8दिसम्बर की ही सांध्य वेला में बंदे की आज़ादी छिन गई थी
अर्थात् हो गया
श्रीमतीजी के समक्ष हमारा आत्मसमर्पण
जी हां
8 दिसम्बर को मेरी शादी की सालगिरह है
चित्र देख कर आप स्वयं अनुमान लगाएं क्या उम्र रही होगी हमारी तब
इस अवसर पर एक हास्य रचना प्रस्तुत है
" कहां ठिकाना है "
और अपना कहां ठिकाना है ?
सीधे ऑफिस से घर ही आना है !
क्या समझ कर के हमने शादी की ?
ये तो सिस्टम ही ज़ालिमाना है !
जब से आई हैं श्रीमतीजी घर,
घर बना तब से ज़ेलख़ाना है !
घर में भी नौकरी मिली ; उनका
रोज़ सरदर्द का बहाना है !
देश आज़ाद , हम ग़ुलाम हुए ,
ये हक़ीक़त का ही फ़साना है !
उनके कपड़े तो धो दिए छुप कर
अब उन्हें छत पॅ जा' सुखाना है !
मुस्कुरा कर पड़ौसी देखे हमें ,
सच में ज़ालिम बड़ा ज़माना है !
मुंह चिढ़ा कर वे गुनगुनाते हैं
आज मौसम बड़ा सुहाना है !
नाश्ता - चाय और कभी चंपी ;
बॉस की डांट रोज़ खाना है !
पीठ पीछे सभी हंसे हम पर ,
मुंह पॅ कहते हैं कॅ दीवाना है !
रोज़ ललकारता है दर्पण भी ;
हौसला आज आज़माना है !
तैश में फड़फड़ाते फिर हम भी,
आज बेगम को कुछ बताना है !
कुछ भी मिलता नहीं ठिकाने पर,
घर है , कोई कबाड़ख़ाना है !
दन से आता है उनका बेलन तब,
कहते हम -"वाह क्या निशाना है !"
दम ही राजेन्द्र जब नहीं,फिर क्यों
उनसे पंजा कभी लड़ाना है !?
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
एक गीत भी प्रस्तुत है
" जब भी कहोगी "
तुम जब भी कहोगी, आऊंगा !
गीत अधरों का बन जाऊंगा !!
क्यों हृदय तुम्हारा दहके और क्यों नयन अश्रु से भर जाएं ?
जो पले तुम्हारे यौवन संग, वे तरुण भाव क्यों मर जाएं ?
क्यों अनचीन्ही अनजान विवशता, सेज तुम्हारी सुलगा’दे ?
क्यों सुंदर सुरभित सपनों की कलियां पावस बिन मुरझाएं ?
सावन-भादों का भेष लिए मैं प्रीत सरस बरसाऊंगा !
तुम जब भी कहोगी, आऊंगा !
शृंगार न फीका होने देना, है मेरी सौगंध प्रिये !
मत टूटने देना मुस्कानों से अधरों का अनुबंध प्रिये !
बासंती रुत पर ज्येष्ठ झुलसता, क्षण भर भी हावी ना हो !
घोषित कर देना नीरसता पर आजीवन प्रतिबंध प्रिये !
…तब, विजय-भाव मन में ले’कर मैं दर्पण में मुसकाऊंगा !
तुम जब भी कहोगी आऊंगा !
तुम विचरो जीवन-बगिया में, कांटे नहीं उलझें आंचल से !
संगीत सदा समृद्ध हो पा’कर गान तुम्हारी पायल से !
तुम स्वयं तीर्थ हो, मंदिर के सब देव भी तुमको नमन करें !
जो स्वेद देह पर चिलक रहा, वह पावन है गंगाजल से !
मैं स्वयं तुम्हारी पूजा करने, दीपक बन’ जल जाऊंगा !
तुम जब भी कहोगी, आऊंगा !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(c) copyright by : Rajendra Swarnkar
जब भी कहोगी
यहां सुनें मेरे स्वर मेरी धुन में
(c) copyright by : Rajendra Swarnkar
मैं आप सब तक नहीं पहुंच पा रहा हूं
पिछली कई पोस्ट्स से संबद्ध संवाद भी आधे-अधूरे रहे
कुछ कार्याधिकता
कुछ पारीवारिक दायित्व के कारण समयाभाव
कुछ अन्यान्य व्यस्तताएं
आशा है, आपके स्नेह में इस कारण से कोई कमी नहीं आएगी
* आपके स्नेह–सहयोग–सद्भाव के लिए *
! आभार है !
!! स्वागत है !!
!!! निवेदन है !!!