* रक्षा बंधन का पवित्र पर्व अभी कुछ दिन पूर्व था *
* आज तीज का त्यौंहार है *
* श्री कृष्ण जन्माष्टमी आने को है *
* फिर ईद आ जाएगी *
*** और भी बहुत सारे पर्व और त्यौंहार हैं ***
सभी पर्वों , त्यौंहारों , उत्सवों के लिए
शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !!
आप सबके साथ बांट रहा हूं ।
अभी रमज़ान के दिन हैं !
भुलादे रंज़िशो - नफ़रत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
तू कर अल्लाह से उल्फ़त , अभी रमज़ान के दिन हैं !
इबादत कर ख़ुदा की , बंदगी बंदों की ; करले तू
रसूलल्लाह से निस्बत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
तरावीहो - इबादत , बंदगी , हम्दो - सना , रोज़े ,
दुआओं में निहां शफ़क़त , अभी रमज़ान के दिन हैं !
रसूलल्लाह ज़ुबां पर , रूह में अल्लाह ही अल्लाह
क़यामत तक न हो क़िल्लत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
रहमतो - बरकतें करता अता अल्लाह यूं हरदम
अभी है बारिशे - रहमत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
इबादत की मज़ूरी मग़फ़िरत है , और मसर्रत है
मिले सत्तर गुना उजरत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
भलाई, नेकियों, ईमान, सच, इंसानियत पर चल ,
मिले, ना फिर मिले मोहलत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
न अब तक बन सका इंसान गर तू आदमी हो'कर
है मौक़ा' बाद इक मुद्दत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
है किस मेयार का इंसां , मुसलमां किस तरह का है
अभी तो छोड़दे ग़ीबत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
तू वाबस्ता गुनाहों से हमेशा ही रहा ; अब तो
निभा कुछ क़ाइदा - सुन्नत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
मुआफ़ी मिल ही जाएगी , गुनाहों से तू कर तौबा
खुला दरवाज़ा - ए - जन्नत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
ख़ुदा की हर घड़ी ता'रीफ़ , शैतां की मज़म्मत कर
हो' ताज़ादम दिखा क़ुव्वत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
झुका ' राजेन्द्र सजदे में दुआ अल्लाह से करता
मिले सबको सुकूं - राहत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
यहां सुनें अभी रमज़ान के दिन हैं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
शब्दार्थ
निस्बत=संबंध/लगाव/सगाई , तरावीह=रमज़ान माह में रात को पढ़ी जाने वाली ख़ास नमाज़ ,
हम्द=ईश्वरीय स्तुति , सना=पै.मोहम्मद सा.की ता'रीफ़ , निहां=छुपी/गुप्त ,
शफ़क़त=बड़ों की ओर से छोटों पर दया/मेहरबानी ,मज़ूरी=मज़्दूरी/मेहनताना ,
मग़फ़िरत=मोक्ष , मसर्रत=आत्मिक प्रसन्नता , उजरत=पारिश्रमिक , मेयार=स्तर ,
ग़ीबत=चुगली/परनिंदा ,वाबस्ता=संबद्ध/लिप्त/जुड़ा हुआ , क़ाइदा-सुन्नत=इस्लामी नियम ,
दरवाज़ा-ए-जन्नत=स्वर्ग-द्वार , मज़म्मत=तिरस्कार/निंदा , क़ुव्वत=सामर्थ्य
ईश्वर - अल्लाह एक हैं !
चाहे अल्लाहू कहो , चाहे जय श्री राम !
प्यार फैलना चाहिए , जब लें रब का नाम !!
अपने मज़हब - धर्म पर , बेशक चल इंसान !
औरों के विश्वास का तू करना सम्मान !!
कहने को जग में भरे , मज़हब ला'तादाद !
धर्म ; सिर्फ़ इंसानियत है , यह रखना याद !!
मज़हब तो देता नहीं , नफ़रत का पैग़ाम !
शैतां आदम - भेष में करता है यह काम !!
