वर्षा ॠतु अभी रहेगी , सावन अवश्य बीतने को है
प्रस्तुत हैं
वर्षा ॠतु से संबंधित दो रचनाएं
वर्षा ॠतु से संबंधित दो रचनाएं
तृप्त कामनाएं हैं
न वेदना है विरह की न यंत्रणाएं हैं
तुम्हें निहार लिया , तृप्त कामनाएं हैं
करूंगा प्राण निछावर तुम्हारी प्रीत में मैं
बताओ , प्रीत की जो और अर्हताएं हैं
हृदय में आग नहीं , यज्ञ प्रीत का है कोई
नहीं ये शे‘र मेरे ... मंत्र हैं , ऋचाएं हैं
मुखर है मौन , न संकेत मिल रहा कोई
न लक्षणा है , न अभिधा , न व्यंजनाएं हैं
गरज रहे हैं ये घन , मस्त ज्यों गयंद कोई
सुलग रहीं हर रोंएं में वासनाएं हैं
न जा रे मेघ छली ! आज तू बिना बरसे
खड़ी युगों की लिये‘ प्यास द्रुम - लताएं हैं
करेंगे तृप्त या घन श्याम लौट जाएंगे
व्यथित विकल असमंजस में गोपिकाएं हैं
हवा में इत्र की ये गंध घोलदी किसने
महक लुटाने लगी अब दिशा - दिशाएं हैं
गगन - धरा हैं प्रणय - मग्न ; विघ्न हो न कहीं
लगादीं पहरे में चपलाएं - क्षणप्रभाएं हैं
धरा पॅ चंद्रमुखी यौवनाएं झूम रहीं
गगन पॅ झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
छमाक छम छम राजेन्द्र झम झमा झम झम
निरत - मगन - सी ये बूंदनियां नचनियाएं हैं
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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इसी ग़ज़ल को मेरे स्वर में यहां सुनिए
मेरी बनाई धुन में नहीं ,जनाब वसीम बरेलवी की तरन्नुम में
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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मित्रों !
यह ग़ज़ल सुबीर संवाद सेवा द्वारा आयोजित
तरही मुशायरे " फ़लक पॅ झूम रही सांवली घटाएं हैं "
के लिए तैयार की थी ।
यहां ग़ज़ल मूल स्वरूप में ही है,
जबकि सुबीर पंकजजी ने अपनी समझ से ज़रा - सा संपादन किया है ।
यहां ग़ज़ल मूल स्वरूप में ही है,
जबकि सुबीर पंकजजी ने अपनी समझ से ज़रा - सा संपादन किया है ।
वहां भी इस रचना को अन्य शोअरा की ग़ज़लियात के साथ देखा जा सकता है ।
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अब राजस्थानी में वर्षा ॠतु संबंधी मेरे चार कवित्त प्रस्तुत हैं
लागी बिरखा री झड़ , तड़ड़ तड़ड़ तड़ ,
बींज री कड़ड़ कड़ड़ कड़ काळजो कंपावै है !
बादळिया भूरा - भूरा , बावळा हुया है पूरा ,
आंगणां सूं ले' कंगूरां … उधम मचावै है !
दाता री हुई है मै'र , आणंद री बैवै लैर ,
मुळकै सै गांव - श्हैर ; उछब मनावै है !
धण सूं न आगो हुवै , कोई न अभागो हुवै ,
कंत - प्री रो सागो हुवै , मेह झूम गावै है !
झूमै नाचै छोरा छोर्ऽयां , सैन्यां सूं रींझावै गोर्ऽयां ,
करै मनड़ां री चोर्ऽयां , रुत मनभावणी !
देश में नीं रैयो काळ , भर्ऽया बावड़्यां र ताळ ,
हींडा मंड्या डाळ - डाळ ; पून हरखावणी !
हिवड़ां हरख - हेत , सौरम रम्योड़ी रेत ,
हर्ऽया जड़ाजंत खेत , प्रकृति रींझावणी !
मुट्ठी - मुट्ठी सोनो मण , रमै राम कण - कण,
मोवै सूर री किरण , चांदणी सुहावणी !
मेळां रा निराळा ठाठ , रमझम बजारां हाट ,
मीठी छोटी छांट ... जाणै मोगरै री माळा है !
भोम आ लागै सुरग , मस्ती जागै रग - रग ,
तुरंग - कुरंग - खग झूमै मतवाळा है !
