आज प्रस्तुत है
बासंती दोहा-ग़ज़ल
कुसुमाकर ! मदनोत्सव ! मधुबहार ! ऋतुराज !
हे बसंत ! ॠतुपति ! हृदय मन मस्तिष्क विराज !!
ॠतु अधिनायक ! काल के चक्रवर्ती सम्राट !
महादेव मन्मथ मनुज लोक तिहुं तव राज !!
मस्ती हर्ष प्रफुल्लता , धरा गगन
पाताल !
रंग भरो रुच’ ; नित
करो महारास रतिराज !!
दुविधा में रसना... कहे कैसे मन की बात ?
नैनों से आधी छिनी... मन से पूरी लाज !!
प्राण प्रणय के पंथ पर पुलकित करे प्रयाण !
मृग खग चातक जीव सब धन्य... रंग रसराज !!
जड़-चेतन में हो रहा , नवजीवन-संचार
!
रोम-रोम नस-नस बजे प्रणय-माधुरी-साज !!
हर हरि हिय हुलसाय’ तुम हरलो हर
अवसाद !
अनुष्ठान आनन्द को करनो तुम्हरो काज !!
हे बसंत ! रहिए सदा बन जगती के प्राण !
आभारी राजेन्द्र ; की कृपा जगत पर...
आज !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
यहां सुन लीजिए यह बासंती रचना मेरे स्वर में
©copyright by : Rajendra Swarnkar
समय मिले
तो कुछ और बासंती रंगों में भीगने पहुंचिएगा यहां
♥प्यारो न्यारो ये बसंत है♥
♥स्वागतम बसंत♥
♥प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार♥
♥प्यारो न्यारो ये बसंत है♥
♥स्वागतम बसंत♥
♥प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार♥