ब्लॉग मित्र मंडली

11/12/13

मन रोए... पंछी ! मगर गाना पड़ता गीत

आज पंछी से बात करली जाए
 (चित्र ‌: साभार गूगल)
सावन सूखा जा रहा, प्रीतम हैं परदेश !
जा पंछी ! दे आ उन्हें, तू मेरा संदेश !!

यौवन में कैसा लगा हाय ! विरह का बाण ?
पंछी ! जा, पी को बता, निकल रहे हैं प्राण !!

मुस्काना है पड़ रहा, ...यद्यपि हृदय उदास !
पंछी ! कह मेरी व्यथा जा'कर पी के पास !!

कह आ प्रीतम से... अरे पंछी, तू इक बात !
सुलग रही है याद में इक पगली दिन-रात !!

जग आगे हंसना पड़े, भीतर उठती हूक !
विरह सताए सौगुना, कोयलिया मत कूक !!

सुन ओ पंछी बावरे ! कहना मेरा मान !
जा कह प्रिय के कान में - रखो प्रीत का मान !!

लाखों का यौवन चढ़ा भेंट विरह की, ...हाय !
कठिन बहुत है प्रीत... रे पंछी ! मन पछताय !!

वही दुखाए हृदय, मन जिससे करता प्रीत !
मन रोए... पंछी ! मगर गाना पड़ता गीत !!

मत करना... पंछी, किसी से इस जग में नेह !
विरह-चिता में निशि-दिवस सुलगें प्राण सदेह !!

पंछी ! मत बन प्रीत में पागल ; ...मुझे निहार !
सुलगन तड़पन के सिवा, क्या देगा रे प्यार ?!
©राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
शुभकामनाओं सहित


22/11/13

मारन को शहतीर न मारे, और कभी इक फांस बहुत है

नमस्कार !
बहुत समय बाद आपके लिए एक ग़ज़ल लेकर उपस्थित हुआ हूं 
अपनी बहुमूल्य  प्रतिक्रियाओं से धन्य कीजिएगा

