पिछली प्रविष्टि जो शस्वरं की १००वीं प्रविष्टि भी थी ,
नव वर्ष के अवसर पर लगाई थी
कुछ ऐसे हालात रहे कि ब्लॉग पर लंबी अनुपस्थितियां रहीं ।
अब विक्रम नव संवत्सर २०७१ का भी शुभागमन है
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार ३१ मार्च २०१४ को
अब विक्रम नव संवत्सर २०७१ का भी शुभागमन है
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार ३१ मार्च २०१४ को
आप सभी को
नव संवत् की हार्दिक शुभकामनाएं !
नव संवत् की हार्दिक शुभकामनाएं !
और आज ३० मार्च को राजस्थान दिवस है
राजस्थान को समर्पित एक राजस्थानी गीत प्रस्तुत है
शायद आपको रुचिकर लगेगा
जय जय राजस्थान
सुरंग सुरीलो सोहणो , सुंदर सुरग समान ।
रढ़ियाळो रळियावणो, रूड़ो राजस्थान ॥
जय जय जय राजस्थान ! ओ म्हारा प्यारा रजथान !
ओ रूपाळा राजस्थान ! ओ रींझाळा राजस्थान !
बिरमाजी थावस सूं मांड्या, था'रा गौरव गान !!
ओ रणबंका रजथान ! ओ रंगरूड़ा राजस्थान !
ओ भुरजाळा राजस्थान ! ओ गरबीला राजस्थान !
गावै वीणा लियां सुरसती, था'रा कीरत गान !!
लुळ लुळ' सूरज किरणां इण माटी रौ माण बधावै सा ।
हाथ जोड़ियां आभो अपलक निरखै ; हुकम बजावै सा ।
मगन हुयोड़ो बायरियो कीरत में धुरपद गावै सा ।
नांव लियां ही मुरधर रौ, मन गरब हरख भर जावै सा ।
कुदरत मा मूंढ़ै मुळकै !
हिवड़ां हेज हेत छळकै !!
मस्ती मुख मुख पर झळकै !!!
इण माटी रौ कण कण तीरथ, सूरज, चांदो अर तारा ।
कळपतरू सै झाड़ बिरछ है ; गंगा जमुना नद नाळा ।
धोरां धोरां अठै सुमेरू ; मिनख लुगाई जस वाळा ।
शबदां शबदां में सुरसत ; कंठां कंठां इमरत धारा ।
मुरधर सगळां नैं मोवै !
इचरज देवां नैं होवै !!
सै इण रै साम्हीं जोवै !!!
वीरां शूरां री धरती री निरवाळी पहचाण है ।
संत सत्यां भगतां कवियां री लूंठी आण-बाण है ।
आ माटी मोत्यां रौ समदर, अर हीरां री खाण है ।
म्है माटी रा टाबरिया, म्हांनै इण पर अभिमान है ।
रुच रुच' इण रा जस गावां !
जस में आणंद रस पावां !!
मुरधर पर वारी जावां !!!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
भावार्थ
(अर्थ विस्तार न करते हुए भाव आप तक पहुंचाने का यत्न करता हूं)
सुरंगा सुरीला सुहावना सुंदर स्वर्ग के समान
ओजस्वी-तेजस्वी, बलशाली, गहन-गंभीर, स्मृतियों में बना रहने वाला है मेरा राजस्थान !
ओ राजस्थान ! ओ मेरे प्यारे राजस्थान ! ओ सुंदरतम राजस्थान ! ओ मुग्ध-मोहित कर देने वाले राजस्थान ! ब्रह्मा ने बहुत धैर्य के साथ तुम्हारी गौरव-गाथा लिखी है । तुम्हारी जय हो !
ओ रणबांकुरे राजस्थान ! ओ अद्वितीय सौंदर्य के स्वामी राजस्थान ! ओ बलशाली राजस्थान ! ओ गौरवमय राजस्थान ! स्वयं सरस्वती हाथ में वीणा लिये हुए तुम्हारा कीर्ति-गान गाती है । तुम्हारी जय हो !
