आज एक ग़ज़ल प्रस्तुत है
हाथ मारें , और… हवा के
नश्तरों को नोचलें
जो नज़र में चुभ
रहे , उन मंज़रों को नोचलें
शौक से जाएं
कहीं , पर… दर-दरीचे तोल कर
झूलते हाथों के
पागल-पत्थरों को नोचलें
मुद्दतों से
दूरियां गढ़ने में जो मशगूल हैं
खोखले ऐसे
रिवाजों-अधमरों को नोचलें
छोड़ कर
इंसानियत शैतां कभी बन जाइए
बरगलाते हैं जो ; ऐसे रहबरों को नोचलें
जो ; ग़ज़ल की सल्तनत को मिल्कियत ख़ुद की कहें
उन तबीअत-नाज़ीआना शाइरों को नोचलें
जो कहा
राजेन्द्र ने अपनी समझ से ठीक था
वरना उसके
फ़ल्सफ़े को , म श् व रों को नोचलें
-राजेन्द्र
स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
मिलते हैं दीवाली से पहले पहले
आप सबके स्नेह सहयोग सद्भावनाओं के लिए आभार
दीवाली की अग्रिम शुभकामनाएं !
29 टिप्पणियां:
शौक से जाएं कहीं , पर… दर-दरीचे तोल कर
झूलते हाथों के पागल-पत्थरों को नोचलें
बहुत खूबसूरत गज़ल
इंसानियत को छोडकर जब इंसान सैतान का रूप धारण कर लेता है तब मंजर खौपनाक तो होगा ही, लेकिन करे क्या......................
@ शौक से जाये कहीं पर, दर-दरीचे तौल कर,
झूलते हाथों के पागल पत्थरों को नोच लें,,,,,,,,,,
बेहतरीन गजल..................
आपको भी स:परिवार ज्योति पर्व दीपावली की ढेरों शुभकामनाये ! अग्रिम............
बेहतरीन पंक्तिया
दीवाली की शुभकामनाये
वाह ..
बहुत खूब
बहुत उम्दा ग़ज़ल!
बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
जो कहा राजेन्द्र ने , वही ठीक है .
अपनी ऐसी समझ कहाँ, कुछ सोच लें . :)
बस ऐसे ही तुकबंदी कर दी .
कहाँ बिज़ी रहते हैं आजकल!
भावो का सुन्दर समायोजन......
शौक से जाएं कहीं , पर… दर-दरीचे तोल कर
झूलते हाथों के पागल-पत्थरों को नोचलें
बहुत खूबसूरत गजल,,सुन्दर श्रृजन,,,,,
RECENT POST LINK...: खता,,,
क्या बात है वाह बहुत ख़ूब पेशकश राजेन्द्र भाई!
behtareen bavo ki samvedansheel abhivyakti, bahut khoob
बहुत उम्दा गजल ..बधाई
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 01- 11 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
इस बार करवाचौथ पर .... एक प्रेम कविता --.। .
मुद्दतों से ....
छोड़कर इंसानियत .....
बढ़िया ग़ज़ल
नए मिज़ाज़ की ग़ज़ल. बहुत बढि़या.
कब से नोचना चाहते हैं इन चोंचलों को।
वाह क्या बात हैं
बहुत ही उम्दा गजल
आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।
अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।
धन्यवाद !!
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html
वाह क्या बात हैं
बहुत ही उम्दा गजल
आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।
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शौक से जाएं कहीं , पर… दर-दरीचे तोल कर
झूलते हाथों के पागल-पत्थरों को नोचलें
वाह ... बहुत ही बढिया।
आभार
खूबसूरत प्रस्तुति।
har sher umdaygi ka namuna hai.
खूबसूरत ग़ज़ल...हर इक शे'र में सार्थक भाव के साथ अच्छा संदेश!!
सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएँ!!
बेहद उम्दा गजल....
वाह ..बहुत सुंदर गज़ल ..
छोड़ कर इंसानियत शैतां कभी बन जाइये..
बरगलाते हैं जो ,ऐसे रहबरों को नोंच लें...!!
पूरी गज़ल ही माशाल्लाह खूब है...!
एक नया अंदाज़....
माशाल्लाह....!!
waakai men aisa hi dil chahta hai pr..? unke jaisa bn nahi sakte n.....
Rebellious .. lyked it :)
बहुत शानदार प्रस्तुति हर अशआर बहुत बढ़िया बहुत बहुत बधाई एक पंक्ति मेरी भी ---जो देश को डुबाये उनकी कुर्सियों को नोच ले
प्रेरणादायक , उठ खड़ा होने को बाध्य करता ...आव्हान.
नोच ले तू नोच ले हाँ नोच ले,बस नोच ले ,
ज़ुल्म के हाथो से खूनी खंजरो को नोच ले.
http://hashimiyaat.mywebdunia.com
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