धड़कनें सुरमयी-सुरमयी हैं प्रिये !
सामने कल्पनाएं खड़ी हैं प्रिये !
मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी मधुर
रंग में रश्मियां रम रही हैं प्रिये !
कामनाएं गुलाबी-गुलाबी हुईं
वीथियां स्वप्न की सुनहरी हैं प्रिये !
नेह का रंग गहरा निखर आएगा
मन जुड़े , आत्माएं जुड़ी हैं प्रिये !
तुम निहारो हमें , हम निहारें तुम्हें
भाग्य से चंद्र-रातें मिली हैं प्रिये !
इन क्षणों को बनादें मधुर से मधुर
जन्मों की अर्चनाएं फली हैं प्रिये !
मेघ छाए , छुपा चंद्र , तारे हंसे
चंद्र-किरणें छुपी झांकती हैं प्रिये !
बिजलियों से डरो मत ; हमें स्वर्ग से
अप्सराएं मुदित देखती हैं प्रिये !
मौन निःशब्द नीरव थमा है समय
सांस और धड़कनें गा रही हैं प्रिये !
बंध क्षण-क्षण कसे जाएं भुजपाश के
प्रिय-मिलन की ये घड़ियां बड़ी हैं प्रिये !
देह चंदन महक , सांस में मोगरा
भीनी गंधें प्रणय रच रही हैं प्रिये !
भोजपत्रक हैं तन , हैं अधर लेखनी
भावमय गीतिकाएं लिखी हैं प्रिये !
अनवरत बुझ रहीं , अनवरत बढ़ रहीं
कामनाएं बहुत बावली हैं प्रिये !
लौ प्रणय-यज्ञ की लपलपाती लगे
देह आहूतियां सौंपती हैं प्रिये !
उच्चरित-प्रस्फुटित मंत्र अधरों से कुछ
सांस से कुछ ॠचाएं पढ़ी हैं प्रिये !
रैन बीती , उषा मुस्कुराने लगी
और तृष्णाएं सिर पर चढ़ी हैं प्रिये !
मन में राजेन्द्र सम्मोहिनी-शक्तियां
इन दिनों डेरा डाले हुई हैं प्रिये !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
मित्रों, पहले तो कुछ पारिवारिक व्यस्तताएं रहीं । फिर बहुत समय से ब्लॉग में नई पोस्ट डालने का सिस्टम ही काम नहीं कर रहा था ।
समय निकाल कर हिंदी की इस शृंगारिक ग़ज़ल पर दृष्टि डालिएगा ।
तमाम ब्लॉगर और फेसबुक के नये-पुराने मित्रों की बहुमूल्य प्रतिक्रिया पा'कर रचनाधर्मिता को बल मिलेगा ।
शुभकामनाओं सहित
लौ प्रणय-यज्ञ की लपलपाती लगे
देह आहूतियां सौंपती हैं प्रिये !
उच्चरित-प्रस्फुटित मंत्र अधरों से कुछ
सांस से कुछ ॠचाएं पढ़ी हैं प्रिये !
रैन बीती , उषा मुस्कुराने लगी
और तृष्णाएं सिर पर चढ़ी हैं प्रिये !
मन में राजेन्द्र सम्मोहिनी-शक्तियां
इन दिनों डेरा डाले हुई हैं प्रिये !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
मित्रों, पहले तो कुछ पारिवारिक व्यस्तताएं रहीं । फिर बहुत समय से ब्लॉग में नई पोस्ट डालने का सिस्टम ही काम नहीं कर रहा था ।
समय निकाल कर हिंदी की इस शृंगारिक ग़ज़ल पर दृष्टि डालिएगा ।
तमाम ब्लॉगर और फेसबुक के नये-पुराने मित्रों की बहुमूल्य प्रतिक्रिया पा'कर रचनाधर्मिता को बल मिलेगा ।
शुभकामनाओं सहित
62 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना...
प्रेम पगी....
सादर
अनु
अनुराग के अनुपम रंगों से रची बसी अत्यंत सुंदर एवं अलंकारिक अभिव्यक्ति ! शुभकामनायें !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय,
शृंगार के संयोग पक्ष को इस खूबसूरती से निखार मिला है कि प्रस्तुत ग़ज़ल के शब्द-शब्द मुखर हो गये हैं.
आपकी इस अभिनव प्रस्तुति की शान में मेरे चार मिसरे -
आज कलियाँ प्रणय की खिली हैं प्रिये
तितलियाँ चाह की झूमती हैं प्रिये
धड़कनों से खिलें पुष्प पाटल कमल
धमनियों में उमंगें बही हैं प्रिये
सादर
लाजवाब। आज तक ऐसी श्रंगारिक ग़ज़ल तो क्या अन्य किसी विधा की रचना भी पढ़ने को नहीं मिली।
राजेन्द्र जी,
शृंगार को रसराज कहा गया है,अकारण ही नहीं.
और कवि-हृदय में उठती कामनाएं ,पूरे आवेग के साथ ललित शब्दावली में व्यक्त हो रही हैं.समूचा परिवेश कविता ने साकार कर दिया है.जैसा मनोरम भाव वैसा ही मनोहर चित्रण. आपकी समर्थ लेखनी का कमाल !
