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22/7/11

मत मज़हब के नाम पर भड़काओ जज़बात !


दुनिया को देने सुकूं , अम्न , ख़ुलूसो-प्यार !
हुआ ख़ुदा इस्लाम की सूरत ख़ुद इज़हार !!
अम्नो-सुकूं इस्लाम का मा’नी-औ’-पैग़ाम !
क़ातिल हो सकते नहीं , फिर… अहले-इस्लाम !!
ज़ेवर हैं इस्लाम के … रोज़े ज़कात नमाज़ !
शोह्दे कुछ बदनाम कर रहे अक़ीदा आज !!
काम करे शैतान का , ले’ अल्लाह का नाम !
ऐसा मज़हब दोगला नहीं कभी इस्लाम !!
अल्लाहो-अकबर कहें ख़ूं से रंग कर हाथ !
नहीं दरिंदों से जुदा उन-उनकी औक़ात !!
बेक़ुसूर का क़त्ल है सख़्त ख़िलाफ़े-कुर्आन !
क़ातिल ना इंसान हैं , नहीं वो मुसलमान !!

जिनके हाथों हो रहे क़त्ल रोज़ मा’सूम !
इस्लामी-तह्ज़ीब से शख़्स हैं वे महरूम !!
मुस्लिमीन लेते नहीं मा’सूमों की जान !
हमलावर होते  नहीं हाफ़िज़-ए-कुर्आन !!
मा’सूमों के क़त्ल को जो दें नाम जिहाद !
वे नस्ले-हैवान हैं ; नहीं वे आदमज़ाद !!
हिन्दू-मुस्लिम क्या … सभी धरती के इंसान !
दहशतगर्दों के लिए सारे एक समान !!
ना इनकी गीता कभी , ना इनकी  कुर्आन !
इनका ख़ुदा शैतान है , ये ख़ुद हैं हैवान !!

इनके मां बेटी बहन नहीं , न घर-परिवार !
वतन न मज़हब ; हर कहीं ये साबित ग़द्दार !!
नहीं इन्हें इंसानियत का कुछ भी एहसास !
हवस बुझे कैसे इन्हें सिर्फ़ ख़ून की प्यास ?!

क़त्लो-गारत का जुनूं : बुज़दिल का ही काम !
दहशतगर्दी का न दे दीन कोई पैग़ाम !!
ख़ून-ख़राबे के लिए कब कहता इस्लाम ?
बेग़ैरत बदकार ख़ुद नाम करे बदनाम !!
जो अहले-इस्लाम हैं , वे कब हैं जल्लाद !
और… दरिंदों–अज़दहों को कब अल्लाह याद !?

दाढ़ी-बुर्के में छुपे ये मुज़रिम-गद्दार !
फोड़ रहे बम , बेचते अस्लहा-औ’-हथियार !!
मा’सूमों को ये करें बेवा और यतीम !
ना इनकी सलमा बहन , ना ही भाई सलीम !!
मांओं बहनों बेटियों से इनको क्या काम ?
हुई वहशियों के लिए इंसानियत हराम !!

भाई दहशतगर्द है ; जल्द बदल तू राह !
उससे नाता तोड़दे , मत दे उसे पनाह !!
मुस्लिमीन की शक़्ल में छुपे कई शैतान !
अब हर दहशतगर्द को हिम्मत से पहचान !!

मुस्लिम बन बैठे यहां जो ग़ादिर रूपोश !
इनके ख़ौफ़ से मोमिनों ! मत रहना ख़ामोश !!
क्यों हर मुस्लिम पर उठे शक से भरी निगाह ?
दहशतगर्दी की जुदा , जुदा दीन की राह !!
हमलों के अब मा’बदे ना हों और शिक़ार !
दोज़ख़ में तब्दील ना हो जाए संसार !!
जां देते ; लेते नहीं … सच्चा अगर जिहाद !
क़ातिल को अहले-ख़ुदा ! दो न कोई इम्दाद !!
क़ातिल शैतांज़ाद हैं , नहीं औलिया-पीर !
इन हाथों बिकने न दें जान और तक़दीर !!
इक इस्लाम के नाम पर ना हों तअल्लुकात !
इंसां हो… पहचानलो , शैतानों की ज़ात  !!

