वंदे मातरम्
देश के हालात जो हैं , सामने हैं ।
देश के हालात जो हैं , सामने हैं ।
भ्रष्ट सत्ता की मनमानियां और अवाम की मजबूरियां भी सामने हैं ।
बेबसी के साथ छटपटाता एक और विवश घायल स्वतंत्रता दिवस आ गया ।
विकट असमंजस की स्थिति है – हम रोएं या जश्न मनाएं ?!
खुले फिरते गुनहगारों के लश्कर मुल्क में मेरे
बड़े बदरंग दिखते हैं मनाज़िर मुल्क में मेरे
हुए हालात अब क़ाबू से बाहर मुल्क में मेरे
चहकती बुलबुलें हरसू महकती थी हसीं कलियां
वहीं पसरे हैं कांटे और अज़गर मुल्क में मेरे
बहा करती कभी , घी - दूध की नदियां , वहीं पर अब
नहीं पानी तलक सबको मयस्सर मुल्क में मेरे
बदन पर पैरहन बाकी न आंखों में हया बाकी
कभी शर्मो - हया होती थी ज़ेवर मुल्क में मेरे
सियासतदां नशे में हैं या फ़िर आवाम सोई है
खुले फिरते गुनहगारों के लश्कर मुल्क में मेरे
न सुनते , देखते ना बोलते ; हालात जो भी हों
बचे हैं शेष गांधीजी के बंदर मुल्क में मेरे
हुआ राजेन्द्र सच सच बोलने पर क़त्ल यां हर दिन
ज़ुबां वालों , रहो ख़ामोश , डर कर मुल्क में मेरे
- राजेन्द्र स्वर्णकार
निजी परेशानियां भी जारी हैं
इस बीच
शस्वरं के समर्थनदाता साथियों की संख्या 300 का आंकड़ा पार कर गई है । और टिप्पणियों की संख्या 3000 से ऊपर हो गई है ।
शस्वरं का शुभारंभ
10 अप्रैल 2010 को हुआ था ।
अर्थात कुल लेखा-जोखा
17 माह
55 प्रविष्टियां
308 समर्थक
3030 टिप्पणियां
21200 विजिट
अगर यह उपलब्धि और सेलिब्रेट करने के एक छोटे-से अवसर जैसा है तो इसका श्रेय आपको है ।
मैं सभी टिप्पणीकर्ता समर्थक साथियों के प्रति
कृतज्ञ हूं !
आभारी हूं !!
नतमस्तक हूं !!!
आप सबको
स्वाधीनता दिवस
और
और
हार्दिक शुभकामनाएं मंगलकामनाएं
76 टिप्पणियां:
मित्र बधाईयाँ रक्षा-बंधन की , व तारीफ-ए-काबिल ओजश्वी रचना की ......./बहुत ही मुखर सृजन......../
एक एक पंक्ति देश के (बद) हालात को बयाँ करती हुई है ।
किसी सुना रहे हैं गाकर , हाल वतन का
अंधे , गूंगे , बहरे बसते हैं , मुल्क में मेरे ।
फिर भी दिल में रहती है, एक आस हमेशा
फिर पैदा होंगे भरत सुभाष , मुल्क में मेरे ।
कम समय में इतनी ऊँचाई को प्राप्त करना आपकी क्लास को दर्शाती है भाई जी ।
बहुत बहुत बधाई इस आयाम को हासिल करने के लिए ।
त्यौहारों के इस मौसम में आपके सुख समृद्धि की मंगल कामना करता हूँ ।
गज़ल का हर अशआर देश की स्थिति के सही हालात बता रहा है ...
अच्छी प्रस्तुति
बधाई हो इस स्वर्णकाल पर जब आप एक मूल के पत्थर को छूकर आगे बढ रहे हैं ॥
सबसे पहले तो सादर नमन आज पहली बार आया आपके ब्लॉग पर अत्यंत खुशी हुई और दुःख भी की पहले क्यूँ नहीं आ पाया:)
जितना कहूँगा उतना कम है आपने जिस तरहां से अपने शब्दों देश के हालातों का वर्णन बहुत अच्छे से किया है...
कई जिस्म और एक आह!!!
हरेक शेर दिल का दर्द और आज के हालात बहुत गहराई से चित्रित करता है..हमेशा की तरह एक लाज़वाब प्रस्तुति..आभार
आज इसी मुखरता की आवश्यकता है...
सच कहें तो यह ग़ज़ल नहीं आईना है...
रक्षा बंधन की और आज़ादी के वर्षगाँठ की सादर बधाई...
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
स्वतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना... बहुत ओजस्वी गीत....
