मां सरस्वती का यह चित्र मैंने 16-17 वर्ष की उम्र में बनाया था |
आज प्रस्तुत है बासंती कवित्त
पवन सुहावनी है , रुत मनभावनी है
मेरे घर , मेरे उर में सखी बसंत है !
विमुख वियोग मो' से , समुख सुयोग मेरे
पल प्रतिपल पास प्राणप्रिय कंत है !
दांव - दांव जीत मेरी सांस - सांस गीत गावै
मेरे सुख आनंद को आदि है न अंत है !
जग में हज़ार राह , मोहे न किसी की चाह
मोहे प्राण से पियारो प्रणय को पंथ है !
अमुवा पै बौर , गावै पिक , नाचै मोर
मेरे चित चितचोर ... मतवारो ये बसंत है !
बाग़ में , तड़ाग मांही , आग मांही , राग मांही ,
भाग में , सुहाग मांही प्यारो ये बसंत है !
सखी वारि जाऊं , निज भाग्य को सराहूं ,
झूम झूम गीत गाऊं... प्यारो न्यारो ये बसंत है !
बैर ठौर प्रीत , प्रीत वारों की या रीत
हार में ही छुपी जीत को इशारो ये बसंत है !
खेत खेत पीली पीली सरसों की चादर है
वन - वन खिल्यो लाल - केशरी पलाश है !
केतकी गुलाब जूही मोगरा चमेली गेंदा
भांत - भांत फूलन की गंध है , सुवास है !
भ्रमर करे गुंजार , तितलियां डार - डार
चहुं दिश मदन की मस्ती को आभास है !
बिसरी है सबै सुध , भ्रमित भयी है बुध
मन्मथ - रति को कण - कण महारास है !
सगरे जगत में नवीन कोई बात है !
दिवस नूतन , निशा नवल नवेली
नव पुष्प , नव गंध , नव पात , नव गात है !
दृष्टि वारे देखे... नव सृष्टि के निमित
कर वीणा लिये' गा'य रही शारदा साक्षात है !
देव महादेव जब झूमने लगे
बिचारे मनुज राजेंदर की कहो क्या बिसात है !?
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
बसंत – बहार का एहसास कराते मेरे ये कवित्त
मेरी कंपोजीशन में मेरे स्वर में
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मेरे कार्य को देख-परख कर आप अपनी जो प्रतिक्रिया देते हैं
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥वही मेरी दौलत है♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
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बसंत ॠतु
की
हार्दिक शुभकामनाएं