ब्लॉग मित्र मंडली

27/12/10

नव वर्ष आ !

... नव वर्ष आ ... 
 ले नया हर्ष 
नव वर्ष   !
 आजा तू मुरली की तान लिये ' !
अधरों पर मीठी मुस्कान लिये ' !
विगत में जो आहत हुएक्षत हुए ,
उन्हीं  कंठ हृदयों में गान लिये ' !
  ' कर  अंधेरों  में  दीपक जला !
मुरझाये मुखड़ों पर कलियां खिला !
युगों  से  भटकती है विरहन बनी  ;
मनुजता को फिर से मनुज से मिला !
 सुदामा की कुटिया महल में  बदल !
हर इक कैक्टस को कमल में बदल !
मरोड़े  गए  शब्दों की  सुन  व्यथा ;
उन्हें गीत में  और  ग़ज़ल में बदल !
 कुछ पल तू अपने क़दम रोक ले !
आने  से  पहले  ज़रा  सोच ले !
 ज़माने को  तुमसे  बहुत आस है !
नदी को समंदर को भी प्यास है !
 नये वर्ष ! हर मन को विश्वास दे !
तोहफ़ा  सभी को  कोई  ख़ास दे !
 जन जन प्रसन्नचित हो आठों प्रहर !
भय  भूख़  आतंक  से   मुक्त  कर !
 स्वागत है ,  मुस्कुराता हुआ !
संताप   जग के  मिटाता  हुआ  !!
नव वर्ष मुस्कुराता   हुआ  !!!

- राजेन्द्र स्वर्णकार 
(ccopyright by : Rajendra Swarnkar

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अभी गला इतना ख़राब है कि बात करना भी मुश्किल से हो पाता है । 
आकाशवाणी द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी में दो वर्ष पहले प्रस्तुत इस गीत नव वर्ष आ की रिकॉर्डिंग यहां रोहित भाई सहित आप सब के लिए आशीर्वाद की कामना के साथ
 संलग्न कर रहा हूं ।




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शीत ने अपने पांव पसारे
छुए वर्ष ने फिर से किनारे

मित्रों ! वर्ष 2010 की समापन घड़ियों में
मेरी ओर से आप सब को
वर्ष 2011 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और मंगलकामनाएं 






20/12/10

धोख़ा मत खा बंधु !

 एक ग़ज़ल बिना भूमिका 
धोख़ा मत खा बंधु !

ग़लत दिशा मत जा बंधु !
राह सही अपना बंधु !

जग जैसा है, वैसा है
तू कैसा  बतला बंधु !

कौन पराया अपना है 
सोच-फ़िकर बिसरा बंधु !

अपने किस दिन ग़ैर हुए
यूं धोख़ा मत खा बंधु !

रूठ गए हैं जो अपने
उनको आज मना बंधु !

आना होगा; … आएंगे
पीछे भी मत जा बंधु !

तेरे मन में पाप नहीं
रखना सिर ऊंचा बंधु !

शर्मिंदा वे ही होंगे
जिनके मैल भरा बंधु !

जो सच है; राजेन्द्र वही
ग़ज़लों में लिखता बंधु !

-राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar



मित्रों ! 
 तीन-चार महीने से मेरे साथ अज़ीब समस्या चल रही है ।
मैं जिन ब्लॉग्स को फॉलो कर रहा हूं, उनमें से कई ब्लॉग्स पर मेरी तस्वीर नहीं दिखाई देती । 
और मैं दुबारा फॉलो करने का प्रयत्न करता हूं तो यह लिखा मिलता है 

:) हमें खेद है, साइट के स्वामी ने आपको साइट में शामिल होने से अवरुद्ध कर दिया है. (:

यहां तक कि मैं स्वयं अपने ब्लॉग को फॉलो नहीं कर पा रहा हूं  

आपसे निवेदन है कि मैंने आपमें से किसी को अवरुद्ध नहीं किया है

मैंने मेरे ब्लॉग के लगभग तमाम फॉलोअर्स के अलावा भी  कई ब्लॉग्स को फॉलो किया है 
… लेकिन  पता नहीं अनेक ब्लॉग्स पर मुझे कैसे और किसके द्वारा गायब कर दिया गया है ?

आपमें से कोई इस समस्या के निदान में सहयोग कर सकें तो आभारी रहूंगा ।  


वर्ष 2010 अंतिम पड़ाव पर है 
शुभकामनाओं का दौर शुरू हो चुका है 
वर्ष 2011 से पहले अभी इस वर्ष में
आप सबसे और मुलाकातें अवश्य होंगी  

शुभकामनाएं !
शुभकामनाएं !
शुभकामनाएं !

