"आज शस्वरं हो गया है एक वर्ष का"
पहले एक ग़ज़ल
करो यह जिस्म छलनी , रूह के अंदर तो मत मारो
मेरे बन कर , मेरे दुश्मन से ही मिल कर तो मत मारो
मेरी भी है कोई इज़्ज़त , भरम रहने दो कुछ मेरा
चलो , घर में मुझे मारो ; मुझे बाहर तो मत मारो
गला मेरा दबादो , घौंपदो ख़ंजर या सीने में
मेरी नाज़ुक रगें तुम रोज़ छू - छू'कर तो मत मारो
न मुंह से बेज़ुबां , ज़ुल्मो-सितम पर कुछ भी बोलेंगे
कभी मारा चलो … हर रोज़ या अक्सर तो मत मारो
यक़ीं इंसानियत से ही किसी का अब न उठ जाए
बनो रहज़न ; किसी को राहबर बन कर तो मत मारो
बहुत सुकरात ईसा और गांधी मार आए तुम
बचे गांधी के बाकी तीन ये बंदर तो मत मारो
हक़ीक़त का तो बिच्छू भी छुआ जाता नहीं तुमसे
ख़यालों के बड़े सौ सांप , दस अज़गर तो मत मारो
लगे अब चांद - तारे : दाल - रोटी ; क़ीमतें ऐसी
अरे ! मज़्लूम-मुफ़्लिस ढूंढ़ कर घर-घर तो मत मारो
इसे ता'लीम कह ' बच्चों को अब कितना बिगाड़ोगे
शरम भी आंख की , मन का भी इनका डर तो मत मारो
जिसे चाहो , उसे समझो ख़ुदा … सजदे करो , बेशक
खड़ा हो सामने इंसां , उसे ठोकर तो मत मारो
थमा मुश्किल से तूफ़ां , शांत हैं लहरें - किनारे अब
अभी ख़ामोश - सी इस झील में कंकर तो मत मारो
बुरा है या भला …जो भी है , कुछ पैग़ाम तो लाया
ख़ता राजेन्द्र क्या ? गर है वो नामावर , …तो मत मारो
राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
~ ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है ~
**10अप्रैल 2011 को शस्वरं की प्रथम वर्षगांठ है**
~ ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है ~
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अब तक कुल प्रविष्टियां 45
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सारा श्रेय है आप सबको
आपके स्नेह समर्थन सहयोग से ही है
शस्वरं की सार्थकता और सफलता
( प्रथम प्रविष्टि सुस्वागतम् में किए गए किसी वादे पर ,
अथवा आपकी किसी अपेक्षा पर खरा न उतरा हूं तो
साधिकार मुझे अपना मानते हुए मन की बात कहें )
हमेशा रहा हूं , रहूंगा हृदय से आभारी और कृतज्ञ
आशा ही नहीं , पूर्ण विश्वास है
84 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..हर पंक्ति दिल को छू जाती है.
ब्लॉग की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
उम्दा रचना। ब्लाग के एक वर्ष पुरे होने पर हार्दिक बधाई। मेरी रचना को आपने सराहा इससे बड़ा उपहार और क्या हो सकता है। आशा करता हुॅ आगे भी आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलता रहेगा। आभार।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति …………दिल को छूती है।
ब्लोग की पहली वर्षगांठ की हार्दिक बधाइयाँ।
बहुत सुंदर.....ब्लॉग की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई.....
पहले तो वर्षगांठ की बहुत बधाई ।
फिर एक वर्ष में अद्वितीय उपलब्धियों की हार्दिक बधाई ।
बाद की ग़ज़ल भी बहुत पसंद आई ।
लेकिन इस शुभ अवसर पर खंजर --क़त्ल जैसी बात समझ नहीं आई ।
खड़ा हो सामने इन्सां , उसे ठोकर तो मत मरो ।
उत्कर्ष्ट रचना ।
गजल का हर शेर इंसानियत से भरा है
बेहतरीन गजल
ब्लाग वर्षगाँठ की शुभकामनाये,
ये ब्लाग यूँ ही हँसता मुस्कुराते रहें
बहुत खुबसूरत अहसास और उनको सुन्दर शब्दों से सजाया, ब्लॉग की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ………ब्लोग की पहली वर्षगांठ की हार्दिक बधाइयाँ।
"करो यह जिस्म छलनी...........
