ब्लॉग मित्र मंडली

21/9/13

बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे’जा

चंद अपनी निशानियां दे'जा
ये ज़मीं और आसमां दे'जा
ग़म के मारों का दिल बहल जाए
चंद किस्से-कहानियां दे'जा
कट गया पेड़, घोंसला उजड़ा
उन परिंदों को आशियां दे'जा
महफ़िलों में बड़ी उदासी है
चंद ग़ज़लें रवां-दवां दे'जा
यार ने घोंप तो दिया ख़ंज़र
उसके हक़ में मगर बयां दे'जा
हो क़लम थामने का फ़र्ज़ अदा
बेज़ुबां हैं, उन्हें ज़ुबां दे'जा
हर तरफ़ तल्ख़ियां हैं , दूरी है
अब यक़ीं अम्न दरमियां दे'जा
इस जहां से जहां परीशां है
ख़ूबसूरत नया जहां दे'जा
हश्र तक साथ जो रहे राजेन्द्र मुस्कुराता वो कारवां दे'जा 
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
आप सब मुझे जितना अपनत्व स्नेह और आशीर्वाद देते हैं , यह मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है
यह सच है कि आपके साथ मेरा संबंध मात्र मित्रता नहीं... मित्रता से बहुत अधिक , बहुत आगे , बहुत ऊपर है ।
आपके ब्लॉग पर मेरी कम उपस्थिति रह सकती है , लेकिन मेरे हृदय में आपके लिए उच्च स्थान है ।
सबके प्रति मैं हृदय से आभारी हूं ! कृतज्ञ हूं ! ऋणी हूं ! आपके साथ मेरा मन का नाता है । निभाते रहिएगा... 



सादर शुभकामनाओं सहित

14/9/13

मातृ-भाषा पितृ-भाषा हिंदी ही है मित्र-भाषा

हिंदी दिवस के उपलक्ष में दो कवित्त 
हिंदी है हमारी शान, हिंदी है हमारी जान,
 हिंदी से हमारा मान, हिंदी को प्रणाम है !
गौरव की भाषा हिंदी, भारत की आशा हिंदी,
स्नेह की प्रत्याशा हिंदी, हिंदी को प्रणाम है !
है देवों की वाणी हिंदी, जन की कल्याणी हिंदी,
मधुर-सुहानी  हिंदी, हिंदी को प्रणाम है !
बसी है सांसों में हिंदी, जिह्वा पे, आंखों में हिंदी,
श्रेष्ठ है लाखों में हिंदी, हिंदी को प्रणाम है !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

स्वर्ग में हिंदी भाषा में मधुर-मधुर बोल
बोल देवता फूले गर्व से समाते हैं !
भारत माता के बच्चे रात-दिन घर-घर,
गांव-नगरों में, हिंदी में ही बतियाते हैं !
पाया विश्व में सम्मान, ये हमारा स्वाभिमान,
हिंदी आगे हम शीश श्रद्धा से झुकाते हैं !
मातृ-भाषा, पितृ-भाषा, हिंदी ही है मित्र-भाषा,
धिक उन्हें ! जो भी हिंदी बोलते लजाते हैं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

मंगलकामनाएं