ब्लॉग मित्र मंडली

28/9/10

तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को



एक ग़ज़ल सब हुनरमंद गुणीजन के लिए  


तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को

सफ़र में भी रहा लेकिन कभी छोड़ा नहीं घर को
दिखाईं बारहा राहें सही मैंने ही रहबर को  
बुरा मत कह नज़ूमी को , ख़ुदा - पीरो - पयंबर को
मिलेगा वो तुझे , मंज़ूर जो तेरे मुक़द्दर को
ख़ुदा है गर ज़ुबां से बोल पहले , बात कर मुझसे
तवज्जोह् मैं नहीं देता , बुते - ख़ामोश मर्मर को
अगर इंसान होता तू , तेरे आंसू निकल आते
पराये दर्द से रोते ' सुना - देखा पत्थर को
मिला देगा अगर तेज़ाब भी , दो - चार बोतल तू
पड़ेगा फ़र्क़ क्या इससे किसी  दरिया - समंदर को
तुझे अहसास तेरी कमतरी का ख़ुद जला देगा
तू मुझसे मांगले ; रखता मैं दिल में मौजे - कौसर को
मेरा ख़ूं है बहुत गहरा , इसके दाग़ जाएंगे
कहेगा क़त्ल करके क्या सफ़ाई में शहर भर को
ज़बह राजेन्द्र को  करता ; तुझे मैं मा'फ़ कर देता
मगर तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को
- राजेन्द्र स्वर्णकार 
(c) copyright by : Rajendra Swarnkar

 शब्दार्थ
बारहा : प्रायः/बहुधा
नज़ूमी : ज्योतिषि
तवज्जोह् : महत्व देना/ध्यान देना
मौजे कौसर : जन्नत के पानी की लहर
ज़बह : क़त्ल/बलि देना


मेरे प्रति आपके स्नेह और विश्वास में

उत्तरोतर  वृद्धि अनुभव करते हुए मैं अभिभूत हूं ।



हार्दिक स्वागत है आप सबका
  जो इस बीच शस्वरं से जुड़े हैं !  





21/9/10

शाम का सूरज हूं , थोड़ी देर में ढल जाऊंगा



आज बिना भूमिका एक छोटी - सी ग़ज़ल 

शाम का सूरज हूं 

मोम हूं , यूं ही पिघलते' एक दिन गल जाऊंगा 
फिर भी शायद मैं कहीं जलता हुआ रह जाऊंगा 
मैं चराग़ों की पनाहों में कभी रहता नहीं
हैं अंधेरे साथ, तय यूं ही सफ़र कर जाऊंगा  
काटदो बाज़ू मेरे , मेरी ज़ुबां तक खेंचलो 
वक़्त ! माथे पर तुम्हारे , मात मैं लिख जाऊंगा
ख़ौफ़ मेरी आंच से नाहक़ ही क्यों राजेन्द्र है
शाम का सूरज हूं , थोड़ी देर में ढल जाऊंगा 
- राजेन्द्र स्वर्णकार 

(c)copyright by : Rajendra Swarnkar


~*~ यहां सुनिए ~*~
मेरी यही ग़ज़ल मेरे ही स्वर में मेरी ही बनाई धुन में 


जी हां आज ही के दिन कभी
इस दुनिया से मेरी  और मुझसे इस दुनिया की  पहली मुलाकात हुई थी ।



आप सब का बहुत बहुत आभार !

14/9/10

" हिंदी हमारी हृदयाभिलाषा ! " " हिंदी गूंजे पंचम स्वर में ! "



हिंदी दि पर शुकानाएं !

 अधिक संतुष्टि और प्रसन्नता की बात होती, 
यदि  आज हिंदी की स्थिति ऐसी हुई होती कि
हिंदी दिवस मनाने जैसी आवश्यकता ही नहीं होती तो
...  ...  ...

 …
~* प्रस्तुत है एक सवैया और एक गीत *~
                               


हिंदी  हमारी  हृदयाभिलाषा !

भाव भरी , अनुभाव भरी , सद् भाव भरी , सु - आनंद - समासा !
भाग्य - भगीरथी  भद्रजनों की ,  भारतवर्ष की  भगवद् - भाषा !!
आदि - अनादि , चिरंतन - नूतन , आर्यावर्त - अखिल - अभयाशा !
हृदगत् हरि लौं  हर्ष - विवर्धिनी,  हिंदी  हमारी  हृदयाभिलाषा  !!

- राजेन्द्र  स्वर्णकार 


हिंदी गूंजे पंचम स्वर में !

यह अक्षर निधि हमारी है ! हिंदी हमको प्यारी है !

हिंदी अपनी भाषा है , हिंदी ही अपनी बोली है !
हिंदी  क्रिसमस ईद वैशाखी दीवाली है, होली है !
लिपि प्रेम समन्वय न्याय की, 
यह प्रभा प्रगति - पर्याय की,
यह सांस हर इक समुदाय की ! 
नत मस्तक जगती सारी  है ! हिंदी हमको प्यारी है !

हिंदी ; हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई ... सबका प्राण है !
हिंदी लय है , तान है, हिंदी मधुर सुरीला गान है !
ध्वनि आलाप मधुर घर - घर में,
शब्द - शब्द , अक्षर - अक्षर में,
हिंदी गूंजे पंचम स्वर में !
घर - आंगन की किलकारी है ! हिंदी हमको प्यारी है !  

हिंदी - संभाषण में  अनुभव होता शहद मिठास का !
हिंदी जिन हृदयों में बसी है , वहां वास मधुमास का !
नव - उत्साह - लहर दे हिंदी,
दीप प्रज्ज्वलित कर दे हिंदी,
श्रद्धा मन में भर दे हिंदी !
हिंदी बहुत हृदयहारी है ! हिंदी हमको प्यारी है ! 

हमें कब्र से चिढ़ा रही… 'मैकाले' की मुस्कान अभी !
करें आज से निज भाषा पर गर्व और अभिमान सभी !
अब हम हिंदी को अपनालें, 
हृदय - हृदय में इसे बसालें,
राष्ट्रभक्ति का धर्म निभालें !
कहां विवशता - लाचारी है ?  हिंदी हमको प्यारी है !

अंग्रेजी को घर से बाहर हिंदी आज निकालेगी !
आज स्वामिनी अपने गृह की सत्ता स्वयं सम्हालेगी !
निज भाषा संज्ञान चाहिए,
निखिल - अखिल अभियान चाहिए,
हिंदी को सम्मान चाहिए !
हिंदी पहचान हमारी है ! हिंदी हमको प्यारी है !

- राजेन्द्र  स्वर्णकार 


… विलंब से ही सही …
गणेशचतुर्थी , ईद , ॠषिपंचमी और पर्युषण पर्व 
सारे त्यौंहारों के लिए मेरी ओर से हार्दिक मंगलकामनाएं !


शुभास्ते संतु पंथानः