मत मज़हब के नाम पर भड़काओ जज़बात !
वतनपरस्ती याद हो , तो बन जाए बात !!
भाईचारा दोस्ती  इंसानी जज़बात !
इनके दम पर दीजिए हैवानों को मात !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar



दहशतगर्दी को ले'कर लिखे गए इन दोहों पर आपकी राय /प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्वपूर्ण रहेगी ।


वंदे मातरम् 

60 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बड़ी बात...उम्दा रचना..

Rakesh Kumar ने कहा…

कमाल की अभिव्यक्ति है आपकी.
सुन्दर शब्दों का सटीक संयोजन
और भावों की उत्कृष्ट प्रस्तुति.
विचारोत्तेजक और प्रेरणास्पद प्रस्तुति के लिए
बहुत बहुत आभार.
आशा करता हूँ आपकी माता जी ठीक होंगीं अब.

काफी दिनों से मेरे ब्लॉग पर आपका आना नहीं हुआ है.समय मिले तो दर्शन दीजियेगा.

Sunil Kumar ने कहा…

सब कुछ सही है पर हम नहीं सुधरेंगे, अच्छी रचना अगर समझ में आ जाये तो ?

Unknown ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति,मज्हबियों को सोचने को विवस करती रचना ,विचारोत्तेजक प्रस्तुति

विभूति" ने कहा…

बहुत ही सुंदर..

S.M.Masoom ने कहा…

राजेंद्र जी हकीकत को बयान करती एक बेहतरीन कविता. इस कविता को मैं अमन के पैग़ाम पे कुछ दिनों बाद लगाने कि इजाज़त चाहूँगा. धन्यवाद् ऐसी कविता के लिए और बेहतरीन सोंच के लिए. इसका ज़िक्र कल के चर्चा मंच पे भी करूँगा.

Rajesh Kumari ने कहा…

bahu umdaa vichar prerak rachna.sateek uttam abhivyakti.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

बम फोड़ते घूमते सरकारी दामाद.
इनके मज़हब मूल में हिंसा का उन्माद.
सिर पटको पाषाण से हो जितनी फ़रियाद
जीव काटना छोड़ता नहीं कोई जल्लाद.
________________________
एक महात्मा जी ने सोचा कि वे किसी भी तरह सूअर के गंदगी खाने की आदत को छुड़ाकर ही रहेंगे... तो उन्होंने 'शूकर गान' रचा और उसे हर सभा में गाने लगे... 'शूकर महिमा' के नित्य प्रति पाठ किये जाने लगे... उन्होंने अपनी एक विशेष कृति 'वाराह चरित' से तरह-तरह के उदाहरण देकर वर्तमान के सूअरों की बिगड़ी जीवन पद्धति को सुधारना चाहा... कुछ सूअरों पर निगरानी की... उन्हें मल/ विष्ठा की जगह सूजी का हलवा और मेवा दिया गया... लेकिन सूअर मौक़ा पाते ही गंदगी में मुँह मार ही लेते थे.. महात्मा जी ने सोचा कि उनके सूअरों में भारी सुधार आ गया है... लेकिन सत्य तो कुछ और ही था.

लाख कोशिशों के बाद दो-चार सूअर विष्ठा की जगह मेवा भी खाने लग जाएँ तो भी सूअरों का मूल स्वभाव विष्ठा-प्रेम ही रहेगा. ... फिर भी सन्तजनों को अपने अच्छे प्रयास नहीं छोड़ने चाहिए.

सदा ने कहा…

अक्षरश: सत्‍य कहा है आपने इस अभिव्‍यक्ति में ...आभार के साथ शुभकामनाएं ।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बहुत सार्थक सन्देश देती बेहद उत्कृष्ट रचना है यह. आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय राजेंदर जी
नमस्कार !
.....सोचने को विवस करती रचना
पूरी रचना बहुत ही खूब.कुछ भी छोड़ दूं तो नाइंसाफी होगी.....!

संजय भास्‍कर ने कहा…

अस्वस्थता के कारण करीब 25 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत ही सार्थक सन्देश देती हुई बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...आभार

दिवस ने कहा…

आदरणीय स्वर्णकार जी, बहुत सुन्दर कविता है|

प्रतुल भाई का उदाहरण भी सटीक लगा...सौ प्रतिशत सहमत...

रविकर ने कहा…

सुन्दर भावाभिव्यक्ति ||
बधाई ||

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

आपके ज़ज्बात, आपकी रचना का मर्म कौमों को शर्मिन्दा करने वाले शैतानों तक पहुंचे.... आमीन.
ऐसी सार्थक रचना, ऐसे सार्थक आवाहन के लिए आपको सादर प्रणाम.....

