांनै इण पर अभिमान है ।
रुच रुच' इण रा जस गावां !
जस में आणंद  रस पावां !!
मुरधर पर वारी जावां !!! 
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

भावार्थ

(अर्थ विस्तार न करते हुए भाव आप तक पहुंचाने का यत्न करता हूं) 
सुरंगा सुरीला सुहावना सुंदर स्वर्ग के समान 
ओजस्वी-तेजस्वी, बलशाली, गहन-गंभीर, स्मृतियों में बना रहने वाला है मेरा राजस्थान !
ओ राजस्थान ! ओ मेरे प्यारे राजस्थान ! ओ सुंदरतम राजस्थान ! ओ मुग्ध-मोहित कर देने वाले राजस्थान ! ब्रह्मा ने बहुत धैर्य के साथ तुम्हारी गौरव-गाथा लिखी है । तुम्हारी जय हो !
ओ रणबांकुरे राजस्थान ! ओ अद्वितीय सौंदर्य के स्वामी राजस्थान ! ओ बलशाली राजस्थान ! ओ गौरवमय राजस्थान ! स्वयं सरस्वती हाथ में वीणा लिये हुए तुम्हारा कीर्ति-गान गाती है । तुम्हारी जय हो !

राजस्थान की धरा पर अवरोहित सूर्य-किरणें झुक-झुक कर यहां की मिट्टी का मान बढ़ाती हैं । आसमान हाथ जोड़े हुए हर आदेश की पालना के लिए निर्निमेष निहारता रहता है । हहराती हुई हवा यहां मानो मस्ती में ध्रुपद-गायन करती रहती है । मेरी मरुधरा का नाम लेते ही मन हृदय प्राण गर्व और हर्ष से भर जाते हैं ।
यहां प्रकृति माता साक्षात् मुंह से मुस्कुराती है ।
यहां हृदयों में संबंधों की प्रगाढ़ता तथा विश्वास और प्रेम छलकते प्रतीत होते हैं ।
राजस्थान के जनमानस के मुखमंडल  पर मस्ती झलकती रहती है ।
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !

राजस्थान की मिट्टी का कण-कण तीर्थ है, सूर्य है, चांद  है, सितारा है ।
यहां के झाड़ और वृक्ष कल्पतरु हैं । नदियां-नाले गंगा-यमुना हैं ।
रेत का टील-टीला सुमेरु पर्वत है । यहां के नर-नारी गुणी हैं , यशस्वी हैं ।
शब्द-शब्द में सरस्वती है । कंठ-कंठ में अमृत की धार प्रवहमान है ।
(तभी तो) हमारी मरुभूमि सभी को सम्मोहित करती है ।
देवताओं को भी स्वर्ग से सुंदर राजस्थान देख कर आश्चर्य होता है ।
 हर कोई हर बात के लिए राजस्थान की ही ओर निहारता है ।
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !

शूर-वीर-प्रसूता राजस्थान की धरती की निराली ही पहचान है ।
यहां के संतों , सत्यनिष्ठ लोगों , ईश-भक्तों और कवियों की प्रबल आन-बान है ।
राजस्थान की मिट्टी मोतियों का समुद्र और हीरों की खान है । 
हम इस मिट्टी के बच्चे ,  हमें इस पर अभिमान है , गर्व है , गुमान है । 
(इस लिए) हम बहुत रुचि से अपनी मरुधरा का यशोगान करते हैं और इस यश-गायन में आनंद और रस पाते हैं अपनी मरुधरा पर जान छिड़कते हैं । 
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !

यहां मेरे इस गीत को मेरी बनाई धुन में सुन लीजिए मेरी ही आवाज़ में 

 
  ©copyright by : Rajendra Swarnkar


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