इंसां के दिल में करे , ईश्वर - ख़ुदा निवास !
बंदे ! तू भी एक दिन , कर इसका एहसास !!
रब के घर होता नहीं , इंसानों में भेद !
नादां ! क्यूं रहते यहां , फ़िरक़ों में हो' क़ैद ?!
का'बा - काशी - क़ैद से , रब रहता आज़ाद !
रब से मिल ले , कर उसे सच्चे दिल से याद !!
मक्का - मथुरा कब जुदा ? समझ - समझ का फेर !
ईश्वर - अल्लाह एक हैं , फिर काहे का बैर ?!
सुन हिंदू ! सुन मुसलमां ! प्यार चलेगा साथ !
रब की ख़ातिर … छोड़िए , बैर अहं छल घात !!
भाईचारा दोस्ती , इंसानी जज़बात !
इनके दम पर दीजिए शैतानों को मात !!
भाईचारा दोस्ती , इंसानी जज़बात !
इनके दम पर दीजिए शैतानों को मात !!
अलग अलग हैं रास्ते , मगर ठिकाना एक !
चार दिनों की ज़िंदगी , जीना हो'कर नेक !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
और यहां सुनें ईश्वर - अल्लाह एक हैं !
65 टिप्पणियां:
क्या कहूँ .....?
आपकी ये सभी धर्मों के प्रति सदभावना देख पता चला कि रब्ब आप पर इतना मेहरबान क्यों है .....
आप मन से भी उतने ही निर्मल हैं जितने जुबां से .....!!
अभी सुनी नहीं फिर आती हूँ .....
कई बार सुन चुकी हूँ राजेंद्र जी .....आपकी ये दर्द भरी आवाज़ कहीं भीतर तक उतरती है .....
इंसान को इंसान बने रहने की आपकी ये बंदगी ...दुआ है हर दिल में उतरे...
इल्तजा है ...एक बार में एक ही रचना डाला करें ....ताकि उसे रस के साथ पिया जा सके .....उसके खुमार में उतरा जा सके ....
कुछ शब्द नहीं समझ पाई हूँ ...इल्तजा है सभी उर्दू के शब्दों का अर्थ भी लिख दें ....
मिले न मिले फिर मोहलत .....सच है .....
आपकी ये रचना भटकों को रास्ता दिखने वाली है .....
लाजवाब नहीं कहूँगी ....
उससे भी कहीं ऊपर ....
शायद हमारी पहुँच से बहुत ऊपर ....!!
आदरणीया हरकीरतजी
मां सरस्वती इतना दे रही है ,
लगभग 3000 छंदबद्ध रचनाएं गीत ग़ज़ल
मेरी लेखनी के माध्यम से सृजित हो चुके हैं ।
सोचता हूं , साथ क्या जाना है
जाने से पहले सरस्वती का प्रसाद जितना बांट सकूं …
… … …
अभी रमज़ान के दिन हैं ! रचना के शब्दार्थ लिख दिए हैं ।
ईश्वर - अल्लाह एक हैं ! रचना में शायद कोई कठिन शब्द नहीं है ।
आपके बहुमूल्य एवम् सार्थक सुझाव के लिए आभार !
स्नेह-सद्भाव बनाए रखें …
शुक्रिया राजेंद्र जी .....
ये 'गीबत' का भी लिख देते ....शायद निंदा या चुगली .....?
मैं अल्पबुद्धि लोहा मानता हूं आपका ।
… और , सबकी सुविधा के लिए बात कहने का आप का तरीका क़ाबिले-ता'रीफ़ है …
:)
बहुत सुन्दर प्रार्थना है ...आपके यह शब्द हर दिल तक पहुंचें .
न अब तक बन सका इंसान .....क्या खूबसूरत मिसरा कहा है...रमज़ान के पाक़ मौके पर बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...दोनों ग़ज़लें आपके फ़न का लोहा मनवा रही हैं...तारीफ़ के लिए सही अलफ़ाज़ कहाँ से लाऊं?