सोचने को विवश करती आपकी पंक्तियाँ।
आप यूँ ही प्रगति करते रहें ....ओजपूर्ण भावों से ओतप्रोत रचना .....आपका आभार
khubsurat gazal....
आदरणीया श्री राजेन्द्र स्वर्णकारजी
बहुत ही सुंदर रचना
आज का आगरा ,भारतीय नारी,हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल , ब्लॉग की ख़बरें, और एक्टिवे लाइफ ब्लॉग की तरफ से रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
सवाई सिंह राजपुरोहित आगरा
आप सब ब्लॉगर भाई बहनों को रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई / शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर से सजाई है पोस्ट और आपका ब्लॉग इसी तरह दिन दूना रात चौगुना बढ़ता रहे,
किसी सुना रहे हैं गाकर , हाल वतन का
अंधे , गूंगे , बहरे बसते हैं , मुल्क में मेरे ।
ऑंखें खोलेन में सक्षम पोस्ट आपका आभार ....
बहुत सुन्दर, अद्यतन हालातों को दर्शाती रचना, भाव और शिल्प दोनों से सम्पन्न...बधाई
Rajendra ji aapne daur ki behayai ko bahut khoobsoorti se tarasha hai.
sundar ghazal ke liye meri shubhkamnayen.
बहुत सटीक रचना.....
अनेक शुभकामनाएँ.
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना -आपको भी स्वाधीनता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं!
देश के हालात ब्याँ करती ग़ज़ल. ऐसे हालात के बाद साहिर की ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं-
माना है हाल पतला लेकिन लहू है गाढ़ा
फौलाद का बना है हर नौजवाँ हमारा
दिल में उतर गईं एक एक पंक्तियाँ, और यह सत्यता के साथ इंगित करती हुई पंक्ति बंदर की, अब गांधी के बंदरों को हथियार उठाना होगा ?
देश की वर्तमान स्थिति की चिंता ग़ज़ल में झलक रही है।
ओजस्वी रचना.....
रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
अत्यंत भावपूर्ण और मार्मिक गज़ल. ब्लॉगजगत में नए कीर्तिमान स्थापित करने के लिए बहुत बधाइयाँ. यह सिलसिला अनवरत चलता रहे.
रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें.
कोई किस कारण से तो कोई किस कारण से
बढे जा रहे हैं गूंगे, अंधे और बहरे मुल्क में मेरे.
हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
from Ahd ahmadhs007@hotmail.com
to Rajendra Swarnkar
date Sun, Aug 14, 2011 at 11:19 AM
hi namasty
Mai aap ki side par aakar puri rachna padh chuka hu wakayi bahut achchi rachna hai.
Sent from Samsung mobile
-भावपूर्ण और प्रभावी कविता.
...............
-ब्लॉग्गिंग में सफलता के लिए बधाई.
................
****तीज पर्व और स्वाधीनता दिवस की बहुत- बहुत शुभकामनाएं!****
शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई !
Itni saari uplabhdiyon ki liye badhaai ...
Aur gazal to bemisal hai ... desh ke haalaat ka sahi chitran ....
डा.रमा द्विवेदी
आपकी हर रचना की तरह यह ग़ज़ल भी बहुत-बहुत ख़ूबसूरत और सच को बयां करती है ...साधुवाद ..
स्वतंत्रता दिवस की अनंत शुभकामनाएं
देश की वास्तविक परिस्थतियाँ बयाँ करती हुई आपकी पंक्तियाँ,विचारणीय हैं।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
आज 14 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________
शुभकामनायें...
desh ki dardnaak halat ka dardnak chitran is se jyada hamari badkismati aur kya hogi.
बहुत ही बेहतरीन एवं सार्थक गज़ल है राजेन्द्र भाई ! हर शेर देश की बदहाली का खालिस दस्तावेज़ है और पाठकों के सचेत करने के लिये पूरी तरह से सक्षम है ! स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें !
राजेन्द्र जी नमस्कार.आप अभिव्यंजना में आए इसके लिए धन्यवाद..
आप के ब्लांग में आके बहुत सुन्दर-सुन्दर गजल पढ़ने को मिलती है अच्छा लगता है..आज भी आप की ये गजल शानदार और जानदार है...
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
बेहतरीन गजल।
राजेद्र भाई, इस ग़ज़ल ने भी कमल कर दिया. हर शेर ज़िंदा...बात करता हुआ. देश के हालत को समझाना हो तो यह ग़ज़ल पढ़ी जा सकती है. बहाई, और शुभकामनाये, इस विकलांग किसमके समय के लिए.
