आज
पंछी से बात करली जाए
(चित्र : साभार गूगल)
सावन सूखा जा रहा, प्रीतम हैं
परदेश !
जा पंछी ! दे आ
उन्हें, तू मेरा संदेश !!
यौवन में कैसा लगा
हाय ! विरह का बाण ?
पंछी ! जा, पी को बता,
निकल रहे हैं प्राण !!
मुस्काना है पड़ रहा, ...यद्यपि
हृदय उदास !
पंछी ! कह मेरी
व्यथा जा'कर पी के पास !!
कह आ प्रीतम से... अरे पंछी, तू इक बात !
सुलग रही है याद
में इक पगली दिन-रात !!
जग आगे हंसना पड़े, भीतर उठती
हूक !
विरह सताए सौगुना, कोयलिया मत
कूक !!
सुन ओ पंछी बावरे !
कहना मेरा मान !
जा कह प्रिय के कान
में - रखो प्रीत का मान !!
लाखों का यौवन चढ़ा
भेंट विरह की,
...हाय !
कठिन बहुत है प्रीत... रे पंछी
! मन पछताय !!
वही दुखाए हृदय, मन जिससे करता
प्रीत !
मन रोए... पंछी !
मगर गाना पड़ता गीत !!
मत करना... पंछी, किसी से इस जग में नेह !
विरह-चिता में
निशि-दिवस सुलगें प्राण सदेह !!
पंछी ! मत बन प्रीत
में पागल ;
...मुझे निहार !
सुलगन तड़पन के सिवा, क्या देगा
रे प्यार ?!
©राजेन्द्र
स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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शुभकामनाओं
सहित