आज मेरा एक पुराना गीत प्रस्तुत है
ढूंढ़ कहां घर तेरा है ?
ढूंढ़ कहां घर तेरा है ?
यह जग रैन-बसेरा है !
जादू है, भ्रम-सपना है !
कौन तुम्हारा अपना है ?
मीत किसी का कौन यहां ,
हवन अकेले तपना है !
मिथ्या मेरा-मेरा है !!
यह जग रैन-बसेरा है !!
ढूंढ़ कहां घर तेरा है ?
छल-धोखा है , माया है !
सारा जगत पराया है !
स्वारथ के रिश्ते-नाते ,
पग-पग जाल बिछाया है !
जग छलियों का डेरा है !
ढूंढ़ कहां घर तेरा है ?!
यह जग रैन-बसेरा है !!
देख, किसी की आस न कर !
साये का विश्वास न कर !
होगी कोई किरण कहीं ,
जी को व्यर्थ उदास न कर !
माना , गहन अंधेरा है !
ढूंढ़ कहां घर तेरा है ?!
यह जग रैन-बसेरा है !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
कुछ वैराग्य-सा है मन में !
बहुत उखड़ा हुआ है मन इन दिनों !
क्षमाप्रार्थी हूं
आप सब के यहां पहुंच भी नहीं पा रहा हूं ।
आपकी Mail पर भी ख़ास ध्यान नहीं दे पा रहा हूं ।
आपकी टिप्पणियों के लिए आभार भी व्यक्त नहीं कर पा रहा हूं ।
क्षमा कर दीजिएगा
मेरे प्रति आपके स्नेह और आशीर्वाद की सर्वाधिक आवश्यकता है अभी
{ मेरी माताजी अस्वस्थ हैं }