यार ! निगलने से पहले देख रोटियां !
ख़ून से हैं तर-ब-तर अनेक रोटियां !
बस्तियां हिंदू-मुसलमां , जिसकी भी जलें
आग कैसी भी कहीं हो ; सेंक रोटियां !
पाप पुण्य में बदलले ! झूठ सच बना !
चमचमाती-खनखनाती फेंक रोटियां !
ख़ासो-आम आसमां उथलने में लगे
ख़ुद सही-ग़लत लिखाए लेख रोटियां !
मर गया जाहिल कोई राजेन्द्र भूख से
पेट में वो डालता था नेक रोटियां !
-राजेन्द्र
स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra
Swarnkar
मेरी यह रचना
मेरे प्रथम हिंदी ग़ज़ल-नज़्म संग्रह “आइनों में देखिए” (2004)में
सम्मिलित है
मेरी यह रचना
मेरे प्रथम हिंदी ग़ज़ल-नज़्म संग्रह “आइनों में देखिए” (2004)में
सम्मिलित है
फेसबुक के मित्रों का आभार !
July 17, 2012========================== "शीर्षक अभिव्यक्ति" में उनवान ***रोटी/चपाती/फुलका*** पर मेरी रचना... ========================== यार ! निगलने से पहले देख रोटियां ! ख़ून से हैं तर-ब-तर अनेक रोटियां ! बस्तियां हिंदू-मुसलमां , जिसकी भी जलें आग कैसी भी कहीं हो ; सेंक रोटियां ! पाप पुण्य में बदलले ! झूठ सच बना ! चमचमाती-खनखनाती फेंक रोटियां ! ख़ासो-आम आसमां उथलने में लगे ख़ुद सही-ग़लत लिखाए लेख रोटियां ! मर गया जाहिल कोई ‘राजेन्द्र’ भूख से पेट में वो डालता था नेक रोटियां ! -राजेन्द्र स्वर्णकार ©copyright by : Rajendra Swarnkar ========================== गोविन्द हांकलाजी द्वारा सुझाये गए शीर्षक पर मुझे मेरी यह पुरानी रचना याद आ गई, जो मेरे प्रथम हिंदी ग़ज़ल-नज़्म संग्रह “आइनों में देखिए” (2004) में सम्मिलित है । राजेन्द्र स्वर्णकार बीकानेर - राजस्थान मोबाइल नं : 09314682626 ईमेल : swarnkarrajendra@gmail.com visit : http:// visit : http:// ========================== |
36 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर राजेंद्र जी...
बड़े दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने मिली...
मन को छू गयी..
सादर
अनु
वाह जबरदस्त कटाक्ष में लिपटी ग़ज़ल मस्तिष्क में हलचल मचादी इस ग़ज़ल ने बधाई प्रिय राजेन्द्र जी
वाह भाई जी ! बहुत दिनों बाद आए पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल लेकर आए हैं .
सोना चांदी न धन दौलत अपार
भूख मिटाती हैं बस नेक रोटियां !
सावन की शुभकामनाएं .
बहुत बढ़िया ग़ज़ल शुभकामनाएं .......
बहुत सुन्दर राजेंद्र जी...बहुत-2 शुभकामनाएं ..
waah bahut sundar likha aapne.....ek ek sher khubsurat hai...
वाह बहुत सुंदर ..
एक नजर समग्र गत्यात्मक ज्योतिष पर भी डालें
bhavatmak gazal सार्थक व् सुन्दर प्रस्तुति आभार समझें हम
दिल को छूती गज़ल...
अन्तिम शेर मैं सच की उत्कृष्टता लाज़वाब है !!
सुंदर गजल लिए, राजेन्द्र जी,,,बधाई,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
आग कैसी भी हो , सेंकने वाले सेक लेते हैं रोटियां !
व्यवस्था पर चोट करती भावपूर्ण रचना !
बढिया है।
बहुत खूब।
नेक रोटियों का स्वाद ही आजकल गायब हो गया है, शुभकामनाएं.
