आज, बस इतना ही कि
दिल का पैग़ाम दिल तक पहुंचे
…दिल की … दिल से … दिल कहे…
…दिल समझे … दिल ही सुने…
…ताकि दिलों को सुकून-ओ-राहत मिले…
पेश-ए-ख़िदमत है दो ग़ज़लें
एक हिंदुस्तानी में , एक राजस्थानी में
ख़ुदा
लिखदूं तुम्हें
कहां
लिखदूं, यहां लिखदूं, जहां कहदो,
वहां लिखदूं
ख़ुदा
लिखदूं तुम्हें मैं, मालिक-ए-दोनों जहां लिखदूं
इजाज़त
हो अगर, तुमको मैं अपना
मेहरबां लिखदूं
तुम्हारा हो रहूं, ख़ुद को तुम्हारा राज़दां लिखदूं
तबस्सुम को तुम्हारी, मुस्कुराती कहकशां लिखदूं
तुम्हारे जिस्म को ख़ुशबू
लुटाता गुलसितां लिखदूं
अदब
से सल्तनत-ए-हुस्न की मलिका तुम्हें लिखदूं
वफ़ा
से ख़ुद को मैं ख़ादिम, तुम्हारा पासबां लिखदूं
तुम्हीं
नज़रों में, ख़्वाबों में, ख़यालों में,
तसव्वुर में,
मेरे अश्आर, जज़्बों में, तुम्हें रूहे-रवां लिखदूं
गुलाबों-से मुअत्तर हों, हो जिनकी आब गौहर-सी
कहां
से लफ़्ज़ वो लाऊं… तुम्हारी दास्तां
लिखदूं
सुकूं
भी मिल रहा लिख कर, परेशानी भी है क़ायम
इशारों
में, बज़ाहिर क्या, निहां क्या,
क्या अयां लिखदूं
यूं
मैंने लिख
दिया है दिल
तुम्हारे नाम
पहले ही
कहो
तो धड़कनें भी… और सांसें, और जां लिखदूं
मिटा डालूं लुग़त से लफ़्ज़, जो इंकार जैसे हैं
तुम्हारे
हुक़्म की ता'मील में, मैं हां ही हां लिखदूं
मैं
क़ातिल ख़ुद ही हूं अपना, तुम्हारा पाक है दामन
ये
दम निकले, मैं उससे पेशतर अपना बयां लिखदूं
दुआओं
से तुम्हें राजेन्द्र ज़्यादा दे नहीं सकता
यूं कहने को तुम्हारे नाम मैं सारा जहां लिखदूं
- राजेन्द्र
स्वर्णकार
©copyright by :
Rajendra Swarnkar
और … यहां सुनिए, यही ग़ज़ल
मेरी ही धुन और मेरी ही आवाज़ में
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शब्दार्थ
राज़दां - रहस्य / भेद जानने वाला * तबस्सुम - मुस्कुराहट * कहकशां - आकाशगंगा
ख़ादिम - सेवक * पासबां - द्वारपाल * तसव्वुर - कल्पना * रूहे-रवां - प्राणवायु
मुअत्तर - महके हुए / सुगंधित * गौहर - ख़रे मोती * बज़ाहिर - स्पष्टतः
निहां - छुपा हुआ / गुप्त * अयां - सामने * लुग़त - शब्दकोश
हुक़्म की ता'मील - आज्ञा का अनुमोदन / पालन * पेशतर
- पहले
समुंदर बूक सूं पील्यूं
हुयो म्हैं बावळो; थारै ई जादू रौ असर लागै
कुवां में भांग रळगी ज्यूं, नशै में सौ शहर लागै
छपी छिब थारली लाधै, जिको ई काळजो शोधूं
बसै किण-किण रै घट में तूं, भगत थारा ज़बर लागै
लड़ालूमीजियोड़ो तन, कळ्यां-फूलां-रसालां सूं
भरमिया रंग-सौरम सूं, केई तितल्यां-भ्रमर लागै
मुळकती चांदणी, काची कळी, ए जोत दिवलै री
कदै तूं राधका-रुकमण, कदै सीता-गवर लागै
सुरग-धरती-पताळां में, न थारै जोड़ रूपाळी
थनैं लागै उमर म्हारी, किणी री नीं निजर लागै
नीं थारै रूप जोबन रै समुंदर सूं बुझै तिषणा
समुंदर बूक सूं पील्यूं, तिरसड़ी इण कदर लागै
जपूं
राजिंद आठूं पौर थारै नाम री माळा
कठै म्हैं जोग नीं ले ल्यूं, जगत आळां नैं डर लागै
-राजेन्द्र
स्वर्णकार
©copyright by :
Rajendra Swarnkar
समुंदर बूक सूं पील्यूं
राजस्थानी ग़ज़ल का भावार्थ
तुम्हारे प्यार में मैं बावला हो गया हूं, यह तुम्हारे ही ज़ादू का प्रभाव लगता है ।
जैसे प्रत्येक कुएं में भांग मिल गई हो, ऐसे तुम्हारे नशे की गिरफ़्त में पूरा शहर ही आया हुआ है ।
जिस किसी का भी दिल टटोलूं, तुम्हारी ही तस्वीर मिलती है ,
तुम किस किस के हृदय में बसी हो ? … ख़ूब हैं तुम्हारे भक्त !