डेडरिया टरर टर , बायरियो हहर हर ,
रूंख चूवै झर - झर , छाक्या नद - नाळा है !
मोरिया टहूकै, मीठी कोयल्यां कुहूकै ;
इस्यै मौसम में चूकै जका … हीणै भाग वाळा है !
भोळो मल्हारां गावै , रास कान्हूड़ो रचावै ,
रति कम नैं रींझावै , चौमासै नैं रंग है !
रंगोळी मंडावै आभो , धरा पैरै नुंवो गाभो ,
करै दामणी दड़ाभो , मेघ कूटै चंग है !
धीर तोड़ै सींव , जीव - जीव करै पीव ,
रैवै रुत आ सदीव तद बिजोग्यां पासंग है !
आड़ंग रै अंग - अंग , उमंग - तरंग ,
रैवै निसंग राजिंद ऐड़ी किण री आसंग है !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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यहां एक बार अवश्य सुन कर देखें इस राजस्थानी रचना को
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
सच कहें , आपको मेरी बनाई यह धुन कैसी लगी ?
*******************************************पढ़ कर आप अवश्य ही रचना की आत्मा तक पहुंच पाएंगे
चौमासै नैं रंग है !
नतमस्तक और आभारी हैं वर्षा ॠतु के प्रति !
नतमस्तक और आभारी हैं वर्षा ॠतु के प्रति !
तड़तड़ाहट की ध्वनि के साथ बरखा की झड़ी लग गई है ।
आकाशीय बिजली की कड़कड़ाहट से कलेजा कंपायमान हो रहा है ।
धूम्रवर्णी बादल पूर्णतः पगला गए हैं ,
( तभी तो )
आंगन - आंगन से ले' कर कंगूरों - कंगूरों तक उपद्रव मचाते ' फिर रहे हैं ।
दयालु परमात्मा की अनुकंपा से हर्षोल्लास की लहर बह निकली है ।
( इसलिए )
सारे गांव - शहर हंसते - मुस्कुराते उत्सव मना रहे हैं ।
ऐसे में कोई अपनी भार्या से दूर न हो । कोई भी अभाग्यवान न रहे ।
हर प्रियतम - प्रिया का संगम - समागम हो । मेघ झूम - झूम कर यही गान कर रहे हैं ।
वर्षा आगमन पर बालक - बालिकाएं झूम रहे हैं , नाच रहे हैं ।
नवयौवनाएं इशारों से विमोहित कर रही हैं , हृदय हरण कर रही हैं ।
सच , यह ॠतु बहुत मनभावनी है ।
अब देश में अकाल नहीं रहा । सारी बावड़ियां और तालाब भर गए ।
डाली - डाली पर झूले पड़ गए । अब हवा भी प्रसन्नता प्रदायक है ।
हृदय - हृदय हर्ष और स्नेह से परिपूर्ण है । रेत में भी सुगंधि समा गई है ।
खेत - खेत हरियल फसलों से लकदक हैं । प्रकृति विमुग्ध कर रही है ।
धन धान्य की ऐसी प्रचुरता हो गई जैसे
हर मुट्ठी में मण भर ( चालीस किलोग्राम ) स्वर्ण आ गया हो ।
कण - कण में ईश्वर का साक्षात् हो रहा है ।
सूर्य - रश्मियां सम्मोहित कर रही हैं ।
चांदनी सुहानी प्रतीत होने लगी है ।
वर्षा ॠतु में मेलों के अपने निराले ठाठ बाट होते हैं ।
हाट - बाज़ारों में चहल-पहल हो जाती है ।
ऐसे में घर से बाहर , मेले-बाज़ार में नन्ही बूंदों की फुहार से सामना होने पर लगता है ,
जैसे मोगरे के नन्हे - सुगंधित फूलों की माला से स्वागत हो रहा है ।
धरती स्वर्ग लगने लगती है ।
अंग- अंग , नस - नस में मस्ती जाग्रत हो जाती है ।
मनुष्य ही क्या , सब छोटे - बड़े पशु - पक्षी … तुरंग , कुरंग , खग मतवाले हो'कर झूमने लगते हैं ।
दादुर ( मेंढक ) टर्र टर्र करने लगते हैं । हवा के झोंके हहराने लगते हैं ।
फल - फूल से लकदक वृक्षों से सम्पदा चू'ने - झरने लगती है ।
सब नदी - नाले छक जाते हैं । मयूर वृंद टहूकने लगते हैं । कोयल समूह मधुर स्वरों में कुहुकने लगते हैं ।
ऐसे मनोहारी मौसम में भी कोई इन सुखों से वंचित रहते हैं तो वे बहुत भाग्यविहीन हैं ।
वर्षा ॠतु में साक्षात् शिव भी मल्हारें गाते रहते हैं ।
रसज्ञ कृष्ण रास रचाते हैं । रति स्वयं कामदेव को रिंझाती है ।
ऐसे चौमासे को नमन है ! आभार है !
