नवरात्रि पर्व
पर आप सबको कोटिशः
शुभकामनाएं मंगलकामनाएं
आज प्रस्तुत है हरिगीतिका छंद में मेरी नई सरस्वती वंदना
हे शारदे !
( छंद
: हरिगीतिका )
ज्योतिर्मयी ! वागीश्वरी ! हे शारदे ! धी दायिनी !
पद्मासनी ! शुचि ! वेद-वीणा-धारिणि ! मृदुहासिनी !
सुर-शब्द-ज्ञान प्रदायिनी ! मां भगवती ! सुखदायिनी !
शत शत नमन वंदन ! वरदसुत-मानवर्द्धिनि ! मानिनी !
मातेश्वरी ! करुणा कृपा कर’ धन्य उपकृत कीजिए !
निशि-दिवस नत दृग याचना है , शरण में ले लीजिए !
सम्मुख स्वजन सुर-शब्द-साधक , सरस्वती स्वीकारिए !
तम पंक कल्मष कीच जड़ता हर’ मुझे अपनाइए !
सत्यम् शिवम् सुंदर सृजे वह लेखनी दो शारदा !
मैं छंद सार्थक श्लील रुचिकर रच सकूं ; है प्रार्थना !
दोहे कवित कुंडली सवैये सोरठे हरिगीतिका !
हो वार्णिक मात्रिक ; सृजित हर छंद को दो पूर्णता !
रस भाव लय सुर ताल छंदों से नई संसृति रचूं !
आशीष दो , अनुपम लिखूं मां
! मैं अकिंचन जो लिखूं !
हो सर्वजन आनन्द सुख हित ; वो सृजूं …जब तक जियूं
!
मातेश्वरी ! मैं आपके गृह का बनूं दीपक ; जलूं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright
by : Rajendra Swarnkar
इस प्लेयर पर यह
वंदना अवश्य सुनें
Jसुन कर अपनी राय देंगे तो आभारी रहूंगाJ
छंद के प्रति जन रुचि जाग्रत करने और छंद की समझ पुष्पित-पल्लवित
करने के महत्त्ती प्रयास स्वरूप
प्रियवर नवीन चतुर्वेदी जी ने समस्या पूर्ति मंच पर
हरिगीतिका छंद की शृंखला प्रारंभ की हुई है ।
इसी वंदना का प्रथम चरण नवीन
जी की लिखी गणेश वंदना के साथ मैंने गाया है ।
शस्वरं के स्नेहीजन की सुविधा के लिए यह रहा लिंक
नये मित्रों का हार्दिक स्वागत है
स्नेह – सद्भाव बनाए रहें