सत्य धर्म रहते सदा जीवित...ज्यों प्रहलाद ! झूठ कपट की होलिका जलती ; रखना याद !! अग्निस्नान करते भक्त प्रह्लाद, भस्म हो चुकीहोलिका और विस्मित हिरण्यकश्यपु यह चित्र भी बचपन में बनाया था । आशा है , आपको पसंद आएगा ।
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एक दोहे से शुरूआत हो ही गई है तो प्रस्तुत हैं , कुछ और दोहे
होलीऐसी खेलिए
रंगदें हरी वसुंधरा , केशरिया आकाश !
इन्द्रधनुषिया मन रंगें , होंठ रंगें मृदुहास !!
होली के दिनभूलिए भेदभाव अभिमान !
रामायण से मिल’ गले मुस्काए कुरआन !!
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख का फर्क रहे ना आज
मौसम की मनुहार की रखिएगा कुछ लाज !!
क्या होली , क्या ईद …सब पर्व दें इक सन्देश !
हृदयों से धो दीजिए… बैर अहम् विद्वेष !!
होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!
राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
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कृष्ण-राधा संवाद पर आधारित मेरा यह गीत बहुत पसंद किया जाता रहा है
आज आपके लिए प्रस्तुत है
मानोबात हमारी
मानोबात हमारी, ओ प्यारी!
फागुन की रुत प्यारी, ओ प्यारी!!
जा छलियाबनवारी , मुरारी !
छोड़कलाई ; खावैगोगारी !!
मस्तमहीना , राधा!काहे बंद किए हो किंवारी?
सुन लइहैं मस्ती में तोहरे मुख सौं मीठी गारी!
ओ प्यारी, मानोबात हमारी!!
मो संग काहे करिहो ठिठोरी ?काहे मचावतरारि ?
लोकतिहुंपैराजतिहारो ; ग्वालनजातहमारी !
मुरारी , जा छलियाबनवारी !!
लोकतिहुंकोराजा ; राधा ! तोहरेदरकोभिखारी !
दइदैदरशधनधनकरमोहिं , तोपैहौंबलहारी !
ओ प्यारी, मानोबात हमारी !!
खेल तिहारो जानैं सकल हौं, स्वारथ को तू पुजारी!
रस पी’कै उड़ि जइहैं ज्यूं भौंरो, सो ही छिबहैतिहारी !
मुरारी , जा छलियाबनवारी!!
काहेबनावैझूठीबतियां ? काहेकरैतकरारि ?
नाहिंसदाजोबनरहिहैरी ! फागुनकेदिनचारि !
ओ प्यारी, मानोबात हमारी!!
कौल करो कान्हा!मोहिं ना तूं छोड़ैगोमंझधारि !
तबहौंहोरीतोसंगखेलूं , मानूंबाततिहारी !
मुरारी , जा छलियाबनवारी !
भोरी राधा!ना कछुतोहरेबिनुतोहरोबनवारी!
नाहोरीबिनुफागुन; नाराधाबिनुकृष्णमुरारी!
आनन्दराजिंदसुरग – संसारि !!
राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ यहां सुनिए मानो बात हमारी ओ प्यारी (c)copyright by : Rajendra Swarnkar ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रस्तुत है ,
एक दोहा रचना राजस्थानी भाषा में
अर्थ साथ ही दे दिया है ताकि आप तक रचना संप्रेषित हो सके ।
मेरे देश में काम-तरंगित , सोलह शृंगार-सुसज्जित होली का त्यौंहार आया है ।
तनड़ो तरसै परस नैं , प्रीत करै मनवार !
आवो प्यारा पीवजी , सांवरिया सिरदार !!
देह स्पर्श को तरस रही है , प्रीत मनुहार कर रही है । हे सांवरे सरताज , प्रिय प्रियतम ! आपका स्वागत है… आइए !
होळी खेलण’ मिस गयो , कान्हो राधा-द्वार !
धरती सूं आभो मिळ्यो , स्रिष्टी सूं करतार !!
होली खेलने के बहाने कन्हैया राधा के द्वार पर पहुंचे …
मानो धरा से गगन का और सृष्टि से विधाता का मिलन हुआ … ।
बाथां में कान्हो भर्’यो ; राधा हुई निहाल !
