एक ग़ज़ल सब हुनरमंद – गुणीजन के लिए
तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को
सफ़र में भी रहा लेकिन कभी छोड़ा नहीं घर को
दिखाईं बारहा राहें सही मैंने ही रहबर को
बुरा मत कह नज़ूमी को , ख़ुदा - पीरो - पयंबर को
मिलेगा वो तुझे , मंज़ूर जो तेरे मुक़द्दर को
ख़ुदा है गर ज़ुबां से बोल पहले , बात कर मुझसे
तवज्जोह् मैं नहीं देता , बुते - ख़ामोश मर्मर को
अगर इंसान होता तू , तेरे आंसू निकल आते
पराये दर्द से रोते ' सुना - देखा न पत्थर को
मिला देगा अगर तेज़ाब भी , दो - चार बोतल तू
पड़ेगा फ़र्क़ क्या इससे किसी दरिया - समंदर को
तुझे अहसास तेरी कमतरी का ख़ुद जला देगा
तू मुझसे मांगले ; रखता मैं दिल में मौजे - कौसर को
मेरा ख़ूं है बहुत गहरा , न इसके दाग़ जाएंगे
कहेगा क़त्ल करके क्या सफ़ाई में शहर भर को
ज़बह राजेन्द्र को करता ; तुझे मैं मा'फ़ कर देता
मगर तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को
- राजेन्द्र स्वर्णकार
(c) copyright by : Rajendra Swarnkar
बारहा : प्रायः/बहुधा
नज़ूमी : ज्योतिषि
तवज्जोह् : महत्व देना/ध्यान देना
मौजे – कौसर : जन्नत के पानी की लहर
ज़बह : क़त्ल/बलि देना
उत्तरोतर वृद्धि अनुभव करते हुए मैं अभिभूत हूं ।
हार्दिक स्वागत है आप सबका
80 टिप्पणियां:
बहुत ही शानदार...लाजवाब
आखिरी लाइनें दिल को छू गयी राजेंद्र भाई ! शुभकामनायें !
बेहद शानदार्………………दिल को छूती हुयी रचना।
rajendra jee
namaskaar !
sunder gazal hai , meri pasand ke sher karamank hai 04 aur 05 . bahad achche lage , gazal ek ''oj ' aakarosh liye hai ,
sunder !
सुन्दर कविता.. सभी पन्क्तियां खास बनी है...
बहुत ही गहन चिंतन और सोच की सुन्दर अभिव्यक्ति....आभार...
"मिला देगा अगर तेजाब भी दो चार बोतल तू,
पड़ेगा फर्क क्या इससे किसी दरिया-समन्दर को!"
--
बहुत ही शानदार गजल है। हर एक शेर हीरे की तरह तराशा हुआ लगता है!
राजेंदर जी ! बहुत ही शानदार गज़ल .
मेरा खून है बहुत गहरा......
ये शेर बहुत ज्यादा पसंद आया.
शानदार रचना.......वाह....वाह....दाद कबूल फरमायें......उर्दू अल्फजों का बहु खूबसूरती से इस्तेमाल किया है....वाह
बहुत सुन्दर राजेंद्र जी
यहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल राजेन्द्र जी ... खुदा है गर जुबान से बोल.. ये शेर खासकर बहुत अच्छा लगा ... शुभकामनाएं..
बेहद शानदार्………………दिल को छूती हुयी रचना.......लाजवाब
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है राजेन्द्र भाई । सीधे दिल से निकल दिल तक पहुंचती है । बेहतरीन ।
दिल को छूती गज़ल...वाह!! रजेन्द्र भाई, आप हमेशा कमाल करते हो!!
हर एक पंक्ति खूबसूरत है। गहरे भावों से भरी पंक्तियां...
गज़ब, बस और कुछ नहीं।
बहुत शानदार और जानदार ग़ज़ल है.........सारे शेर लाजवाब है...
बढ़िया गज़ल है राजेन्द्र ।
ब्लॉग का टेम्पलेट बहुत सुंदर है.... और उतनी ही सुंदर आपकी ग़ज़ल... अंतिम पंक्तियाँ तो दिल को छू गयीं....
वक़्त की बहुत कमी है आजकल .... इसलिए माफ़ करियेगा...