आज घिनौना रास बहुत है
चहुंदिश भोग-विलास बहुत है

भ्रष्ट-दुष्ट नीचे से ऊपर
परिवर्तन की आस बहुत है


आज झुका है शीश
, हमारा
गर्व भरा इतिहास बहुत है

मारन को शहतीर न मारे
और कभी इक फांस बहुत है


कम करने को हर रितु का दुख
केवल इक मधुमास बहुत है

आशीषों की दौलत है क्या
यूं धन तेरे पास बहुत है


भाव प्रभावित करदे
; यूं लिख
शिल्प-जड़ित विन्यास बहुत है

रानी-दासी कुछ न कहे, पर...
राघव को बनवास बहुत है


पथ में तुलसी सूर कबीरा
है मीरा रैदास... बहुत है

आज मिली गुरु-चरणों की रज
मन में आज उजास बहुत है


नौका पार लगाएगा वह
 
ईश्वर पर विश्वास बहुत है

प्रभु मिलते राजेन्द्र उसे ; यदि
अंतर्मन में प्यास बहुत है

-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

 सादर
शुभकामनाओं सहित 

21/9/13

बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे’जा

चंद अपनी निशानियां दे'जा
ये ज़मीं और आसमां दे'जा
ग़म के मारों का दिल बहल जाए
चंद किस्से-कहानियां दे'जा
कट गया पेड़, घोंसला उजड़ा
उन परिंदों को आशियां दे'जा
महफ़िलों में बड़ी उदासी है
चंद ग़ज़लें रवां-दवां दे'जा
यार ने घोंप तो दिया ख़ंज़र
उसके हक़ में मगर बयां दे'जा
हो क़लम थामने का फ़र्ज़ अदा
बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे'जा
हर तरफ़ तल्ख़ियां हैं , दूरी है
अब यक़ीं अम्न दरमियां दे'जा
इस जहां से जहां परीशां है
ख़ूबसूरत नया जहां दे'जा
हश्र तक साथ जो रहे राजेन्द्र मुस्कुराता वो कारवां दे'जा 
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
आप सब मुझे जितना अपनत्व स्नेह और आशीर्वाद देते हैं , यह मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है
यह सच है कि आपके साथ मेरा संबंध मात्र मित्रता नहीं... मित्रता से बहुत अधिक , बहुत आगे , बहुत ऊपर है ।
आपके ब्लॉग पर मेरी कम उपस्थिति रह सकती है , लेकिन मेरे हृदय में आपके लिए उच्च स्थान है ।
सबके प्रति मैं हृदय से आभारी हूं ! कृतज्ञ हूं ! ऋणी हूं ! आपके साथ मेरा मन का नाता है । निभाते रहिएगा... 



सादर शुभकामनाओं सहित

14/9/13

मातृ-भाषा पितृ-भाषा हिंदी ही है मित्र-भाषा

हिंदी दिवस के उपलक्ष में दो कवित्त 
हिंदी है हमारी शान, हिंदी है हमारी जान,
 हिंदी से हमारा मान, हिंदी को प्रणाम है !
गौरव की भाषा हिंदी, भारत की आशा हिंदी,
स्नेह की प्रत्याशा हिंदी, हिंदी को प्रणाम है !
है देवों की वाणी हिंदी, जन की कल्याणी हिंदी,
मधुर-सुहानी  हिंदी, हिंदी को प्रणाम है !
बसी है सांसों में हिंदी, जिह्वा पे, आंखों में हिंदी,
श्रेष्ठ है लाखों में हिंदी, हिंदी को प्रणाम है !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

स्वर्ग में हिंदी भाषा में मधुर-मधुर बोल
बोल देवता फूले गर्व से समाते हैं !
भारत माता के बच्चे रात-दिन घर-घर,
गांव-नगरों में, हिंदी में ही बतियाते हैं !
पाया विश्व में सम्मान, ये हमारा स्वाभिमान,
हिंदी आगे हम शीश श्रद्धा से झुकाते हैं !
मातृ-भाषा, पितृ-भाषा, हिंदी ही है मित्र-भाषा,
धिक उन्हें ! जो भी हिंदी बोलते लजाते हैं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

मंगलकामनाएं 

15/8/13

न शान-ए-हिंद में गद्दारों की गुस्ताख़ियां होतीं


नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे

चमन के सरपरस्तों से न गर नादानियां होतीं
न फिर ये ख़ार की नस्लें हमारे दरमियां होतीं

मुख़ालिफ़ हैं ये सच-इंसाफ़ के ; उलझे सियासत में
ख़ुदारा , पासबानों में न ऐसी ख़ामियां होतीं

असम छत्तीसगढ़ जम्मू न मीज़ोरम सुलगते फिर
न ही कश्मीर में ख़ूंकर्द केशर-क्यारियां होतीं

निभाती फ़र्ज़ हर शै मुल्क की गर मुस्तइद हो'कर
धमाके भी नहीं होते , न गोलीबारियां होतीं

सियासतदां जो होते मर्द , उनका खौल उठता ख़ूं
अख़ीरी जंग की फ़िर पाक से तैयारियां होतीं

न हिजड़ों को बिठाते हम अगर दिल्ली की गद्दी पर
न चारों ओर बहते ख़ून की ये नालियां होतीं

वतन के वास्ते राजेन्द्र ईमां दिल में गर रखते
न शान-ए-हिंद में गद्दारों की गुस्ताख़ियां होतीं

-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
आज़ादी अभी अधूरी है !
क्या बधाई  दें
? 