................................................
कभी मारा चलो..हर रोज़ या अक्सर तो मत मारो!"
तारीफ में पूरी ग़ज़ल ही लिख देने की इक्षा है....
बस सुभान-अल्लाह ही कह सकती हूँ..!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। उपलब्धियों के लिये बधाई।
बहुत खूबसूरत गज़ल ....
ब्लॉग की वर्षगाँठ पर आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
आपके सुन्दर और बेहद शानदार ब्लॉग की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
प्रस्तुति में आपका निराला अंदाज झलक रहा है
...लाजवाब .
bahut achchi lagi.
वर्ष पूरा करने की बधाई व शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर ग़ज़ल।
बधाई हो . ग़ज़ल के बारे में कुछ बोलकर सूरज को दीपक दिखाने वाली बात होगी .
bahut sunder
aapko badhayiya
ब्लॉग की वर्षगांठ पर ढेरों शुभ कामनाएँ
ब्लॉग की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें...................
खूबसूरत, शानदार गज़ल ...............
ब्लॉग की वर्षगांठ पर बधाई!
बहुत सुकरात ईसा और गांधी मार आये तुम
बचे गांधी के बाकी तीन बन्दर तो मत मारो.
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है आपने राजेंद्र जी!....हर शेर सामयिक, मानीखेज, सोचने को विवश कर देने वाला...मेरी और से बहुत-बहुत बधाई!...
देवेंद्र गौतम
एक वर्ष में अद्वितीय उपलब्धियों की हार्दिक बधाई ................... आशा है आप इसी तरह उत्कृष्ट रचनाओं से हमें प्रेरणा देतें रहेंगे ................... आभार आपका
.
परम आदरणीय राजेन्द्र जी,
सादर नमस्ते.
ब्लॉग की पहली वर्षगाँठ पर ही कमेन्ट तो मारने देंगे न.
दिखा फुटबॉल का मैदां, खिलाड़ी पर लगा अंकुश.
रोकते खेलने से क्यों, बिना खेले ही अब हारो.
गज़ब की बात करते हो, रुला देते हो भावुक कर.
अधिक तारीफ़ को भी तुम कहते हो कि मत मारो.
मुझे भी खेल लेने दो, अपने घर में आकर के.
बंद करके कपाटों को, कमेन्ट कुंडा तो मत मारो.
.
ब्लॉग की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
इतनी शानदार और दमदार रचना के लिये बधाई.
बार-बार पढ़ा और बार-बार मुँह से केवल वाह ही निकल रहा है.
बहुत सुंदर ग़ज़ल...राजेंद्र जी!
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,
blog varshgaath per haardik badhaai.ek achchi ghazal bhi padhne ko mili.if you follow me you will know my new creation also,apeksha rakhti hoon itne achche writer ki pratikriya ki.
बहुत ही सुन्दर और सटीक प्रस्तुति|
ब्लॉग की वर्षगाँठ पर आपको बहुत बहुत बधाई|
ब्लॉग की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
खूबसूरत गज़ल के लिए कोटिश: बधाई !
ghar ke andar maro , meri bhi hai koi izzat , accha sher hai rajendra ji
भैया सादर नमस्कार, सर्वप्रथम ब्लॉग वर्ष गाँठ की बधाई.. यूँ आपके खुबसूरत, दर्शनीय और पठनीय ब्लॉग के अनगिनत वर्ष गाँठ आते रहे...
फिर सुन्दर अपील करती ग़ज़ल के लिए आभार...
सादर...
बहुत बहुत बधाई राजेन्द्र जी ,ख़ुदा आप को कामयाबी की बुलंदियां अता करे आमीन
यक़ीं इंसानियत से ही ............
बहुत उम्दा !