8/12/10

हमारा आत्मसमर्पण दिवस




8दिसम्बर की ही सांध्य वेला में बंदे की आज़ादी छिन गई थी

अर्थात् हो गया
श्रीमतीजी के समक्ष हमारा आत्मसमर्पण  
जी हां  
8 दिसम्बर को मेरी शादी की सालगिरह है
चित्र देख कर आप स्वयं अनुमान लगाएं क्या उम्र रही होगी हमारी तब
इस अवसर पर एक हास्य रचना प्रस्तुत है
" कहां ठिकाना है "
और अपना कहां ठिकाना है ?
सीधे ऑफिस से घर ही आना है !
क्या समझ कर के हमने शादी की ?
ये तो सिस्टम ही ज़ालिमाना है !
जब से आई हैं श्रीमतीजी घर,
घर बना तब से ज़ेलख़ाना है !
घर में भी नौकरी मिली ; उनका
रोज़ सरदर्द का बहाना है !
देश आज़ाद , हम ग़ुलाम हुए ,
ये हक़ीक़त का ही फ़साना है !
उनके कपड़े तो धो दिए छुप कर
अब उन्हें छत पॅ जा' सुखाना है !
मुस्कुरा कर पड़ौसी देखे हमें ,
सच में ज़ालिम बड़ा ज़माना है !
मुंह चिढ़ा कर वे गुनगुनाते हैं
आज मौसम बड़ा सुहाना है !
नाश्ता - चाय और कभी चंपी ;
बॉस की डांट रोज़ खाना है !
पीठ पीछे सभी हंसे हम पर ,
मुंह पॅ कहते हैं कॅ दीवाना है !
रोज़ ललकारता है दर्पण भी ;
हौसला आज आज़माना है !
तैश में फड़फड़ाते फिर हम भी,
आज बेगम को कु बताना है !
कुछ भी मिलता नहीं ठिकाने पर,
घर है , कोई कबाड़ख़ाना है !
दन से आता है उनका बेलन तब,
कहते हम -"वाह क्या निशाना है !"
दम ही राजेन्द्र जब नहीं,फिर क्यों
उनसे पंजा कभी लड़ाना है !?
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar

एक गीत भी प्रस्तुत है
 " जब भी कहोगी " 

तुम जब भी कहोगी, आऊंगा !
गीत अधरों का बन जाऊंगा !!

क्यों हृदय तुम्हारा दहके और क्यों नयन अश्रु से भर जाएं ?
जो पले तुम्हारे यौवन संग, वे तरुण भाव क्यों मर जाएं ?
क्यों अनचीन्ही अनजान विवशता, सेज तुम्हारी सुलगादे ?
क्यों सुंदर सुरभित सपनों की कलियां पावस बिन मुरझाएं ?
सावन-भादों का भेष लिए मैं प्रीत सरस बरसाऊंगा !
तुम जब भी कहोगी, आऊंगा !

शृंगार न फीका होने देना, है मेरी सौगंध प्रिये !
मत टूटने देना मुस्कानों से अधरों का अनुबंध प्रिये !
बासंती रुत पर ज्येष्ठ झुलसता, क्षण भर भी हावी ना हो !
घोषित कर देना नीरसता पर आजीवन प्रतिबंध प्रिये !
…तब, विजय-भाव मन में लेकर मैं दर्पण में मुसकाऊंगा !
तुम जब भी कहोगी आऊंगा !

तुम विचरो जीवन-बगिया में, कांटे नहीं उलझें आंचल से !
संगीत सदा समृद्ध हो पाकर गान तुम्हारी पायल से !
तुम स्वयं तीर्थ हो, मंदिर के सब देव भी तुमको नमन करें !
जो स्वेद देह पर चिलक रहा, वह पावन है गंगाजल से !
मैं स्वयं तुम्हारी पूजा करने, दीपक बन जल जाऊंगा !
तुम जब भी कहोगी, आऊंगा !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(c) copyright by : Rajendra Swarnkar
जब भी कहोगी
यहां सुनें मेरे स्वर मेरी धुन में



(c) copyright by : Rajendra Swarnkar
मैं आप सब तक नहीं पहुंच पा रहा हूं
पिछली कई पोस्ट्स से संबद्ध संवाद भी आधे-अधूरे रहे 
कुछ कार्याधिकता 
कुछ पारीवारिक दायित्व के कारण समयाभाव 
कुछ अन्यान्य व्यस्तताएं
आशा है, आपके स्नेह में इस कारण से कोई कमी नहीं आएगी
* आपके स्नेहसहयोगसद्भाव के लिए *
! आभार है !
!! स्वागत है !!
!!! निवेदन है !!!