तुम्हारा जिस्म फल-फूल-कलियों से लक-दक है, लबरेज़ है ।
रंग और ख़ुशबू से भ्रमित अनेक भौंरे-तितलियां तुम्हारे ही इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं ।
ऐ मुस्कुराती चांदनी ! ऐ कमनीय कली ! ऐ दीप की ज्योति !
कभी तुम राधिका और रुक्मिणी लगती हो, तो कभी सीता और पार्वती !
स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल में तुम्हारे जैसी कोई रूपसी नहीं है ।
तुम्हें मेरी उम्र लग जाए ! तुम्हें किसी की बुरी नज़र न लगे ।
तुम्हारे रूप-यौवन के समुद्र से तृप्ति नहीं होती ।
…मेरी प्यास ऐसे भड़क रही है, कि हथेलियों में भर कर एक घूंट में पूरा ही समुद्र पी जाऊं ।
राजेन्द्र आठों प्रहर तुम्हारे ही नाम की माला जपता रहता है ।
सबको भय है, …कहीं मैं जोग धारण न करलूं !
याद रहे, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाएं ही मेरी पूंजी है
आपके सुझाव ही मेरा ख़ज़ाना है
और आप द्वारा प्रदत्त प्रोत्साहन ही मेरे लिए प्रेरणास्रोत है !
आपके स्नेह, सहयोग और सद्भाव के लिए मैं सदैव कृतज्ञ , आभारी और ॠणी हूं और रहूंगा !
अगली मुलाकात से पहले आज जुदाई की वेला आ पहुंची ।
विदा
60 टिप्पणियां:
behad sundar gazal sath hi
awaj me utna hi jabardast ahsas
sundar badhai
or shubhkamnaye aap ko
वाह...!
बहुत बढ़िया!
पढ़-सुनकर आनन्द आ गया!
वाह ..वाह..वाह..राजेंद्र जी ,
आज की सुबह आप की ग़ज़लों के नाम हो गई.
दोनों ही बेहद पुरअसर रचनाएँ हैं.
ऊपर से जिस मनमोहक अंदाज़ में आपने गाया ,वो तो सोने पे सुहागा बन गया,,बहुत खूब..
लखदाद....घणा घणा रंग ...
राजेंद्र जी,
दोनों ही रचनाएँ बेहतरीन हैं, आपके ब्लॉग का नया रूप भी अच्छा लगा!
har baar aap ka naya roop nazar aata hai , bahuat rumani gazal hai , ye bhi duvidha hai ki koun saa sher cot karu , hindi aur rajasthani dono ke liye aap ka aabhar , naman ,
saadar
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है और बड़े ही सुन्दरता से मनमोहक रूप में प्रस्तुत किया है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!
भाई जी अपना तो आज का दिन बन गया...श्रृंगार रस में डूबी आपकी दोनों रचनाओं से दिल बाग़ बाग़ हो गया...सोने पे सुहागे का काम कर गयी आपकी दिलकश अदायगी...हम तो दीवाने हो गए आपके... कसम से... माँ सरस्वती की कृपा अपने इस लाडले पुत्र पर यूँ ही बनी रहे बस ये ही प्रार्थना करता हूँ...
