आज की अनोखी रचना उनके लिए
करे तीजे घरों पर जो लड़ाई !
कई मुर्दों में फिर से जान आई
ये महफ़िल आपने फिर जो सजाई
कई कब्रों से उठ बैठी हैं लाशें
भभकती गंध ये आई , वो आई
जो रूखे थोबड़े बंजर हैं , उन पर
कुटिलता फिर घिनौनी मुस्कुराई
भटकते श्वान आवारा कई जो
ज़ुबां भुस’-काटने को लपलपाई
किराये के कई गुंडे थे खाली
चले फिर आए करने हाथापाई
उड़े मिलते हैं जिनके घर के तोते
दिखाएंगे यहां वे पंडिताई
भये दादुर कई अब फिर से वक्ता
जमी जीभों पे जिनके लार-काई
न क ख ग छंद का जाने अनाड़ी ;
बघारें शेख़ियां फिर कर’ ढिठाई
बहुत है ‘जोश’ ; गुण-औक़ात कब है ?
करे तीजे घरों पर जो लड़ाई !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
कइयों के लिए पहेली रहेगी
कई मित्र रचना की तह तक पहुंच पाएंगे
कभी कुछ लीक से हट कर भी होना चाहिए न !
JJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJJ J
मेरी पुरानी , न पढ़ी हुई पोस्ट्स भी टटोललें कभी
शीघ्र ही फिर हाज़िर होता हूं नई रचना के साथ नई पोस्ट में
गर्मी बहुत तेज है
अपना ख़याल रखिएगा
नये समर्थनदाताओं का हृदय से स्वागत
बहुत बहुत शुभकामनाएं !