नीरज
अच्छी भावना से लिखी गई एक अच्छी ग़ज़ल लिखी है आपने.
आपका ब्लॉग देखकर सुकून मिला.
धार्मिक सद्भाव को इंगित करती आपकी ग़ज़ल पढ़कर दिली सुकून हासिल हुआ..
पवित्र रमजान सबको मुबारक हो...
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम ..
सबको सन्मति दे भगवान...आमीन..
AESEE RACHNAAYEN PADHKAR KIS INSAAN
KO CHAIN AUR SUKOON NAHIN MILEGA.
SEEDHE - SAADE LAFZON MEIN SEEDHE-
SAADE INSAANIYAT SE BHARE ZAZBAAT.
KYAA BAAT HAI? RACHNAAYEN ZORDAAR
HAIN.MEREE BADHAAE AUR SHUBH KAMNA
SWEEKAAR KIJIYE.
aapki kavitayen first time padh rahi hoon.really aapki rachnaon ne bahut prerit kiya .aap bahut achcha likhte ho.ramjan ki kavita ati uttam hai.i would like to read ur all creations.god bless you.keep writing.
बहुत ही खूबसूरत हैं रमज़ान जैसे पवित्र माह को समर्पित आपकी दोनों रचनाएं...साथ में उसे स्वरबद्ध करना भी आपमें अनूठी प्रतिभा है
सभी को रमादान बहुत बहुत मुबारक हो! सुन्दर भावना के साथ लिखी हुई आपकी ये कवितायेँ प्रशंग्सनीय है!
kya likh gaye ho bhai, iss baar. kamaal hai...har sher dil ko chhoo rahaa hai. amar rachanaaye hai dono.magar ghazal to kabiletareef hai. shabd nahee hai kahane ke liye. is tarah kee pratibha maine bahut kam dekhee hai. yahee se gale lagaa rahaa hoo. badhai..
बहुत ही सुंदर ! शब्द नहीं है इन रचनाओं की तारीफ के.......
साथ मासूम सी बच्ची का सुंदर सा चित्र मन को छू गया
नायाब तोहफा दिया है आपने ईद से पहले।
उम्दा पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें।
आपकी पोस्ट रविवार २९ -०८ -२०१० को चर्चा मंच पर है ....वहाँ आपका स्वागत है ..
http://charchamanch.blogspot.com/
भाई राजेंद्र, ये हयात उसी ने हम सभी इंसानों को सौंपी है, ये तिलस्मी कायनात भी उसी ने हमारी खिदमत में पेश की है. वह हमारा हमेशा खयाल रखता है पर हम अपनी जिन्दगी के फलसफे में उसके लिये कोई पन्ना रखते ही नहीं. यही हमारी सारी तकलीफात की अहम और वाजिब वजह है. चलिये ये बन्दा खुश हुआ, आप की शायरी में बन्दापरवर का जिक्र देखकर. अल्लाह आप पर रहमत फरमाये, आप की शायरी को और चमक दे, मेयार अता करे. शुक्रिया.
आज प्रथम बार आपके ब्लाग पर आना हुआ....हकीकत में कविता/गजल इत्यादि के बारे में हमारी समझ और जानकारी दोनों ही लगभग शून्य है. सो, इस प्रकार के ब्लागस से दूरी ही बनी रहती है.....लेकिन पूरी ईमानदारी से कहूँगा कि आपके ब्लाग पर आना किंचित भी व्यर्थ नहीं गया. अपितु आपकी रचनाएं पढकर तो मन आनन्दित हो उठा...दोनों ही रचनाएं दिल को छू गई..
आप तो शब्दों के साथ साथ स्वर के भी धनी हैं..
शुभकामनाऎँ!!!
क्या बात है!! बहुत खूब!! धार्मिक सदभावना को समर्पित दोनों रचनायें उत्कृष्ट हैं और फिर आपके स्वर में ढल गजब की बन पड़ी हैं. इसी तरह के प्रयासों की आज महती आवश्यक्ता है. आपके प्रयास को साधुवाद!!
बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
प्लेयर अभी दिखाई नहीं दे रहे सिर्फ एक काली पट्टी आ रही है ....सुन नहीं पाई अभी ...अभी तक उर्दू कभी समझ नहीं आई या कहू कोशिश भी नहीं कि समझने की...........
आज आपकी रचनाए शब्दार्थ सहित पढकर कोई दिक्कत नहीं आई समझने में ...दिल तक पहूची दिल की बात ........अपनी बेहतरीन रचनाए सबसे बांटने के लिए --आभार ! शुक्रिया ! धन्यवाद !
ईश्वर अल्लाह एक हैं ...
अशांति के माहौल में एक शान्तिप्रद कविता अच्छी लगी ..
उर्दू के कई नए शब्दों के अर्थ मिले ...
आभार !
आपकी रचनाओं में में आपके निश्छल और निर्मल ह्रदय का प्रतिबिम्ब झलकता है ! माँ सरस्वती की आप पर इसी तरह कृपा बनी रहे यही कामना है ! आपकी कलम के स्पर्श से हर भाव जीवंत हो उठता है ! बधाई !
स्वर्णिम शब्दों को ढाल के क्या खूबसूरत आभूषण तैयार किया है! स्वर्णकार जी . इंसानियत, मोहब्बत और नसीहत से लबरेज़ -सुन्दर रचना.और सोने पर सुहागा आपकी सुमधुर आवाज़.
-- mansoorali hashmi
Rajendra Bhai,
Dharmik bhavanaaon se otprot apki ghazal aur dohe donon rachanaaon ko padkar anand liya. Yah sahi hai ki maa saraswati ne aap par apaar kripa kar rakhi hai jiske karan apki kalam se itani sunder rachanaayen nishrat ho rahi hain. aur pathakon ko bhav vibhor kar rahin hain. maa ki kripa aap par hamesha bani rahe aur hamko aisi rachanaayen padane ko milati rahen. bahut bahut badhai.
Bhalaai nekiyon eemaan sach insaniyat par chal,
mile na fir mile mohalat abhi ramzan ke din hain.
Punah badhai.
bahut sundar post bhai rajendraji badhai
राजेन्द्र स्वर्णकार जी,
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आने और मेरी रचनाएँ पढने के लिए. आप खुद माशाल्लाह बहुत अच्छा लिखते हैं, ऊपर से आपकी आवाज़ भी ज़बरदस्त है. अभी समय कम है इसलिए यह दो गज़लें ही पढ़ पाया हूँ, समय मिलते ही फिरसे आकर सुकून से आपकी और रचनाएँ पढूंगा...
kya bbat hai rajendr jee
badhiya gazal ke liye aabhar
नायाब तोहफा दिया है आपने ईद से पहले।
राजेन्द्र जी
बहुत बढ़िया ,बहुत सुंदर
देर से आई हूं लेकिन दुरुस्त आई हूं
बहुत ख़ूब्सूरत कलाम ,आप की सच्ची और सभी धर्मों के लिये आदर की भावनाओं की मैं क़द्र करती हूं
अगर हम सब यूं ही सोचें तो अक्षर धाम, गोधरा ,बाबरी मस्जिद जैसे हादसे वजूद में ही न आएं
आप के कलाम से ये भी ज्ञात हुआ कि आप के ज्ञान का स्तर कितना ऊंचा है ,
इन कामयाब रचनाओं के लिये बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें
राजेन्द्र भाई, सिर्फ एक शब्द कहूँगा........बेमिसाल.