झिरमिर बरसी प्रीतड़ी , आभै रची गुलाल !!
कृष्ण कन्हैया ने बाहों में भरा तो राधिका निहाल हो गई ।
रिमझिम प्रीत बरसने लगी , आकाश में गुलाल रच गई ।
भींजी राधा प्रीत में , कान्है रै अंग लाग’ !
रूं – रूं गावण लागग्यो , सरस बसंती राग !!
कन्हैया के अंग से लग कर राधा प्रीत में भीग गई ।
रोम रोम से सुमधुर बसंती राग की स्वर लहरियां प्रस्फुटित हो उठी ।
मन भींज्यो , तन भींजग्यो , गई आतमा भींज !
नैण मिळ्या जद नैण सूं , मुळक’ हरख’ अर रींझ’ !!
मुस्कुरा कर , हर्षित नयन जब नयन से मिलन में रींझ गए, …तो
मन भीग गया , देह भीग गई , प्राण कैसे अछूते रहते … आत्मा भी भीग गई ।
फूलगुलाबी सांवरो अर राधाजी श्याम !
मोवै युगल सुहावणा , सुंदर ललित ललाम !!
रंग रंग कर नीलवर्ण कन्हैया गुलाबी और गौरवर्ण राधाजी सांवले रंग के दृष्टिगत हो रहे हैं ।
यह सुंदर , लावण्यमयी , सुहावनी युगल छवि मोहित कर रही है ।
हिवड़ो रंगियो प्रीत सूं , छिब सूं रंगिया नैण !
होठ होठ सूं रंग दिया , कर’ चतराई सैण !!
चतुराई के साथ प्राणप्रिय साजन कान्हा ने हृदय को प्रीत से , नेत्रों को निज छवि से
और अधरों को स्वअधरों से रंग डाला ।
ओळ्यूं रंगदी काळजो , नैण रंग्या चितराम !
स्रिष्टी विधना नैं रंगी , अर राधा नैं श्याम !!
इधर नंदनंदन कृष्ण ने वृषभान लली राधिका को रंगा कि
मधुर स्मृतियों – सुधियों से अंतःस्थल रंग गया । विविध लीला रूपों से चक्षु रंग गए ।
साक्षात् विधाता ने सृष्टि को रंग डाला …
चोवै राधा नांव रस , पीवै गोकुळ गांव !
बरसाणो छाकै अमी , सिंवर सलोणो श्याम !!
पूरे ब्रह्माण्ड में हो रही राधा राधा नाम की रस वर्षा का रसपान कर’
गोकुल गांव तृ्प्त हो रहा है ।
सलोने श्याम के सुमिरन से बरसाना गांव जी भर कर अमृत छक रहा है ।
भगती रंग जमुना बहै , रंग्या बाल-नर-नार !
रसभीनी राधा रट्यां , तूठै क्रिषण मुरार !!
भक्ति – रंग की बहती यमुना में बाल वृंद नर नारी रंग गए हैं ।
रसभीनी राधा राधा रटन से कृष्ण मुरारी की सहज कृपा अनुकंपा मिल जाती है ।
राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ यहां सुनिए हिवड़ो रंगियो प्रीत सूं (c)copyright by : Rajendra Swarnkar ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ अंत में धमाल हो जाए
हमरी बतिया मान सजन
बारहुं मास की आस – प्यास ,
तब जा’य कहीं होरी अइ हो !
होरी पै हमरी बरजोरी ,
कैसन हमका धमकइहो ?
कबहुं बात न मानी हमरी ,
आज की रतिया का करिहो ?
आज नचइबै दइहुं तोहिं ,
आज हौं तो सौं ना डरिहों !
तरफत – डरपत जुगवा बीते ,
पल – पल , तिल – तिल हौं जरि हो !
आज तो हमरी बेरि अइ है ,
आज बता तूं का करिहो ?
हमरी बतिया मान सजन !
इब सोच फिकर तूं का करि हो ?
ई नदिया मं डूब गयो
सच मान सो ही जग मं तरि हो !
राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
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