नीरज
bahut achi dono ghazalen. or is baar blog ka look bahut badhiya hai. vistar me 2 4 baar fir padh k likhunga.
सर आपकी रचनाओं पर टिपण्णी देना ..मेरे लिए बहुत मुश्किल है ,,,मुझे लगता है मैं सही न्याय नहीं कर पाऊंगा ...फिर भी आपकी रचना पढ़कर ,,मुह से अनायस ही तारीफ़ निकलती है ,,,बस संक्षिप्त में इतना कहूँगा की साक्षात सरस्वती का निवास है आपकी लेखनी में ...आप कृपया मुझे भी सुझाव देकर मार्गदर्शन करे तो शायद मैं तनिक ठीक लिख पाऊं ..मैं प्रतीक्षारत हूँ http://athaah.blogspot.com/
सचमुच गजब है आपका अंदाजे-बयां...
बधाई और शुभकामनाएं...
gazab kah rahe ho bhai...hindi aur rajsthani dono mey kahi gayi ghazale adbhit hai. shil aur bhav dono star par bejod hai. ghazal vidha me aapki pakad dekhate hi banati hai. vaah, kyaa baat hai. desh ko ek sashakt ghzalakaae de diyaa hai blogjagat ne, mai yah baat dave se kah sakataa hoo.kisi shayar ki layin yaad aa rahi hai, ''tumhe aur kya doon mai dil ke sivay/ tumko hamaree umar lag jaye''...
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल....बधाई!
भाई राजेन्द्र जी,
मैं आज लगभग 18 दिन बाद computer पर बैठा था और सबसे पहले आपकी
गज़ल पढ़ी और सुनी। पढ़ कर तो आनन्द आया ही उस से अधिक सुन कर मन
आनंदित हो गया। इतनी सुंदर गजल लिखने और सुनाने के लिये बहुत बहुत हार्दिक
बधाई।आज का दिन सार्थक हो गया।
चन्द्रभान भारद्वाज
aapka andaz-e-bayan to bahu thi khoobsoorat hai.........dono hi rachnayein lajawaab hain.........dil mein utar gayi hain.
Aapkee dono gazalon mein rawaangee,
shaeestgee aur pukhtgee hai.padhkar
abhibhoot ho gayaa hoon.
आदरणीय राजेंद्र जी का तो हर अंदाज़-ए-बयान अभिव्यक्ति की पराकास्था तक ले जाता है.. जितनी खूबसूरत अभिव्यकि है, उतना ही ख़ूबसूरत सूफियाना अंदाज़.
कहां लिखदूं , यहां लिखदूं , जहां कहदो , वहां लिखदूंख़ुदा लिखदूं तुम्हें मैं , मालिक -ए- दोनों जहां लिखदूं
पहला ही शेर बांधता है और पढने को मजबूर करता है.
उर्दू अदब में लिखी ग़ज़ल के साथ-साथ रास्जस्थानी में श्रृंगारिक नख शिख वर्र्नन और नए रूपक भी बेजोड़ और तारीफ-ए-काबिल है..
दोनों ही ग़ज़लें उम्दा लगी और पढ़ना सुखद अनुभव है.. बधाई और आभार !!
आदरणीय यशवंतजी कोठारी ने हमेशा की तरह मेल द्वारा कहा -
yashwant kothari
to me
show details 4:14 PM (20 minutes ago)
gazale aur chitra dono bahut sunder he.badha i.yk
बेहतरीन !!
अब विस्तारपूर्वक क्या टिप्पणी लिखूं? बस इतना ही लिखूंगा कि दोनों ही रचानायें है अप्रतिम और अत्यंत ही सुन्दर. ढेर सारी बधाईयाँ.
भाई नीरज दइयाजी ने मेल द्वारा कहा -
neeraj daiya
to me
show details 6:02 AM (5 hours ago)
भाई सोनी जी, आपरै ब्लॉग नै देखर चोखो लग्यो । केई बार देखूं, रचानावां अर बां री साज-सज्जा मन मोवै । नीरज दइय
Pahli baar aapke blog pe aayi hun..is waqt alfaaz adhoore lag rahe hain...
sone men suhaga.... rachna aur gayan...subhaanallah kyabaat hai...