पवित्र मौके पर एक पवित्र पोस्ट.... बचपन में पढ़े गए कुछ हम्द याद आ गये.
ghazal thi ya aab e jamjam ..aur dohe ganga jal se....sab paak pavitra tha... anand hi anand.... aane wale sabhi tyoharon ki shuibhkamnayen aap ko ......aur is shreshth rachna ke liye badhai
kshma pararthi hun kam aur der se aane ke liye.......
aapke blog par aana adwitiye anubhav sa hai!
maa saraswati ka aashish yun hi bana rahe....
uttarottar likhte rahen... gaate rahen!sun'ne walon ko yun hi abhibhoot karte rahen!!!
dher sari subhkamnayen:)
regards,
बहुत सुंदर,
यहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम
Satya`s Blog
राजेंदर जी .. आप जैसे गुणी व्यक्ति के मुख से अपने लिए एक शब्द भी सुनना मतलब जैसे मेरा लिखना सफल हा गया हो .... आप का बहुत बहुत धन्यवाद ... जब ये ब्लॉग मैंने बनाया था तो बहुत शंकाएं थी मन में ... आज वो सब दूर हो गायें ... मैंने आपके बारे में 'उड़न तश्तरी ' में पढ़ा था ... बहुत ख़ुशी हुई आज आपसे सराहना पा कर ... धन्यवाद...
बहुत सुंदर ... सीधे दिल में उतार जाती है ....
आपके इस गीत और स्वर ने मुझे काफी झकझोरा है , सबसे पहले इसके लिए आपको ढेरों बधाईयाँ और शुभकामनाएं यह कि-
अल्लाह आप पर रहमत फरमाये, आप की शायरी को और चमक दे, मेयार अता करे ....
हुजुर सलाहों अलैहे वसल्लम, कहते हैं बांटो खुशियाँ औरों का लेके गम !
रमजान का महीना ये याद दिलाता है , इस्लामे-हर--सिपाही का ईमान व् करम !!
आपने अपनी शायरी से वही प्रेम और सौहार्द की वर्षा करने की कोशिश की है , आपको पुन: बधाईयाँ !
राजेन्द्र स्वर्णकार जी,
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आने और मेरी रचनाएँ पढने के लिए!आप मेरे शहर बीकानेर से है,सो कभी मिलने का प्रयास करूँगा!जितना अच्छा आप लिखते है उससे अच्छा आप गाते भी है..मेरी शुभकामनायें!!!
सुभानाल्लाह ................शायद इस एक लफ्ज़ ने ही सब कुछ कह दिया होगा ...........इस मुल्क को आप जैसी सोच के बाशिंदों को ही ज़रुरत है........अच्छी और नेक सोच के साथ ही आप प्रतिभासंपन्न व्यक्ति है ..........खुदा आपको सलामत रखे ...........जज़्बात .......पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका आभारी हूँ ..........और आपसे इल्तिजा है अगर आपको मेरा कोई ब्लॉग पसंद आया तो कृपया उसे फॉलो करके इस नाचीज़ का हौसला बढ़ाये...........एक बार फिर शुक्रिया ........
मेरे ब्लॉग हैं -
http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
http://mirzagalibatribute.blogspot.com/
http://khaleelzibran.blogspot.com/
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
अपकी रचनाओं मे माँ शारदे का पूर्ण आशीर्वाद नज़र आ रहा है। आवाज़ मे भी बहुत मिठास और रस है। आपको इन सभी त्यौहारों की शुभकामनायें।
wah.ekdam man ko achcha laga.
भुलादें रंजिशों नफरत अभी रमजान के दिन हैं।
करो अल्लाह से उल्फत अभी रमजान के दिन है।
--
बचे ग्यारह महीने को, नमाजों से नवाजा कर,
गुनाहों से बचा दामन अभी रमजान के दिन हैं।
--
बहुत सुन्दर गीत है और आपने इसको गाया भी बहुत तरन्नुम के साथ है।
--
राजेन्द्र स्वर्णकार जी आपका जवाब नही है!