धन्य है यह ॠतु , जब अंबर अल्पना और रंगोली सजाता है ।
वसुंधरा नवीन वस्त्र - परिधान पहनती है ।
दामिनि दमक कर गर्जना करती है । मेघ चंग पर प्रहार करके जश्न मनाते हैं ।
ऐसे में धैर्य सीमा तोड़ने लगता है ।
प्राणिमात्र प्रिय - प्यास में प्रेमिल - प्रमुदित पाए जाते हैं ।
यही ॠतु सदैव सर्वदा रहे ,
तो वियोगीजन को वियोग के बराबर मात्रा में संयोग का संतुलन बनाने का सुअवसर मिले ।
वर्षा ॠतु , यहां तक कि उसके आगमन के संकेत मात्र के अंग - प्रत्यंग में भी उमंग - तरंग विद्यमान है ।
कवि राजेन्द्र स्वर्णकार कहता है कि ऐसे में कोई निस्पृह - निस्संग रह ले , किसकी ऐसी सामर्थ्य है ?
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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मेरे प्रति प्रदर्शित
आपके स्नेह सहयोग और विश्वास के लिए
हृदय से आभारी हूं ।
मेरी ब्लॉग मित्र मंडली में सम्मिलित हुए
नये मित्रों का हार्दिक स्वागत है !
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बरसात में स्वास्थ्य संभाले रखें !
शरीर के साथ मन - मस्तिष्क का भी स्वस्थ होना अत्यावश्यक है !
जुदाई ज़रूरी है
अगले मिलन की तैयारी में
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54 टिप्पणियां:
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
ग़ज़ल का एक एक शेर पूरी किताब ही है|कोई एक शेर कोट करना बाकी के साथ नाइंसाफ़ी होगी| हिंदी के काफियों का ऐसा सुन्दर प्रयोग एक उस्ताद शायर ही कर सकता है|
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
आपका ब्लॉग..साज सज्जा में गज़ब है भई.....और रचनाओं के मामले में भी स्तरीय .....हार्दिक बधाई... मेरा ब्लॉग भी देखना... 2007 से बना हुआ है...संभवत : बीकानेर संभाग का पहला ब्लॉग...
deendayalsharma.blogspot.com
ddji.blogspot.com
hansimajaak.blogspot.com
taabartoli.blogspot.com
taabardunia.blogspot.com
ddrajasthani.blogsopt.com
आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा! तस्वीर ने तो मन मोह लिया और साथ ही साथ आपके मधुर आवाज़ में ग़ज़ल सुनकर तो मन ख़ुशी से झूम उठा! उम्दा प्रस्तुती!
ACHCHHEE RACHNAAON KE LIYE MEREE
BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA
हम तो बस भीग गए इन बूदों की बारिश में और आनंद मिला नचनिया बूँदों का नृत्य देखकर..एक एक शेर सावन के रस से सराबोर और आप्की आवाज़ के माधुर्य ने मदिर समाँ बाँध दिया..
पहली ग़ज़ल तो वास्तव में तृप्त कर गई ।
बहुत सुन्दर गाया है आपने ।
चौमासे की रचना में तो जैसे पूरी जिंदगी समाई हुई है ।
बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत आनन्द आया राजेन्द्र भाई...आपके स्वर में सुनना तो हमेशा सुखकर होता है.
हिन्दी में भावानुवाद करके बहुत अच्छा किया..सुनें और समझ भी आये तो आनन्द बढ़ जाता है.
आभार.
बहुत सुंदर और बेचैन कर देने वाली रचना ।
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल और साथ में आपके स्वर ने तो जैसे चार चाँद लगा दिया...
सब कुछ बहुत सुन्दर...
गायन, लेखन, प्रेसेंटेशन ...
प्रभावशाली ..!
गजब की प्रस्तुति।
jitni khoobsurat gazal utna hi khoobsurat gaayiki... sawan me aag lag jaayegi!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
श्रद्धेय आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी ने मेल माध्यम से कहा -
sanjiv verma to me
show details 12:02 AM (3 minutes ago)
आत्मीय!