भाई राजेन्द्र जी ,सबसे पहले आपको इस बात की बधाई कि आपके ब्लॉग की साजसज्जा मुझे बहुत अच्छी लगी । इतना खूबसूरत ब्लॉग मैंने नहीं देखा था । इससे आपका सौन्दर्य बोध झलकता है ।
दूसरी बात आपकी मिट्टी की भाषा में आपकी गज़ल । हमारे यहाँ इस बात के लिये बहस चलती है कि गज़ल सिर्फ उर्दू की होती है फिर दुश्यंत जी ने इस धारणा को तोड़कर हिन्दी में गज़लें लिखीं उर अब तो लोक भाषा में भी गज़लें लिखीं जा रही हैं । हमारे यहाँ छत्तीसगढ़ी की गज़ल भी लिखी जा रही है ।
इस प्रयास को जारी रखें मेरी शुभकामनायें ।
और आपकी आवाज़ माशाअल्ला !
गज़ब है आपका ब्लॉग...इतना सुन्दर...साजसज्जा...के साथ साथ रचनाएँ और भी बढ़िया...सोने पर सुहागा...हार्दिक बधाई....
hindi ghazal; me...neeche se teesara aur paanchvaa sher mere fav rahe... ravayat kayam rakhi hai aapne ghazal ki apni ghazlon me..
क्या बात है। वास्तव में बीकानेर साहित्य जगत के आप अनमोल मोती है। अब यह भी मालूम हो गया है कि आप सुरीली आवाज के भी मालिक है। बहुत बहुत बधाई
वाह जी बहुत सुंदर.
वाह राजेंद्र जी वाह.... बेहतरीन...
भाई राजेन्द्र जी ! मज़ा आ गया ! दोनों ही ग़ज़लें माशाल्लाह ! बहुत संभावनाएं नज़र आ रही है आप में ! आपके ब्लॉग की साज-सज्जा का भी जवाब नहीं ! मेरा नया ब्लॉग देखो. उसे "aajkeeghazal" जैसी पत्रिका बनाना चाहता हूँ. मदद करोगे क्या ?
www.goongaareegat.blogspot.com
पहली बात तो यह कि आपने खूबसूरत बह्र चुनी, यह बह्र मंचीय गेयता के लिये बहुत उपयुक्त है ओर इस गेयता का आपने भरपूर उपयोग किया है शब्द चयन नि:शबद करने वाला है।।
भाई जी ..एतना डूब कर लिखते हैं आप कि हमको लॉर्ड टेनिसन का कबिता ‘ द मिल्लर्स डॉटर’ याद आ गया... या महादेवी जी का कबिता ‘रूपसि तेरा घन केशपाश’ … तुलना करना हमको पसंद नहीं... लेकिन रोक नहीं पाए!!
राजेन्द्र जी,
आपकी ग़ज़ल पढ़ी भी और सुनी भी ..और अब तक शब्दों में उलझी हुई हूँ कि तारीफ कैसे और क्या करूँ...मुझसे पहले यहाँ कितने ग़ज़लगो, कितने कद्रदां बहुत कुछ कह गए हैं...सीधी और सच्ची बात यह है कि आप लिखते कमाल हैं और गाते बौवाल हैं...बहुत ख़ुशी हुई आपको सुन कर...
शुक्रिया आपका...
देर से पहुंची आप की पोस्ट पर ,इसके लिए क्षमा .
आप की ग़ज़ल बहुत ही उम्दा लगी .
गायन तो लाजवाब है ही..यह ग़ज़ल बेहद बेहद अच्छी गाई है..आप की गहरी आवाज़ और ग़ज़ल की प्रस्तुति का अंदाज़ ,धुन ,सब बहुत मनमोहक है.
यक़ीनन आप की मंचीय प्रस्तुति में तो श्रोता झूम उठते होंगे.
rajsthani mein likhi gazal bhi padhi...bahut rumani..bahut khubsurat..!waah!
वाह जी, जितना पढ़ने में आनन्द आया, उतना ही सुनने में. बहुत खूबसूरती से पढ़ा है आपने उम्दा रचना को.
बहुत बधाई हो आपको!!
