ब्लॉग मित्र मंडली

19/5/11

कई मुर्दों में फिर से जान आई

आज की अनोखी रचना उनके लिए

करे तीजे घरों पर जो लड़ाई !

कई मुर्दों में फिर से जान आई
ये महफ़िल आपने फिर जो सजाई

कई कब्रों से उठ बैठी हैं लाशें
भभकती गंध ये आई , वो आई

जो रूखे  थोबड़े बंजर हैं , उन पर
कुटिलता फिर घिनौनी मुस्कुराई

भटकते श्वान आवारा कई जो
ज़ुबां भुस-काटने को लपलपाई

किराये के कई गुंडे थे खाली
चले फिर आए करने हाथापाई

उड़े मिलते हैं जिनके घर के तोते
दिखाएंगे यहां वे पंडिताई

भये दादुर कई अब फिर से वक्ता
जमी जीभों पे जिनके लार-काई

न क ख ग छंद का जाने अनाड़ी ;
बघारें शेख़ियां फिर कर ढिठाई

बहुत है जोश ; गुण-औक़ात कब है ?
करे तीजे घरों पर जो लड़ाई !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
 ©copyright by : Rajendra Swarnkar


कइयों के लिए पहेली रहेगी
 कई मित्र रचना की तह तक पहुंच पाएंगे
कभी कुछ लीक से हट कर भी होना चाहिए न !

JJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJ

मेरी पुरानी , न पढ़ी हुई पोस्ट्स भी टटोललें कभी
शीघ्र ही फिर हाज़िर होता हूं नई रचना के साथ नई पोस्ट में

गर्मी बहुत तेज है
अपना ख़याल रखिएगा
नये समर्थनदाताओं का हृदय से स्वागत
बहुत बहुत शुभकामनाएं !



61 टिप्‍पणियां:

आशुतोष की कलम ने कहा…

या पंक्तिया मुझे भायी
ऐसे ही लिखते रहें आप,
हो वो कविता या हो रुबाई....
स्वर्णकार जी,बहुत बहुत बधाई..

Unknown ने कहा…

राजेंद्र जी, शब्दों के दमदार और धारदार होने के लिए आपकी लेखनी को नमन , बहुतो की पोल खोल दी आपने, समझदारों की भी नासमझों की भी, आभार भी बधाई भी

udaya veer singh ने कहा…

anuthha prayas pasand aaya .
shukriya .

Rakesh Kumar ने कहा…

आपको तरंग में देख अच्छा लगा.'वीभत्स' रस की भयानकता का संचार कर दिया आपने.आपकी इस रचना के रहस्य का तो नहीं पता,लेकिन आपकी इस प्रस्तुति ने विस्मय में जरूर डाला है.
बहुत बहुत आभार.
आजकल मेरे ब्लॉग से क्यूँ दूर रह रहें है आप ?

girish pankaj ने कहा…

यह कविता वही कवि लिख सकता है जो विसंगतियां झेलता है. आज छंद हाशिये पर है प्रतिभाशून्य लोग जो लिख रहे है अब वही कविता है. छंद लिखना पुरानी लीक पर चलना है. पतन ही अब आधुनिकता है. इस प्रवृत्ति पर गहरा प्रहार किया है अच्छा लगा. यह काम होनाही चाहिए. कितने लोग समझते है, नहीं समझते है, इशारा किनकी और है, यह सब अनुमान लगते रहें, लेकिन आपने जितना कहादो टूक कहा. हर पंक्ति उल्लेखनीय है. मैं ऐसे ही साहसिक लेखन को पसंद करूंगा ही, क्योंकि मेरी फितरत भी इसी किस्म की है.

shikha varshney ने कहा…

प्रभावी है नया प्रयास.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा ग़ज़ल पेश की है आपने तो!
अच्छे बिम्बों का प्रयोगा किया है आपने
अपनी बात कहने के लिए!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

करे तीजे घरों पे जो लड़ाई....
पढ़ कर पहले लगा कि पोस्ट ‘तीज’ से सम्बंधित है क्या?
पर आगे पढ़ने पर “करे तीजे घरों पे जो लड़ाई” पर से आवरण हटने लगा.....
आवश्यकतानुरूप कठोर प्रहार....
सादर,
आपका छोटा भाई...

