ब्लॉग मित्र मंडली

17/12/14

हवा का भी कोई झौंका जो सरहद पार से आए




एक ग़ज़ल के साथ उपस्थित हुआ हूं...प्रिय मित्रों फ़िर से बहुत अंतराल पश्चात् !

मेरे हिस्से में बेशक इक ग़लत इल्ज़ाम आया है
मगर ख़ुश हूं, कि उनके लब पे मेरा नाम आया है

मिले पत्थर मुझे उनसे... दिये थे गुल जिन्हें मैंने
चलो , कुछ तो वफ़ाओं के लिए इन्'आम आया है

बुलाता मैं रहा दिन भर जिसे ख़िड़की खुली रख कर
वही मिलने को ढलती ज़िंदगी की शाम आया है

न जाने उस गली के साथ किसकी बद्'दुआएं हैं
गया इक बार भी , हो'कर वही बदनाम आया है

हवा का भी कोई झौंका जो सरहद पार से आए  
जवां हैं मुस्तइद , करते तलब - किस काम आया है

दिया धोखा सिया को रूप धर' कल साधु का जिसने
 किसे मा'लूम रावण इस दफ़ा बन राम आया है

सुनी मुरली की धुन ; सुध भूल' निकलीं गोपियां घर से
मेरा मोहन , मेरा कान्हा , मेरा घनश्याम आया है

उड़ीं ख़िलज़ी की नींदें पद्मिनी की दीद की ख़ातिर
किया दीदार जिस-जिसने वही दिल थाम' आया है

यूं बोली मौत मेरी ज़िंदगी से - छेड़ मत इसको
तड़पती रूह को अब ही तो कुछ आराम आया है

गया राजेन्द्र दुनिया से... फ़रिश्ते यूं लगे कहने
बदलने को जहां निकला था वो नाकाम आया है
©राजेन्द्र स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar

नये वर्ष में नियमित होने का प्रयास रहेगा
शुभकामनाएं

23/10/14

मंगलमयी दीपावली ! आनंदमय दीपावली !



सुनिए शुभकामनाएं मेरे स्वर में प्लेयर को प्ले करें

27/4/14

मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी मधुर


धड़कनें सुरमयी-सुरमयी हैं प्रिये !
सामने कल्पनाएं खड़ी हैं प्रिये !
मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी मधुर
रंग में रश्मियां रम रही हैं प्रिये !
कामनाएं गुलाबी-गुलाबी हुईं
वीथियां स्वप्न की सुनहरी हैं प्रिये !
नेह का रंग गहरा निखर आएगा
मन जुड़े , आत्माएं जुड़ी हैं प्रिये !

तुम निहारो हमें , हम निहारें तुम्हें
भाग्य से चंद्र-रातें मिली हैं प्रिये !
इन क्षणों को बनादें मधुर से मधुर
जन्मों की अर्चनाएं फली हैं प्रिये !

मेघ छाए , छुपा चंद्र , तारे हंसे
चंद्र-किरणें छुपी झांकती हैं प्रिये !
बिजलियों से डरो मत ; हमें स्वर्ग से

अप्सराएं मुदित देखती हैं प्रिये !
मौन निःशब्द नीरव थमा है समय
सांस और धड़कनें गा रही हैं प्रिये !
बंध क्षण-क्षण कसे जाएं भुजपाश के
प्रिय-मिलन की ये घड़ियां बड़ी हैं प्रिये !
देह चंदन महक , सांस में मोगरा

भीनी गंधें प्रणय रच रही हैं प्रिये !
भोजपत्रक हैं तन , हैं अधर लेखनी

भावमय गीतिकाएं लिखी हैं प्रिये !