राजस्थान की धरा पर अवरोहित सूर्य-किरणें झुक-झुक कर यहां की मिट्टी का मान बढ़ाती हैं । आसमान हाथ जोड़े हुए हर आदेश की पालना के लिए निर्निमेष निहारता रहता है । हहराती हुई हवा यहां मानो मस्ती में ध्रुपद-गायन करती रहती है । मेरी मरुधरा का नाम लेते ही मन हृदय प्राण गर्व और हर्ष से भर जाते हैं ।
यहां प्रकृति माता साक्षात् मुंह से मुस्कुराती है ।
यहां हृदयों में संबंधों की प्रगाढ़ता तथा विश्वास और प्रेम छलकते प्रतीत होते हैं ।
राजस्थान के जनमानस के मुखमंडल पर मस्ती झलकती रहती है ।
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !
राजस्थान की मिट्टी का कण-कण तीर्थ है, सूर्य है, चांद है, सितारा है ।
यहां के झाड़ और वृक्ष कल्पतरु हैं । नदियां-नाले गंगा-यमुना हैं ।
रेत का टील-टीला सुमेरु पर्वत है । यहां के नर-नारी गुणी हैं , यशस्वी हैं ।
शब्द-शब्द में सरस्वती है । कंठ-कंठ में अमृत की धार प्रवहमान है ।
(तभी तो) हमारी मरुभूमि सभी को सम्मोहित करती है ।
देवताओं को भी स्वर्ग से सुंदर राजस्थान देख कर आश्चर्य होता है ।
हर कोई हर बात के लिए राजस्थान की ही ओर निहारता है ।
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !
शूर-वीर-प्रसूता राजस्थान की धरती की निराली ही पहचान है ।
यहां के संतों , सत्यनिष्ठ लोगों , ईश-भक्तों और कवियों की प्रबल आन-बान है ।
राजस्थान की मिट्टी मोतियों का समुद्र और हीरों की खान है ।
हम इस मिट्टी के बच्चे , हमें इस पर अभिमान है , गर्व है , गुमान है ।
(इस लिए) हम बहुत रुचि से अपनी मरुधरा का यशोगान करते हैं और इस यश-गायन में आनंद और रस पाते हैं अपनी मरुधरा पर जान छिड़कते हैं ।
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !
यहां मेरे इस गीत को मेरी बनाई धुन में सुन लीजिए मेरी ही आवाज़ में
©copyright by : Rajendra Swarnkar
आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी
भावार्थ
(अर्थ विस्तार न करते हुए भाव आप तक पहुंचाने का यत्न करता हूं)
सुरंगा सुरीला सुहावना सुंदर स्वर्ग के समान
ओजस्वी-तेजस्वी, बलशाली, गहन-गंभीर, स्मृतियों में बना रहने वाला है मेरा राजस्थान !
ओ राजस्थान ! ओ मेरे प्यारे राजस्थान ! ओ सुंदरतम राजस्थान ! ओ मुग्ध-मोहित कर देने वाले राजस्थान ! ब्रह्मा ने बहुत धैर्य के साथ तुम्हारी गौरव-गाथा लिखी है । तुम्हारी जय हो !
ओ रणबांकुरे राजस्थान ! ओ अद्वितीय सौंदर्य के स्वामी राजस्थान ! ओ बलशाली राजस्थान ! ओ गौरवमय राजस्थान ! स्वयं सरस्वती हाथ में वीणा लिये हुए तुम्हारा कीर्ति-गान गाती है । तुम्हारी जय हो !