राजेंद्र जी ,रवायती ग़ज़ल के सारे तक़ाज़ों को पूरा करती है आप की --"ख़ुदा लिख दूं----------"
मुबारकबाद क़ुबूल करें
अभी तक आपकी ग़ज़ल और आपके स्वर के खुमार में हूँ .....तीसरी बार सुन चुकी हूँ .....कुछ कहते नहीं बन रहा .....पहले जी भर सुन लूँ .....!!
सुकूँ भी मिल रहा लिख कर परेशानी भी है कायम
इशारों में बजाहिर क्या, निहां क्या , क्या अयाँ लिख दूँ ...
.
मुहब्बत सुकूँ भी है और दर्दे दिल भी ....
शायद बरसों पहले आपने ये ग़ज़ल किसी हीर के लिए लिखी हो ....
तभी तो एक-एक लफ्ज़ प्रेम रस में डूबा सीधे दिल पर उतरता है .....
यूँ मैंने लिख दिया है दिल तुम्हारे नाम पहले ही
कहो तो धड़कने भी और सांसें ...और जां लिख दूँ
सुभानाल्लाह ......!!
मिटा डालूं लुगत से लफ्ज़ जो इंकार जैसे हैं
तुम्हारे हुक्म की तमिल में ,मैं हाँ ही हाँ लिख दूँ ......
मोहब्बत करनी तो कोई आपसे सीखे .....
और उस पर आपकी ये पुरदर्द आवाज़ ...
इक नशा है आपकी आवाज़ में ....
आप ने बहुत कमाल की गज़ले कही हैं
हर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..
मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.
मुझे अफसोस है मैं आप की गज़ल सुन नही पाया
क्योंकि आवाज़ नही आ रही थी .
हमे आप की अगली गज़ल का इंतेज़ार रहेगा .............
wah sir ...blog pahli baar dekha aur har gazal kamaal ki..! :)
पिछले दिनों प्लेयर में कुछ खामी के चलते सुन नहीं पाया था. आज सुनी यह ग़ज़ल.
भाई स्वर्णकार जी ,
आपरै ब्लाग माथै
म्हां जिस्सा 56 है
म्हारी
कांईँ बिसात है
साची बताऊं
आ सगळी
आपरी प्रीत री
करामात है!
*
कागद तो कोरा हुवै,कलम करै कमाल।
आखर मांडो प्रीत रा, फेर देखो धमाल॥
आप चलाई रीत आ,हेत प्रीत मनवार।
लोह कूटां म्हे पड्या,थे लूंठा सोनार॥
*
आप री ग़ज़लां,गीत अर कवितावां बांचतो रै'वूं।भोत दाय आवै।आप जोरदार अर शानदार लिख रै'या हो!बधायजै!
*
आप नै म्हैँ आपरी दोन्यूं नूंई पोथ्या भेँट कर तो दीवी -पछै?
*
मौजी आदमी हूं।छंद रै फंद मेँ फसणों नीँ चाऊं।
राजेंद्र जी,
दोनों ही रचनाएँ बेहतरीन हैं
आप का ह्र्दय से बहुत बहुत आभार ! इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें ! धन्यवाद !
शुक्रिया राजेंद्र जी .
आपकी प्रतिक्रिया .आपका ब्लॉग और ग़ज़लें ; वाह सा.....जैसे राजस्थान की ख़ूबसूरत झांकी हो
तारीफ़ का मीठा सा लहजा ,रंगीला ब्लॉग..दिलकश राजस्थानी भाषा;थाणे म्हारी घणी बधाई हो .
sach kaha tha aapne, aana vyarth nahi gaya,
khoobsurat likhte hain aap.. gazal goi ka lafza bahut pyaara hai aapka..
tasveerein chayan karne mein jara dhyaan dein :)
badhai.. likhte rahiye
rajendra ji bahut sundar rachna ke sath-sath aavaj bhi, bahut sundar
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
जब इतना दिल को छूने वाला लिखा जाएगा तो टिप्पणियों का खजाना तो यहीं मिलेगा। नाम के ही स्वर्ण नहीं, विचार भी आपके स्वर्ण हैं और खूब पसंद आए हैं।
हमारी मनपसंद बह्र में लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने....
सुनने के बाद तो जादू सा छा गया...दो बार सुन चुके हैं....आवाज़ में बड़ा गहरा असर है साहिब...
सलाम आपको...
ये दम निकले (इंटरनेट का) में उससे पेशतर अपना बयां लिख दूं...
