* रक्षा बंधन का पवित्र पर्व अभी कुछ दिन पूर्व था *
* आज तीज का त्यौंहार है *
* श्री कृष्ण जन्माष्टमी आने को है *
* फिर ईद आ जाएगी *
*** और भी बहुत सारे पर्व और त्यौंहार हैं ***
सभी पर्वों , त्यौंहारों , उत्सवों के लिए
शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !!
आप सबके साथ बांट रहा हूं ।
अभी रमज़ान के दिन हैं !
भुलादे रंज़िशो - नफ़रत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
तू कर अल्लाह से उल्फ़त , अभी रमज़ान के दिन हैं !
इबादत कर ख़ुदा की , बंदगी बंदों की ; करले तू
रसूलल्लाह से निस्बत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
तरावीहो - इबादत , बंदगी , हम्दो - सना , रोज़े ,
दुआओं में निहां शफ़क़त , अभी रमज़ान के दिन हैं !
रसूलल्लाह ज़ुबां पर , रूह में अल्लाह ही अल्लाह
क़यामत तक न हो क़िल्लत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
रहमतो - बरकतें करता अता अल्लाह यूं हरदम
अभी है बारिशे - रहमत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
इबादत की मज़ूरी मग़फ़िरत है , और मसर्रत है
मिले सत्तर गुना उजरत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
भलाई, नेकियों, ईमान, सच, इंसानियत पर चल ,
मिले, ना फिर मिले मोहलत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
न अब तक बन सका इंसान गर तू आदमी हो'कर
है मौक़ा' बाद इक मुद्दत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
है किस मेयार का इंसां , मुसलमां किस तरह का है
अभी तो छोड़दे ग़ीबत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
तू वाबस्ता गुनाहों से हमेशा ही रहा ; अब तो
निभा कुछ क़ाइदा - सुन्नत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
मुआफ़ी मिल ही जाएगी , गुनाहों से तू कर तौबा
खुला दरवाज़ा - ए - जन्नत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
ख़ुदा की हर घड़ी ता'रीफ़ , शैतां की मज़म्मत कर
हो' ताज़ादम दिखा क़ुव्वत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
झुका ' राजेन्द्र सजदे में दुआ अल्लाह से करता
मिले सबको सुकूं - राहत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
यहां सुनें अभी रमज़ान के दिन हैं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
शब्दार्थ
निस्बत=संबंध/लगाव/सगाई , तरावीह=रमज़ान माह में रात को पढ़ी जाने वाली ख़ास नमाज़ ,
हम्द=ईश्वरीय स्तुति , सना=पै.मोहम्मद सा.की ता'रीफ़ , निहां=छुपी/गुप्त ,
शफ़क़त=बड़ों की ओर से छोटों पर दया/मेहरबानी ,मज़ूरी=मज़्दूरी/मेहनताना ,
मग़फ़िरत=मोक्ष , मसर्रत=आत्मिक प्रसन्नता , उजरत=पारिश्रमिक , मेयार=स्तर ,
ग़ीबत=चुगली/परनिंदा ,वाबस्ता=संबद्ध/लिप्त/जुड़ा हुआ , क़ाइदा-सुन्नत=इस्लामी नियम ,
दरवाज़ा-ए-जन्नत=स्वर्ग-द्वार , मज़म्मत=तिरस्कार/निंदा , क़ुव्वत=सामर्थ्य
ईश्वर - अल्लाह एक हैं !
चाहे अल्लाहू कहो , चाहे जय श्री राम !
प्यार फैलना चाहिए , जब लें रब का नाम !!
अपने मज़हब - धर्म पर , बेशक चल इंसान !
औरों के विश्वास का तू करना सम्मान !!
कहने को जग में भरे , मज़हब ला'तादाद !
धर्म ; सिर्फ़ इंसानियत है , यह रखना याद !!
मज़हब तो देता नहीं , नफ़रत का पैग़ाम !
शैतां आदम - भेष में करता है यह काम !!
इंसां के दिल में करे , ईश्वर - ख़ुदा निवास !
बंदे ! तू भी एक दिन , कर इसका एहसास !!
रब के घर होता नहीं , इंसानों में भेद !
नादां ! क्यूं रहते यहां , फ़िरक़ों में हो' क़ैद ?!
का'बा - काशी - क़ैद से , रब रहता आज़ाद !
रब से मिल ले , कर उसे सच्चे दिल से याद !!
मक्का - मथुरा कब जुदा ? समझ - समझ का फेर !
ईश्वर - अल्लाह एक हैं , फिर काहे का बैर ?!
सुन हिंदू ! सुन मुसलमां ! प्यार चलेगा साथ !
रब की ख़ातिर … छोड़िए , बैर अहं छल घात !!
भाईचारा दोस्ती , इंसानी जज़बात !
इनके दम पर दीजिए शैतानों को मात !!
भाईचारा दोस्ती , इंसानी जज़बात !
इनके दम पर दीजिए शैतानों को मात !!
अलग अलग हैं रास्ते , मगर ठिकाना एक !
चार दिनों की ज़िंदगी , जीना हो'कर नेक !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
और यहां सुनें ईश्वर - अल्लाह एक हैं !