जीव क्या है ? एक यायावर , एक मुसाफ़िर , एक बंजारा ही तो…
जो अनवरत भ्रमणशील है । कुछ समय कहीं विश्राम कर भी ले तो स्थाई बंधन में तो नहीं बंध जाता । जाने कितने जन्मों , ठौर-ठौर वह कितने अन्य जीवों से मोह-ममता के नाते बनाता है , और अचानक विदा के संकेत दे’कर फिर अनंत यात्रा की ओर अग्रसर हो जाता है । शेष रहने वाले मोह के वशीभूत अवसादरत होते हैं । …और यह अवसाद भी वस्तुतः स्वार्थजनित ही है । कल वे स्वयं भी तो छल करते हुए विदा लेने वाले हैं अपनों से । ‘अपना’ ‘मेरा’ जैसे शब्द बहुत भ्रामक हैं । जितना विचार करें , उलझते ही जाएंगे…
आज , मेरी शुरूआती रचनाओं में से एक गीत
चल बंजारे चल
चल बंजारे चल रे , चल बंजारे चल रे !
सब छोड़ छाड़ कर चल बंजारे , छोड़ छाड़ सब चल रे !
तेरा-मेरा कोई नहीं है , सब माया , सब छल रे !
चल रे… चल बंजारे चल रे , चल बंजारे चल रे !!
इस बस्ती के लोगों के मन में प्रीत नहीं है प्यारे !
अपनी ग़रज़ सब बात करे , बिन मतलब ठोकर मारे !
बांध अपना सामान ; यहां से रातों-रात निकल रे !
तेरे भोलेपन पर हंसते हैं इस बस्ती वाले !
तुझको क्या मा'लूम कि उजले लोगों के मन काले !
किसको सच्ची प्रीत यहां ? है सबके मन में छल रे !
कोई नहीं है तेरा , तो फिर काहे मन भरमाए ?
सपनों-से जंजाल में पगले ! क्यों ख़ुद को उलझाए ?
पछताएगा ; देख ! समय तो बीत रहा पल-पल रे !
दूजी नगरी , दूजी बस्ती , तेरी बाट निहारे !
प्रीत के प्यासे पंछी ! तुझको मीत अजान पुकारे !
मिलले जा'कर प्रीतम से , मत विरह-अगन में जल रे !
तू बंजारा , तू जोगी , तू पंछी और पवन है !
एक जगह रुकना , बंध जाना , तेरा कहां चलन है ?
नापले तू आकाश , नापले तू सारा जल-थल रे !
देखे कितने गांव-शहर , पर्वत-सागर , जंगल रे !
शांत हुई ना क्यों फिर भी तेरे मन की हलचल रे ?
बहता जा तू साथ समय के ; मिल जाए मंज़िल रे !
सर्दी-गर्मी , पतझड़-सावन देख लिए सब तुमने !
इक रुत ने आंसू बांटे , बहलाया इक मौसम ने !
पाना-खोना , सुख-दुख , क़िस्मत और करनी का फल रे !
चल रे… चल बंजारे चल रे , चल बंजारे चल रे !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
यहां सुनें यह गीत
हमेशा की तरह मेरी धुन में मेरी शब्द रचना , मेरे स्वर में
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स्नेहीजनों ! आप सबके यहां मेरी अनुपस्थिति के लिए क्षमा करते रहें , कृपया !
माताजी का स्वास्थ्य कुछ समय से सही नहीं रहने के कारण नेट पर सक्रिय नहीं रह पा रहा हूं , अभी पांच दिन उन्हें हस्पताल में भर्ती रखा , अभी मेरी मां घर पर ही स्वास्थ्यलाभ कर रही हैं ।
सादर सस्नेह कृतज्ञ