वन्दे मातरम.
दोनों रचनाओं का वाचन किया. पूरी तरह समझ में न आने पर भी राजस्थानी रचना मन को अधिक भाई. संलग्न अनुवाद भी यदि छांदस होता तो सरसता बढ़ जाती. हिन्दी की मुक्तिका में भाषिक प्रवाह और सरसता के लिये बोल-चाल के सामान्य शब्दों का प्रयोग कीजिये अन्यथा ऐसी रचनाएँ शुद्ध, लयबद्ध होने पर भी कम ही श्रोता/पाठक समझ पाते हैं. मुझे पदभार, लय, अर्थ्वात्ते, भाव, बिम्ब या रस की कसौटी पर रचना खरी लगी पर ऐसी रचनाओं को श्रोता/पाठक कम ही मिलता है.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर रचना और बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ! पूरी तरह से मन को अंदर तक भिगो गयी ! बहुत बहुत बधाई एवं आभार !
वाह! राजेंद्र जी, आज आपके ब्लॉग पर पहुंचकर तो धन्य हो गया। इस ग़ज़ल को यों तो मैं सुबीर के तरही में पढ़ चुका था मगर आज आपकी आवाज़ में सुनकर उसकी असली खूबसूरती से रूबरू हुआ। आपका चित्र भी आज देखा। आप स्वयं जितने खूबसूरत हैं माशा अल्ला उतनी ही खूबसूरत आपकी आवाज़ है। आपने ग़ज़ल को जाने-माने उर्दू शायर वसीम साहिब के तरन्नुम में गाया है लेकिन एकदम ईमानदारी से कहूं तो आपने तरन्नुम के मामले उनको बहुत पीछे छोड़ दिया है। दिल की गहराइयोंसे निकलीं बधाइयाँ स्वीकारें।
राजस्थानी रचना ने मन मोह लिया स्वर्णकार जी। भाव ही नहीं आपका स्वर भी जादू डाल रहा है। जिसने राजस्थान की मरुभूमि का रस लूटा है वह जानता है कि इस रचना में कैसी रसधार है।
आप बेहतरीन रचना हेतु बधाई के हकदार हैं।
मेरी तरफ से बधाई।
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल और साथ में आपके स्वर ने तो जैसे चार चाँद लगा दिया..
Achchhee rachanaayen Rajendr jee. par kabhee-kabhee sochata hoon ki kya aaj kee itanee kathin jindagee men koi bhee adami nishchint aur mukt hokar prakriti kaa aanand uthaane kee haalat men hai? agar rachana un pahaluo ko bhee dekhe to aur prabhaav paida ho sakega. mausam ke bheetar aur baahar jeevan kee kyaa sthiti hai, kavi ko vahaan bhee drishti daalanee hogee Rajendr. badhaai.
सुभाषजी,
ज़िंदगी की कठिनाइयों में जो कुछ खोता जा रहा है , कविता में तो मिले !
कुछ क्षण के लिए ही सही कला , संगीत , नृत्य जैसे साधन हमें हमारा अभीष्ट उपलब्ध तो कराए…
बहुत ही सुन्दर रचना.
आपका ब्लॉग बहुत सुन्दर है.
priya rajendra jee
saadar pranam !
kya kahu aap ke sanbharbh me . kya lekha kya gayan kya prastuti .... lajavab hai .
sadhuwad ,
saadar !
ati sundar
व्यक्तिगत अभिरुचि की कहूँ तो, हिन्दी का यह स्वरुप मुझे अतिशय प्रिय है...
वर्तमान समय में यह उपेक्षित भी है,अतः कहीं जब इसका इस रूप में उपयोग होते देखती हूँ तो जहाँ इसका सौंदर्य मुझे विभोर कर जाता है ,वहीँ उपयोगकर्ता के प्रति मन सहज ही कृतज्ञ भी हो जाता है....
और फिर यहाँ आपकी इस रचना में जिस प्रकार से यह व्यवहृत हुआ है और जो भाव माधुर्य है,कौन इस रस में आकंठ डूबने से बच सकता है...
इस सुन्दर कृति के लिए आपका कोटिशः आभार...
दूसरी कविता का सौंदर्य भी मनोहारी है...
इसी प्रकार सार्थक सुन्दर रचते रहें...शुभकामनाएं..