Sunil Kumar ने कहा…

इस रचना ने तो हिला के रख दिया जबरदस्त प्रहार , शुभकामनायें

Deepak Saini ने कहा…

सच कहू तो आज तो सचमुच मेरे लिए पहेली ही है
फिर भी कविता को पढते हुए बंध सा गया

अनिमेसन बहुत अच्छा लगा
शुभकामनाये

Rajesh Kumari ने कहा…

kataksh bhaav aur vibhats ras ke madhyam se likhi yeh kavita saraahniye hai hamesha ki tarah.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत कस कस कर कोड़े मारे हैं । लेकिन अचानक ये कौन परेशान कर गया, यह समझना बाकि है । शुरू की पंक्तियों में कई लफ्ज़ जाने पहचाने से लगे । कहीं आप वही तो नहीं कह रहे जो मैं समझ रहा हूँ । अब आप ही समझिये कि हम क्या समझ रहे हैं । :)
वैसे हम पहचान गए हैं उस महफ़िल को और उनमे घुस आए दादुरों को भी ।
आज सचमुच अलग है , पर ग़ज़ब है ।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत नए ढ़ंग से लिखी गई ग़ज़ल। अच्छी लगी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी रचना छिपा सन्देश दे रही है ... किसी की बेबात की बात पर यह रचना सही बैठती है .. . ऐसा मुझे लग रहा है जो स्वयं को ज्ञानी समझता है और दूसरों पर उंगली उठता है ..ऐसे व्यक्ति पर ही कटाक्ष दिख रहा है ...

प्रयोग बहुत अच्छा लगा

विभूति" ने कहा…

bhut hi acchi rachna...

राज भाटिय़ा ने कहा…

मेरे दिमाग मे तो साधारण सी कविता नही घुसती... तो यह भारीभरकम केसे घुसती:)लेकिन पढने मे बहुत अच्छी लगी,बिलकुल तीज के त्योहार की तरह...

subhash rai ने कहा…

achchhi rachana hamesha mukt karatee hai. jo nirbandh man ki bhumi se paida hoti hai, vahee shreshth rachana hoti hai. iske liye heenata se upar uthana padata hai. ishwar kare aap aise hee upar uthate rahen. rachana kee aag se aap mukt hon, usmen tapen naheen, iske liye meri shubhkamanayen.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आभार आपका, क्या कविता सुनायी।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

तीजे घर में लड़ाई... हर्रे लगे न फिटकिरी , जितना आग लगाना चाहो, जितनी सूक्ति बोलनी है बोलो ... क्या जाता है !अपने घर के गड्ढों से बेखबर दूसरे के गड्ढे भरने में अपनी काबिलियत दिखाने का सुनहरा मौका आड़े हाथ लेते हैं .....

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

मेडिकल की जुबां में कहूं तो कंट्यूजन साफ़ दिखाई दे रहा है .....चोट गहरी लगी है. एक छटपटाती और दादुरों की आरती उतारती रचना. तोते, पंडित और दादुर ने जान डाल दी है इस आरती में. बहरहाल हुआ क्या ? ज़रा इन पंडितों को सामने तो लाइए. घुटिये मत ...अब अभिधा में आ जाइए .....जय बजरंग बली की !

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan ने कहा…

इस सुन्दर रचना के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई.

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

शानदार रचना...बहुत मर्म है इसमें...हार्दिक बधाई.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

प्रभावी है नया प्रयास.

रचना दीक्षित ने कहा…

ये प्रस्तुति आपके मिजाज़ से अलग दिखी. परन्तु बहुत बढ़िया रहा एह प्रयोग भी. हार्दिक बधाई.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

राजेन्द्र भाई ,

लगता है अब तक ,

बात किसी की समझ में न आई ।

लेकिन हमारी तरफ से तो बधाई ।

कम से कम आपने तो आवाज़ उठाई ।

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना ...बधाई

Devi Nangrani ने कहा…

Bahut hi naye tewaron se pesh kiyahua har sher aaj ke mahoul ki ek tasveer kheench raha hai. Kalam se soch shabdon ka aakar paakar saji hai. bahut sari shubhkamnaon ke saath

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

sundar kavita...