यूं तो ग़ज़ल ही अच्छी है लेकिन ये शेर ख़ास तौर पर पसंद आया
ब्लॉग की वर्ष ग्रंथि पर हार्दिक बधाई |गजल बहुत अच्छी लगी |
आशा
ब्लॉग की सालगिरह पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
गजल बहुत अच्छी लगी |
आशा
achhi gazal
थमा मुश्किल से तूफ़ां, शांत हैं लहरें, किनारे अब
अभी खामोश सी इस झील में कंकर त्क्स मत मारो
स्वर्णकार जी,
समाज के लिए बहुत बड़ा संदेश दिया है इस रचना में...बधाई
bohot bohot bohot hi sundar rachna.... i m speechless ... loved it . :)
आज एक वर्ष पूर्ण हो गया .....
और मुझे वो पहला दिन याद आ गया ...जब आपको पहली बार पढ़ा था ....सुना था ....
कुछ ''ओये होए ...'' जैसी ही टिपण्णी दी थी मैंने शायद ...
आपके ब्लॉग की दूसरी पोस्ट थी वो ....आज टिपण्णी खोजने गई तो वहाँ मेरी आपकी वैवाहिक वर्षगाँठ वाली टिपण्णी थी
वो वाली नहीं .....जबकि वैवाहिक वर्षगाँठ वाली आपकी पोस्ट तो बहुत बाद में आई थी ....
खैर आते -जाते कुछ मेरी पसंदीदा पंक्तियों पे नज़र पड़ गई ...तो उठा लाई .....
हमें बात दिल की बता दीजियेगा
न ज़ख्मों को ज्यादा हवा दीजिएगा
अजी इस तरह मत सजा दीजियेगा
मैं गीत निश्छल प्रीत के अविराम लिखूंगा
हर इक चरण में बस इक तुम्हारा नाम लिखूंगा
कहाँ लिख दूँ , यहाँ लिख दूँ जहाँ कह दो वहाँ लिख दूँ
खुदा लिख दूँ तुम्हें मैं , मालिक - ए-दोनों जहाँ लिख दूँ
यूँ मैंने लिख दिया ..........................................
छोड़ हमें राजेन्द्र अकेला
इतनी है अरदास रे जोगी .....
और आपका दिया तोहफ़ा भी याद आ गया ....
दर्द भरी सरगम हरकीरत
बदलेगा मौसम हरकीरत ....
इस एक वर्ष के सफ़र में आप बहुत आगे निकल गए राजेन्द्र जी ...बहुत .....
करो यह ज़िस्म छलनी , रूह के अन्दर तो मत मारो .....
भ्रम रहने दो कुछ मेरा ........
हर बार की तरह ....'बेमिसाल' ...'लाजवाब' .....
ढेरों शुभकामनाएं ......!!
अनन्त शुभकामनायें, ब्लॉग की सालगिरह पर.
भाई जी ब्लॉग जगत में एक वर्ष पूरा करने की ढेरों शुभकामनाएं और बधाईयाँ...जो मुकाम "शस्वरं" ने एक वर्ष में हासिल किया है उसे हासिल करने की तमन्ना में लोग सालों साल गुज़ार देते हैं...ये आपके विनम्र स्वभाव और आप पर माँ सरस्वती के आशीर्वाद के कारण ही है...इश्वर से प्रार्थना करता हूँ के इसी तरह बरसों बरस आपका ब्लॉग दिन दूनी रात चौगनी गति से तरक्की करे और लोगों के दिलों पर राज भी करे...
नीरज
भाई जी ब्लॉग जगत में एक वर्ष पूरा करने की ढेरों शुभकामनाएं और बधाईयाँ...जो मुकाम "शस्वरं" ने एक वर्ष में हासिल किया है उसे हासिल करने की तमन्ना में लोग सालों साल गुज़ार देते हैं...ये आपके विनम्र स्वभाव और आप पर माँ सरस्वती के आशीर्वाद के कारण ही है...इश्वर से प्रार्थना करता हूँ के इसी तरह बरसों बरस आपका ब्लॉग दिन दूनी रात चौगनी गति से तरक्की करे और लोगों के दिलों पर राज भी करे...
नीरज
बहुत सुंदर रचना.
एक वर्ष का होने पर हैप्पी बर्थ डे टू योर ब्यूटीफुल ब्लॉग. आपको बधाई एवं शुभकामनाएँ.