हे स्वर्णकार राजेन्द्र जी,
आपने हमारे लौह ह्रदय को स्वर्ण बना दिया.
मन मोह लिया 'सावन गीत' ने
कंठ काफी मधुर है तरन्नुम में गई गयी रचना को सुन पता लगता है कि आपका स्तर कितना ऊँचा है. मैं भींज गया आपकी इस स्वर-लहरी में.
राजस्थानी गीत का पहले कानों ने स्वाद लिया और बाद में अर्थों ने मन को बाँध दिया.
आपके गीत सांस्कृतिक विरासत में इजाफ़ा कर रहे हैं.
आपकी सृजनशीलता को प्रणाम.
इस ग़ज़ल का लुत्फ़ तो हम पंकज जी के ब्लॉग पर ले ही चुके हैं ... आज सुन कर भी मज़ा ले लिया दुबारा ....
लाजवाब ...
सुन्दर रचना...
रक्षा बंधन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं...
बहुत बढ़िया प्रस्तुतिकरण ...गज़ल भी और राजस्थानी गीत भी ..
इस सुन्दर ग़ज़ल का आनंद तो पहले ले चूका था. आज श्रोता की हैसियत से सुनने चला आया.
parhana aur sunana ...dono ka apna maza hai. lekin sach kahoo..? iss baar mujhe rajsthani rachnaye khoob jamee. aanand aa gaya...ghazab likhato ho bhai...
करेंगे त्रप्त या घनशयाम लौट जायेंगे,
व्यथित विकल असमजस में गोपिकायें हैं।
ळाजवाब शे"र , बेहतरीन ग़ज़ल। मेरे कपुंयटर सिस्टम में सुनने में कुछ समस्या है अत: आपकी मौसक़ी का मज़ा नहीं ले पाया इसका मुझे अभी दुख है। सलाम।
आदरणीय राजेंद्र जी,
सादर वन्दे,
एक बार फिर आपके ब्लॉग पर आना परम सार्थकता को प्राप्त हुआ ..
सुबीर जी के मुशायरे के बाद आपके स्वर में जब रचना सुनी तो आनंदातिरेक से विभोर हो उठा..
हिंदी के शब्दों का जिस कुशलता के साथ आपने प्रयोग किया है..वाकई दर्शनीय और श्रवणीय है..
बहुत खूब..
क्या कहें...?
हिन्दी वाले उर्दू वाले नुक्ताचीनी में रहे
पर ग़ज़ल वाला, ग़ज़ल में खो गया पीने के बाद...?
....?????
हमें थोड़ा बहुत ज्ञान हिंदी का...
और थोड़ा बहुत ग़ज़ल का है बस....
जितना एक बच्चे को होता है....बाकी हमें कुछ नहीं पता.....
वाह वाह वाह वाह वाह दोस्त वाह ..क्या कहने....कुछ नहीं कहना..वाह वाह वाह वाह...लगा सामने हो ...ठेठ दिल्लीया अंदाज में वाह यार वाह ....पिछले दो सप्ताहंत में बारिश ने मुझे पकड़ कर खूब धोया है.....जब जब बाहर निकला घर से ..बरखा रानी ने पकड़कर जमकर धोया है मुझे कल सुबह सुबह भी पकड़ पकड़ कर धौया...ऐसी बरसी कि छाता छोड़ धुलना पड़ा.....और आज आपकी अवाज का जादू ....मत पूछो भाया .मौसम का मजा तो ले ही रहा था.....राजस्थानी गीत में तो जैसे पूरी आत्मा ही बिना बताए उतर आई है और आपको खुद ही पता नहीं चला...
एक बार फिर .........वाह यार वाह
वाकई तृप्त हो गए....
aapka blog to bahut hi manmohak hai aur GAURTALAB bhi.....
bahut - bahut badhayi!! swarnkar ji!
सबसे पहले रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ...
अब बात करते हैं इस पोस्ट की...
गजब के चित्र और साथ में शब्दों का कमाल ...
यह तो आप से सीखना ही पड़ेगा...
वाह ! वाह!
जब तारीफ़ के लिए शब्द न मिलें....
वाह ! वाह!
घणी सोवणी लागी थारी सगळी रचनावां।
अर अवाज़ तो मन मोवणी है ई............
लाजवाब.....!!
khoobsoorat blog v rachnayen
bus gazal men vasnayen kafiyaa thoda atka vahaan bhi kamanayen hi rakhen beshak repeat hoga par aibe zum se to bachenge,aasha hai anytha n lenge
bebaki mera aib hai
शब्द, सुर, स्वर और संगीत का अद्भुत संजोग एक ही व्यक्ति में ?
