आज प्रस्तुत है बिना
भूमिका के
एक ग़ज़ल
दरिया से न समंदर छीन
दरिया से न समंदर छीन
मुझसे मत मेरा घर छीन
क्यों उड़ने की दावत दी
ले तो लिये पहले पर छीन
मंज़िल मैं ख़ुद पा लूंगा
राह न मेरी रहबर छीन
मिल लूंगा उससे , लेकिन
पहले उससे पत्त्थर छीन
देख ! हक़ीक़त बोलेगी
हाथों से मत संगजर छीन
लूट मुझे ; मुझसे मेरा
जैसा है न सुख़नवर छीन
बोल लुटेरे ! ताक़त है ?
मुझसे मेरा मुक़द्दर छीन
मालिक ! नज़र नज़र से अब
ख़ौफ़ भरे सब मंज़र छीन
राजेन्द्र हौवा तो नहीं
लोगों के मन से डर छीन
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
आप
सबके लिए दुआएं हैं
सदा ख़ुश-ओ-आबाद रहें
आमीन
सदा ख़ुश-ओ-आबाद रहें
आमीन
60 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर बेहतरीन
waah...
सुन्दर रचना ..आभार
बेहतरीन गज़ल ..
बोल लुटेरे ! ताक़त है ?
मुझसे मेरा मुक़द्दर छीन
कोई मुकद्दर नहीं छीन सकता
राजेन्द्र जी ... बहुत ही लाजवाब जबरदस्त गज़ल है ... चौकाने वाले शेर हैं ... एक से पढ़ के एक ...
बोल लुटेरे ताकत है.
मुझसे मेरा मुकद्दर छीन....
वाह वाह आदरणीय राजेन्द्र भईया...
बहुत ही सूंदर/सार्थक ग़ज़ल...
सादर बधाई....
bahut sunder likhe......
बहुत खूबसूरत ....
बढ़िया लिखा है.
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
राजेंद्र जी एक बेहतरीन ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने अपना ब्लॉग , ब्लॉग पर आकर साहित्य का बेहतरीन स्वाद मिलता है आपकी कलम यूं ही उत्क्रिस्ट साहित्य रचती रहे शुभकामनाये
Malik Nazar-Nazar se Ab Khoff Bhara Manzar cheen waah... kasha aapki yh bat sach ho jaay...aur duniya men har ek nazar se yh khoff ka manzar chin jaay sarthak rachna
बहुत खूब |
बहुत सुन्दर गजल!...
शानदार और प्रभावी गजल ..
लाजवाब ग़ज़ल... बहुत गहरे भाव... अदभुद...
सुन्दर ग़ज़ल के साथ जो तस्वीर आपने लगाई है वह ग़ज़ल में चार चाँद लगा रही है ।
बहुत बढ़िया राजेन्द्र भाई ।
बोल लुटेरे ! ताक़त है ?
मुझसे मेरा मुक़द्दर छीन
बहुत खूब!
भाई जी नया रदीफ़ ढूंढ के लाये हैं और क्या खूब निभाया है...जय हो
नीरज
बहुत ही सुंदर रचना !
"मालिक नज़र-नज़र से अब
खौफ़ भरे सब मंज़र छीन"
वाह भाई सा ! नेक खयाला लिये बेहतरीन गज़ल ।
राजेंद्र जी,
आपने लाजबाब गजल लिखी है,इसमें कोई
शक नहीं साथ ही खुबशुरत चित्र ने गजल में
चार चाँद लगा दिए,बधाई....
मेरे नए पोस्ट आइये स्वागत है,....
अच्छी गजल के लिए बधाई |
आशा
हमेशा की तरह शानदार रचना
राजेन्द्र भाई,
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है.
आपकी कलम की रवानगी को सलाम .
एक ग़ज़ल 'मत छीन' पर भी हो जाए.
bhaut hi behtreen gazal.....
बोल लुटेरे!!! ताकत है??
मुझसे मेरा मुकद्दर छीन...
बस, वाह...वाह...वाह...
और क्या कहूँ...
बहुत खूब हर शेर उम्दा !
मेरी नई पोस्ट पे आपका हार्दिक स्वागत है !
बेहतरीन गज़ल
बोल लुटेरे, ताकत है
मुझसे मेरा मुकद्दर छीन।
वाह, क्या शानदार शेर है।
कमाल की ग़ज़ल है,
बहुत अच्छी लगी।
राजेन्द्र जी ... बहुत ही लाजवाब जबरदस्त गज़ल है.... सादर आभार....
लाजबाब प्रस्तुति
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लोगों को भय मुक्त नहीं अपितु भय युक्त करने का प्रयास चल रहा है।
Fantastic!
