ब्लॉग मित्र मंडली

20/2/11

प्यारो न्यारो ये बसंत है !

मां सरस्वती का यह चित्र मैंने 16-17 वर्ष की उम्र में बनाया था 

 आज प्रस्तुत है बासंती कवित्त

 
    पवन सुहावनी है , रुत भानी है    
मेरे घर , मेरे उर में सखी बसंत है !
  विमुख वियोग मो' से , समुख सुयोग मेरे   
 पल प्रतिपल पास प्राणप्रिय कंत है !
 दांव - दांव जीत मेरी सांस - सांस गीत गावै  
 मेरे सुख आनंद को आदि है न अंत है !
   जग में हज़ार राह , मोहे न किसी की चाह   
मोहे प्राण से पियारो प्रणय को पंथ है !
 अमुवा पै बौर , गावै पिक , नाचै मोर 
 मेरे चित चितचोर ...  मतवारो ये बसंत है !
बाग़ में , तड़ाग मांही , आग मांही , राग मांही ,
 भाग में , सुहाग मांही प्यारो ये बसंत है !
सखी वारि जाऊं , निज भाग्य को सराहूं ,
 झूम झूम गीत गाऊं... प्यारो न्यारो ये बसंत है !
  बैर ठौर प्रीत , प्रीत वारों की या रीत   
हार में ही छुपी जीत को इशारो ये बसंत है !
खेत खेत  पीली पीली  सरसों की चादर है 
वन - वन खिल्यो लाल - केशरी पलाश है !
केतकी गुलाब जूही मोगरा चमेली गेंदा
भांत - भांत फूलन की गंध है , सुवास है !
भ्रमर करे गुंजार , तिलियां डार - डार 
चहुं दिश मदन की मस्ती को आभास है !
बिसरी है सबै सुध , भ्रमित भयी है बुध 
मन्मथ - रति  को कण - कण महारास है !
 
सृष्टि वा की वा है... ऋतुराज के पधारने से 
सगरे जगत में नवीन कोई बात है !
  दिवस नूतन , निशा नवल नवेली  
नव पुष्प , नव गंध , नव पात , नव गात है !
दृष्टि वारे देखे... नव सृष्टि के निमित 
 कर वीणा लिये' गा'य रही शारदा साक्षात है !
देव महादेव जब झूमने लगे 
बिचारे मनुज राजेंदर की  कहो क्या बिसात है !?
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar


बसंत – बहार का एहसास कराते मेरे ये कवित्त

मेरी कंपोजीशन में मेरे स्वर में

(c)copyright by : Rajendra Swarnkar


मेरे कार्य को देख-परख कर आप अपनी जो प्रतिक्रिया देते हैं
वही मेरी दौलत है
बसंत ॠतु
की
हार्दिक शुभकामनाएं


14/2/11

प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार


होगा किसी के लिए आज का दिन विशेष
अपने लिए तो है
बारह मास बसंत
संत सभी फ़रमा गए – प्रेम जगत का सार !
प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !!
यह सारा संसार ; न अवसर कोई चूको !
प्रेम करो जी भर के , जो होना है सो हो !!
प्रेम पुजारी के लिए बारह मास बसंत !
प्रेम के बदले प्रेम लो , रहो संत के संत !!
राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar

अजी किसने रोका है ? हमेशा प्यार मोहब्बत से रहिए न !
      
प्रेम में कंजूसी क्यों
प्रेम प्रदर्शन के लिए , नहीं मात्र दिन एक !
हर दिन हर पल कीजिए , अगर इरादे नेक !! 
अगर इरादे नेक ; प्रेम में कंजूसी क्यों ?
रहे वर्ष भर गफ़लत या बेपरवाही क्यों ?!
 प्रतिदिन पूछो प्रेम से कुशल सभी की क्षेम !
क्यों करते हो फरवरी चौदह को ही प्रेम ?!
राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
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 किशोर-युवापीढ़ी से संवाद करती ये दोनों कुंडलियां
पसंद आई होंगी आपको
आज कुछ रस परिवर्तन हो जाए !

 जहां छंदबद्ध गीत ग़ज़ल तीन हज़ार से अधिक लिख दिए मैंने
वहीं छंदमुक्त कविताएं 150-200 से अधिक नहीं लिखी होंगी
अब एक छंदमुक्त कविता भी प्रस्तुत है
आपकी परख कसौटी प्रतिक्रिया के लिए
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नहीं कर सकता मैं तिरस्कार या अनादर तुम्हारा

प्लीज़ 
अब तुम मुझे
 और एस एम एस मत भेजना 
भर गया है इनबॉक्स
शुरु से आख़िर तक तुम्हारे ही संदेशों से
नया मैसेज पढ़ने के लिए
मैं नहीं कर पाऊंगा 
इनमें से एक भी मैसेज डिलीट 
…बहुत प्यार से भेजे हैं न तुमने…
मुझ पर बेवफ़ाई का इल्ज़ाम न लग जाए कहीं 
नहीं कर सकता मैं तिरस्कार या अनादर तुम्हारा 
न ही तुम्हारी भावनाओं की उपेक्षा 
किसी सूरत में नहीं 
कभी नहीं 
… जागते हुए क्या … नींद में भी नहीं
राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar

आप सबके स्नेह सहयोग और प्रतिक्रियाओं से ही मिलती है
निरंतर श्रेष्ठ करते रहने की ऊर्जा और प्रेरणा
मुझे
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*  हैडर के पास लगी पेंटिंग बचपन में बनाई हुई है  *
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अगली बार
कुछ और बासंती
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