बहुत बढ़िया गज़ल ...हर शेर एक से बढ़ कर एक
शानदार, बहुत बढ़िया! शुभकामनाएं
बहुत ही सुन्दर गज़ल....
सफर में भी रहा लेकिन छोड़ा नहीं घर को...
मेरे दिल को छू गई....
कितनी गहराई है इस बात में ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
किस शेर को कोट करूँ हर एक शेर लाजवाब बना है। बहुत बहुत बधाई।
Aapke comment ke peechhe-peechhe chalaa aaya aaya aur itne shaandar ghazal padhne ko mil gayi. Ek-ek sher zabardar. content aur shilp, donoN hi tarah se.
Ghazab!
Mushkil ye hai ki Aapke blog par COPY nahiN ho paa rahi :)
बहुत बढ़िया लगी यह गजल शुक्रिया
वाह...बेहतरीन !!!
बहुत बहुत सुन्दर शेर गढ़े हैं आपने....
सभी के सभी दर्शनीय,मन आँखों को बाँधने वाले !!!
मन आनंदित हुआ पढ़कर...
आभार !!!
राजेंद्र जी ... सब के सब शेर लाजवाब हैं .... दिल को छू रहे हैं .... आपकी आवाज़ मिस कर रहे हैं ...
हर एक नज्म बेहतरीन.....
जनाब राजेंदर भाई ,
रहबर ,नज़ूमी ,खुदा ,बुते-खामोश मर्मर ,इंसान , आंसू , तेज़ाब , दरिया ,कमतरी ,मौजे-कौसर ,क़त्ल , ज़बह , माफी, सुखनवर वगैरह वगैरह पर बड़ी नफीस बुनावट है !
यूं तो तारीफ करके निकल लेने का इरादा था पर लगा बड़ा दिलनवाज़ बंदा है , कुछ कह के चलो , भाई मेरे गज़ल तो शानदार है पर पेज पर जो नक्काशी की है आपने...और बुनियाद के चटख रंग पर कितने ही रंग बिखेरे हैं किसी रोज हमारे चश्में को चटखा डालेंगे ! बाखुदा रहम की भीख दें , कुछ सोबर किस्म के रंग और अपनी आँखों के नूर की अमान चाहता हूं :)
राजेन्द्र जी ,
आज तो सारे के सारे शे'र बाहर का रास्ता दिखाते लग रहे हैं .....
लगता है जैसे किसी ख़ास मकसद से लिखे गए हैं .....
खुदा है गर जुबां से बोल पहले .....
तवज्जों मैं नहीं देता .....
क्या बात है .....
और ये तो रश्क करने लायक है ......
"मिला देगा अगर तेजाब भी दो चार बोतल तू,
पड़ेगा फर्क क्या इससे किसी दरिया-समन्दर को!"
समझ सकती हूँ आप जैसा दरिया अपना रास्ता खुद बनता है .....
तुझे अहसास तेरी कमतरी का खुद जला देगा
तू मुझ से मांगले ; रखता मैं दिल में मौजे -कौसर को
आपके फनो-हुनर का कोई सानी नहीं .....
मिलायेंगे क्या वो मुझे गर्क-ए-ख़ाक में
जो अपनी ही हसद में जलकर ख़ाक हो गए .....
मेरा खूँ है बहुत गहरा, न इसके दाग़ जायेंगे
कहेगा क़त्ल करके क्या सफ़ाई में शहरभर को
सुभानाल्लाह .....!!
ये दाग़ यूँ ही कायम रहे .....
आपके सुख़नवर को भला कौन क़त्ल कर सकता है ......
साथ आपकी वो पुरजोर आवाज़ भी होती तो मज़ा कुछ और होता .....!!
ग़ज़ल तो आशानुरूप है लेकिन आपकी मधुर आवाज़ में सुनने को नहीं मिली इस बार.. :(
राजेन्द्र जी,
ग़ज़ल का मतला ही शानदार शायरी का आग़ाज़ कर रहा है-
हर शेर बेहतरीन है...
अगर इंसान होता तू, तेरे आंसू निकल आते
पराए दर्द से रोता सुना देखा न पत्थर को..