Kunwar Kusumesh ने कहा…

तोते वाला शेर तो बहुत बढ़िया है.किसी विशेष mood और परिस्थितियों में लिखी हुई ग़ज़ल लगती है.

amit kumar srivastava ने कहा…

nice,

this is called 'oblique comment'

निर्मला कपिला ने कहा…

hamesha ki tarah laajavaab.

vandana gupta ने कहा…

सुन्दर बिम्ब प्रयोग्……॥शानदार लेखन्।

सदा ने कहा…

हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई ...सार्थक प्रस्‍तुति ।

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

प्रभावी अभिव्यक्ति.......

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

# आशुतोष जी , रचना पसंद करने के लिए आभार !

# कुश्वंश जी , :)
समझ समझ कर समझ के समझो
समझ समझना बड़ी समझ है !
समझ समझ के भी जो न समझे
मेरी समझ में वो नासमझ है !!


आप जैसे समझदारों के सहारे नासमझों को भी समझ मिले … :)
आभारी हूं हृदय से !

# उदयवीर सिंह जी , प्रणाम !
देखते-परखते रहें और आ'कर धन्य करते रहें !आभार !

# राकेश कुमार जी ,
कुछ वीभत्स और कुत्सित मनोवृत्ति के लोग ऐसी रचनाओं के हेतु बनते हैं …
अन्यथा आप मेरे सृजन और प्रवृत्ति से परिचित ही हैं ।

# गिरीश पंकज जी ,
जिस घर में मुझे अपमानित किया गया ,
वहां आपके साथ भी वैसा ही कुछ मुझसे भी पहले हुआ …
गुणी रचना पर बात करे तो न आपको ऐतराज़ है न मुझे ।
लेकिन कुछ न जानने वाले डींगें हांके … ढीठता की पराकाष्ठाएं थीं !
… आईना दिखाया है … दिखाएंगे !
अभद्र का अनाड़ीपन तो सहलें ; अनाड़ी की अभद्रता कतई नहीं स्वीकारेंगे …


# शिखा वार्ष्णेय जी ,
धन्यवाद !

# डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ,
प्रणाम ! आप जानते हैं , सरस्वती-पुत्र समर्थ होते हैं …
अपनी बात कहने के लिए ! आभार !

# एस.एम.हबीब भाईजान,
तीजे घर अर्थात् आप मेरे घर/ब्लॉग पर आएं ,
मैं आपकी किसी बात का जवाब दूं , न दूं कोई तीसरा आगंतुक/टिप्पणीकार अभद्रता से बीच में ही टपक कर आपका अपमान करे …
और लज्जाजनक स्थिति यह कि मैं फिर भी मूक तटस्थ बना रहूं …

दो ऐसे ठिकाने हैं जहां के अभद्रों के नाम है यह रचना … हां आईना दिखाने का अवसर 8-10 माह बाद आया है … लेकिन संदेश पहुंच चुका …:)
आपके स्नेह का ॠणी हूं !

# सुनील जी ,
आशा है, स्नेह-सहयोग मिलता रहेगा आगे भी ! आभारी हूं !

# दीपक सैनी जी ,
कभी कभी पहेली का भी अपना आनन्द होता है :)
शुक्रगुज़ार हूं !

# आ.राजेश कुमारी जी ,
आभारी हूं उनका जो वीभत्स भाव की रचना के निमित्त बने ! :)
आपको श्रद्धा भाव से नमन !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

# आ.डॉ.टी.एस.दराल भाईसाहब ,
नमस्कार ! अचानक नहीं , महीनों गरल गले में अटका कर रखा था …:)
आप कम पारखी थोड़े ही हैं ! :)
आपने मेरे हर रंग को सराहा है … उत्साहवर्द्धन हेतु आभारी हूं !

