नमस्कार !
बहुत समय बाद आपके लिए एक ग़ज़ल ले’कर उपस्थित हुआ हूं
अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं से धन्य कीजिएगा
आज घिनौना रास बहुत है
चहुंदिश भोग-विलास बहुत है
भ्रष्ट-दुष्ट नीचे से ऊपर
परिवर्तन की आस बहुत है
आज झुका है शीश , हमारा
गर्व भरा इतिहास बहुत है
मारन को शहतीर न मारे
और कभी इक फांस बहुत है
कम करने को हर रितु का दुख
केवल इक मधुमास बहुत है
आशीषों की दौलत है क्या
यूं धन तेरे पास बहुत है
भाव प्रभावित करदे ; यूं लिख
शिल्प-जड़ित विन्यास बहुत है
रानी-दासी कुछ न कहे, पर...
राघव को बनवास बहुत है
पथ में तुलसी सूर कबीरा
है मीरा रैदास... बहुत है
आज मिली गुरु-चरणों की रज
मन में आज उजास बहुत है
नौका पार लगाएगा वह
ईश्वर पर विश्वास बहुत है
प्रभु मिलते राजेन्द्र उसे ; यदि
अंतर्मन में प्यास बहुत है
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
सादर
शुभकामनाओं सहित
21 टिप्पणियां:
BAHUT HEE SUNDAR AUR SARTHAK RACHNA
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" : चर्चामंच : चर्चा अंक :1438 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" : चर्चामंच : चर्चा अंक :1438 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" : चर्चामंच : चर्चा अंक :1438 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" : चर्चामंच : चर्चा अंक :1438 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" : चर्चामंच : चर्चा अंक :1438 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह.... बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !!
वाह.... बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !!
उत्तम सृजन.
क्या कहने ...खूबसूरत ..
--घिनौना है तो रास कहाँ भोग-विलास ही हुआ....
बहुत कुछ देखना मन को गवारा नहीं होता लेकिन न बदलने की सूरत में उस ईश्वर पर भरोसा करना ही पड़ता है ...क्योकि दुनिया उम्मीद पर ही कायम है ...
बहुत बढ़िया ....
बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-
वाह! बहुत उम्दा ग़ज़ल...हरेक शेर बहुत सारगर्भित और सटीक...
बेहद खूबसूरत और सटीक...
आपकी हर रचना की खासियत है कि सटीक कटाक्ष होने के बावजूद कहीं भी शब्द अपना भाव नहीं खोते हैं...! सुन्दर शब्द संयोजन...!!
वाह मित्रवर..हमेशा की तरह आपकी गजल दिल से निकली है.....बहुत कुछ याद आ गया..
एक- लाईन पढ़ते हुए लगता है ये पहले से अच्छी है ,और अन्त तक आते -आते हर पंक्ति पलट कर पढ़ने से भी जी नहीं भरता ....बहुत ही अच्छी लगी हर बात ..... आभार
परिवर्तन की आस लिए ....
बहुत ही लाजवाब गज़ल है राजेन्द्र जी ... हर शेर जैसे गहरी बात कह रहा है ... चेता रहा है ...
बहुत खूबसूरत... बधाई आपको.
उत्तम...इसके लिये आप को बहुत बहुत धन्यवाद...
नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
आशीषों की दौलत है क्या
यूँ धन तेरे पास बहुत है
बहुत खूब ....
लाजवाब ग़ज़ल कही आपने, एक से बढ़कर एक शेर हुए. दिली दाद कबूल करें....
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