आज एक नज़्म प्रस्तुत है
कुछ बड़ी है… कृपया, धैर्य से पढ़लें!
इसमें आपके भी मन के भाव संभव हैं
गुज़रे वक़्त
के ख़त
(यादों का क़ासिद = यादों का डाकिया)
इक रात को यादों के क़ासिद ने कुंडा दिल का खटकाया !
नींद उचट गई दिल की, इतनी रात गए ये
कौन आया ?!
तनहाई की बाहों से निकल' अंगड़ाई ले' कर अलसाया !
तनहाई की बाहों से निकल' अंगड़ाई ले' कर अलसाया !
और… आंखें मलते' सुस्तक़दम, दरवाज़ा खोलने दिल आया !
क्या देखा ; गुज़रे वक़्त के ख़त
देहरी में धंसे पड़े हैं !
और… कई हादसे, कई हसीं पल, साथ ही साथ खड़े हैं !
***
जब पहला ख़त ले' पढ़ने
बैठा; हाय रे, जी भर आया !
सर माथा लाड़ से अम्मा-बाबा ने चूमा, सहलाया !
जा पहुंचा सपनों के गांव में, जहां रात-दिन न्यारे थे !
जा पहुंचा सपनों के गांव में, जहां रात-दिन न्यारे थे !
मां-बाबा का सर पर साया, मुट्ठी में
चांद-सितारे थे !
चहकता बचपन, महकता आंगन,
हंसता-खेलता जीवन था !
क्या ख़ुशहाली थी ! वो घर इक जन्नत था, हसीं चमन था !
न दिल पर कोई बोझ न ग़म; हर मौसम बड़ा सुहाना था !
न दिल पर कोई बोझ न ग़म; हर मौसम बड़ा सुहाना था !
ख़ुशियां ही ख़ुशियां दामन में ! सपनों-सा हसीं ज़माना था !
***
पर, … धीरे-धीरे
जाने क्यों वह ऊपरवाला रूठ गया ?
बांध रखा था प्यार से जिसने, वो धागा ही
टूट गया !
ज्यों आंधी के संग उड़ जाते हैं पत्ते टूट के डाली से !
उस गुलशन का अंज़ाम यही हो गया बिछुड़ कर माली से !
***
भावों में डूबी इस चिट्ठी ने, दिल को कई
एहसास दिए !
अनचाही-चाही यादों के रंग-भीगे लम्हे ख़ास दिए !
***
अगला ख़त छूते ही घुल गई इत्र की गमक हवाओं में !
संतूर की मीठी झन-झन सुनाई देने लगी फ़ज़ाओं में !
अच्छा…! तो यह उसका ख़त है ! सबसे छुपा कर रखना है !
अच्छा…! तो यह उसका ख़त है ! सबसे छुपा कर रखना है !
जब घर में सब सो जाएंगे, तब चुपके-छुपके
पढ़ना है !
जाने कब वो आ बैठी, पहलू में मेरे चुपके से !
जाने कब वो आ बैठी, पहलू में मेरे चुपके से !
जिसके साथ खुली आंखों, कुछ सपने मैंने
देखे थे !
उस कमसिन नाज़ुक गुड़िया को न भूल सकूंगा जीवन भर !
प्यार दिया जिसने जी भर कर, तड़पाया भी
जी भर कर !
***
पंख लगा इक घोड़ा बन कर वक़्त गुज़रता चला गया !
आख़िर वह दिन आया, जब तक़दीर के हाथों
छला गया !
फिर… शहनाई थी, मातम था, …और आंसू थे, अफ़साने थे !
फिर… मिलन-जुदाई की घड़ियां थीं, …और बेबस दीवाने थे !
***
हाय रे ज़ालिम क़ासिद ! तू सारे ख़त ऐसे ही लाया ?
क्या बीतेगी पढ़-पढ़ कर दिल पर रहम तुझे कुछ न आया ?
***
कांपते हाथों' दिल
ने फिर हर ख़त पे निगाह उड़ती डाली !
कहीं दग़ा, नाकामी, कहीं ख़ुदग़रज़ी की छाया काली !
कुछ तड़पते अरमां, बुझी उम्मीदें, …तो कुछ टूटे सपने थे !
ग़ैर न थे लिखने वाले भी, सबके ही सब अपने
थे !
***
अभी तलक ना ख़त्म हुआ कुछ …वही सिलसिला जारी है !
वही हज़ारों रात से लंबी रात अभी तक जारी है !
न होंगे ख़त्म ख़ुतूत कभी …कॅ इनका आना जारी है !
दिल का दर्द भी जारी है ! अभी ज़िंदगी जारी है !
राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
***
63 टिप्पणियां:
जब तक जिन्दगी जारी है सभी के पास कभी खुशी कभी गम वाले ख़त आते ही रहेंगे...इसे रचना में सशक्त तरीके से पिरोया है आपने...सादर बधाई!!!