Dr Varsha Singh ने कहा…

सच को प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन रचना...

संजय राणा ने कहा…

आदरणीय स्वर्णकार जी, एक सुन्दर और भावपूर्ण रचना , बहुत अच्छी लगी सोचने पर विवश !

रंजना ने कहा…

बहुत सही कहा है आपने...

मजहब की दूकान चला दहशत की फसल उगाने वालों को इस मुगालते से निकल जाना चाहिए की लोग उनके इरादे समझ नहीं रहे...

बहुत ही सुन्दर रचना रची है आपने...इसमें सीख भी है और खबरदारी भी...

अतिसार्थक और सराहनीय प्रयास...

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

आपकी रचना सचमुच अच्छी है . आपने इस्लाम के पैगाम को और दहशतगर्दों के काम को अलग अलग समझने सफलता पाई है और आपका पैगाम बहुत से लोगों को हकीकत से रू बा रू कराएगा . किसी के कुछ उलटा सीधा कहने की मंशा सिर्फ माहौल करना होती है .
मसीहाई के नाम पर आधुनिक चिकित्सा पद्धति ने अपाहिज भ्रूणों को मारे जाने का रास्ता साफ़ कर दिया है . इनकी तादाद ज्यादा है उनसे जो आतंकवादी हमलों में मारे जाते हैं . इस समस्या पर भी ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है .
मासूम अपाहिज बच्चों को उनकी मांओं के पेट में मार डालने को जायज़ करने वाले हाइली क्वालिफ़ाईड लोग हैं। ख़ुदा से कटने के बाद शिक्षा भी सही मार्ग नहीं दिखा पाती।
क्या वाक़ई अपाहिज बच्चों को उनकी मांओं के पेट में ही मार डालना उचित है ?
आखि़र किस ख़ता और किस जुर्म के बदले ?
http://pyarimaan.blogspot.com/2011/07/spina-bifida.html

आकर्षण गिरि ने कहा…

ek behatareen rachna aur samicheen bhi. Hardik shubhkamnayen.
aakarshan.

सुधीर राघव ने कहा…

दिल को छू लेने वाली रचना। बधाई।

मनोज कुमार ने कहा…

गहन विचार से परिपूर्ण रचना।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत ताडाकते भड़कते दोहे हैं .
मज़हबी शैतानों पर बहुत सही लिखा है भाई .
आपकी मेहनत को सलाम .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सशक्त रचना ..आईना दिखाती हुई .. आभार

Rajiv ने कहा…

काश!"हैवान भी एकबार अपने दिल में झांक पाते,इंसानियत का दर्द थोड़ा सा समझ पाते".भाई साहब,बेहतरीन और समसामयिक रचना के लिए बधाई.

Deepak Saini ने कहा…

सार्थक कविता
सही है दहशतगर्द का कोई धर्म नही होता

आभार

Urmi ने कहा…

स्वर्णकार जी पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए! मैं तो हमेशा ये कोशिश करती हूँ की मेरी पेंटिंग और जो भी तस्वीरें लगाऊँ वो शायरी के साथ जीवंत लगे! डॉक्टर दराल जी को तस्वीर पसंद आया एवं खत्री जी ने मेरी शायरी पर अपनी सुन्दर पंक्तियाँ जोड़कर उसे और ख़ूबसूरत बना दिया !आपने भी इतनी सुन्दर टिप्पणी दी है जिससे मेरा लिखने का उत्साह दुगना हो गया! आपको मेरी पेंटिंग्स और तस्वीरें अच्छी लगती है उसके लिए धन्यवाद! मेरे ब्लॉग पर आते रहिएगा!
गहरे भाव के साथ आपने सच्चाई को बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया है! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! सार्थक सन्देश देती हुई इस उम्दा रचना के लिए आपको ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें!