# मनोज कुमार जी ,
म्रेरे इस रंग से मेरा राजस्थानी ग़ज़ल संग्रह रूई मांयी सूई(A Needle In Cotton)भरा पड़ा है ।
72 ग़ज़लों में से अधिकांश में हर मठाधीशत्व , हर विद्रूपता पर प्रहार किया है ।
वर्ष 2002 में प्रकाशित मेरी इस पुस्तक के रंगों , बिंबों और विषयवस्तु का आज धड़ल्ले से राजस्थान भर में अनुकरण हो रहा है ।

# आ.संगीता स्वरूप जी , प्रणाम !
एक जगह तो आप सही पहचान रही हैं :)
मुझे कहीं भी आपने शालीनता लांघते हुए देखा हो तो कहें !
क्या यह उचित है कि -
आपके ब्लॉग पर मैं आऊं और कोई तीसरा शख़्स अभद्रता से कहे -'ऐसी क्या गरज आन पड़ी कि आप यहां आ खड़े हुए ।'
या मैं आपके ब्लॉग पर आ कर विषय से संबद्ध प्रश्न ब्लॉग मालिक से करूं और कोई तीसरा शख़्स विषय में सर्वथा फिसड्डी होने ,
सतही ज्ञान तक न रखने के बावजूद अभद्रता से मुझे ध्रष्ट तक कह दे…
ग़लत लोग मुझे ग़लत मानें , मुझे कोई परवाह नहीं … सही हैं उनसे सहयोग-समर्थन-स्नेह की अपेक्षा है, रहेगी ! … और मैं जानता हूं मुझे मिलेगा भी !!

# सुषमा आहुति जी , हृदय से स्वागत है आपका !

# आ.राज भाटिया जी , प्रणाम !
आपकी विनम्रता है …अन्यथा ब्लॉगजगत में कुछ न जानते हुए भी बहुत कुछ जानने का प्रचार करते-करवाते लोगों की भी कमी नहीं !:)
मैं आपके यहां न के बराबर पहुंच पा रहा हूं अभी …क्षमा सहित स्नेह भाव रखिएगा , कृपया !
#

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत ही जानदार रचना है ...!!
सशक्त और सटीक ..!!

Maheshwari kaneri ने कहा…

सारगर्भित तथा सार्थक रचना

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ही सटीक टिप्पणी..ज़हर को भी अमृत बना कर पेश करना केवल आप की ही क्षमता है..आभार

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

हमारे इर्द गिर्द चल रहे अ-समतोल घटनाक्रमों पर सार्थक टिप्पणियाँ की हैं आपने| यही होता है गजल / छन्द / कविता का उद्देश्य|

पंक्तियों के बीच पढ़ने के लिए काफी कुछ छोड़ा हुआ है, पढ़ने वाले अपने अनुसार अर्थ निकाल कर कथानक बुन सकते हैं|

खुशी की बात है छन्द को ले कर आप काफी गंभीर हैं|

सशक्त रचना के लिए सहृदय बधाई बन्धुवर|

Shah Nawaz ने कहा…

वाह... एक अलग ही अंदाज़ है... बेहतरीन!

HEMANT PARAKH ने कहा…

बंधू आपकी रचनाएँ बेहद उत्साह वर्धक हैं, आपकी कलम को मेरी शुभ कामनाएं -हेमंत पारख

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

बहुत कुछ सीख देती हुई रचना।
आभार , राजेन्द्र जी।

Sushil Bakliwal ने कहा…

वाकई आपकी यह रचना लीक से हटकर ही दिख रही है ।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

आदरणीय राजेन्द्र जी ,

सप्रेम अभिवादन |



"भये दादुर कई अब फिर से वक्ता

जमीं जीभों पे जिनके लार,काई

न क ख ग छंद का जानें अनाड़ी

बघारें शेखियां फिर कर ढिठाई "


कभी-कभी ऐसा भी लिखना पड़ता है .......पर है यह भी गज़ब का |

संजय भास्‍कर ने कहा…

शानदार रचना....हार्दिक बधाई.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

# आदरणीय सुभाष राय जी
मेरा परम सौभाग्य कि, आप मेरे यहां पधारे ।
शस्वरं पर आपका सदैव सच्चे हृदय से ससम्मान स्वागत है ।
…और मैं आपको पूरे दायित्व के साथ आश्वस्त करता हूं कि
यहां किसी टट्पुंजिये को तो क्या किसी दिग्गज तुर्रमखां को भी हिमाक़त से किसी को यह कहने की छूट नहीं है कि-
'ऐसी क्या गरज आन पड़ी कि आप यहां आ खड़े हुए ।'
जैसा कि आपके यहां साखी पर मुझे कहा गया … और आप ख़ामोश रहे ।