एक जैसे खतो से जीना भी बेमज़ा हो जाता है………बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
जीवन का सफ़र इसी तरह चलता है --ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर .
बहुत बढ़िया अंदाज़ में बयाँ किया है आपने अपना अनुभव जिंदगी का .
शुभकामनायें .
काश ये रातें और भी गाढ़ी होती जातीं..खत यूँ ही पढ़े जाते रहते।
दिल को छु गयी | इस खतों में पूरी ज़िंदगी जी गया | धन्यवाद
बस ऐसे ही जिंदगी चलती रहती है ..
आपकी कविताओं का जबाब नहीं ..
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
बस यही जिंदगी का फसाना है..
खूबसूरत बयानगी किस्सा गो स्टाइल की.
अच्छा लगा पढ़ना.
बचपन जवानी में सुख देखता है, जवानी बचपन में और बुढ़ापा दोनों को याद करता है
राजेन्द्र भाई
आपकी इस पोस्ट को शनिवार को प्रकाशित नई पुरानी हलचल में शामिल करूँगी
लगा जैसे कि मेरे कुछ ख़त आपके पास पहुँच गए हो,
प्रस्तुतीकरण बहुत ही भावपूर्ण,
कुँवर जी,
जीवन तेरे कितने रूप!
जिन्दगी की यही सच्चाई है,सुख दुःख तो जीवन में आते रहते,..दिल को छू गयी ये रचना,...राजेन्द्र जी बधाई .......
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
दिल का दर्द भी जारी है ! अभी जिन्दगी जारी है !
बहुत सुन्दर .....ह्रदयश्पर्सी रचना
बधाई राजेंद्र जी ...
Aadrniy rjendra ji, sabse pahle aapko hardik shukriya ,mere beti bachao karya ka aapne sarahna kiya.......
aur aapki is khat ke madhaym se sara ziwan ka utar chadaw, har rang mil gaye padhne ko.........aabhar
गम और खुशी के खत अंतस को छू गये...बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...आभार
शायद चचा ग़ालिब ही ने कहा था:
"यादे माज़ी अज़ाब है या रब,
छीन ले मुझसे हाफिज़ा मेरा."
मगर आपने तो खुशगवार और नाखुशगवार तमाम यादों को खूबसूरत माला में पिरोया है.
यादे ही जिंदगी का सरमाया है.
बहूत हि बढीया रचना है...
जवानी से अब तक के सफर में कभी ख़ुशी
और कभी गम के अपने खतो को बहूत हि सुंदरता से
रचना में प्रस्तुत किया है...:-)
बेहतरीन रचना....:-)
बहूत हि बढीया रचना है...
जवानी से अब तक के सफर में कभी ख़ुशी
और कभी गम के अपने खतो को बहूत हि सुंदरता से
रचना में प्रस्तुत किया है...:-)
बेहतरीन रचना....:-)
बचपन से यौवन तक कितने, रंग-बिरंगे खत आये
दुनियादारी शुरु हुई वो , खत आये, अब मत आये.
सबकी एक कहानी प्यारे , कोई रखे हिजाबों में
कोई सबको फूल दिखाये , कोई रखे किताबों में
रोना तो सबकी किस्मत में, आरी- पारी बारी है
न होंगे खत्म खुतूत कभी , अभी जिंदगी जारी है.
Sir g maine abhi tak jo bhi com Aaye hain maine saare ke saare pade hai par jo aapne likha hai usko koi nahi samjg saka hai sab ak dusre ko dekhakar aapne jo likha hIa ye aksar jawani me hp jata hai or ho bhi jaya hai...
Pr ab to
obile hain ......
अब हम उनसे ख्वाबों में ही मिलते हैं,
खत भी उनके रोज़ नींद में पढ़ते हैं !
सीधे उतरी दिल मे...वाह!! राजेन्द्र भाई...आपका जबाब नहीं/.
अद्भुत है आपकी कविता ... !
वाह!!
ख़त व्यक्तिगत इतिहास के विभिन्न अध्याय होते हैं।
बहुत सुंदर नज़्म।
bahut khub bahut badhiya
pankh lagane vali baat behad khubsoorat lagi
Bohot hi sundar aur kalatmak rachna.. behad pasand aai..
लगता है...आपने मुझे भावुक करके रुलाने का मन बना लिया है...!
अत्यन्त ‘चाव’ से लिखी गयी यह ‘भाव’-युक्त नज़्म पाठको की अपनी कथा-सी लगती है...!
यह भी लेखक की सफलता का एक चिह्न है कि पाठक उसके सृजन से तादात्म्य स्थापित कर सकें...!
बधाई!
राजेन्द्र जी ,
यही तो ज़िंदगी है जो हरपल रंग बदलती है ,कभी हंसती कभी रोती कभी जीने का ढंग बदलती है
चुराती है कभी नींदें ,दिखाती है कभी सपने ,कभी लगती सुहानी और कभी बदरंग लगती है |
सभी रंगों से अवगत कराती आपकी रचना मर्मस्पर्शी है ..बहुत-बहुत बधाई ....