रामराम
बहुत ही सहज भाव से कही ..असहज बातें
बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने मिली..बहुत सुन्दर गज़ल..आभार..
और यह सब करने के बाद लोगों को सुकून से नींद कैसे आती है..
बहुत ही प्रभावी शेर हैं सभी इस गज़ल के ... मज़ा आ गया राजेन्द्र जी हकीकत से जुड़े इन शेरों को पड़ने के बाद ...
मर गया जाहिल कोई ‘राजेन्द्र’ भूख से
पेट में वो डालता था नेक रोटियां !
wah wah wah
kya shandar gazal badhaai bhaai ji !
पाप पुण्य में बदलले ! झूठ सच बना !
चमचमाती-खनखनाती फेंक रोटियां !
ख़ासो-आम आसमां उथलने में लगे
ख़ुद सही-ग़लत लिखाए लेख रोटियां !
nek roti khane wale sach me aaj bhukhe mar rhe hai ji
saty kaha aapne
badhai ho rajendra ji
-Sunita Sharma
.
Nisha Kothari
मर गया जाहिल कोई ‘राजेन्द्र’ भूख से
पेट में वो डालता था नेक रोटियां !
.......pura match hi achha khela
par last ball me to chhakaa maar diya ji !!!
भावमय करते शब्दों के साथ .. मन को छूती प्रस्तुति ।
बहुत ही बेहतरीन रचना..
बेहतरीन रचना
शSSSSSSSSSS कोई है
बहुत तेज़ धार लिए है आज की कविता.हर पंक्ति गहरा कटाक्ष लिए हुए.
यही है वर्तमान का सच...
भूख इंसान को क्या न करा दे और नेकी के रास्ते तकलीफदेह ही होते हैं !
sundar
कमाल की लेखनी है आपकी राजेंद्र भई !
बधाई !
व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष ...बहुत बढ़िया गजल
Rotiya kya kahu rachnake barte me just simply superb
बहुत सुन्दर राजेंद्र जी क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है. यूँ तो काफी समय के बाद आपको पढ़ने को मिला लेकिन जब मिला तो हर बार की तरह कुछ बहुत उम्दा.
मर गया जाहिल कोई राजेन्द्र भूख से
पेट में वो डालता था नेक रोटियाँ ..
आठ वर्ष पुरानी '' आइनों में देखती '' ग़ज़ल ...
आज भी उतनी प्रभावशाली ....
( ये रोटियाँ नहीं परांठे हैं वो भी आलू के ...)
अधिकांश जनता भी बेवकूफ है...खून से तर-बतर खुद हम ही करते हैं....खासकर भारत में तो धर्म के नाम पर दंगा करने की रिवायत चल पढ़ी है....इतिहास को दफन करने की बजाए गड़े मुर्दे उखाड़कर हम उसपर ही लड़ते रहते है....जबतक हम सुधरेंगे नहीं..समाज बदलेगा नहीं....तबतक राजनीति से उम्मीद बेकार है..क्योंकि ऐसी राजनीति करने वालों को हम ही अपना नुमाइंदा बनाते हैं....मगर कोई ये नहीं सोचता कि ऐसी नुमाइंदगी हमं आगे ले जाने की बजाय पीछे धकेलती है.....रोटी को खून से तर-बतर कर देती है..जिंदगी को बैरोनक कर देती है..हर सांस पर पहरा लगा देती है...
bahut hi sundar wa yatharth parak rachana
अहा!
लाजवाब!!
जो नेक रोटियां पेट में डालने के इच्छुक होते हैं, सच में वे भूख से बिलबिला कर मर ही जाते हैं।
अहा!
लाजवाब!!
जो नेक रोटियां पेट में डालने के इच्छुक होते हैं, सच में वे भूख से बिलबिला कर मर ही जाते हैं।
मन को उद्वेलित करने वाली भावपूर्ण रचना....
एक टिप्पणी भेजें