प्रिय राजेन्द्र जी , सादर नमस्कार ,
भाई मेरे , आज आपने मुझे खरीद लिया है | इसलिए कि विश्व भाई चारा , प्रेम , इंसानियत ही मेरी कीमत है |
आपने यह कीमत अदा कर दी है | मैं आपके माध्यम से दुनिया के तमाम लोगों से प्रार्थना करता हूँ कि आएये एक दुसरे
पर व्यंगात्मक तीरों कि बोछार और नफरतों का त्याग कर प्रेम कि गंगा बहायें |
आपका सब का भाई
डॉ. ग़ुलाम मुर्तजा शरीफ
अमेरिका
bahut khubsurat.... aapki rachna ek masoom bachche ke dil ki tarah hai.... duniya ki kalikh se ekdam paak .. mere blog par likha vyang bhi 100% khara hai.. badhai...
jo dil me ho vo juba pe ho
jo juba pe ho vo hrfo pe ho
ise khte hai aatma ka sch jisse aapne ru b ru kraya .sukoon mila
mnn kr ke .
Rajendra ji, Abhi ramjaan ke din hain behad khoobsoorat rachna hai. mai is rachna ki dil se taareef karta hun.
राजेंद्र जी, रमजान का ज़िक्र करते हुए इससे खूबसूरत ग़ज़ल मैने तो कभी पढ़ी ही नही. ईश्वर-अल्लाह एक है भी लाजवाब रचना..कैसे तारीफ करूँ आपके रचनाओं की..एक और बढ़िया बात आपने जो शब्दार्थ प्रस्तुत किया वो अंदाज और भी बेहतरीन आसानी से सभी के समझ में आ जाए...आपके ब्लॉग पर आना और आपको पढ़ना एक सुखद अनुभूति प्रदान करता है..प्रणाम स्वीकारें..
kya baat hai ...........Rajendra ji
ye to hamari badkismati rahi ki itne din tak hum is khoobsurat blog se door rahe .
subaan-allah
kisi khas pankti ki tariif karun ye mumkin nahi ....bejod ,khayal or bejod shabd sankalan .
man harshit ho gaya
aapka blog tak aana or yun hausla_Afzaaii khaksaar kii khush_kismatii hai
aapne mere bikhre hue shabdon ko gazal kaha ye aapka badappan hai ,,,,darasal mujhe behar ki koi jaankari hai hi nahi or samajh bhi nahi aayi isliye kabhi ye nahi socha ki maine gazal likhi hai
aapka ek baar fir se tah-e dil se shukria .
रमज़ान पर एक धर्म निरपेक्ष रचना ।
इश्वर अल्लाह एक है । बस इंसानों ने इन्हें अलग अलग नाम दिए हैं ।
आज के युग में यह समझना और भी आवश्यक है ।
आपने बहुत अच्छा गया है ।
हरकीरत जी से सहमत हूँ । एक बार में एक ही रचना डाला करें । आपकी तो एक ही रचना काफी है । लेखन और गायकी में इतनी शक्तिशाली होती है ।
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति है. बधाई.
बस एक शब्द अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत अद्भुत...........ise laakhon laakh se aap guna kar lenge....!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
bahut achhi lagi dono rachna. shubhkaamnaayen.
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
आदरणीय कुमार ज़ाहिद साहब ने मेल द्वारा कहा -
kumar zahid to me
show details 3:36 PM (43 minutes ago)
Bhai rajendra Swarnkar sahab!
Namaskar,
Bahut arse bad net per aana hua hai aur email kholne ka maouqa mila hai, muaf karen..
Apke comments mujhe likhne ka housla dete hai.
Behad aqeedat aur sadgi se likhi aapki yeh ghazal slam ke qabil hai.Eisi ghazalon per comeents nahi kiye jate, sajde kiye jate hain...
Huzur adab!
In satron ko sar-ankh se laga liya hai..
इबादत की मज़ूरी मग़फ़िरत है , और मसर्रत है
मिले सत्तर गुना उज़रत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
झुका ' राजेन्द्र सजदे में दुआ अल्लाह से करता
मिले सबको सुकूं - राहत , अभी रमज़ान के दिन हैं !
