जज़्बों से लबरेज़ हैं , तेरे दिलो-दिमाग़ !
लग ना जाए बावरी ! शुभ्र वसन पर दाग !!
सख़्ती बंधन वर्जना ; बेडी़ ना जंजीर !
इन तदबीरों से संवर जाती है तक़दीर !!
एक झपट्टा मार कर , ले जाते हैं बाज़ !
सोनचिडी़ ! रख हद्द में , तू अपनी परवाज़ !!
घर के बाहर गिद्द खर नाग सुअर घड़ियाल !
कामुकता पग पग खडी़ , ओढ़' प्रीत की
खाल !!
रोके तुमको अर्गला , मना करे दहलीज़ !
खा जाएंगे भेड़िये , तेरा गोश्त लज़ीज़ !!
तू तो भोली गाय है , हिंसक पशु संसार !
चीर-फाड़ देंगे तुझे , टपके सबके लार !!
बाहर ज़्यादा मत निकल , कर बैठेगी भूल !
जीते जी मर जाएंगे , घर के लोग फु़ज़ूल !!
फिसला तेरा पांव तो आएगा भू'चाल !
जब तक पीले हाथ हों , खु़द को रख संभाल !!
बेटी ! तेरी भूल इक , ला देगी तूफ़ान !
रहने दे मन में दबे , तू कोमल अरमान !!
बहके जो तेरे क़दम , होगा महाविनाश !
इज़्ज़त खो'
बन जाएंगे , मां-बाबा बुत , लाश !!
सुन लाडो ! जग का यही , नियम और इंसाफ़ !
लड़की की नादानियां , बन जाती हैं पाप !!
अधुनातन बन' हो गया , कुत्सित यह संसार
!
तू मत खो निज अस्मिता , शर्म , शील
, संस्कार !!
रखना संचित आबरू , आंचल में महफ़ूज़ !
जो आदर्श हैं खोखले , बेटी ! उन्हें न पूज !!
दुनिया तो भटकाएगी , खोना तू न विवेक !
लहर कली तितली पवन छांह चांदनी धूप !
महक खुशी-से खिल उठें , बेटी ! तेरे रूप !!
राजेन्द्र स्वर्णकार