ब्लॉग मित्र मंडली

29/11/10

इंसान खो गया

इंसान खो गया

बदल बदल लिबास परेशान हो गया
चेहरों पॅ चेहरे ओढ़ के  हैरान हो गया
ख़ुद की तलाश में लहूलुहान हो गया
इंसान खो गया
मैं हिंदू सिक्ख बौद्ध पारसी मैं जैन हूं
इंसानियत भुला' मज़े में हूं , बा-चैन हूं
ख्रिस्तान हो गया मैं , मुसलमान हो गया
इंसान खो गया
अहूरमज़दा वाहेगुरु सांई और ख़ुदा
अरिहंत यहोवा मसीहा गॉड सब जुदा
अल्लाह कहीं और कहीं भगवान हो गया
इंसान खो गया
त्रिपिटक आगम रामायण भागवत गीता
वेद गुरुग्रंथसाहिब ज़ेंदअवेस्ता
बाइबिल किसी की किसी का कुर्आन हो गया
इंसान खो गया
राम कृष्ण बुद्ध महावीर और ईसा
जरथ्रुस्ट मोहम्मद बहाउल्लाह और मूसा
हर नाम अलग दीन--ईमान हो गया
इंसान खो गया
अयोध्या मथुरा लुम्बिनी वैशाली बैतलेहम
मदीना मक़्क़ा रोम वेटिकन येरुशलम
बंट बंट कॅ खंड खंड ये जहान हो गया
इंसान खो गया
धर्मांध उग्रवादी मुज़ाहिद - ज़िहादी
चरमपंथी सुन्नी - शिया और तिलकधारी
दहशतपसंद जंगजू तालिबान हो गया
इंसान खो गया
रगों में है लहू जाने कितने रंग का
क्या ख़ूब अलग ही नमूना अपने ढंग का
शैतान का लिखा हुआ दीवान हो गया
 इंसान खो गया
केरल असम बिहार महाराष्ट्र अरुणाचल
गुजरात तमिलनाडु पंजाब झारखंड
कश्मीर आंध्र गोवा राजस्थान हो गया
इंसान खो गया
चीन--अरब अमेरिका इंग्लैंड स्वाज़ीलैंड
फ़िनलैंड न्यूज़ीलैंड नैदरलैंड थाईलैंड
स्लोवाक-चैक हिन्द-पाकिस्तान हो गया
इंसान खो गया
आंग्ल ग्रीक फ़्रेंच चीनी डच इटेलियन
सिंहली अरबी रुसी बर्मी नॉर्वेज़ियन
सबको ही अपने नाम पर गुमान हो गया
इंसान खो गया
संथाली उड़िया मैथिली पंजाबी तेलुगु
बंगाली सिंधी डोगरी उर्दू तमिल तुलु
क्यूं एक नाम प्रीत की ज़ुबान हो गया
इंसान खो गया
-राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
with cordial obligation

20/11/10

करुणा रस बरसाता चल !


मित्रों ! जीभ के स्वाद के लिए और धर्म के नाम पर की जा रही 
जीव-हत्या और मांसाहार पर पिछले दो-तीन दिन में 
हिंदी के कई विद्वान ब्लॉगर्स की बहुत विचारणीय पोस्ट्स पढ़ने में आईं ।

मुझे अपनी एक गीत रचना याद हो आई   
 करुणा रस बरसाता चल !

इस रचना को "करुणा… नाम से संस्था बनाए
कुछ लोग
बिना मेरी अनुमति-स्वीकृति के
अपनी निजि सम्पत्ति की तरह व्यापक स्तर पर
हज़ारों की संख्या में पुस्तक और ऑडियो रूप में भी
बलात् उपयोग में ले चुके हैं, अब भी ले रहे हैं ।

( यह अलग मुद्दा है, इस पर भी आपकी सम्मतियों के लिए निवेदन है )
प्रस्तुत है गीत
करुणा रस बरसाता चल !
तू करुणा रस बरसाता चल ! दुखियों को गले लगाता चल ! 
तू मिटा निराशा का कल्मष, आशा के दीप जलाता चल !! 