बहुत सुन्दर रचना ..
राजेन्द्र जी, बहुत ही सुंदर रचना है. मन प्रसन्न हो गया.
मन के तारों को झंकृत करती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई
मन के तारों को झंकृत करती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई
श्रंगार रस में रची ... मन के तारों को छेड़ती ... सुन्दर गज़ल ...
बहुत ही सुंदर, सुस्पष्ट,कोमल भावों से सुसज्जित रचना के लिये बहुत बहुत बधाई !!!!
बहुत ही सुंदर, सुस्पष्ट,कोमल भावों से सुसज्जित रचना के लिये बहुत बहुत बधाई !!!!
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
बेहतरीन श्रीगार से सजी रचना....
उम्दा प्रस्तुती
कोमल भावों में पगी, प्रेम को अभिव्यक्ति देती बहुत सुन्दर रचना...
यौवन की तपन से लबरेज़ तूफ़ानी रचना ने ३० साल पहले पहुंचा दिया भाई जी !
लाज़वाब प्रेमासक्त रचना !
कोमल भावों का प्रेममयी सुन्दर गुलदस्ता..आभार
शब्दों का सुन्दर श्रंगार...कोमल प्रेमभाव की सुन्दर रचना !!
शब्दों की जादूगिरी
वाह बहुत खूबसूरत शब्द रचना
गीत नहीं, यह प्रेम का जीवंत प्रकटीकरण है, आनंद आ गया.
अति सुन्दर।
अनुपम, अद्वितीय, अनूठा और बेजोड़ रचना …सुन्दर शब्दों का साथ पाकर भाव भी जीवंत हो उठे हैं ....
achchhi ghazal hai Swarnakar ji.
aapko hardik badhai.
Dr. Trimohan Taral
मित्रवर बड़े दिन बाद अलंकार औऱ हिंदी के मोतियों वाले शब्दों से जड़ी कविता पढ़ी है। बेहद खूबसूरत कविता है ... हो सकता है ये गजल हो..पर अपन को कविता लगी..औऱ बेहद ही मोहक...ये अलग बात है कि ये कविता हम जैसे छड़ों को तंग करने के लिए लिखी है आपने। इब दिल जला तो गर्मी में कहां शीतल जल के छीटों का प्रबंध करेंगे हम..हाहाहाह
शृंगार रस से ओतप्रोत, बहुत सुन्दर !
MAINE AISI ADHBUT RACHNA PAHLI BAAR DEKHI HAI...
BAHUT BAHUT BADHAI RAJENDRA JI......
Dinesh Raghuvanshi
शब्दों का सुन्दर श्रंगार...सुन्दर रचना !!
वाह, क्या कहने, बेहद सुंदर रचना, बधाई स्वीकार करें ।
prem ka sunder shragaar ,..bhaav mai samarpan liye huye bahut pyaari rachna ...swar ka bhi sunder snyojan ,addbhud
वाह शृंगार रस की कोमल अभिव्यक्ति। बहुत सुंदर लगी।
बहुत सुन्दर गजल है , गजल पढक़र भावनाओ का समंदर हिचकोले खाने लगा है प्रिये। ....
आदरणीय राजेंद्र जी सुन्दर गजल हेतु हार्दिक बधाई -- शशि पुरवार
श्रृंगार रस का अनुपम उदाहरण । एक एक भाव भंगिमा को कोमल शब्दों में अभिव्यक्त किया है । इस रचना हेतु बहुत बहुत बधाई
bahut sunder shringarik rachna
shubhkamnayen
शृंगार रस पर अनोखी और अनुपम कृति. हर एक शेर बहुत खूबसूरत और शृंगारमय. सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई.
Shree Rajendra Swarankar
This is the first time I have come across such a wonderful HINDI Gazal with its Romanticism in all spheres.
An excellent creation.
“Dil-se-Mubaarakbaad”
Siraj Patel ”Paguthanvi”
Secretary - Gujarati Writers’ Guild-UK (Estd:1973)
अति कोमल भावों से सुसज्जित और श्रृंगारित काव्य
और वो भी ग़ज़ल के रूप में … एक एक शब्द आनंद और
रमण के आभास की अनुपम , आलौकिक एवं अद्वितीय छटा
बिखरा रहा प्रतीत हो रहा है … विन्यास तथा शैली की दृष्टि से
रचना, निश्चित रूप से प्रशंसनीय है , अनुकरणीय है , उदाहरणीय है
यूँ मानिए कि अपने अल्प-ज्ञान के कारण, ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए
वो शब्द नहीं ढूंढ पा रहा हूँ जिनसे इस ललित-रचना को
इसका उचित सम्मान दे सकूँ ....
ढेरों ढेरों बधाई स्वीकारें .....
सुन्दरतम श्रृंगारित गीत....
"उच्चरित-प्रस्फुटित मंत्र अधरों से कुछ
सांस से कुछ ऋचाएं पढ़ी हैं प्रिये....!"
सांसों के आरोह-अवरोह का अद्भुत संयोजन....