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

कमाल कर रहे हैं राजेन्द्र भाई| भाषा की परिधि से बाहर निकल कर उम्दा प्रस्तुति| एक एक बात को बड़े ही सलीक़े से उद्धृत किया है आपने| यह प्रस्तुति विधान / रिवाज़ या किसी भी प्रकार के प्रबंधन से ऊपर उठ कर है|

बाकी बातें अगली बार फोन पर करूंगा आपसे|

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना...जोरदार शब्दों में आईना दिखा दिया क़ाफ़िरों को

Arvind kumar ने कहा…

sir namaskaar,
aaka blog bahut hi jabardast laga....
bahut achha laga aapko padkar...kafi kuchh sikhne ko milega....
follower ban raha hun.....
badhai...
shukriya...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

झगड़ों की गीष्म के बाद शान्ति की फुहार चाहिये बस।

prerna argal ने कहा…

bahut achchi oajpoorn,aakroshmai.rachanaa.dil josh aur dukh dono se bhar gayaa.bahut bemisaal rachanaa.badhaai sweekaren.



please visit my blog.thanks.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

khoobsurat dohe...

अजय कुमार ने कहा…

सार्थक और सशक्त रचना

Adarsh Bhalla ने कहा…

भाई राजेंद्र जी,

मज़ा आ गया, इस ग्रुप पर आप के विचार ऐसे लगे जैसे आषाढ़ के महीने में कहीं से एक ठंडी ठंडी बयार , हलकी से फुहार दे गयी हो, आपने जो कहा वोह दिल से तो हरेक हिन्दुस्तानी महसूस करता है. लेकिन कुछ लोग अपनी दुकानदारी चलाने के लिए दूसरी खल ओढ़ लेते हैं............ओर भारतीयता की चासनी में कटुता परोसते हैं............God Bless you.......

Adarsh K. Bhalla

Dorothy ने कहा…

सबसे पहले तो आपके स्नेहिल शुभाशीष के लिए धन्यवाद...इस सशक्त और सार्थक संदेश के लिए आभार...
सादर,
डोरोथी.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

कुछ लोग ................ भारतीयता की चासनी में कटुता परोसते हैं
@ और कुछ लोग .............. सावन में दही नहीं खाते फिर भी भल्ला परोसते देते हैं. :)

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना....ग़ज़ब की है....

ज्योति सिंह ने कहा…

uchch star ki rachna ,jisme aapne bade achchhe sandesh diye hai .majhab kabhi galat raah nahi lekar jata ,hame yahi samjhna hai .aapki aabhari hoon ,aur sabhi kushal mangal hai aapki dua se ,

Ambarish Srivastava ने कहा…

ज्ञानदायिनी शारदा, करतीं जग कल्याण..
वरद हस्त है आप पर, तभी काव्य में प्राण..
सुन्दर दोहे आपके, देते यह सन्देश.
एक साथ मिलकर रहें, तभी बचेगा देश..
सादर...अम्बरीष श्रीवास्तव

Alpana Verma ने कहा…

बहुत अच्छे और प्रभावी लगे सभी दोहे.
दहशतगर्दों का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि उनकी लगाई आग में सभी धर्म वाले जलते हैं.
इस तीखे तेवर भरी रचना द्वारा सार्थक आवाहन किया है आपने.
-------
आप की सभी पोस्ट की प्रस्तुति आप की कलात्मकता को दर्शाती है.किस तरह चित्रों को कविता का पूरक बना दिए जाये ये आप खूब जानते हैं.

smshindi By Sonu ने कहा…

आदरणीय स्वर्णकार जी,
बहुत सुन्दर कविता

कविता रावत ने कहा…

बम फोड़ते घूमते सरकारी दामाद.
इनके मज़हब मूल में हिंसा का उन्माद.
सिर पटको पाषाण से हो जितनी फ़रियाद
जीव काटना छोड़ता नहीं कोई जल्लाद.
...भले ही कुछ लोग केकड़े की तरह टेढ़े चलने वाले होते हैं, जो जीवन भर टेढ़े ही चलते हैं, लेकिन किसी को भी यह नहीं भूलना चाहिए की एक दिन उनकी टेढ़ी चालें उनको ही ले डूबती हैं.....
देश में अमन चैन बनाये रखने के लिए नेक सन्देश देती आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी...
देशप्रेम से ओत-प्रोत सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार!

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है|

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

ek saskat rachna ..bahut sundar...