बहुत ही सुंदर गजल .......मन को अभिभूत .....रमती हुयी .....अत्ति सुंदर .बहुत ही पसंद आई ..!
आपका धन्यवाद आपने याद किया . आपका आशीर्वाद सदैव बना रहे .....आपके कहने पर आज मैंने भी गजल पोस्ट की है ........मार्गदर्शन की अपेक्षा है .धन्यवाद
sapne-shashi.blogspot.com
बोल लुटेरे ! ताक़त है ?
मुझसे मेरा मुक़द्दर छीन
bahut sunder rachna
shubhkamnayen
राजेंद्र भाई,
कमाल कर देते हैं आप..जय हो...
''बोल लुटेरे ! ताक़त है ?
मुझसे मेरा मुक़द्दर छीन ''
दिल से निकली केवल वाह.. अच्छे शेर हुए हैं. एक से बढ़ कर एक. यही दर्शन, यही चिंतन चाहिए. परिवर्तन की दिशा में. शुभकामनाये...
Loot mujhe; mujhse mera
jaisa hai na sukhnvar chheen
bol lutere! taakat hai?
mujhse mera muqaddar chheen... wah behadd umda likha hai Rajendra ji .
राजेन्द्र भाई ..बहुत सुंदर लिखते है आप ..बोल लुटेरे ताकत है?मुझसे मेरा मुकद्दर छीन" क्या चुनौती दी है ..शब्द नहीं मिल रहे हैं तारीफ़ के लिए!I am speechless...जियो
राजेंदर जी आपकी लेखनी में जादू है ...बहुत सुंदर ...बोल लुटेरे ताकत है ? मुझ से मेरा मुकद्दर छीन ...क्या चुनौती दी है ...मेरे शब्द काफी नहीं हैं आपकी गज़ल की तारीफ़ के लिए ..जियो
वाह वाह वाह
छोटी बहर पर अद्भुत शब्दांकन, मज़ा आया। आखिरी दो शेर तो सीधे दिल् में उतर गए। बधाई।
छोटी बहर में बड़ी खूबसूरती आपने अपनी बात कह दी है। सुन्दर ग़ज़ल केलिए बधाई !
वाह!हमेशा की तरह उत्कृष्ट रचना...चित्र भी बहुत सुन्दर है...बधाई|
बोल लुटेरे! ताकत है
मुझसे मेरा मुक़द्दर छीन...
क्या खूब...बधाई...।
प्रियंका गुप्ता
Rajendra bhai..
Sabne hi chheena hai humse..
Jo bhi mere paas raha...
Par na humne kabhi kisi se..
Chheen lo aakar mujhe kaha..
Bahut sundar gazal..
Deepak Shukla..
बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर (हरिवंश राय बच्चन) आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
Aapne hamare blog par aakar hausla badaya, iske liye bahut bahut dhanywad. Aap ki rachnaye bahut acchi hai.
bahut hi khubsurat rachana hai..
chhin sake to mera mukaddar chhin kya bhav hai lajavab
ek ek sher tarif ke kabil hai
bahut bahut badhai
rachana
सुन्दर गजल भाई राजेन्द्र जी |ब्लॉग पर आपकी टिप्पणियां भी बहुत दमदार होती हैं आभार |
सुन्दर गजल भाई राजेन्द्र जी |ब्लॉग पर आपकी टिप्पणियां भी बहुत दमदार होती हैं आभार |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत ही खुबसूरत गजल...
बहुत ही खुबसूरत गजल..
राजेंद्र हऊअ तो नहीं....बहुत उम्दा....
क्या गज़ल है मित्र..राह न मेरी रहबर छीन..मंजिल तो मैं पा लूंगा...बेहतरीन गज़ल ..... आपने खुद नहीं गाया शायद इसे ..इसलिए खुद ही गुनगुना रहा हूं....
दरिया से न समंदर छीन
मुझसे मत मेरा घर छीन .. .
और मुसलसल बढ़ता गया. बहुत बढिया. बधाई स्वीकारें.
कुछ हिज्जे संबन्धी दोष को दुरुस्त कर लिया जाता, भाईजी.
आदरणीय सौरभ जी
आभार !
आप आए … अहोभाग्य !
# कुछ हिज्जे संबन्धी दोष को दुरुस्त कर लिया जाता, भाईजी.
अवश्य ! हिज्जे संबन्धी दोष कहां / क्या है बतलाने की कृपा करते …
बहुत खूबसूरत गजल...आपको भी हार्दिक शुभ कामनायें ..सादर स्नेह पूर्ण अभिनन्दन
आपकी लेखनी बहुत समर्थ है ,राजेन्द्र जी !
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