ये ज़मीं और आसमां
दे'जा
ग़म के मारों का
दिल बहल जाए
चंद किस्से-कहानियां दे'जा
कट गया पेड़, घोंसला उजड़ा
उन परिंदों को आशियां
दे'जा
महफ़िलों में बड़ी
उदासी है
चंद ग़ज़लें रवां-दवां दे'जा
यार ने घोंप तो
दिया ख़ंज़र
उसके हक़ में मगर
बयां दे'जा
हो क़लम थामने का
फ़र्ज़ अदा
बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे'जा
हर तरफ़ तल्ख़ियां
हैं , दूरी है
अब यक़ीं अम्न दरमियां
दे'जा
इस जहां से जहां
परीशां है
ख़ूबसूरत नया जहां
दे'जा
हश्र तक साथ जो रहे राजेन्द्र मुस्कुराता
वो कारवां दे'जा
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
आप सब मुझे जितना अपनत्व स्नेह और आशीर्वाद
देते हैं , यह
मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है
यह सच है कि आपके साथ मेरा संबंध मात्र मित्रता
नहीं... मित्रता से बहुत अधिक , बहुत आगे , बहुत ऊपर है ।
आपके ब्लॉग पर मेरी कम उपस्थिति रह सकती है , लेकिन मेरे हृदय में आपके लिए
उच्च स्थान है ।
सबके प्रति मैं हृदय से आभारी हूं ! कृतज्ञ हूं
! ऋणी हूं ! आपके साथ मेरा मन का नाता है । निभाते
रहिएगा...
सादर
शुभकामनाओं सहित