ब्लॉग मित्र मंडली

23/11/12

सितारा हूं ; अगर टूटा… बनूंगा मैं महे-कामिल

ग़ज़ल
खड़ा मक़्तल में मेरी राह तकता था मेरा क़ातिल
सुकूं था मेरी सूरत पर , धड़कता था उसी का दिल

बचाना तितलियों कलियों परिंदों को मुसीबत से
सभी मा'सूम होते हैं हिफ़ाज़त-र ह् म के क़ाबिल

पता है ; क्यों बुझाना चाहता तूफ़ां चराग़ों को
हुई लेकिन हवा क्यों साज़िशों में बेसबब शामिल

मैं अपनी मौज में रहता हूं बेशक इक ग़ज़ाला ज्यूं
दबोचे कोई हमला'वर नहीं इतना भी मैं गाफ़िल

न लावारिस समझ कर हाथ गर्दन पर मेरी रखना
सितारा हूं ; अगर टूटा… बनूंगा मैं महे-कामिल

ग़ज़ल से जो तअल्लुक  पूछते मेराज़रा सुनलें
समंदर भी मेरा , कश्ती मेरी , ये ही मेरा साहिल

कशिश है ज़िंदगी में जब तलक दौरे-सफ़र जारी
हसीं ख़्वाबों का क्या होगा , मिली राजेन्द्र गर मंज़िल
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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शब्दार्थ
मक़्तल-क़त्लघर/वध-स्थान
बेसबब-अकारण
ग़ज़ाला-हिरनी/हिरनी का बच्चा
महे-कामिल-पूर्ण चंद्रमा/पूनम का चांद

10/11/12

काल कलुष का आ गया , हुआ तिमिर का नाश!

ॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमः

आई है दीपावली , कर' अनुपम शृंगार !
छत-दीवारें खिल गईं , सज गए आंगन-द्वार !!
सजे शहर भी, गांव भी , घर - गलियां- बाज़ार !
शुभ दीवाली कर रही, शुभ सपने साकार !!
बिखरीं उज्ज्वल रश्मियां , ले'कर दिव्य उजास !
धरती उत्सव में मगन , मुदित-मुदित आकाश !!
दीयों ने मिल कर किया, आज सघन आलोक !
      वैभव यश भू का निरख' सकुचाए सुरलोक!!     
काल कलुष का आ गया , हुआ तिमिर का नाश!
प्रकट हुआ हर इक दिशा , ज्योतित शुभ्र प्रकाश !!
सकल सृष्टि मुसका रही, विहंसे दीप करोड़ !
आज अमा की रैन भी, लगे सुनहरी भोर !!
दीप प्रज्ज्वलित दिशि दसों ,तमदल शिथिल हताश!
नन्हे दीपक कर रहे , कल्मष का उपहास!!
मुक्त हृदय धरती हंसे, मुसकाए आकाश !
व्यथा, निराशा अब कहां? कण-कण व्याप्त सुहास !!
पूर्णचंद्रमा-से लगें , मृदा-दीप सब आज !
यत्र तत्र सर्वत्र है , उजियारे का राज !!
पूनम-रजनी से करे , अमा स्पर्धा-भान!
निज छबि पर रींझे स्वयं, करे गर्व-अभिमान !!
दीवाली की रात को , तारे हुए उदास!
नन्हे दीयों ने किया भू पर शुभ्र उजास !!
गांव-नगर जगमग हुए ; ख़ुशियां चारों ओर !
प्राण-पपीहा झूमता ; मन नाचे बन' मोर !!
दीवाली पर हो गई , धरा स्वयंभू स्वर्ग!
स्वतः किया दारिद्र्य ने , दुख ने निज उत्सर्ग !!
हृदय प्रफुल्लित मगन है, मन आनन्द-विभोर !
पुलकित-हर्षित आतमा , सुख ही सुख चहुंओर !!
देव प्रसन्न , प्रसन्न हैं धरती पर इंसान !
दीवाली मंगलमयी ! शुभ सुखकर वरदान !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
ॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमः

धनतेरसरूपचतुर्दशीदीवालीगोवर्धनपूजनभाईदूज
की
शुभकामनाएं !बधाइयां !मंगलकामनाएं !
ॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमःॐश्रीमहालक्ष्मयेनमः