ये हासिले-ग़ज़ल लगा...मुबारकबाद
matla hi lazawaab ban pada hai ...waah
chautha sher adbhut hai ...
paanchaan sher bhi achha hai ...
aakhiri do sher bhi bahut pasand aaye ...... safai wala sher to sabse shaandar laga mujhe ....
rajendra ji
sundar rachna badhai
मुझे ना शौक है हुनरमंद को बेहतरीन कहने का.
करूँ क्या टिप्पणी मिलता नहीं कोई सुराख-ए-घर.
............. आपकी ग़ज़ल के शेरों में अपनी आदतानुसार कमियाँ तलाशता रहता हूँ. अभी वो आँख ही नहीं निकली जो कमियाँ पकड़ पायें. फिर भी आपकी गजलों से मुझे उर्दू शब्दों का अच्छा ज्ञान हो रहा है.
मुझे ना शौक है हुनरमंद को बेहतरीन कहने का.
करूँ क्या टिप्पणी मिलता नहीं कोई सुराख-ए-घर.
............. आपकी ग़ज़ल के शेरों में अपनी आदतानुसार कमियाँ तलाशता रहता हूँ. अभी वो आँख ही नहीं निकली जो कमियाँ पकड़ पायें. फिर भी आपकी गजलों से मुझे उर्दू शब्दों का अच्छा ज्ञान हो रहा है.
Achchhee gazal ke liye meree
badhaaee aur shubh kamnaa.
adbhut ghazal hai. har sher apne kism ka lazavaab hai.lekin aakhiri sher un logo ko tamacha hai jo sukhanavaron ki hatya ka khel khelate hain. shabash...mazaa aa gaya. achchha likhane vale zindabaad.....
लाजवाब!!!
राजेंदर जी !
बहुत ही शानदार गज़ल....
मुबारकबाद...
4th 5 th orantim sher mujhe kuch jyadahi pasand aaye ..daad hazir hai kubool karen
मेरा खूँ है बहुत गहरा, न इसके दाग़ जायेंगे
कहेगा क़त्ल करके क्या सफ़ाई में शहरभर को
बेहद खुबसूरत ग़ज़ल, ये शेर बेहद खास लगा. पूरी ग़ज़ल ही दमदार है. आपके आशीर्वाद भरे शब्दों के लिए आभारी हूँ,
regards
खुदा है तो जुबां से बोल पहले,बात कर मुझसे
तवज्जो मै नही देता बुते खामोश मर्मर को ।
राजेन्द्र जी बहुत सुंदर । आपने तो खुदी को बुलंद कर लिया ।
राजेन्द्र जी सच कहें तो शब्द कम पड़ जायेंगे। बहुत सुन्दर गज़ल कही है हर एक शेर उम्दा है। बधाई।
आदरणीय डी के मुफ़लिस साहब ने मेल से
कहा -
muflis dk to me
show details 9:19 PM (22 hours ago)
आदरणीय राजिन्द्र जी
नमस्कार .
आपकी नयी ग़ज़ल से रु.ब.रु होने का मौक़ा मिला
पढ़ कर बहुत ही लुत्फ़ हासिल हुआ .
जब जब भी आप जैसे गुणीजन को पढने का मौक़ा मिलता है ,
मुझे तो कुछ न कुछ सीखने को ही मिलता है ... सच !
आपने जो भी लिखा है उस में आपकी शख्सियत की खासियत ही झलक रही है,
आपकी ये ताज़ा ग़ज़ल बहुत ही अच्छी है ,,, और लगता है किसी
ख़ास ज़हनियत (मनोस्थिति) के ज़ेर-ए-असर ही कही गयी है
हर शेर, जैसे पढने वालों से खुद बात करता हुआ महसूस हो रहा है
और यूं लगता है, जैसे जो आप अपने पढने वालों से कहना चाह रहे हैं,
वो इन अश`आर में कह दिया गया है ...
वो ख़ुदा वाला शेर तो कमाल कहा है आपने जनाब ....वाह !
एक बहुत ही जानदार ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें .
मेरा खूँ है बहुत गहरा, न इसके दाग़ जायेंगे
कहेगा क़त्ल करके क्या सफ़ाई में शहरभर को
उपरोक्त शेर विशेष पसंद आया पर इसका यह अर्थ नहीं कि बाकि में कोई कमी है.......सभी एक से बढ़ कर एक है.......
शुभकामनाएं........