डा. रमा द्विवेदी
पत्रों के हवाले से ज़िन्दगी को खूब उकेरा है राजेन्द्र भाई आपने, बहुत खूब
वाह: स्वर्ण्कर जी आप की लेख्नी का जवाब नहीं..बहुत खुबसूरत नज़्म लिखी है....मेरे ब्लांग में आनेऔर मुझे उत्साहित करने के लिये आभार......
bachapan se aaj tak kaa safar --- bahut khoob raha ---yahi to zindagi hai
सरल और सहज अभिव्यक्ति ....अपनों से ही सब मिलता है ......और जीवन घट भरता है ....!
शुभकामनायें राजेंद्र जी ...!!
सिलसिला तो अभी भी जारी है....
चिट्ठियाँ हैं कि आए ही चली जा रही हैं....!!
बहुत खूब ... बहूत हि बढीया रचना है...
lajabab prastuti ke sadar abhar
सारे जीवन की यादें ही
अक्सर साथ निभाती हैं !
न जाने कब डोर कटे,
कमजोर सी पड़ती जाती है !
एक दिवस तो जाना ही है,क्यों न जियें,यादों के गीत !
रात रात भर नींद न आये,कुछ अहसास कराते गीत !
दिल के दर्द के साथ ही तो जिंदगी है
सिलसिला जारी रहे
ज़िंदगी के अफसाने को खूबसूरती से लिखा है .... सुंदर प्रस्तुति
राजेन्द्र जी , आप का दिया मान-सम्मान
इतना भारी होता है ,,,की संभाले नही संभलता...
आप का ब्लाग मेरे ब्लाग पर खुल ही नही रहा था ...
खैर ...आप के कासिद ने हमारी उमंगें जवां कर दी
सारी भूली-बिसरी हमारी यादेँ बयाँ कर दी ......
बहुत सुंदर !
शुभकामनाएँ!
जिन्दगी का सच आपने बहुत अच्छी तरह से बयान किया है ....बहुत खूबसूरत ....आभार
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
bahut badiya bahut shandar
waah dil ke bhavon ko bina viram diye nazmon men piro diya hai.....excellent....
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से आभार।
बहुत सुंदर । हर आदमी का दर्द है इन खतों में ।
सशक्त रचना ... शुभकामनाएँ!
जिन्दगी के हर रंग को शब्दों में उतारा है आपने ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार ।
कितनी खूबसूरत रचना है राजेन्द्र जी ! पढ़ कर आनंद आ गया ! यादों का एक कासिद मेरे यहाँ भी
इसी तरह हर रात कोरियर लेकर आता है और ढेर सारी खट्टी मीठी यादों का उपहार हाथों में थमा जाता है ! देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ! मर्म को छू गयी आपकी यह रचना !
Roughly motivational place of duty you give rise to at this juncture. Seems to facilitate lots of relations enjoyed and benefited from it. Cheers and credit.
बेहद सुन्दर अंदाज़ में कही गयी नज़्म जिसमें बचपन से लेकर यौवन ....बल्कि पूरी जिंदगी का निचोड़ है ......लाजवाब और काफी हद तक माजी को याद दिलाने वाली इस नज़्म की रवानी देखते ही बनती है .....आप दिल तक पहुँचने में सफल रहे हैं यही एक कलमकार की सफलता होती है ....मुबारकबाद
मेरा एक शेर आपको समर्पित
लड़कपन , नौजवानी फिर बुढ़ापा
हमें किस्तों में कटा जा रहा है
बधाई स्वीकार करें
ऐसे ही जिंदगी चलती रहती है..
बेहतरीन रचना.
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
बहुत बढिया है सर जी.....
जब तक जीवन यूँ ही वक्त की चिट्ठी आती है, कभी सुख कभी दुःख कभी यादें पुरानी कह जाती हैं. बहुत अच्छी रचना. शुभकामनाएँ.
बहुत ही रुचिकर ....वाह
ये खट्टे मीठे दिन ही तो ज़िन्दगी का स्वाद बढाते हैं। अच्छी भावाभिव्यक्ति।
यूँ तो खत हमें भी आते हैं
यादों के
जो बिन पढ़े हम
अपने अरमानों की
संदूकची में दबाते चले जाते हैं ||
सही है, कुछ सुख दुख हम दूजों को देते हैं कुछ दूजे हमें और जब तक जीवन है यही सिलसिला चलता रहेगा।
घुघूती बासूती
bhawpoorn......
कुछ और नए ख़त भी तो होंगे ....
उनका ज़िक्र नहीं किया आपने .....?
सच कहा बाकी अफसानों के साथ जिन्दगी जारी है।
बहुत ही भावना पूर्ण प्रस्तुति
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