विभूति" ने कहा…

गहन विवेचन कराती रचना...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

भाई जी इस बेमिसाल रचना के लिए सबसे पहले तो आपको नमन करता हूँ. इतनी खूबसूरत रचना कही है आपने के चार पांच पढने के बावजूद बार बार पढने की इच्छा हो रही है...धन्य हैं और धन्य हैं आपके विचार...इंसान को इंसानियत का पथ पढ़ाने वाली ये रचना बेजोड़ है...वाह..आनंद नहीं भाई जी परमानंद की प्राप्ति हो गयी...एक एक लाइन कोट करने योग्य है. मेरी इच्छा है के इसे देश के हर गली नुक्कड़ पर सबके पढने के लिए चिपका देना चाहिए...ये लोगों के आँखें खोल देने वाली रचना है फिरकापरस्त लोगों के मुंह पर तमाचा है...

नीरज

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी,
बहुत सुन्दर रचना शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

9 दिन तक ब्लोगिंग से दूर रहा इस लिए आपके ब्लॉग पर नहीं आया उसके लिए क्षमा चाहता हूँ ...आपका सवाई सिंह राजपुरोहित

Dorothy ने कहा…

सार्थक और सशक्त रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.

Apanatva ने कहा…

bahut sateek vishleshan kartee prerak avum sarthak rachana...

Apanatva ने कहा…

bahut sateek vishleshan kartee prerak avum sarthak rachana...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत लाजवाब और उम्दा, शुभकामनाएं.

रामराम.

श्रद्धा जैन ने कहा…

Aapke vichar padhe aur unse sahmat bhi hui.. koum ki koum to kharab nahi ho sakti ..ye sab siyasi khel hai jo bhole logon ko bahla fusla kar khela jaa raha hai.. jo dikh raha hai sirf wahi sach nahi hai

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

वाह भाई राजेन्द्र जी
कितनी बेबाकी और ख़ूबसूरती से आपने देश, समाज और इंसान के हित की बातें कही हैं !
जितनी भी प्रशंसा की जाए... कम है |

***Punam*** ने कहा…

इंसानी ज़ज्बातों को झकझोरने में आपकी रचना सक्षम है...

लेकिन इसके लिए ज़रूरी है इंसान होना....!

आपकी लेखनी को शत-शत नमन !!

बेनामी ने कहा…

एक बात है - हम कहते हैं कि युग बुरा है.......... यह, वह, सब प्रोब्लेम्स हैं |

पर हम यह भूल रहे हैं कि - पहले भी कठिनाइयाँ थीं -और बहुत थीं - पर तब सच्ची भक्ति थी | हम ईश्वर को बुलाते थे - मानते थे कि खुद "मात" नहीं दे सकते, ईश्वर के शरणागत होते थे | महाभारत में भी कृष्ण द्रौपदी की सहायता तब करने आये जब वह अपने पति, पितामह, श्वसुर आदि की शरण की तलाश छोड़ कर, स्वयं के हाथों की शक्ति का भरोसा छोड़ कर शरणागत हुई | जब तक वह एक हाथ से अपनी साडी पकड़ी रही और दूसरे हाथ से सहायता मांगती रही, कुछ नहीं हुआ | पर जब वह अपनी शक्ति के विश्वास से निकल प्रभु शरण में गयी, दोनों हाथ जोड़ कर कृष्ण को पुकारा - तब कृष्ण आये |

हमें भी यह मानना होगा कि ईश्वर (हम जिस रूप में उन्हें मानते हैं उस रूप में) ही यह स्थिति सुधार सकते हैं, हम स्वयं इसे ठीक नहीं कर सकते | यह मान कर हमें "धर्मान्धता" से निकल कर "धर्म" पथ पर चलना होगा , तभी स्थिति सुधरेगी | प्रार्थना - सच्ची प्रार्थना - दूसरे के धर्मं को नीचा करने के लिए नहीं, सच्चे मन से प्रार्थना करनी होगी | तब तक नहीं सुधरेगा कुछ भी .. जब तक हम खुद ही करेंगे, ईश्वर को नहीं पुकारेंगे - कुछ नहीं होगा .. कुछ नहीं ...

दीपक बाबा ने कहा…

भाई राजेन्द्र जी...... बहुत बहुत साधुवाद आपके जज्बे को...

जिस परकार के शब्द आपने पिरोये है - देखा जाए तो एक एक शब्द ही इमानदारी से अपने अर्थ प्रदान कर रहा है..

अति सुंदर

बेनामी ने कहा…

भाई साहब ! नमन इस सद्बुद्धि देने वाले और बे-ईमानों को ललकारने वाले पैग़ाम पर ! Nirmal Kothari (Apna Manch..)