चन्द्र मोहन गुप्त
मुफलिस जी और हीर साहिबा के कमेंट्स को हमारा सा कमेन्ट मानिए..
और अली साहिब की शिकायत को हमारी सी शिकायत...
कहेगा क़त्ल करके क्या सफाई में shahr bhar को..laajwaab..
और khudaa waalaa शे'र bhi kamaal kaa है...
sundar ghazal bhai rajendraji badhai
bahut sundar ghazal badhai rajendraji
राजेन्द्र जी आपका मेरे ब्लॉग पर आना और इतने अच्छे शब्दों में सराहना करना ... ख़ुशी से मेरा मन और आँखें दोनों भर आयीं ... ५ महीने पहले जब कलम उठाई थी तो सोचा भी नहीं था की कोई मेरी रचनाएँ पढ़ेगा ... मेरी ये ही प्रार्थना है की भगवान की दया और आप जैसे गुनी जनों का आशीर्वाद सदा बना रहे ... बहुत बहुत धन्यवाद
wah. bahut achchi .
अगर इंसान होता तू , तेरे आंसू निकल आते
पराये दर्द से रोते ' सुना - देखा न पत्थर को
ख़ूबसूरत ग़ज़ल का ये शेर हासिले ग़ज़ल है मेरी नज़र में
आप के फ़न के तो सभी क़ायल हैं राजेन्द्र जी कोई चाह कर भी सुख़नवर को ख़त्म नहीं कर सकता ये तो ख़ुदा दाद सलाहियत है
मुबारकबाद क़ुबूल करें इस कामयाब ग़ज़ल के लिये
Rajendra Bhai
aaj aapki ghazal padh paya hoon.
Poori ghazal do-teen baar padhi hai
bahut sunder zghazal kahi hai aapne
padhakar aanand aa gaya.
Khaskar makta padh kar to
wah wah khud wa khud nikal gai.
Zabah rajendra ko karata tujhe main muaf kar deta
magar tu katl karane ko chala mere sukhnawar ko
bahut sunder hardik badhai.
Abhi auron ki comments padh kar maloom hua ki
aapka janmdin bhi tha.
Baad men hi sahi par janm din ki
dheron hardik shubh kaamnayen
Tum jio hazaron saal saal ke din hon pachas hazar.
Chandrabhan Bhardwaj
भई,आपको ज़बह करने की किसकी ज़ुर्रत है?आप तो ख़ुद अपनी शायरी से कइयों को हलाल कर रहे हैं...मिलकर अच्छा लगा.
pahla or paaanchwa sher to gazab hai bhai...wah...
बहुत खूब...किस किस शेर की तारीफ करूँ, आप के लेखनी में जादू है राजेंद्र जी....बढ़िया ग़ज़ल...बधाई
आपकी गजल और आवाज बहुत ही अच्छी है |बधाई
आशा
राजेन्द्र जी !!
आपकी ग़ज़ल पढ़ी ,सुनी भी,
सच में बहुत ही खूबसूरत लगीं ,
आभारी हूँ -जो आप मेरे ब्लॉग पर पधारे ,
वर्ना मैं इतने अच्छे कलाम से वंचित रह जाता !
आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ !
मेरा खूँ है बहुत गहरा, न इसके दाग़ जायेंगे
कहेगा क़त्ल करके क्या सफ़ाई में शहरभर को ।
यूं तो पूरी गजल के शेर एक से बढ़कर एक हैं, लेकिन यह पंक्तियां बहुत ही सुन्दर बन पड़ी हैं ।
हर शेर बहुत बहुत सुन्दर है ..आपका ब्लॉग वाकई जहनी सकून देता है शुक्रिया
बहुत सुन्दर!
जो दिल को छू ले वही ग़ज़ल है
रविन्द्र सोनी
rajendar ji is shandar gazal ke liye mubarakbad paishkarta haun
"अगर इन्सान होता तू , तेरे आंसू निकल आते
पराये दर्द से रोते सुना-देखा न पत्थर को"
........क्या खूब कहा है
राजेंद्र जी पिछले दस दिनों से नेट से दूर रहा इसी बीच आपकी ये ग़ज़ल आई और मेरी नज़र से बच गयी...मुझे अफ़सोस है...आज आफिस में वापस आया तो इसे ढूँढा...क्या ग़ज़ल कही है आपने ..वाह...एक एक शेर जबरदस्त है...यूँ तो सारे शेर संभाले जाने लायक हैं लेकिन " खुदा है गर जुबां से बोल पहले..." वाला अपने साथ लिए जा रहा हूँ...