हैं भरे जगत में दीन-हीन, साधन-विहीन, श्रीहीन कई , 
मानव ! मानव का धर्म निभा; दीनों पर दया दिखाता चल !! 

मत दया दिखावे की कर; प्रतिफल की इच्छा तू कभी न कर ! 
जल बांट नदी ज्यूं, और पवन ज्यूं जन-जन को सहलाता चल !! 

असहाय, वृद्ध, निर्बल, निर्धन, भोले, रोगी, मा’सूम, विवश, 
सारे…ईश्वर की आस करें; ईश्वर का हाथ बंटाता चल !! 

करुणा है कोहेनूर ! अहिंसा आभूषण इंसानों का ! 
जीवन का दर्पण दया-धर्म ! दर्पण प्रतिपल उजलाता चल !! 

पर-जीवों के भक्षण से बढ़कर कृत्य नहीं वीभत्स कोई ! 
‘हिंसक न बनें, राक्षस न बनें’ – नासमझों को समझाता चल !! 

चहुंओर काल ! मानवता की फसलें उजड़ीं, जंगल उजड़े ! 
गुणियों के प्रेरक-पुष्पों से जीवन-बगिया महकाता चल !! 

की करुणा कृष्ण ने, अश्रु-बिंदु से धोए चरण सुदामा के; 
श्रीराम लगे उर केवट के; तू भी निज-दर्प भुलाता चल !! 

निज-कर्मों से मानवता के प्रतिमान् स्थापित कर जग में ! 
साक्षात् बुद्ध-महावीर के दर्शन निज-छबि में करवाता चल !! 

तू जीव-मात्र की सेवा में निष्काम समर्पित हो प्यारे ! 
दे दान दधीचि-सा जन-हित में; पुण्य-ध्वजा फहराता चल !! 

नानक ने जीवों पर करुणा का उच्चादर्श दिया हमको ! 
पर-पीड़ा-उन्मूलन-हित निज सुख की तू बलि चढ़ाता चल !! 

करुणा-वश शंकर विष पी’कर भी अमर हुए, महादेव हुए ! 
करुणा की महिमा अद्भुत ! करुणा हृदयंगम कर गाता चल !! 

- राजेन्द्र स्वर्णकार

 (c)copyright by : Rajendra Swarnkar

आप सबके स्नेह-सद्भाव-सहयोग-समर्थन हेतु हृदय से आभार !
आपके यहां मैं भी मन से निरंतर उपस्थित हूं ! 
बस कुछ दिन में हाज़िर होता हूं !
 विस्मृत न कर देना मुझे ! 


12/11/10

झूठ हमसे कहा न जाएगा


आज एक ग़ज़ल बिना किसी भूमिका के
 झूठ हमसे कहा जाएगा


सच कहें तो जहां सताएगा
झूठ हमसे कहा जाएगा
ख़ामुशी इख़्तियार करलें अगर
दिल भी इल्ज़ाम फ़िर लगाएगा
हमको बहकाया जा रहा है क्यों
अहले- मज़हब कोई बताएगा
क़द लबादों से है बढ़ा किसका
कौन आदाब क्यों बजाएगा
छुप ' के शीशे के घर में ; औरों से
ख़ुद को कितना कोई छुपाएगा
देख कर देखते नहीं उनको
कोई नादां ही दुख सुनाएगा
रूठती है तो रूठ जा क़िस्मत
जा , कोई और ही मनाएगा
है सलामत हमारी ग़ैरत ; फ़िर
कौन तेरे क़सीदे गाएगा
ख़ुद नहीं हम नसीब में तेरे
ख़ाक हमसे तू निभाएगा
सच कहेंगे , सुनेंगे , मानेंगे
गो जहां लाख तिलमिलाएगा
हम राजेन्द्र कर सकेंगे मना
गर अदू प्यार से बुलाएगा
-        राजेन्द्र  स्वर्णकार 

(c)copyright by : Rajendra Swarnkar

 

यहां सुनें
मेरी आवाज़ में , मेरी ही धुन में , मेरी ग़ज़ल



पसंद आने पर अवश्य बताइएगा
आपकी दुआओं से अब स्वास्थ्य बहुत अच्छा है
   आपके प्यार आशीर्वाद समर्थन के लिए  
बहुत बहुत बहुत आभार !