## आप कहते हैं -
rachana kee aag se aap mukt hon, usmen tapen naheen,

साखी पर मुझे उपरोक्त तरीके से सम्मानित करने के बाद वहां 8-9 माह तक व्याप्त सन्नाटे के बाद आपने चन्द्रभान भारद्वाज जी की ग़ज़लें लगाईं ,
मैं भारद्वाज जी का प्रशंसक होने के उपरांत साखी पर प्रतिक्रिया देने आपकी मेल मिलने के बावजूद इसलिए नहीं आया क्योंकि आऊं तो फिर कोई किराये का गुंडा
कह सकता है 'ऐसी क्या गरज आन पड़ी कि आप यहां आ खड़े हुए ।'

उन्हीं भारद्वाज जी के ब्लॉग पर लगी ग़ज़ल की प्रतिक्रिया जो लिख कर आया हूं वह आपकी उपरोक्त टिप्पणी का भी जवाब है
भारद्वाज जी के निम्नांकित शे'र के साथ
जिसकी नसों में आग का दरिया न बहता हो
काबिल भले हो वह मगर शायर नहीं होता

## रचना की आग से मुक्त होने , उसमें न तपने की नसीहत भोले लोग दे जाएं तो क्या कीजे ? :)
… निःसंदेह उनके लिए दुआओं के अलावा आप-हम क्या करें … शायरी आपकी-हमारी रग़ों में जो है … :)

भाई साहब ,
आप जैसे सहृदयी गुणी को किसी और के पाप के लिए उलाहना देते हुए मुझे बहुत अफ़सोस हो रहा है ,
इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं …


सादर
राजेन्द्र स्वर्णकार





Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

# प्रवीण पाण्डेय जी ,
आपका भी हृदय से आभार !

# दीदी रश्मि प्रभा जी
प्रणाम !
ब्लॉगजगत में यह बहुत बड़ी ख़ामी है कि ब्लॉग संचालक और किसी विजिटर के मध्य चल रहे विमर्श/शंका-समाधान/संवाद के
बीच बिना अनुमति लिए कोई और विजिटर/टिप्पणीकर्ता न केवल असभ्यता से कूद पड़ते है
बल्कि संबद्ध विषय का ज्ञान तक न होने के उपरांत शेखी बघारते हुए कोई किसी को ध्रष्ट तो कोई किसी को
'ऐसी क्या गरज आन पड़ी कि आप यहां आ खड़े हुए ।' जैसे जुमले तक कह डालते हैं ।

मुझे जिस ब्लॉग पर किसी से ध्रष्ट सुनना पड़ा , वह ब्लॉग संचालक भी मेरे सम्माननीय और प्रिय हैं ।
लेकिन दोनों ही अपने ब्लॉग पर तृतीय पुरुष/महिला की अनधिकृत बयानबाजी पर चुप रहे ।
ख़ैर मैंने हमेशा के लिए उन ब्लॉग्स पर जाना ही छोड़ दिया ताकि उनके लिए जो ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं
उनके साथ उन महानुभावों के संबंध प्रभावित न हों ।

आपके पधारने से मैं धन्य हुआ , आभार !

# डॉक्टर कौशलेन्द्र जी
सुभाष राय जी और रश्मि प्रभा जी के कमेंट्स के लिए दिए गए मेरे जवाबों से अब सब कुछ सामने है ।
आभार आपके स्नेह के लिए …

# अवनीश जी
कृतज्ञ हूं … आइएगा आगे भी ।

# डॉ.साहिबा शरद सिंह जी,
आपकी पारखी नज़र से मेरी रचनाओं को धन्य करते रहने के लिए आभार !

# अरुण चन्द्र रॉय जी
आपको पसंद आया , जान कर अच्छा लगा ।

# आ.रचना दीक्षित जी
अफ़सोस है कि ब्लॉग जगत में भी शरीफ़ों के साथ ज़्यादती होती है ।
आपके प्रति कृतज्ञ हूं ।

# डॉक्टर दराल भाईसाहब
अब सबको बता दिया है … मैं कहीं ग़लत हूं कहें …

# आ.रंजना(रंजू भाटिया)जी
प्रणाम !
आप पधारीं तब मेरी पोस्ट पर मेरी प्रकृति से अलग रचना होने के लिए क्षमा कर दीजिएगा …

Dr Varsha Singh ने कहा…

"भये दादुर कई अब फिर से वक्ता
जमीं जीभों पे जिनके लार,काई
न क ख ग छंद का जानें अनाड़ी
बघारें शेखियां फिर कर ढिठाई "

गहन अनुभूतियों और जीवन की सच्चाई से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई।

रंजना ने कहा…

विसंगतियों पर प्रखर प्रहार....

बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर प्रभावशाली व मनमोहक रचना...

वाह...वाह...वाह...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

भाई जी आपके इन तेवरों से अब तक हम तो अनजान ही रहे,...कमाल की ग़ज़ल कह गए हैं आप...इस अलग रंग की ग़ज़ल से आपने ग़ज़ल में पयोग के नए द्वार खोल दिए हैं...लाजवाब प्रस्तुति...बधाई स्वीकारें
नीरज

Urmi ने कहा…

टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
काफी दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ! बहुत ही सुन्दर, शानदार और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

उड़े मिलते हैं जिनके घर के तोते,
दिखायेंगे यहाँ वो पंडिताई !
भाई राजेन्द्र जी,
हर शेर वर्तमान स्थिति पर करारा व्यंग्य है !
यथार्थ का शब्द चित्र आपने बड़े ही प्रभावी ढंग से उकेरा है !
आभार !

Satish Saxena ने कहा…

सन्दर्भ नहीं देख पाया हूँ मगर खेद है की आप जैसे विनम्र और बेहतरीन व्यक्तित्व के साथ भी ऐसी घटना घटी !
हिंदी ब्लॉग जगत में अक्सर, मान सम्मान चाहने वाले दूसरों के सम्मान की परवाह नहीं करते !
बेहद खेदजनक घटना !
शुभकामनायें !

Udan Tashtari ने कहा…

संदर्भ के तार पकड़ रहा था कि आखिर आप को यह तेवर क्यूँ अपनाने पड़े वो भी पूरे निबाह के साथ...

कुछ मिले, कुछ न मिले..मगर आप दुखी हुए हैं, यह जान कर दुख हुआ.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आद. राजेन्द्र जी ,
शब्दों की कड़वाहट से जान पड़ता है ...
मन कितना आहत हुआ है ....
कई बार इस तरह भी कलम को तलवार बनाना पड़ता है ........

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

rajendra bhai ji
kamaal hai aap to chhupe rustam nikle .kitni hi safai se dil ki baat ko sabke samane rakh diya vo bhi badi hi sahjta ke saath
ye bhi to aapki jabardast lekhni ka hi kammal hai
bahut khoob
hardik badhai
idhar aswsthta ke chalte dheere -dheere hi sabhi ke blog tak pahunchne ki koshish kar rahi hun.
vilambke liye dil se xhma chahti hun.
poonam

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

राजेंद्र जी, बहुत सुन्दर और तीखी रचना है ... आपकी लेखनी से कभी फूल तो कभी कांटे बरसते हैं ... पर हाँ आपने सही कहा ... कुछ अलग मिजाज़ की रचनाएँ भी होनी चाहिए ...
शायद किसी बात से आपके मन को ठेस पहुंचा होगा ... पाता नहीं क्या है ... पर जो भी है ... उम्मीद है कि बहुत जल्दी आप कड़वाहट भूल जायेंगे ...
पौधे पर कांटे हो तो फूलों को भी कभी तकलीफ हो सकती है ...

shyam skha ने कहा…

aap ke bheetar ka kalavant mujhe sda abhibhoot karta hai
shyam skha shyam

aaj hindi ka software kam nhin kar rha hai dekhen

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

भाई राजेन्द्र जी ,
सप्रेम अभिवादन
आशा है अब मन अशांति से मुक्त हो गया होगा | आप जैसे समर्थ रचनाकार को किसी के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है | अपनी रचनाओं से साहित्य जगत को समृद्ध करते रहें , हार्दिक कामना है |

daanish ने कहा…

रचना एक दम सटीक और सार्थक है
निर्देश और प्रतीक चाहे जहाँ के भी रहे हों
लेकिन जो सच है,, वोही कहा गया है
शब्द की अवमानना करने वाले
साहित्य की अवहेलना करने वाले
बेनकाब होने ही चाहियें .... ऐसा ही सब
आपकी रचना से उजागर हो रहा है !