एक ग़ज़ल सब हुनरमंद – गुणीजन के लिए
तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को
सफ़र में भी रहा लेकिन कभी छोड़ा नहीं घर को
दिखाईं बारहा राहें सही मैंने ही रहबर को
बुरा मत कह नज़ूमी को , ख़ुदा - पीरो - पयंबर को
मिलेगा वो तुझे , मंज़ूर जो तेरे मुक़द्दर को
ख़ुदा है गर ज़ुबां से बोल पहले , बात कर मुझसे
तवज्जोह् मैं नहीं देता , बुते - ख़ामोश मर्मर को
अगर इंसान होता तू , तेरे आंसू निकल आते
पराये दर्द से रोते ' सुना - देखा न पत्थर को
मिला देगा अगर तेज़ाब भी , दो - चार बोतल तू
पड़ेगा फ़र्क़ क्या इससे किसी दरिया - समंदर को
तुझे अहसास तेरी कमतरी का ख़ुद जला देगा
तू मुझसे मांगले ; रखता मैं दिल में मौजे - कौसर को
मेरा ख़ूं है बहुत गहरा , न इसके दाग़ जाएंगे
कहेगा क़त्ल करके क्या सफ़ाई में शहर भर को
ज़बह राजेन्द्र को करता ; तुझे मैं मा'फ़ कर देता
मगर तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(c) copyright by : Rajendra Swarnkar
बारहा : प्रायः/बहुधा
नज़ूमी : ज्योतिषि
तवज्जोह् : महत्व देना/ध्यान देना
मौजे – कौसर : जन्नत के पानी की लहर
ज़बह : क़त्ल/बलि देना
उत्तरोतर वृद्धि अनुभव करते हुए मैं अभिभूत हूं ।
हार्दिक स्वागत है आप सबका