सादर वंदे !
पिता दिवस पर
और कुछ भी न कह कर ईश्वर से प्रार्थना करता हूं , कि
किसी का अपने पिता - माता से साथ न छूटे ।
जिनसे पिता - माता बिछड़ गए ,
उन्हें परमपिता परमात्मा
यह दुःख सहने की शक्ति और संबल प्रदान करे ।
पिता दिवस पर
और कुछ भी न कह कर ईश्वर से प्रार्थना करता हूं , कि
किसी का अपने पिता - माता से साथ न छूटे ।
जिनसे पिता - माता बिछड़ गए ,
उन्हें परमपिता परमात्मा
यह दुःख सहने की शक्ति और संबल प्रदान करे ।
लीजिए ,
प्रस्तुत है पूज्य पिताश्री को समर्पित एक ग़ज़ल !
मैं व्यक्त नहीं कर पाऊंगा कि
मैं व्यक्त नहीं कर पाऊंगा कि
इस ग़ज़ल को लिखने से ले'कर इसकी धुन बनाने के बाद तक
कितनी मुश्किलों से
मैं आंसुओं के सैलाब में डूबते -उतराते
इसकी रिकॉर्डिंग संपन्न कर पाया हूं ।
मेरा अनुरोध है ,
मेरा अनुरोध है ,
आप एक बार ज़रूर सुनें !
* मुझसे अब खो गई है वो उंगली *
* जिसको था'मे उठाया था मैंने पहला क़दम ! *
* अब छुआ करता हूं हवा में मैं *
* उन हाथों को जो हमेशा ही रहे सर पर मेरे ! *
* एक एहसास बन कर क़ाइम हैं अब मेरे पूरे वुजूद पर… *
* मेरे बाबूजी ! *
*** आए न बाबूजी ***
गए थे छोड़ कर इक दिन , न वापस आप घर आए !
न क्यों फिर आप बाबूजी ! कहीं पर भी नज़र आए ?
हुई है आपकी यादों में अम्मा सूख कर कांटा ,
नयन में अश्क उनके , दिन में सौ-सौ बार भर आए !
न ही आंसू , न ग़म , हम आपके रहते' कभी समझे ,
अब आंखें नम लिये' ; हर पल लिये' दुख की ख़बर आए !
बड़े भैया को घर - मुखिया का ओहदा मिल गया वैसे ,
बड़प्पन , स्नेह , ममता , प्रेम कब कैसे मगर आए ?
जहां में अब हमारा हाल है बिलकुल यतीमों - सा ,
दिलों में अब हमारे ख़ौफ़ - डर कितने उभर आए !
न पहले धूप में झुलसे , न कांटों में ही हम उलझे ,
हुए युग लाड़ का इक हाथ वो अब अपने सर आए !
किसी से भी नहीं मिलती है सूरत आपकी जग में
हवा , ख़्वाबों - ख़यालों में कई अब रूप धर आए !
बहुत राजेन्द्र रोया , की दुआ , आए न बाबूजी ,
अभागे की दुआ में हाय रब ! कैसे असर आए ?!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
मेरे स्वर में
©copyright by : Rajendra Swarnkar
॥ पितृ देवो भव ॥
* प्रणाम *