राजस्थान की धरा पर अवरोहित सूर्य-किरणें झुक-झुक कर यहां की मिट्टी का मान बढ़ाती हैं । आसमान हाथ जोड़े हुए हर आदेश की पालना के लिए निर्निमेष निहारता रहता है । हहराती हुई हवा यहां मानो मस्ती में ध्रुपद-गायन करती रहती है । मेरी मरुधरा का नाम लेते ही मन हृदय प्राण गर्व और हर्ष से भर जाते हैं ।
यहां प्रकृति माता साक्षात् मुंह से मुस्कुराती है ।
यहां हृदयों में संबंधों की प्रगाढ़ता तथा विश्वास और प्रेम छलकते प्रतीत होते हैं ।
राजस्थान के जनमानस के मुखमंडल पर मस्ती झलकती रहती है ।
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !
राजस्थान की मिट्टी का कण-कण तीर्थ है, सूर्य है, चांद है, सितारा है ।
यहां के झाड़ और वृक्ष कल्पतरु हैं । नदियां-नाले गंगा-यमुना हैं ।
रेत का टील-टीला सुमेरु पर्वत है । यहां के नर-नारी गुणी हैं , यशस्वी हैं ।
शब्द-शब्द में सरस्वती है । कंठ-कंठ में अमृत की धार प्रवहमान है ।
(तभी तो) हमारी मरुभूमि सभी को सम्मोहित करती है ।
देवताओं को भी स्वर्ग से सुंदर राजस्थान देख कर आश्चर्य होता है ।
हर कोई हर बात के लिए राजस्थान की ही ओर निहारता है ।
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !
शूर-वीर-प्रसूता राजस्थान की धरती की निराली ही पहचान है ।
यहां के संतों , सत्यनिष्ठ लोगों , ईश-भक्तों और कवियों की प्रबल आन-बान है ।
राजस्थान की मिट्टी मोतियों का समुद्र और हीरों की खान है ।
हम इस मिट्टी के बच्चे , हमें इस पर अभिमान है , गर्व है , गुमान है ।
(इस लिए) हम बहुत रुचि से अपनी मरुधरा का यशोगान करते हैं और इस यश-गायन में आनंद और रस पाते हैं अपनी मरुधरा पर जान छिड़कते हैं ।
ओ राजस्थान ! तुम्हारी जय हो !
यहां मेरे इस गीत को मेरी बनाई धुन में सुन लीजिए मेरी ही आवाज़ में
©copyright by : Rajendra Swarnkar
आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी
9 टिप्पणियां:
मन मुग्ध हो गया..शुभकामनाएं..
bahut sundar abhivyakti .aapko rajasthan divas v nav samvatsar kee bahut bahut shubhkamanyen .
मनमोहक बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
RECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )
मनमोहक अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर
Behad para genet pyarese Rjsthan ka
मनमोहक अभिव्यक्ति.
" लुळ लुळ' सूरज किरणां इण माटी रौ माण बधावै सा ।
हाथ जोड़ियां आभो अपलक निरखै ; हुकम बजावै सा ।
मगन हुयोड़ो बायरियो कीरत में धुरपद गावै सा ।
नांव लियां ही मुरधर रौ, मन गरब हरख भर जावै सा ।" और गर्व की अनुभूति हुवे राजेन्द्रजी सा के आपां इण मरुधरा में रह रयां हाँ और इण माटी रौ माण बधावै सा.....
" लुळ लुळ' सूरज किरणां इण माटी रौ माण बधावै सा ।
हाथ जोड़ियां आभो अपलक निरखै ; हुकम बजावै सा ।
मगन हुयोड़ो बायरियो कीरत में धुरपद गावै सा ।
नांव लियां ही मुरधर रौ, मन गरब हरख भर जावै सा ।" और गर्व की अनुभूति हुवे राजेन्द्रजी सा के आपां इण मरुधरा में रह रयां हाँ और इण माटी रौ माण बधावै सा.....
आनंद आ गया.. गीत के माध्यम से राजस्थान का शानदार चित्रण किया गया है...गायन की विशिष्ट शैली है....बधाई स्वीकारें...
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