ब्लॉग मित्र मंडली

27/4/14

मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी मधुर


धड़कनें सुरमयी-सुरमयी हैं प्रिये !
सामने कल्पनाएं खड़ी हैं प्रिये !
मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी मधुर
रंग में रश्मियां रम रही हैं प्रिये !
कामनाएं गुलाबी-गुलाबी हुईं
वीथियां स्वप्न की सुनहरी हैं प्रिये !
नेह का रंग गहरा निखर आएगा
मन जुड़े , आत्माएं जुड़ी हैं प्रिये !

तुम निहारो हमें , हम निहारें तुम्हें
भाग्य से चंद्र-रातें मिली हैं प्रिये !
इन क्षणों को बनादें मधुर से मधुर
जन्मों की अर्चनाएं फली हैं प्रिये !

मेघ छाए , छुपा चंद्र , तारे हंसे
चंद्र-किरणें छुपी झांकती हैं प्रिये !
बिजलियों से डरो मत ; हमें स्वर्ग से

अप्सराएं मुदित देखती हैं प्रिये !
मौन निःशब्द नीरव थमा है समय
सांस और धड़कनें गा रही हैं प्रिये !
बंध क्षण-क्षण कसे जाएं भुजपाश के
प्रिय-मिलन की ये घड़ियां बड़ी हैं प्रिये !
देह चंदन महक , सांस में मोगरा

भीनी गंधें प्रणय रच रही हैं प्रिये !
भोजपत्रक हैं तन , हैं अधर लेखनी

भावमय गीतिकाएं लिखी हैं प्रिये !

अनवरत बुझ रहीं , अनवरत बढ़ रहीं
कामनाएं बहुत बावली हैं प्रिये !
लौ प्रणय-यज्ञ की लपलपाती लगे
देह आहूतियां सौंपती हैं प्रिये !
उच्चरित-प्रस्फुटित मंत्र अधरों से कुछ
सांस से कुछ ॠचाएं पढ़ी हैं प्रिये !
रैन बीती , उषा मुस्कुराने लगी

और तृष्णाएं सिर पर चढ़ी हैं प्रिये !
मन में राजेन्द्र सम्मोहिनी-शक्तियां

इन दिनों डेरा डाले हुई हैं प्रिये !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

मित्रों, पहले तो कुछ पारिवारिक व्यस्तताएं रहीं । फिर बहुत समय से ब्लॉग में नई पोस्ट डालने का सिस्टम ही काम  नहीं कर रहा था ।
समय निकाल कर हिंदी की 
इस शृंगारिक ग़ज़ल पर दृष्टि डालिएगा ।
तमाम ब्लॉगर और फेसबुक के नये-पुराने मित्रों की बहुमूल्य प्रतिक्रिया पा'कर रचनाधर्मिता को बल मिलेगा ।

शुभकामनाओं सहित