शब्द शब्द प्रेम की भावना में मोती कि तरह पिरोया हुआ....!
"प्रेम में जब से डूबा है मन ये मेरा..
भावनाएं भी जिद पर अड़ी हैं प्रिये...!"
*** पूनम***
बस....
इतना ही कहना है...
"सुंदर...
अति सुन्दर..
सुन्दरतम..."
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ......
शब्द - स्वर - रङ्ग यानि शस्वरं अपने आप में एक विलक्षण प्रयास है। आप को बहुत बहुत बधाइयाँ। आप की रचनाओं में एक अद्भुत मिठास होती है, सौंधास होती है। ज़मीन से जुड़े हुये कवि हैं आप। अपरिमित शब्द-भण्डार है आप के पास। बहुत-बहुत बधाइयाँ। आप की इस रचना को मैं ने स्वयं आप के मुँह से सुना है। कई बार पढ़ चुका हूँ। आप के ब्लॉग की शोभा है यह रचना। बहुत-बहुत बधाइयाँ।
छायावादोत्तर श्रंगार-काव्य की प्रतिन्धि रचना लगती है । सुन्दर । विहान पर आने का धन्यवाद । देखते रहिये ।
अद्भुत शब्द संयोजन, उत्कृष्ट कृति. मानव जीवन की सबसे अमूल्य निधि है प्रेम. जीवन में जितना महत्व प्रेम का है, काव्य में उतना ही महत्व श्रृंगार रस का है. श्रृंगार रस में सराबोर बेहद खूबसूरत ग़ज़ल.
ब्लॉग पर टिप्पणी हेतु आभार…
अद्भुत शब्द संयोजन, उत्कृष्ट कृति. मानव जीवन की सबसे अमूल्य निधि है प्रेम. जीवन में जितना महत्व प्रेम का है, काव्य में उतना ही महत्व श्रृंगार रस का है. श्रृंगार रस में सराबोर बेहद खूबसूरत ग़ज़ल.
ब्लॉग पर टिप्पणी हेतु आभार…
बहुत ही सुन्दर ..प्रणय निवेदन करता हुआ सा गीत ...
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना ! राजेन्द्र जी.
सुंदर रचना ।
wow........amazing rachna...:-)
wow........amazing rachna...:-)
वाह! शृंगार रस में डूबी अद्भुत रचना!..आकर्षक चित्रों के साथ बेहद खूबसूरत प्रस्तुति.
अद्भुत शब्द संयोजन श्रृंगार रस में पगी रचना शब्दों के साथ रंग और चित्र भी प्रासंगिक ....
आपकी समस्त रचनाएं मुग्ध करती हैं, सभी एक दूजे से बढ़ कर सुन्दर व भावपूर्ण हैँ, भविष्य के लिए असंख्य शुभ कामनाएं - - नमन सह।
आपकी समस्त रचनाएं मुग्ध करती हैं, सभी एक दूजे से बढ़ कर सुन्दर व भावपूर्ण हैँ, भविष्य के लिए असंख्य शुभ कामनाएं - - नमन सह।
बहुत भाव से प्रभवमयि रचना है।
प्रत्येक शेर/बंद प्रेम की भावना से भीगा हुआ है।
आदरणीय ,
आपके ब्लॉग पर लम्बे समय बाद आना हुआ है। वैसे आपकी रचनाओं से परिचय होता रहता है फेस बुक के माध्यम से लेकिन आपके ब्लॉग पर आने का अलग ही आनद है। पिछला काफी कुछ पढ़ नहीं पाया हूँ अभी कोशिश रहेगी जल्द से जल्द इस नुक्सान की भरपाई कर लूँ।
बहुत सुन्दर और भावपूण श्रृंगार रचा है आपने. आनंद आ गया पढ़ कर. बहुत बहुत बधाई।
आभार
प्रेम से ओत प्रोत भावपूर्ण और लाजवाब रचना...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया
इस भावपूर्ण प्रस्तुति पर दुबारा दाद कबूल कीजिए....बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@
आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया(नई रिकार्डिंग)
प्रेममयी बहुत सुन्दर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई -----
आग्रह है---
नीम कड़वी ही भली-----
आपके गीतों की मधुरता बरबस ही मन में उत्तर जाती है ! शब्द और भाव दोनों का सामंजस्य इतना सुन्दर है कि पाठक इसमे डूबता ही चला जाय !
और इन पंक्तियों की तो बात ही अलग है :
"उच्चरित-प्रस्फुटित मंत्र अधरों से कुछ
सांस से कुछ ऋचाएं पढ़ी हैं प्रिये!"
बहुत अच्छी रचना है...हार्दिक बधाई...|
उम्दा और बेहतरीन... आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
अश'आर में मोती कैसे जड़े जाते हैं ये कोई आपसे सीखे। एक एक शे'अर सीधे दिल में उतर जाने की कूवत रखता है.इस लाजवाब श्रृंगारिक ग़ज़ल के लिए सादर बधाई निवेदित है, स्वीकार कर अनुग्रहीत करें आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार भाई जी.
वाह!! आनन्द आ गया...क्या बात है राजेन्द्र मेरे भाई
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