मित्रों ! अंतर्जाल पर बेशर्म रचनाचोर-चोरनियों की सक्रियता से
आप भी परेशान होंगे शायद , …मैं तो हूं !
ब्लॉग्स पर भी रचनाचोर मिले हैं लेकिन …
फेसबुक पर तो हद से ज़्यादा !
कुछ रचनाचोर चुन
चुन कर शब्द उठाते हैं , कुछ काव्य पंक्तियों में मामूली हेर फेर करके औरों की
रचना अपनी बनाते हैं , और कुछ बेहद ढीठ बेशर्म रचनाचोर ज्यों की त्यों
पूरी रचना
ही अपने नाम से पोस्ट करते पाए जाते हैं …
भले ही ग़ालिब , बशीर बद्र , दुष्यंत , निराला, दिनकर या मुझ जैसे अदना रचनाकार की
ग़ज़लें हों – गीत हों , धूमिल , दीप्ति नवल , अमृता प्रीतम या हरकीरत हीर
की कविताएं हों …
काश ! उन सबने
सरस्वती की शरण में जाने का प्रयास किया होता…
ख़ैर ! आपकी पारखी दृष्टि के लिए प्रस्तुत है मेरी एक ग़ज़ल
उंगली उठे ऐसा मुझे किरदार मत देना
मुझे तू ख़ार ही देना , गुलों के हार मत देना
मगर उंगली उठे ऐसा मुझे किरदार मत देना
तेरे दर का सवाली हूं, निशानी दे कोई मुझको
कराहत दे मुझे बेशक मुहब्बत प्यार मत देना
हुनर-ओ-हौसलों से मैं करूंगा तय सफ़र तनहा
बरगलादें मुझे हर मोड़ पर… वो यार मत देना
मैं आजिज़ आ गया हूं देख सुन हालात दुनिया के
मेहरबानी… मेरे हाथों में अब अख़बार मत देना
जो कासिद की तसल्ली की बिना पर ख़त तुम्हें भेजा
वो आतिश के हवाले कर कहीं सरकार मत देना
जहां को बांट' फ़िरकों में, दिलों
को चाक जो करते
पयंबर पीर ऐसे औलिया अवतार मत देना
जिएं दाना ओ पानी पर मेरे , घर में रहें मेरे
यक़ीं के जो न हों क़ाबिल वो हद ग़द्दार मत देना
वतन को बेचदे राजेन्द्र जो अपनी सियासत में
वो ख़िदमतगार मत देना, अलमबरदार मत देना
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
व्यस्तताएं
इतनी बढ़ी हुई हैं कि पहली बार एक महीने से भी अधिक समय बीतने के बाद पोस्ट बदल
पाया हूं ।
आशा है, अब नियमित मुलाकातें होती रहेंगी।
हार्दिक
मंगलकामनाएं !
35 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर निस्वार्थ भाव ! बधाई
बेच दे ......खिदमतगार ,अलमबरदार ....... बहुत खूब ..शानदार रचना स्वर्णकार जी,/सृजन तभी व्यतिक्रमित होते हैं जब हम दिग्भ्रमित होते हैं / पर जब हम" एकला चलो.." की राह के मुसाफिर हैं तो परवाह कैसी ? परजीवी का अपना वजूद नहीं होता ,तो उसकी क्यों चिंता करनी .बैशाखियों पर जिंदगी ढोई जाती है चलती नहीं .......मुकम्मल आगाज ...... शुक्रिया जी /
hamesha ki tarah behad umda,or prerak rachna,jo savshresth lekhan ko sarthak karti hai,or hum jaise naye logo ka marg darshan kari hai.
hamesha ki tarah behad umda,or prerak rachna,jo savshresth lekhan ko sarthak karti hai,or hum jaise naye logo ka marg darshan kari hai.
काश कोई हमारी भी चुराता !
लेकिन चुराने के लिए चुराने लायक सामग्री भी तो होनी चाहिए .
वैसे क्रेडिट देते हुए चुराया जाए तो क्या ऑब्जेक्शन हो सकता है .
अभी तो इतना ही . रचना बाद में पढेंगे . आखिर आपने भी तो इतना इंतजार कराया है :)
बहुत खूबसूरत गजल ...