पहली मर्तबा सिर्फ बधाई दे कर निकल लिया था| आज दूसरी बार आया हूँ, पूरी रचना पढ़ी| रचना का केनवास काफी बड़ा है राजेन्द्र भाई| मानव सभ्यता से जुड़े अनेकानेक पहलुओं से हो कर गुजरती है आप की ये काव्य कृति| और अन्त में 'नामावर' वाली पंक्ति तो सारी की सारी रचना पर इक्कीस पड़ रही है|
एक बार फिर से बहुत बहुत शुभ कामनाएँ राजेन्द्र भाई| हमारी शुभ कामना है कि आपके इस ब्लॉग के जरिये हमें आप इसी प्रकार साहित्य सरिता में गोते लगवाते रहिएगा|
त्रिभुवन जननायक मर्यादा पुरुषोतम अखिल ब्रह्मांड चूडामणि श्री राघवेन्द्र सरकार
के जन्मदिन की हार्दिक बधाई हो !!
पार्टी में हम भी पहुँच गए.... :):)
देखिये :)
Dear Rajendra ji....
Saadar Namskaar!
I'm very happy to visit your blog at a time when you're completing your one year in this field. Congratulations on this occasion.
Your blog is really very beautiful. Wish you all the best.
I wish you with your family a very happy and prosperous RAMNAVMI.
आदरणीय राजेन्द्र जी ....
सादर अभिवादन!
"शस्वरं" के एक वर्ष पूरे होने पर आपको ढेरों बधाईयाँ १
आप की इस ग़ज़ल के बारे में क्या लिखूँ?
बस इतना कहूँगा कि आप लाज़वाब है.
इस बेहद उम्दा ग़ज़ल के लिए आपको बधाई
आपको भारतीय नववर्ष के साथ-२ राम नवमी की भी हार्दिक शुभकामनाएँ!
anant shubhkaamnaye blog ki saalgirah par ,jai shree ram ,ramnavmi ki badhai .
ब्लॉग की वर्षगाँठ पर आपको बधाई और शुभकामनायें...
आपके आकर्षक कमेंटस् ने हमेशा आकर्षित किया है। ब्लॉग में भी पहले आया हूँ। ब्लॉग भी उतना ही सुंदर सजीला है जितना कि आपके कमेंटस्।
यह गज़ल बहुत अच्छी है। कई शेर बेहद दमदार। संख्या एक दो कम हो जाती तो सभी शेर उच्चकोटी के ही रह जाते।
बहुत सुकरात...से लेकर आगे सभी शेर हद उम्दा हैं। शुरू के शेर इनकी तुलना में कमतर हैं।
कामयाब गज़ल के लिए 5 या 7 शेर ही काफी होते हैं। तो मुझे ऐसा लगता है कि एक ही आशय को बार-बार लिखने से वज़न कम होता है।
आशा है अन्यथा न लेंगे। एक पाठक की हैसियत से लिखा है आलोचना न समझें।
रामनवमी की शुभकामनाए
आदरणीय राजेन्द्र जी '
सप्रेम अभिवादन
पहले तो बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल पढवाने का साधुवाद स्वीकारें |
अब ढेर सारी हार्दिक शुभकामनायें ...आपकी सुन्दर और सफल ब्लाग यात्रा के लिए |
हम साथ-साथ आगे बढ़ते रहें , आपसी अपनत्व और प्रेम भाव ऐसे ही बना रहे |
ब्लोग की पहली वर्षगांठ की हार्दिक बधाइयाँ।
आपके ब्लॉग पर आना ही चाह रही थी कि आप आ गए .आपको बधाई ..बहुत सुंदर रचना.
....किसी को राहबर बनकर तो मत मारो....पूरा खैंच के मारा है,सीधा तीर छाती पर लगा है !
जिसे चाहो खुदा समझो उसे सजदे करो बेशक
खडा हो सामने इन्सां उसे ठोकर तो मत मारो
सब से पहले तो "शब्द स्वर रंग" का एक वर्ष पूर्ण
हो जाने पर ढेरों बधाई स्वीकारें
इस एक वर्ष की उपलब्धियां आपको
और प्रेरित करें ,, और आंदोलित करें
हम सभी पाठकों की यही कामना है
और आपकी ग़ज़ल पर टिप्पणी करना
तो सच में खुद अपना इम्तेहान लेने के बराबर ही है
हर शेर ला-जवाब ,,, हर ख़याल बे-मिसाल ...