22/7/13

धूल गुरु-चरणों की मुझको आज मिल जाए

श्री गुरुवे नमः


है जीवन बेसुरा ; संगीत सुर औ' साज़ मिल जाए !
मुझे हर तख़्त मिल जाए , मुझे हर ताज मिल जाए !
मिले दौलत ज़माने की , ख़ज़ाना दोजहां भर का
अगर कुछ धूल गुरु-चरणों की मुझको आज मिल जाए !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

गुरुपूर्णिमा के शुभ पर्व पर हार्दिक मंगलकामनाएं !

सबको गुरु-कृपा और गुरु-आशीर्वाद का प्रसाद मिलता रहे

यहां भी पधारिगा
मिल जावै सतगुरु

11/4/13

पथ की बाधाओं का निज पद-चाप से प्रतिवाद कर !

नवसंवत्सर मंगलमय हो 
प्रस्तुत है बहुत वर्ष पहले लिखा हुआ मेरा एक गीत
नव सृजन के गीत गा !
सुन मनुज ! उत्थान उन्नति उन्नयन के गीत गा !
जब प्रलय तांडव करेतब , नव सृजन के गीत गा !!

हो पतन जब मनुजता का ; मौन मत रहना कभी !
दनुजता के पांव की ठोकर न तुम सहना कभी !
मत रुदन करनापतित - कुकृत्यों से हो क्षुब्ध तुम ,
दुष्टता - आतंक - ज्वाला के शमन के गीत गा !!

शून्य हों संवेदनाएं ; स्वयं से संवाद कर !
पथ की बाधाओं का निज पद-चाप से प्रतिवाद कर !
हो जहां वीभत्स विप्लव ; सौम्य - शुभ - संधि सजा !
क्षरण में बासंती पुष्पन-पल्लवन के गीत गा !!

कब झुकी संतान मनु की , आपदा के सामने ?
डगमगाती सभ्यताओं को तू आया थामने !
है तेरा संबंध-चिर झंझाओं से यह भूल मत !
क्षण - प्रति - क्षण संकटों के आगमन के गीत गा !!

हों परिस्थितियां कभी प्रतिकूल ; घबराना नहीं !
हो विफल हर यत्न ; नियति मान ' झुक जाना नहीं !
व्याप्त , विकसित ना हृदय में हो तमस ; संकल्प कर !
हर विवशता की घड़ी में प्रभु-नमन के गीत गा !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

         
चलते-चलते 
नव संवत्सर , नए वर्ष , दीवाली , होली , गणतंत्र-दिवस , स्वतंत्रता-दिवस ,
राजस्थान-दिवस 
, बीकानेर-स्थापना-दिवस आदि पर्वों-त्यौंहारों पर
मेरे द्वारा रचित दोहों तथा काव्य-पंक्तियों को आम दिनों की तुलना में धड़ल्ले से
लोगों द्वारा बिना मेरा नाम लिखे 
, बिना मेरी स्वीकृति के प्रयोग में लिया जाता है ।
किसी के द्वारा नाममात्र शब्द अदल-बदल करने के बाद 
, किसी के द्वारा ज्यूं का त्यूं ।


मेरे द्वारा लिखा दोहा काम में लेते हुए यह चित्र नव संवत के अवसर पर पिछले वर्ष
कई जगह फ़ेसबुक और ब्लॉग्स पर ध्यान में आया था

मेरे द्वारा लिखा यही दोहा काम में लेते हुए यह चित्र नव संवत के अवसर पर इस वर्ष जगह जगह फ़ेसबुक पर नज़र आ रहा है

और...यह चित्र भी   

और...यह  भी   
भगवान सबका भला करे

         
पिछले 20-22 दिन नेट की भीषण समस्या रही 
मेरे ब्लॉगों सहित blogspot.in का कोई ब्लॉग खुल नहीं रहा था मेरे पीसी में । कुछ उपाय किए हैं । अब सब कुछ ठीक रहा तो सभी मित्रों के यहां आना-जाना नियमित हो जाएगा । आप भी सम्हालते रहें ।
शुभकामनाओं सहित