राजेन्द्र जी....
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ...रास्ता आपने ही दिखाया...बहुत खूबसूरत ग़ज़लों से महरूम थी....शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आने का...जिसके ज़रिये यहाँ तक आ सकी...
एक एक ग़ज़ल प्रेम में डूबी हुई...सुकून देती हुई...आपकी विस्तृत बातों का इंतज़ार रहेगा
aap ki dono gazale padhi, bahut khubsurut aur sakun bhari hai. meri itni samaz nahi hai par aapake comments ke liye thanks...a lot
बहुत ही खूबसूरत भाव भरी रचना....पहली बार राजस्थानी में गज़ल का आनंद प्राप्त किया ....
धन्यवाद व शुभकामनाएं...
aapke blog par pahli bar aai hun par ab to lagta hai ki bar bar aanna padegga. aapki dono hi gajale maine padi
aur ve itane lazwaab tatha itanea adhik prabhav chhodane me samarth hain ki mai unke aage nih shabd ho gai hun .bas yahi kahungi ki hamesha aise hi khoobsurat rachnaye hame padane ko milati rahain.
pahle to mujhe aapko dhanyvaad dena chahiye ki aap mere blog par aaye
aur mere samarthak bane.iske liye ek bar punah dil se badhai sweekarin.
poonam
pehle to muaafi chaahta hu,, itni der aa na paaya...
aisi khoobsurat aur nayaab gazaleiN kahee haiN k taareef ke liye lafz km pad rahe haiN
muhobbat kee gazal,, muhobbat ki zabaaN ,, muhobbat bharaa
gulaabi-sa ehsaas ,, aur us par aapka muhobbat bharaa lehjaa....
aapne sach hi likhaa hai...
"kahaaN se lafz wo laaooN,, tumhaari daastaaN likh dooN.."
waah !!
mubarakbaad .
मिटा डालूं लुगत से लफ़्ज़ जो इन्कार जैसे हैं
तुम्हारे हुक्म की तामील में मैं, ’हां ही हां’ लिख दूं
नायाब शेर.......मुबारकबाद
Khubsurat ghazal.Pyaar aut samarpan-purush ka.
Aapki aawaz beech-beech me K.L.Sahgal sahab ki yaad dila jaati hai. Badhayi.
वाह वाह !the ultimate experience in romance ! रोमानियत का चरम अहसास ।
अब इसके आगे कोई क्या लिख सकता है ।
राजेन्द्र जी , शुक्रिया ब्लॉग पर आने का और एक आत्मीयता से भरी टिप्पणी देने का ।
हमारे लिए तो आप छुपे हुए थे हालाँकि आपको छुपा रुस्तम बिल्कुल भी नहीं कह सकते ।
वो तो भला हो हरकीरत जी का , जिन्होंने आपसे परिचय करा दिया और एक उत्कृष्ट ग़ज़लकार और गायक को पढने सुनने का अवसर मिला ।
राजेन्द्र जी , हम तो बस यूँ ही हंसी मजाक कर लेते हैं । इसलिए पहले ही बता देते हैं कि भाई हमें ग़ज़ल लिखने का कोई ज्ञान नहीं है , ताकि लोग पढ़कर हम पर न हंसें।
सच मानिये , रोमानियत पर ग़ज़ल लिखने का दुस्साहस करने का साहस नहीं हो रहा ।
लेकिन असफल ही सही , एक प्रयास करने का प्रयास ज़रूर रहेगा , आपके लिए । शुभकामनायें ।
भाई राजेंद्र जी,
आप हरकीरत कौर जी री गज़लां जोरदार गाई !हरकीरत जी लिखै भि सांतरो है !दोन्यां ने बधाई !जे गावण ज्यूं है तो म्हारली ई गा द्यो कोइ एक आध !
आप रो ब्लोग अब काफ़ी ठीक होग्यो !फोटूआं घर में देखणजोग लगाया करो !
एक बार फिर आई थी सुनने .....
तुम्हारे हुक्म की तामील में हाँ ही हाँ लिख दूँ .....
सुभानाल्लाह .....
कौन थी वो खुशनसीब.....!?!
तुम्हारे हुक्म की तमिल में ,मैं हाँ ही हाँ लिख दूँ ......
vah! bahut khuub..
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