मैं आजिज़ आ गया हूं देख सुन हालात दुनिया के
मेहरबानी… मेरे हाथों में अब अख़बार मत देना
क्या बात काही है ॥बहुत खूब
बहुत सुन्दर , शब्दों का चयन अति सुन्दर.
बहुत सुन्दर शब्द, सुन्दर ग़ज़ल... आभार
बहुत ही सुन्दर निस्वार्थ भाव,बधाई.............
बहुत,बेहतरीन अच्छी गजल ,सुंदर सटीक निस्वार्थ भाव की रचना के लिए बधाई,.....
राजेन्द्र जी,..देर से ही सही आये तो आप ....
NEW POST...काव्यांजलि...आज के नेता...
NEW POST...फुहार...हुस्न की बात...
बेहतरीन प्रस्तुति,सुन्दर ग़ज़ल....
सुंदर शब्दों से सजी शानदार रचना|
बेहद खूबसूरत गज़ल...
जगह जगह आपका नाम देखती आई...ब्लॉग आज देख पायी..ना जाने क्यूँ???
खैर देर आये दुरुस्त आये...अब से नियमित पढूंगी...आप नियमित लिखते रहें..
:-)
सादर.
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दाद तो कुबूल करनी ही होगी .....
waah bahut hi achchi rachna rajendra jee.
क्या बात है. बेहद उम्दा
सादर.
सुन्दर पंक्तियाँ, रचनाचोरों को कम से कम रचनाकारों का नाम लिखने की सद्बुद्धि मिले..
क्या सुन्दर ग़ज़ल है आदरणीय राजेन्द्र भईया...
सादर बधाई.
रचना चोरों को सद्बुद्धि आये...
वो अपनी करनी पछ्ताएं..
अच्छा लगा एक अंतराल के बाद आपको पढ़ कर गुण कर .rhaa सवाल साहितियिक चोरी का -तो ज़नाब -
बान हारे की बान न जाए ,कुत्ता मूते टांग उठाय .आखिर बेचारे बेचारियाँ चौर्य उन्माद से ग्रस्त होंगें .
सार्थक रचना..
उम्दा गज़ल |
टिप्स हिंदी में
आपने अपनी प्रस्तुति को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है । सदा सृजनरत रहें ।मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
गज़ब की गज़ल....
जादू है,नशा है....
पता नहीं...
बस कुछ है जो अपना सा लगता है....
मगर...
"हुनर-ओ-हौसलों से मैं करूंगा तय सफ़र तनहा
बरगलादें मुझे हर मोड़ पर…वो यार मत देना"
या खुदा.....रहम कर....!!
बहुत खूब लिखा है,बेहद खूबसूरत गज़ल. इस गज़ल के लिए आभार
Active Life Blog
सुंदर शब्दों से सजी रचना|
in choron se to sara blog jagat pareshan hai.....kher kya kare...aapki ye rachna mujhe bahut acchi lagi...niswarth bhaav lie...
बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस सुंदर रचना के लिए बधाई,...
राजेन्द्र जी,मेरे पोस्ट में आकर मुझे अपने सुंदर विचारों से नवाजा,बहुत२ आभार,..
इसी तरह स्नेह बनाए रखे....
MY NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
bahut umda ghazal har ashaar kabile daad hai......vaah.god bless.
bahut umda ghazal likhi hai har ashaar kabiledaad hai.god bless.
lajabaab ghazal.
Bahut Khubsurat Gajal
बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचना.
हार्दिक बधाई..
मैं आजिज़ आ गया हूं देख सुन हालात दुनिया के
मेहरबानी… मेरे हाथों में अब अख़बार मत देना
kamal ka hai ek ek shabd .
puri gazal hi bahut uttam hai sada ki tarah ..........
rachana
wah kya baat hai ..exceelent
makte ka to javab nahi ..laajavab
bandhai swikaren
जब आप सुवर्ण/स्वर्णकार होंगे तो कवि कामी और चोर तो पीछे पड़ेंगे ही राजेन्द्र जी
कहा भी है किसी ने "सुबरन को ढूँढत फ़िरत कवि कामी अरु चोर"।
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