सही कहा है, फिर भी आजादी की सालगिरह की शुभकामनाएँ !
देश के हालात पर सार्थक रचना ,बधाई
aaj ke din ke liye halaton ko bayan karatii man ko chhu lene wali rachana. dhanyawad.
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 15-08-2011 को चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर भी होगी। सूचनार्थ
सार्थक रचना ; बधाई !
आपको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं .
जय हिंद !
सुन्दर रचना ; बधाई !
आपको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं .
जय हिंद !
राजेंद्र स्वर्णकार जी ,आप ने राष्ट्र के जिस दर्द को उकेरा है .स्वाधीनता की यह सच्ची बधाई है ,क्यों कि इसमें राष्ट्र की चिंता जो है .आप को रक्षा बंधन ,और स्वाधीनता दिवस की हार्दिक बधाई .
सार्थक रचना...सुन्दर प्रस्तुति.....
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
17 mahino mein 308 followers.... aap badhaai ke paatr hain.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
स्वतन्त्रता की 65वीं वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
मुल्क के हालात ग़ज़ल के ज़रिये बहुत खूबसूरती से बयान किये हैं...बधाई स्वीकार करें राजेन्द्र जी...
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
राजेंद्र जी एक दम सटीक बात...जब हम लोग ही गाँधी जी तीन बन्दर हो गए हैं तो देश का ये हाल तो होना ही है...इस सशक्त रचना के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें...
नीरज
इस गजल की जितनी तारीफ की जाए कम है। सहेजकर रखने लायक है यह गजल।
//चहकती बुलबुलें हरसू महकती थी हसीं कलियां
वहीं पसरे हैं कांटे और अज़गर मुल्क में मेरे//
वाह वाह वाह, क्या कमाल का मतला कहा है राजेन्द्र जी ! सादगी से कही हुई बात कितना असर रखती है, उसका एक बहुत खूबसूरत उदहारण है यह मतला ! बिल्कुल सत्य कहा आपने, अमन शांति का पर्याय कहे जाने वाले भारत में अब हर तरफ नफरत-ओ-दहशत के माहौल का पाया जाना वाकई दिल को कचोटता है !
//बहा करती कभी , घी - दूध की नदियां , वहीं पर अब
नहीं पानी तलक सबको मयस्सर मुल्क में मेरे //
एक हुब्बल-वतन कलम से निकला हुआ दर्द है इस शेअर में - बहुत आला !
//बदन पर पैरहन बाकी न आंखों में हया बाकी
कभी शर्मो - हया होती थी ज़ेवर मुल्क में मेरे //
बहुत कमाल का संदेश दिया है इस शेअर के माध्यम से ! संदेश के साथ साथ एक सच्चे हिन्दुस्तानी दे दिल का दर्द भी है जो दिन-ब-दिन गिरती समाजी क़द्रों-कीमतों को देखकर बड़ी शिद्दत से उभरा है !
//सियासतदां नशे में हैं या फ़िर आवाम सोई है
खुले फिरते गुनहगारों के लश्कर मुल्क में मेरे//
बहुत खूब, दरअसल बदकिस्मती से दोनों ही बातें सच हैं ! अगर सत्ता वालों को थोड़ा होश और आम जनता को थोड़ा जोश आ जाए तो मुल्क से गलत अनासिर का नाम-ओ-निशान ही मिट जाए !
//न सुनते , देखते ना बोलते ; हालात जो भी हो
बचे हैं शेष गांधीजी के बंदर मुल्क में मेरे//
यह हासिल-ए-ग़ज़ल शेअर है राजेन्द्र जी ! मुल्क-ओ-कौम की बेहिसी को किस क़दर अलफ़ाज़ दिया हैं - वाह वाह वाह !
//हुआ राजेन्द्र सच सच बोलने पर क़त्ल यां हर दिन
ज़ुबां वालों , रहो ख़ामोश , डर कर मुल्क में मेरे //
आहा हा हा हा ! क्या ज़ोरदार मकता कहा है ! खासकर पहले मिसरे में लफ्ज़ "यां" देखकर दिल खुश हो गया ! इतने पुरनूर, पुरअसर और पुरकशिश आशार के लिए दिल की गहराईओं से दाद पेश कर रहा हूँ, क़ुबूल फरमाएं !
सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ भावपूर्ण गजल लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत प्यारी गजल और ब्लॉग डेकोरेशन |
आशा
Every dark cloud has a silver lining too ! It is a good gazal and hopefully make people aware about your worries about India.
Every dark cloud has a silver lining too ! It is a good gazal and hopefully make people aware about your worries about India.