वाह !!
NAZAR KAMZOR THA MERA.....
JO 'SWARN' PAHCHAN NA PAYA...
KE MISRE KYA PADHOON ADHURE...
JO 'GAZAL' AB HO CHUKE PURE....
BLOG KE PRATHM VARSHGANTH PAR 'APKO'
EVAM APKE SAMMANIT 'PATHKON' KO ASIM
SUBHKAMNAYEN...........
PRANAM.
राजेन्द्र जी आप का ब्लांग देखा सारी कविताए बहुत सुन्दर और दिल को छुने वाली हैं.
बहुत सुकरात ईसा और गांधी मार आय तुम
बचे गांधी के तीन बंदर तो मत मारो तुम
आप मेरे ब्लांग पर आये मुझे अच्छा लगा हौसला अफजाई के लिये आभारी हूं इतना ही कहुंगी
“शौक पुराना है शुरुवात नई है,
मंजिल अभी दूर रास्ता अंजाना है.”
धन्यवाद…..
ग़ज़ल बहुत उम्दा है....
बहुत सुन्दर... पहली वर्षगाँठ की हार्दिक बधाई. ऐसे ही लिखते रहें....!!!!!
rajendra bhai
aap likhte hi itna shandar hai ki tippni dete waqt sochne ko majboor ho jaati hunki itani behatreen gazal ke liye main kya shabd likhun.
nihshabd ho gain hun main
aapki gazal padhkar.
lagta hai jaise chand ke taaron sa
haqikat ko samne laye taraashh kar.
bahut hi man ko chhoo lene wali gazal aur sashwaram ke ek varshh pure hone ki khushhi me aapko hardik badhai
poonam
प्रथम वर्ष गांठ पूरी करने की शत शत हार्दिक बधाई.
आपकी अनुपम गजल ने तो दिल ही चुरा लिया.
आपने मेरे ब्लॉग पर दर्शन दिए ,इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका .
उम्दा रचना। ब्लाग के एक वर्ष पुरे होने पर हार्दिक बधाई।
राजेन्द्र जी ,
शानदार प्रथम वर्ष का समापन ,उससे भी अधिक ज्योतिर्मय स्वरों के द्वार खोल जाए !
एक वर्ष में ही महत् उपलब्धियों के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं।
प्रस्तुत ग़ज़ल आपकी संवेदनशीलता को रेखांकित करती है।
खडा हो सामने इंसा, उसे ठोकर तो मत मारो.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ब्लाग वर्षगांठ पर आपको अनेकानेक बधाईयां व शुभकामनाएँ...
आदरणीय राजेद्रजी
ब्लोग की पहली वर्षगांठ की हार्दिक बधाइयाँ।
बहुत सच कहा है आपने अगर सामने हो इंसान उसे रस्ते का पत्थर समझ कर ठोकर तो ना मारो
बस इतनी सी .....
देर आए दुरुस्त आए... आना सार्थक हुआ... शुभकामनाएँ
आदरणीय राजेन्द्र जी नमस्ते.
पहले तो वर्षगांठ की बहुत बधाई ।
फिर एक वर्ष में अद्वितीय उपलब्धियों की हार्दिक बधाई
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है आपने
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
आदरणीय राजेंद्र जी ,
"खड़ा हो सामने इन्सां,उसे ठोकर तो मत मारो."
समय ही कुछ ऐसा हो गया है . सूरज है मगर अँधेरा है की अब जाता नहीं ,सुन लेते हैं मन की ,कोई समझाता नहीं.लेकिन आपकी गजल एक सन्देश बनकर परिवर्तन का संकेत तो दे ही रही है.
हार्दिक शुभकामनाएं.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति |
ब्लॉग की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |
blog ke varshganth pe badhai...aur rachna ka to jabab hi nahi...sir aap ke utkrisht rachnaakar ho...!
ब्लॉग की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ब्लॉग की प्रथम वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें...
आदरणीय राजेन्द्र जी,
बहुत खूब ग़ज़ल है.खास कर...
जिसे चाहो,उसे समझो खुदा,सजदे करो बेशक,
खडा हो सामने इंसां,उसे ठोकर तो मत मारो.