अनवरत बुझ रहीं , अनवरत बढ़ रहीं
कामनाएं बहुत बावली हैं प्रिये !
लौ प्रणय-यज्ञ की लपलपाती लगे
देह आहूतियां सौंपती हैं प्रिये !
उच्चरित-प्रस्फुटित मंत्र अधरों से कुछ
सांस से कुछ ॠचाएं पढ़ी हैं प्रिये !
रैन बीती , उषा मुस्कुराने लगी

और तृष्णाएं सिर पर चढ़ी हैं प्रिये !
मन में राजेन्द्र सम्मोहिनी-शक्तियां

इन दिनों डेरा डाले हुई हैं प्रिये !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

मित्रों, पहले तो कुछ पारिवारिक व्यस्तताएं रहीं । फिर बहुत समय से ब्लॉग में नई पोस्ट डालने का सिस्टम ही काम  नहीं कर रहा था ।
समय निकाल कर हिंदी की 
इस शृंगारिक ग़ज़ल पर दृष्टि डालिएगा ।
तमाम ब्लॉगर और फेसबुक के नये-पुराने मित्रों की बहुमूल्य प्रतिक्रिया पा'कर रचनाधर्मिता को बल मिलेगा ।

शुभकामनाओं सहित 

30/3/14

रढ़ियाळो रळियावणो, रूड़ो राजस्थान

पिछली प्रविष्टि जो शस्वरं की १००वीं प्रविष्टि भी थी ,  
नव वर्ष के अवसर पर लगाई थी
कुछ ऐसे हालात रहे कि ब्लॉग पर लंबी अनुपस्थितियां रहीं ।
अब विक्रम नव संवत्सर २०७१ का भी शुभागमन है
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार ३१ मार्च २०१४ को 
आप सभी को
नव संवत्  की हार्दिक शुभकामनाएं !

और आज ३० मार्च को राजस्थान दिवस है
राजस्थान को समर्पित एक राजस्थानी गीत प्रस्तुत है
 शायद आपको रुचिकर लगेगा
जय जय राजस्थान

सुरंग सुरीलो सोहणो , सुंदर सुरग समान ।
रढ़ियाळो रळियावणो, रूड़ो राजस्थान ॥

जय जय जय राजस्थान ! ओ म्हारा प्यारा रजथान !
ओ  रूपाळा राजस्थान ! ओ रींझाळा राजस्थान !
बिरमाजी थावस सूं मांड्या, था'रा गौरव गान !!

ओ रणबंका रजथान ! ओ रंगरूड़ा राजस्थान ! 
ओ भुरजाळा राजस्थान ! ओ गरबीला राजस्थान !
गावै वीणा लियां सुरसती, था'रा कीरत गान !!
लुळ लुळ' सूरज किरणां इण माटी रौ माण बधावै सा ।
हाथ जोड़ियां आभो अपलक निरखै ; हुकम बजावै सा ।
मगन हुयोड़ो बायरियो कीरत में धुरपद गावै सा ।
नांव लियां ही मुरधर रौ, मन गरब हरख भर जावै सा ।
कुदरत मा मूंढ़ै मुळकै !
हिवड़ां हेज हेत छळकै !!
मस्ती मुख मुख पर झळकै !!!
इण माटी रौ कण कण तीरथ, सूरज, चांदो अर तारा । 
कळपतरू सै झाड़ बिरछ है ; गंगा जमुना नद नाळा ।
धोरां धोरां अठै सुमेरू ; मिनख लुगाई जस वाळा ।
शबदां शबदां में सुरसत ; कंठां कंठां इमरत धारा ।
मुरधर सगळां नैं मोवै !
इचरज देवां नैं होवै !!
सै इण रै साम्हीं जोवै !!! 
वीरां शूरां री धरती री निरवाळी पहचाण है ।
संत सत्यां भगतां कवियां री लूंठी आण-बाण है ।
आ माटी मोत्यां रौ समदर, अर हीरां री खाण है ।
म्है माटी रा टाबरिया, म्हांनै इण पर अभिमान है ।
रुच रुच' इण रा जस गावां !
जस में आणंद  रस पावां !!
मुरधर पर वारी जावां !!! 
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

