ब्लॉग मित्र मंडली

28/9/11

सरस्वती वंदना : छंद हरिगीतिका

नवरात्रि पर्व
पर आप सबको कोटिशः
शुभकामनाएं मंगलकामनाएं



आज प्रस्तुत है हरिगीतिका छंद में मेरी नई सरस्वती वंदना
हे शारदे !
( छंद : हरिगीतिका )
ज्योतिर्मयी ! वागीश्वरी ! हे शारदे ! धी दायिनी ! 
पद्मासनी ! शुचि ! वेद-वीणा-धारिणि ! मृदुहासिनी ! 
सुर-शब्द-ज्ञान प्रदायिनी ! मां भगवती ! सुखदायिनी ! 
शत शत नमन वंदन ! वरदसुत-मानवर्द्धिनि ! मानिनी ! 

मातेश्वरी ! करुणा कृपा कर’ धन्य उपकृत कीजिए ! 
निशि-दिवस नत दृग याचना है , शरण में ले लीजिए ! 
सम्मुख स्वजन सुर-शब्द-साधक , सरस्वती स्वीकारिए !
तम पंक कल्मष कीच जड़ता हर’ मुझे अपनाइए ! 

सत्यम् शिवम् सुंदर सृजे वह लेखनी दो शारदा ! 
मैं छंद सार्थक श्लील रुचिकर रच सकूं ; है प्रार्थना ! 
दोहे कवित कुंडली सवैये सोरठे हरिगीतिका ! 
हो वार्णिक मात्रिक ; सृजित हर छंद को दो पूर्णता ! 

रस भाव लय सुर ताल छंदों से नई संसृति रचूं ! 
आशीष दो , अनुपम लिखूं मां ! मैं अकिंचन जो लिखूं ! 
हो सर्वजन आनन्द सुख हित ; वो सृजूं …जब तक जियूं ! 
मातेश्वरी ! मैं आपके गृह का बनूं दीपक ; जलूं ! 
-राजेन्द्र स्वर्णकार 
©copyright by : Rajendra Swarnkar
इस प्लेयर पर यह वंदना अवश्य सुनें

Jसुन कर अपनी राय देंगे तो आभारी रहूंगाJ

छंद के प्रति जन रुचि जाग्रत करने और छंद की समझ पुष्पित-पल्लवित करने के महत्त्ती प्रयास स्वरूप  
हरिगीतिका छंद की शृंखला प्रारंभ की हुई है ।
इसी वंदना का प्रथम चरण नवीन जी की लिखी गणेश वंदना के साथ मैंने गाया है ।
शस्वरं के स्नेहीजन की सुविधा  के लिए यह रहा लिंक
नये मित्रों का हार्दिक स्वागत है 
स्नेह – सद्भाव बनाए रहें