पहले भी हरकीरत ' हीर ' के ब्लॉग पर आपका यह कमाल देख चुका हूँ .क्योंकि मैं भी इन विधाओं में ( हाँ अब स्वर नहीं सधते ) कुछ कोशिशें कर लेता हूँ ( और जानता हूँ की कितनी लगन ,मेहनत लगती है ) तो आप जैसी प्रतिभा का ईश्वरीय वरदान सम्मोहित करता है .भाव ,शब्द .स्वर सभी सधे हुए .
और उर्दू -हिन्दी जैसा अलग कुछ नहीं होता ,दोनों एक ही ज़ुबाने हैं ,और यह जुबान हिंदुस्तान की है और इसी जमीन से जन्मी है . कोई लिपि अलग हो तो भाषा अलग नहीं हो जाती .
आपके तत्सम शब्दों का ग़ज़ल में प्रयोग ,एक अलग पहचान भी है .
आप ऐसे ही हम सब को मोहते रहें ,यही प्रार्थना रहेगी .
मेरे ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी मन को छू गयी ,और सोने में सुगंध यह भी की आपने अपने शेरों से नवाज़ा उसे .
BHAI , AB KYA KAHE.. MERE TO SHABD HI KHO GAYE HAI KI MAI AAPKI NAZM KI TAREEF ME KUCH KAH SAKU.. BAS SALAAM KABUL KARE...
VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
करूंगा प्राण निछावर तुम्हारी प्रीत में मैं
बताओ , प्रीत की जो और अरहताएं हैं
ग़ज़ल की रूह तक पहुंचता हुआ
एक-एक शेर
पढने वालों को इस बात का
यक़ीन दिला रहा है क ग़ज़ल की
अज़मत और वक़ार
अभी क़ायम हैं,,, महफूज़ हैं ......
आपकी इस ग़ज़ल की खासियत यह है क
हर शेर सम्बंदित विषय को जी कर ,,,
महसूस कर के लिखा गया है
"मुखर है मौन, न संकेत मिल रहा है कोई
न लक्षणा है, न अभिधा, न व्यंजनाएं हैं "
भाषा का प्रयोग
बहुत ही एहतियात से किया गया है
जो आपकी काव्य-कुशलता को प्रमाणित करता है
लाजवाब...... तो कहना ही पडेगा !!
बधाई स्वीकारें .
आपके गीतों पर कमेन्ट करने की क्षमता नहीं है मेरी पर फिर भी
तृप्त कामनाएं हैं" बहुत बहुत पसंद आई .
सुनने बाद में आते हैं :)
बहुत शुक्रिया इज्जतअफजाई का :) .
वाकई...राजेन्द्र जी....’नहीं ये शे’र मेरे मंत्र हैं.... बहुत सुंदर...बढ़िया लिखा हुआ..बढ़िया पढ़ा आपनें.......अहसासों को पर लग गए... आपसे लिंक ले कर यहां आना सुखद रहा...
नियमित प्रयास करूंगा...शुभकामनाएं.
आनंद आ गया.
सुबीर जी के ब्लॉग पर भी मैं ने टिप्पणी की थी
हिंदी ग़ज़ल की पराकाष्ठा कही जा सकती है ये ग़ज़ल ,बहुत ख़ूबसूरती और सावधानी से शब्दों का बेहतरीन
चयन ,सच कहूं कुछ शब्दों के अर्थ मुझे नहीं मालूम थे मुझे शब्द्कोश का सहारा लेना पड़ा
कवि कहीं भी भाषा पर अपनी पकड़ को ढीला नहीं करता
सुंदर भावाभिव्यक्ति, सुंदर भाषा ,सुरीला गायन
बेहतरीन कविता का आनंद
हर शेर स्वयं में संपूर्ण और अपनी बात को समझाता हुआ
बहुत बढ़िया
बधाई हो!
aapne meri rachana per comment likh mujhe protsahit kiya. iske liye dhanyavad.
apka blog aur apki rachana bahut hi uchchstariy hai .../
बेहतरीन प्रस्तुति.
sawan hota hi itna sunder hota hai ............apne anuvad karke bahut aasan bana diya
You sing so well! Your composition in your voice. It was a deadly combination!
बहुत ही सुंदर प्रस्तुतिकरण है.......
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