आपकी कलम की रवानगी,क्या कहिये.मदहोश हो जाता है दिल.
बस यूं ही कहूँगा कुछ.
उस आबशार पे,
उस रस की धार पे,
सूखे पत्ते सा बहा करता हूँ,
हाँ ,मैं उन को पढ़ा करता हूँ.
एक साल की क्या बात है,जनाब,
बहुत साल हैं बाकी.मुबारकबाद.
हीर जी पर इक नज़्म कही है मैंने,
आपकी नज़र का इंतज़ार है.
देरी के लिए मुआफी.
लेट के हम लतीफ़ हैं यारो,
अक्ल भी वक़्त पर नहीं आती.
बहुत प्यारी रचना ! शुभकामनायें स्वीकार करें !
बहुत ही अच्छी ग़जल ब्लाग के वार्षिकोत्सव पर। सफलता पूर्वक ब्लाग का एक वर्ष पूरा करने के लिए स्वर्णकार जी आपको हार्दिक बधाई और भावी सफलता के लिए शुभकानाएँ।
आदरणीय राजेन्द्र जी
ब्लोग की पहली वर्षगांठ की हार्दिक बधाइयाँ
सारी कविताए बहुत सुन्दर और दिल को छुने वाली है....
शुभकामनायें...
bahut hi achhi avum sochpoorna rachna hai, padhna man avum dimag ko bhaya.
nimn panktiyon mein kuchh sanshay hai-
हकीकत का तो बिच्छू भी छुआ जाता नहीं तुमसे
ख्यालों के बड़े सौ सांप, दस अजगर तो मत मारो...
aapki har doosri pankti jaise is band mein- जिसे चाहो,उसे समझो खुदा,सजदे करो बेशक,
खडा हो सामने इंसां,उसे ठोकर तो मत मारो.
har doosri pankti mein achhai ya insaan ko seedhe, thokar na mare jane ki baat hai par uparlikhit band mein apwad kyu? सांप ya अजगर? meri alp budhdhi ko samajh nahi aaya, kripya samjha dein.
Aasha hai ise Aap anyatha nahi lenge, mein sachmuch jigyasu hun.
sdhanyawad.
shubhkamnayen
mitr ,
ek varsh poora hone par aapko bahdyi
aur itni sudnar rachna par bhi aapko badhayi ...
aap bahut acha likhte hai sir
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
क्या खूब लिखी है यह ग़ज़ल आपने.. ज़िन्दगी के कई पहलुओं को छूती हुई..
प्रथम वर्षगाँठ की ढेरों शुभकामनाएं..
आभार
namaskar ji
blog par kafi dino se nahi aa paya mafi chahata hoon
आदरणीय राजेंद्र जी, प्रणाम!
सचमुच बहुत विलम्ब हो गया, पर शस्वर की सालगिरह पर मेरी शुभकामनाये स्वीकार करें ...
बहुत ही गंभीर और आग्रहपूर्ण गजल रची है आपने....बधाई हो..
"जिसे चाहो उसे समझो खुदा ...सज़दे करो बेशक ..
खड़ा हो सामने इंसां उसे ठोकर तो मत मारो"
सहिष्णुता और सौहार्द के साथ 'नर में ईश' का सन्देश देती ये पंक्तिया मेरी पसंदीदा रहीं ....
राजेंद्र जी,
सबसे पहले तो आपको आपके ब्लॉग के वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और भविष्य के लिए अनेक शुभकामनायें ...
इस पोस्ट में दिए गए ग़ज़ल के बारे में मैं क्या कहूँ ... आपके किसी भी रचना के बारे में कुछ कहने की अपनी औकात कहाँ .... बस पढते हुए मुंह से वाह निकलता रहा ...धन्यवाद !
राजेंद्र जी, राजस्थान की रंग बिरंगे प्रकुर्ती और तीखेपन को आपने अपने ब्लॉग में संजो रखा है... खूबसूरती से.... जैसे चटक रंग चुनरी और चटक रंग की पगड़ी ....... भाई वाह ..
मरने मारने की बात क्यों कर रहे हैं साहेब.
ब्लॉग की सालगिरह पर हमारी और से भी शुभकामनाएं प्रेषित हों....
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