Kumar Zahid
आदरणीय प्रतुल वशिष्ठ जी ने मेल द्वारा कहा -
Pratul Vasistha to me
show details Aug 29 (5 days ago)
"आपके स्वर में वह दम है जो धार्मिक कट्टरता को बेदम कर दे. आपके स्वर में ऎसी गूँज है जिसमें 'नमाज' अता करने का स्वाद है."
आपके इस संपर्क-व्यवहार से मन प्रसन्न ही होता है. परेशानी बिलकुल नहीं. कभी-कभी आपके निमंत्रण पर आना नहीं हो पाता, इसका क्षोभ रहता है. लेकिन समय मिलते ही संपर्क साधता भी हूँ. आप एक श्रेष्ठ साहित्यसेवी हैं. आपकी रचनाएँ संग्रहणीय होती हैं. मुझे वर्तमान में वास्तविक साहित्य-धर्मी कम लोग दिखते हैं. मेरी अपनी कसौटियाँ हैं. शायद आपकी भी होंगी. मेरी कसौटी पर आप एकदम खरे हैं. मुझे आपको पढ़ने में बेहद प्रसन्नता होती है. अतः भविष्य में अपनी रचनाओं को यूँ ही प्रेषित करने की कृपा करते रहें. आपका बहुत-बहुत आभारी रहूँगा.
अभी रमजान के दिन हैं....
बहुत प्यारी ग़ज़ल कही है भाई जी...मतला ही आपने बड़ा सुंदर लिया है...
हाँ, ऊपर से सातवें शे'र ...भलाई नेकी..वाले शे'र के अंत में अपने जो 'मिले' लगाया हुआ है उसे हटा लीजिये...खटकता है...
एक बार में एक ही रचना डाले तो शायद ज्यादा मुनासिब होगा...
देर से आने के लिए माफ़ी..
आभारी..
मनु..
अभी रमजान के दिन हैं....
बहुत प्यारी ग़ज़ल कही है भाई जी...मतला ही आपने बड़ा सुंदर लिया है...
हाँ, ऊपर से सातवें शे'र ...भलाई नेकी..वाले शे'र के अंत में अपने जो 'मिले' लगाया हुआ है उसे हटा लीजिये...खटकता है...
एक बार में एक ही रचना डाले तो शायद ज्यादा मुनासिब होगा...
देर से आने के लिए माफ़ी..
आभारी..
मनु..
bhi rmjn ke din hai rajendrji mene phle bhi ye gzl p hi se suni hi apke ghar par kya khane behd pkiza klm hai ye iske liye mubarkbad
nice efforts .
thanks.
Nice words.
Thanks again .
राजेंदर शस्वरंकर जी ..आपका ब्लॉग बेहद सुन्दर और सरल है समझने में..इंसानियत की भावनाओं से भरपूर.. जाति धर्म से जुड़ कर भी आपसी प्रेम को बढाने वाला.. रमजान पर आपकी ये इबादते बेहद मन को लुभा रही है.. और चित्र बच्चो के तथा वो गीत और आवाज मन को जगा देते है.. बहुत सुन्दर.. और आप मेरे ब्लॉग में आ कर अनुसरण किया और प्रथम .. सो मई आपकी आभारी हूँ तहे दिल से .. आपका आशीर्वाद मिलता रहे
आप मेरे ब्लॉग पर आये उसके लिए शुक्रिया, आप अच्छा लिखते हैं । आपसे मुलाक़ात होती रहेगी, माफ़ करियेगा जल्दी में हूँ ,
आज बहोत दिन के बाद नेट पर आने क मौक़ा मिला। आपकी कमेंट पढकर आपके ब्लोग तक पहोंची हुं। आपने मेरी पोस्ट पर कमेंट दिया है वो लाजवाब है। शुक्रिया। और आपका ब्लोग भी बहेतरीन है मुझे यहाँ बहोत कुछ मिल गया जो मैं पढना चाहती थी।
sabhi dharmo ke prti prem aur sadbhavna sabhi kuch hai apki rachna me....
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