फिर वह भी दिन था आ पहुंचा
इतिहास गर्व जिस पर करता
हम क्यूँ नेतृत्व करे जग का
इतिहास प्रमाण दिया करता
रणघोष ध्वनि जब शांत हुई
इक शासक कलिंग विजेता था
चहुँओर पताका फहराती
जिसका वह स्वयं प्रणेता था
rachna kafi khoobsurat lagi kuchh baate to vicharniye hai ,swatanrata divas ki haardik badhai aapko .
सुन्दर, भावपूर्ण रचना. हर शेर लाजवाब है. देश के प्रति आपके दर्द आपके जज़्बात में मुझे भी दिल से शरीक माने.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाए.
-मंसूर अली हाश्मी एवं परिवार
//बहा करती कभी , घी - दूध की नदियां , वहीं पर अब
नहीं पानी तलक सबको मयस्सर मुल्क में मेरे /
bahut sunder kaha aapne desh ki sachchi sthiti batati hai
sarthak prastuti
savtantrata divas ki bahut bahut shubhkamnayen
rachana
सटीक सार्थक और सशक्त प्रस्तुति. आभार. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
सादर,
डोरोथी.
bahut achchhi rachna, shubhkaamnaayen.
आजाद भारत का सच्चा चित्रण किया है
बहुत सार्थक रचना .इन अँधे,गूँगे ,बहरों के मारे ही यह हाल हुआ है !
राजेन्द्र जी ,
इसी प्रकार झकझोरते रहिये जन-चेतना को .
बहुत-बहुत शुभकामनायें !
बहुत सही मुद्दे और समस्याएं आप ने ग़ज़ल के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाई हैं
हमेशा की तरह बहुत ख़ूब!! हर पंक्ति आप की देशभक्ति की परिचायक है
आप को भी स्वाधीनता दिवस बहुत बहुत मुबारक हो
राजेन्द्र जी ,
वाकई एक और लड़ाई की जरूरत आन पड़ी हैं.
ब्लॉग पर टिप्पड़ी हेतु धन्यवाद.
गुरू छा गए.पोस्ट अच्छा लगा.आपका व्लॉग भी अति सुंदर है।
बेहतरीन गज़ल। इस मौके पर इससे अच्छा क्या लिखा जा सकता है भला..वाह!
आप सुंदर भी लिखते हैं अच्छा भी, सच भी लिखते हैं सार्थक भी। कई बार सिर्फ देख कर और पढ़कर लौट जाता हूँ ।
हंसी बेशर्म है उनकी, करम बेशर्म है उनका
वतन को बेचते हैं वो, धरम बेशर्म है उनका
खुदी में डूब कर खुद को, खुदा ही मान बैठे जो
बता औकात उन्हें उनकी कि नहीं अब वक्त है उनका
भाई राजेन्द्र जी ! उन्हें उनकी औकात बताने का काम बखूबी किया है आपने इस रचना में. ये सिलसिला चलता रहे यूं ही ....बस यही कामना है .....
hardik shubhkamnayen..
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.
१७ -माह
५५- प्रविष्ठियाँ
३०८- समर्थक
३०३०- टिप्पणियाँ ....
बधाई ......
अब हम जैसे छोटे लोगों की टिप्पणियों की जरुरत कहाँ है आपको .....
हर शब्द भावमय करता हुआ ...प्रत्येक पंक्ति ओज से परिपूर्ण सार्थक अभिव्यक्ति के लिये बहुत-बहुत बधाई के साथ शुभकामनाएं ।
.
# हीर जी
… आपके सामने मैं बड़ा कभी हो सकता हूं क्या ??
आपकी टिप्पणियों की किसे ज़रूरत नहीं … मेरी तो बिसात ही क्या है ?
…और आपकी टिप्पणियां तो किसी भी पोस्ट के लिए तोहफ़े से कम नहीं ।
कोई बेवक़ूफ़ ही किसी हसीं तोहफ़े की ख़्वाहिश नहीं रखता होगा … :)
अब ग़ज़ल पर भी कुछ कहें तो मज़दूर को मज़दूरी मिले ………
राजेन्द्र भाई ! यह मज़दूरी हीर जी की तरफ से क़ुबूल फरमाएं -
"बदन पर पैरहन बाकी न आँखों में हया बाकी
कभी शर्मो हया होती थी जेवर मुल्क में मेरे"
ओय होय ! क्या मौजूं तीर चलाया है आपने :)) इस पर तो वारे जाऊं .....:))
waah....shaandar ghazal.....sachmuch
chand din me rukhsati ka dikh raha aasaar hai...
जन लोकपाल के पहले चरण की सफलता पर बधाई.
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