ज़िंदगी दर्द का
फ़साना है
हर घड़ी सांस को
गंवाना है
जीते रहना है , मरते जाना है
ख़ुद को खोना है , ख़ुद को पाना है
चांद-तारे सजा’ तसव्वुर में ,
तपते सहरा में
चलते जाना है
जलते शोलों के
दरमियां जा’कर ,
बर्फ के टुकड़े
ढूंढ़ लाना है
तय है अंज़ाम हर
तमन्ना का ;
गोया पत्थर पॅ
गुल खिलाना है
बुत के आगे है ग़म
बयां करना ,
और… पत्थर से दिल
लगाना है
दर्द बांटे किसी
का क्या कोई ,
दर्द साये से भी
छुपाना है
ले’ के तूफ़ान ख़ुद ही
कश्ती पर
बीच मंझधार हमको जाना है
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright
by : Rajendra Swarnkar
आशा है,
आपको पसंद आई होगी ।
नज़्मनुमा ग़ज़ल
अभी मेरे ब्लॉग के साथ बहुत समस्याएं पेश आ रही हैं…
अपडेट में पता नहीं क्यों सब जगह सात माह पुरानी पोस्ट आती रही,
खुलने में भी दिक्कत है , कमेंट भी अपने आप मिट रहे हैं
40 टिप्पणियां:
गजब अभिव्यक्ति।
वाह!!!
दर्द बांटे किसी का क्या कोई
दर्द साये से भी छुपाना है...
बहुत खूब सर..
हमें तो पोस्ट दिखी भी..पसंद भी आई....कमेंट भी कर पाए...
:-)
सादर
बहुत सुंदर ..
सुन्दर प्रस्तुति.....excellent.
बुत के आगे है ग़म बयां करना
और पत्थर से दिल लगाना है ।
वाह वाह !
सींचकर कतरे कतरे से खूने दिल के
पत्थर पे सहरा में गुल खिलाना है ।
नए संकल्पों के लिए शुभकामनायें भाई जी ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
वाह!...बहुत खूब!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 19-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत खूब..।
दर्द बांटे किसी का क्या कोई
दर्द साये से भी छुपाना है...
बहुत खूब!!!
bahut sundar rachna ....bahut sundar aapke swar me .sarthak post .aabhar ...मिशन लन्दन ओलंपिक हॉकी गोल्ड
वाह राजेन्द्र जी बढ़िया
क्या बात है जी / बर्फ के टुकड़े....../ अभिव्यक्ति की अप्रतिम प्रस्तुती शुभकामनये जी /
ज़िंदगी बहुत ही सूक्ष्मता से analysis किया है आप ने ,,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!!
ख़ास तौर पर ---
जल्ते शोलोन के दरमियाँ......
दर्द बाँटे किसी का ........
ये दोनों अश’आर तो ज़िंदगी का निचोड़ पेश करते हैं
बहुत बहुत बधाई !!!
वाह ...बहुत ही अनुपम भाव संयोजन लिए हुए उत्कृष्ट लेखन .आभार
लाज़वाब प्रस्तुति...हरेक शेर बहुत उम्दा...आभार
nice
वाह बहुत खूबसूरत गज़ल |
जीवन की सच्चाई को उतारा है हर शेर में राजेन्द्र जी ... सुभान अल्ला ... बधाई इस गज़ल पे ...
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
भाई जी...आप लाजवाब हैं...आपकी जय हो...कमाल की ग़ज़ल...बेहतरीन लेखन ..बधाई स्वीकारें
नीरज
wah kya baat hai !
kya baat hai ! bahut khoob !
bahut khoob !
बहुत खूबसूरत गज़ल,
bahut khoob :)
बुत के आगे है गम बयां करना,
और पथ्तर से दिल लगाना है ।
क्या बात है स्वर्णकार जी । जिंदगी का दर्द कितनी खूबसूरती से बयां किया है ।
गोया पत्थर में गुल खिलाना है !!
सुन्दर भाव ! आभार .
achhi ghazal hai rajendr ji
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें....आपके लिए बस इतना ही कहूँगा "जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो..."
नीरज
but ke aage gam bayaan karna
aur.. patthar se dil lagaana hai!
bahut khoob!
बहुत सुंदर...बेहतरीन.
बेहतरीन ग़ज़ल !
shabdon aur shvar ka sunder sangam
kamal
ek ek line lajavab
rachana
सबको अपनी अपनी सलीब को खुद ही ढोना है ...
सुन्दर रचना!
ग़ज़ल बहुत बढ़िया है. धन्यवाद!
behtareen ghazal...daad sweekaaren.
माननीय राजेंद्र जी
सादर अभिवादन
अभी-अभी आपकी नई नज्म/गजल देखी...
ज़िंदगी दर्द का फ़साना है
हर घड़ी सांस को गंवाना है
जीते रहना है , मरते जाना है
ख़ुद को खोना है , ख़ुद को पाना है
बहुत सुंदर और जिंदगी की वास्तविकता को अभिव्यक्त करती पंक्तियाँ...बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं!!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
bahut sunder
bahut sunder
एक उम्दा गज़ल
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