नीरज
प्रिय भाई राजेन्द्रजी ! जितनी तारीफ़ की जाए कम है।
बहु्त ख़ूबसूरत लहजे की बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है।
ख़ुदा है गर ज़ुबां से बोल पहले , बात कर मुझसे
तवज्जोह् मैं नहीं देता , बुते - ख़ामोश मर्मर को
अगर इंसान होता तू , तेरे आंसू निकल आते
पराये दर्द से रोते ' सुना - देखा न पत्थर को
ज़बह राजेन्द्र को करता ; तुझे मैं मा'फ़ कर देता
मगर तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को
स्वर्णकार जी
"मिला देगा अगर तेजाब भी दो चार बोतल तू,
पड़ेगा फर्क क्या इससे किसी दरिया-समन्दर को!"
पूरी ग़ज़ल ही उम्दा है...मगर यह शेर तो दिल लूट ले गया....!
आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी
आपसे पहला परिचय तो उसी दिन हो गया था जिस दिन आप मेरे ब्लॉग में आये ,और मेरी रचनाओं को ,मेरी पेंटिंग्स को सराहा पर आज आपके ब्लॉग पर आकर तो आपके पूरे के पूरे व्यक्तित्व से रूबरू हुई जो तरह तरह से अपनी छठा बिखेर रहा है .आपकी ग़ज़लें बहुत अच्छी लगीं .आपका लेखन सशक्त है ..और उस पर संगीत का भी साथ है .जैसे सोने पर सुहागा .बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाई ...
बहुत दिनों से आपकी कोई मेल नहीं आई तो यूँ ही देखने चला आया और एक खूबसूरत ग़ज़ल मिली। बधाई।
सुखनवर ही नहीं समझा अगर दूजे सुखनवर को
भला फिर कौन जानेगा जहां में हुस्ने गौहर को।
बेहतरीन ग़ज़ल !
राजेन्द्र जी ! हर शेर बहुद प्यारा है । इसमें जीवन-दर्शन भी है और एक संदेश भी । बहुत सुंदर ।
खूबसूरत ब्लॉग। नायाब गजलें। मौजे कौसर।
बहुत ही खूबसूरत गज़ल !
हर शेर काबिले-दाद !
आपकी यह गजल बहुत अच्छी लगी |बधाई
आशा
आपमें ग़ज़ल कहने का हुनर है. हर शेर अच्छा है.मक़ते का तो जवाब नहीं. अहा:-
ज़बह राजेन्द्र को करता , तुझे मैं मा'फ़ कर देता
मगर तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को
मैं यही कह सकता हूँ कि:-
यक़ी मानो ग़ज़ल का बाखुदा हर शेर अच्छा है ,
तुम्हारा नाम चस्पा हो गया दिल में जनमभर को.
एक बार फिर बधाई
कुँवर कुसुमेश
शानदार.. बहुत बढ़िया..हर शेर बहुद प्यारा है ..शुभकामनाएं
rajendra ji ,
kya khoob gazal likhi hai aapne sabhiek se badh kar ek.kisko bahut hi jyada achha kahun.
lagata hia ki bar bar padhti rahun.
अगर इंसान होता तू , तेरे आंसू निकल आते
पराये दर्द से रोते ' सुना - देखा न पत्थर को
ज़बह राजेन्द्र को करता ; तुझे मैं मा'फ़ कर देता
मगर तू क़त्ल करने को चला मेरे सुख़नवर को
bahut hi khoob-surat panktiyan.
poonam
क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है, भाई राजेन्द्र जी! हिन्दी-उर्दू पर समान अधिकार दिखायी दे रहा है। आपकी प्रतिभा का क़ाइल हूँ। यह सिलसिला रुके नहीं...चरैवेति-चरैवेति!
क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है, भाई राजेन्द्र जी! हिन्दी-उर्दू पर समान अधिकार दिखायी दे रहा है। आपकी प्रतिभा का क़ाइल हूँ। यह सिलसिला रुके नहीं...चरैवेति-चरैवेति!
बहुत खूब राजेन्द्र जी।
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