क्षमा करें, कहीं भी न के बराबर पहुंच पा रहा हूं
आप सब के यहां शीघ्र ही आऊंगा
कृपया , निभाते रहें !


3/11/10

नन्हे दीप ! न डरना

 सरस्वती आशीष दें गणपति दें वरदान !
लक्ष्मी बरसाएं कृपा बढ़े आपका मान !! 
दीपावली की मंगलकामनाएं !

धन त्रयोदशी ! रूप चतुर्दशी ! और … आ गई दीवाली !

गहन तिमिर से घिरी अमावस्या की रात्रि !
अंधकार के नाश का दायित्व ले लिया है नन्हे दीयों ने   
और देखिए 
सकल सृष्टि मुसका रही , विहंसे दीप करोड़ !
आज अमा की रैन भी , लगे सुनहरी भोर !!
दीप प्रज्ज्वलित दिशि दसों ,तमदल शिथिल हताश !
नन्हे दीपक कर रहे , कल्मष का उपहास !!
दीयों ने मिल कर किया , आज सघन आलोक !
वैभव यश भू का निरख ' सकुचाए सुरलोक !!
पूर्णचंद्रमा - से लगें , मृदा - दीप सब आज !
यत्र तत्र सर्वत्र है , उजियारे का राज !!
दीवाली की रात को , तारे हुए उदास !
नन्हे दीयों ने किया भू पर शुभ्र उजास !!

महिमा है तो एक-एक नन्हे दीपक की
वह दीपक मैं हूं ! आप हैं ! हम में से हर एक है !
प्रस्तुत है गीत 
नन्हे दीप !  डरना
नन्हे तेरे हाथ-पांव हैं , नन्ही-सी औकात रे !
पीछे तेरे आंधी-तूफ़ां , आगे झंझावात रे !
नन्हे दीप ! न डरना , लड़ना , जलना काली रात रे !
ले आ तू मुट्ठी में सुनहरी , नूतन आज प्रभात रे !
उल्टी बहती हवा, ओ दीपक ! दिशा-दिशा खाने आए !
देख अकेला , तुझे कालिमा घेर-घेर कर धमकाए !
रेशे-रेशे व्याप्त कपट छल बैर कुचालें घात रे !
नन्हे दीप ! न डरना , लड़ना , जलना काली रात रे !
आज विलुप्त हुए हैं सच का साथ निभाने वाले, सुन !
बस्ती-बस्ती बसे बनैलेहाड चबाने वाले, सुन !
आदमखोर हुई है पूरी अब आदम की जात रे !
नन्हे दीप ! न डरना , लड़ना , जलना काली रात रे !
रात-बाद दिन आता, सूरज उगता, होता शुभ्र उजास !
तब तक तेरी लौ से दीपक दुखियारों को होती आस !
क्या छोटी-सी , और क्या लम्बी ? रात-रात की बात रे !
नन्हे दीप ! न डरना , लड़ना , जलना काली रात रे !
जलने पर छीजेगी तेरी काया … सुन , परमार्थ में !
दीपक ! तू भी अंधा मत बन जाना , जग ज्यों स्वार्थ में !
आस किसी से मत करना , है कठिन बहुत संगात रे !
नन्हे दीप ! न डरना , लड़ना , जलना काली रात रे !
-        राजेन्द्र स्वर्णकार

(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
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*¤*.¸¸´¨`»*¤* शुभ दीवाली *¤*«´¨`·.¸¸.*¤*
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देव प्रसन्न , प्रसन्न हैं धरती पर इंसान !
दीवाली मंगलमयी ! शुभ  सुखकर वरदान !!

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