भावार्थ

(अर्थ विस्तार न करते हुए भाव आप तक पहुंचाने का यत्न करता हूं) 
सुरंगा सुरीला सुहावना सुंदर स्वर्ग के समान 
ओजस्वी-तेजस्वी, बलशाली, गहन-गंभीर, स्मृतियों में बना रहने वाला है मेरा राजस्थान !
ओ राजस्थान ! ओ मेरे प्यारे राजस्थान ! ओ सुंदरतम राजस्थान ! ओ मुग्ध-मोहित कर देने वाले राजस्थान ! ब्रह्मा ने बहुत धैर्य के साथ तुम्हारी गौरव-गाथा लिखी है । तुम्हारी जय हो !
ओ रणबांकुरे राजस्थान ! ओ अद्वितीय सौंदर्य के स्वामी राजस्थान ! ओ बलशाली राजस्थान ! ओ गौरवमय राजस्थान ! स्वयं सरस्वती हाथ में वीणा लिये हुए तुम्हारा कीर्ति-गान गाती है । तुम्हारी जय हो !

राजस्थान की धरा पर अवरोहित सूर्य-किरणें झुक-झुक कर यहां की मिट्टी का मान बढ़ाती हैं । आसमान हाथ जोड़े हुए हर आदेश की पालना के लिए निर्निमेष निहारता रहता है । हहराती हुई हवा यहां मानो मस्ती में ध्रुपद-गायन करती रहती है । मेरी मरुधरा का नाम लेते ही मन हृदय प्राण गर्व और हर्ष से भर जाते हैं ।
यहां प्रकृति माता साक्षात् मुंह से मुस्कुराती है ।
यहां हृदयों में संबंधों की प्रगाढ़ता तथा विश्वास और प्रेम छलकते प्रतीत होते हैं ।
राजस्थान के जनमानस के मुखमंडल  पर मस्ती झलकती रहती है ।
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !

राजस्थान की मिट्टी का कण-कण तीर्थ है, सूर्य है, चांद  है, सितारा है ।
यहां के झाड़ और वृक्ष कल्पतरु हैं । नदियां-नाले गंगा-यमुना हैं ।
रेत का टील-टीला सुमेरु पर्वत है । यहां के नर-नारी गुणी हैं , यशस्वी हैं ।
शब्द-शब्द में सरस्वती है । कंठ-कंठ में अमृत की धार प्रवहमान है ।
(तभी तो) हमारी मरुभूमि सभी को सम्मोहित करती है ।
देवताओं को भी स्वर्ग से सुंदर राजस्थान देख कर आश्चर्य होता है ।
 हर कोई हर बात के लिए राजस्थान की ही ओर निहारता है ।
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !

शूर-वीर-प्रसूता राजस्थान की धरती की निराली ही पहचान है ।
यहां के संतों , सत्यनिष्ठ लोगों , ईश-भक्तों और कवियों की प्रबल आन-बान है ।
राजस्थान की मिट्टी मोतियों का समुद्र और हीरों की खान है । 
हम इस मिट्टी के बच्चे ,  हमें इस पर अभिमान है , गर्व है , गुमान है । 
(इस लिए) हम बहुत रुचि से अपनी मरुधरा का यशोगान करते हैं और इस यश-गायन में आनंद और रस पाते हैं अपनी मरुधरा पर जान छिड़कते हैं । 
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !

यहां मेरे इस गीत को मेरी बनाई धुन में सुन लीजिए मेरी ही आवाज़ में 

 
  ©copyright by : Rajendra Swarnkar


आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी
 

1/1/14

भोर सुहानी २०१४ नूतन वर्षाभिनंदन !



नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ! 
नव वर्ष का प्रत्येक दिवस प्रत्येक क्षण 
 आपके जीवन में सुख, समृद्धि एवं हर्ष-उल्लास लेकर आए !